Home कविताएं मैं ईश्वर नहीं बनना चाहता

मैं ईश्वर नहीं बनना चाहता

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मैं ईश्वर नहीं बनना चाहता
मैं ईश्वर का अवतार भी नहीं बनना चाहता
क्यों कि ईश्वर और उनका अवतार बनने के लिए
मुझे दास की ज़रूरत होगी
और दास प्रथा के विरुद्ध हूँ मैं
मुझे नहीं चाहिए कोई भी छोटी लकीर
अपने नीचे
मैं चाहता हूं कि
जो भी वृत्त मेरी परिधि से निकले
बड़ा और बेहतर हो मुझसे
पूर्णाहुति तभी सार्थक है
जब आसमान सा फैल जाए मन
और अनंत हो सुख
ख़ुद को खाद बनाने का सुख

  • सुब्रतो चटर्जी

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