लन्दन की पार्लियामेंट स्क्वेयर पर टहलते हुए अचानक गांधी दिख गए. बेहद आश्चर्य हुआ. ब्रिटिश क्राउन का सबसे बड़ा ज्वेल- हिंदुस्तान !!! जिस इंसान ने अंग्रेजों से छीन लिया, उसी शख्स की तांबे से बनी सजीव मूर्ति, उन्हीं अंग्रेजों ने अपनी संसद के सामने…,सबसे आइकॉनिक लोकेशन पर लगाई हुई है ???
इस मूर्ति की पहले जानकारी न थी, कहीं पढ़ा न था. खोज की तो मालूम हुआ कि 2015 में ही यह मूर्ति लगी है. ब्रिटिश पीएम डेविड कैमरॉन ने गांधी के दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के शताब्दी वर्ष पर इसका अनावरण किया था.
क्या ही विडंबना है, जिस दौर में जब गांधी को हिंदुस्तान से नकारने की आंधी उठी, तब दुनिया में उनकी स्वीकृति बढ़ती जा रही है. और याद रहे, ये वैश्विक गांधी भारत के आइकन नहीं है. भुलावे में न आइये. यह गांधी की निजी शख्सियत है, यह उनका दैवत्व है. ईसा की आराधना फिलिस्तीन की पूजा नहीं. वैसे ही भारत तो गांधी का रंगमंच भर है.
यह सम्मान, उस शख्स की सहृदय स्मृति है, जिसके बारे में आइंस्टीन ने कहा- ‘आने वाली पीढियां यह विश्वास नहीं करेंगी कि हाड़ मांस का ऐसा शख्स कभी इस धरती पर हुआ था.’
रामचन्द्र गुहा ने 2013 में गांधी की जीवनी लिखी, जिसके प्रचार के लिए अमेरिका गये थे. किताब उनके बिस्तर पर थी, कमरा साफ करने आये होटल के कर्मचारी ने किताब की तस्वीर देखी और पूछा- ‘यह युवा गांधी हैं न ??’
वकील की पोशाक वाले जवान गांधी को किताब के कवर पर पहचाने जाने से विस्मित गुहा में हामी भरी. कर्मचारी ने कहा- ‘मेरे देश मे गांधी का बड़ा सम्मान होता है.’
अब पूछने की बारी गुहा की थी- ‘तुम्हारा देश कौन सा है ??’
‘डोमिनिकन रिपब्लिक’ – जवाब आया.
गांधी ने डोमिनिकन रिपब्लिक का नाम शायद कभी न सुना होगा लेकिन डोमिनिकन रिपब्लिक को गांधी का पता है.
वह जानता है कि गांधी का संदेश सत्य, अहिंसा, प्रेम, सहिष्णुता औऱ सत्याग्रह है. मनुष्यता है. ये आदिम जमाने में बुद्ध और ईसा के संदेशों की मौजूदा दौर में सततता है. इनका मूल एक है. ये फलसफा, किसी देश, किसी दौर के सफल पॉलिटिशियन की यादगार स्पीच नहीं. यह एक जीवन है, जीवन शैली है.
उस शताब्दी में दुनिया ने दो महायुद्ध देखे. जब भाषा, धर्म, रंग, रेस के आधार पर उच्चता का युद्ध, मानवता को विनाश के मुहाने तक ले जाये, तो थके मन को गांधी की बातें उसे वापस मनुष्यता की तरफ लौटा लाती हैं. इसलिए अमेरिका, जर्मनी, रूस, इटली समेत तमाम यूरोप, अगर गांधी को मानवता की रिसेंट मेमरी का मसीहा समझता है, तो इसका भारत से लेना देना नहीं है.
गांधी की महानता, उस निर्भीकता में है, जिसे उन्होंने प्रश्रय दिया. महान वही, जिसकी महानता आपको आतंकित न करे. जिसकी आप आलोचना कर सकते हैं.
100 सालों से गांधी की अहिंसा को कमजोरी और स्त्रैण बताया गया है. उनके राजनैतिक निर्णयों पर सवाल हुए, रेसिस्ट कहा गया, यौन व्यवहार पर टिप्पणियां हुईं. गांधी पर हर किस्म का विमर्श खुला हुआ है.
लेकिन चीन में माओ, पाकिस्तान में जिन्ना, वियतनाम में होची मिन्ह की आलोचना का विमर्श खुला नहीं. आप लिंकन और बेंजामिन फ्रैंकलिन पर सवाल कर नहीं सकते लेकिन गांधी, नकारने के लिए भी उपलब्ध हैं. उन्हें मानिये या न मानिये, आपकी मर्जी है…
पर आप जानते है कि गांधी से दूर जाता हर मार्ग भयावह है. वह नफरत, दुश्मनी, और विनाश की ओर लेकर जाता है. कौतुक में आप कुछ दूर जाते हैं, औऱ फिर खून का गुबार देख लौट आते हैं. अगर आप मनुष्य है तो आपको गांधी की ओर ही लौटना है.
क्योंकि गांधी ही आपकी ताकत है. गांधी, भीरुओं की ताकत है. एक आम भीरू, डरपोक, शांति चाहने वाला व्यक्ति जो विरोध से डरता है, क्रांति से डरता है, हथियार उठाकर आगे बढ़ने से डरता है, जो कानून, पुलिस, जेल, सरकार और मौत से डरता है, गांधी उसे वहीं से उठाते हैं.
उसे अहिंसक रहकर, निडरता से दिल की बात कहने का आग्रह करते हैं. आपके भीतर ये निडरता, भीतर के सत्य से आती है, कर्तव्य बोध जागने से आती है. दूसरों के दर्द को महसूस करने और उसे दूर करने की जिम्मेदारी से आती है. गांधी उस करुणा को जगाते हैं.
उनके हथियार मनोवैज्ञानिक है. वह चरखा कातने को कहते हैं, कपड़ों की होली जलवाते हैं, नमक बनवाते हैं. ये मामूली, हार्मलेस से कामों को प्रतिरोध का प्रतीक, क्रांति का हथियार बनाकर बापू, आपको को थमा देते हैं.
अब भीरू से भीरू आदमी, जो हथियार उठाने से डरता है, हत्या करने से डरता है, बम नहीं चलाना चाहता…तकली चलाता है. उसकी तरह लाखों चलाते हैं.
अब चरखा ही सबका रंग है, मजहब है, भाषा है. यह एकीकृत प्रतिरोध है. ये काम कोई अपराध नहीं तो इसके लिए आप जेल भी चले जाएं, तो भीतर कोई अपराध बोध नहीं, गर्व होगा. जब जेल जाना गर्व की बात बन जाये, तो उस कौम को कब तक दबाया जा सकता है. इसलिए बूंद बूंद प्रतिरोध से बना सागर, उस ब्रिटिश साम्राज्य को बहाकर ले जाता है, जिसमें सूर्य अस्त नहीं होता था.
उसी पार्लियामेंट स्क्वेयर में विंस्टन चर्चिल की भी मूर्ति लगी है. जिस प्रधानमंत्री ने युद्ध लड़ा, साम्राज्य बचाया, बनाया. वही चर्चिल, जिसने वार एफर्ट के लिए बंगाल का चावल ब्रिटेन मंगवाकर, बंगाल के 4 लाख लोगों को भूखा मरने पर मजबूर कर दिया. और जब इन मौतों की सूचना प्राइमिनिस्टर तक पहुंची, तो फाइल नोटिंग पर पूछा- ‘देन वाय हैवन्ट गांधी डाइड येट ???’
लेकिन गांधी मरा नहीं. वह फैल गया, दुनिया के हर कोने में. आज ब्रिटेन सिकुड़ चुका है, और जितने देशों में गांधी की मूर्तियां लग चुकी, उस साम्राज्य में सूरज अस्त नहीं होता.
तो क्या हुआ जो भारत से उन्हें हटाने की कोशिशें है ! यह तो बुद्ध के साथ भी किया है. लेकिन बुद्ध दुनिया से नहीं मिटे. वैसे ही गांधी जरा भी नहीं हिलता. वह अपने कातिलों से निगाहें मिला रहा है, ठठा रहा है, हिंदुस्तान में…औऱ लन्दन में भी वह चर्चिल की पार्लियामेंट की ओर देखकर मुस्कुरा रहा है. आप सहसा सुन सकें, तो धीमी, गम्भीर सी आवाज आती है…’आई हैवन्ट डाइड येट!!!!’ (मैं अभी मरा नहीं हूं).
- मनीष सिंह
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Rajiva Bhushan Sahay
October 7, 2023 at 4:38 am
“आई हैवन्ट डाइड येट !!!”
~ ठीक यही वाक्य तो मेरे पिताजी ने अपने देहावसान के 4-5 दिन पहले सुनाई थी, जब बेहोशी में थे!