Home गेस्ट ब्लॉग आई डोंट वांट पॉलिटिक्स…!

आई डोंट वांट पॉलिटिक्स…!

4 second read
0
0
246
आई डोंट वांट पॉलिटिक्स...!
आई डोंट वांट पॉलिटिक्स…!

ऐसा नहीं है कि इस सरकार के खिलाफ गम्भीर आंदोलन नहीं हुए. बल्कि मुझे लगता है कि जितने छोटे-छोटे आंदोलन पिछले 8 – 9 साल में हुए है, उसका औसत पिछली सरकारों तुलना में ज्यादा है.

मगर इनमें से कोई वांछित नतीजे नहीं ला सका. किसान आज भी MSP के लिए इंतजार में है, CAA लागू है, वन रैंक वन पेंशन आयी नहीं, कर्ज माफ हुए नहीं, अग्निवीर योजना सिरे चढ़ चुकी है, रिक्रूटमेंट हो रहे हैं.

पहलवान भी अपने मेडल बहाकर कर न्याय पा सकेंगे, कोई गारंटी नहीं. इन सारे फेल रहे आंदोलनों का एक खास फीचर है – ये सारे गैर राजनीतिक आंदोलन थे.

कहने को ये जनता के आंदोलन है, पीड़ितों के आंदोलन हैं. विपक्ष के दलों का इनमें कहीं पार्टिसिपेशन नहीं रहा बल्कि आंदोलन करने वाले किसान, पहलवान, युवा खुद कहते रहे – वी डोंट वांट पॉलिटिक्स…! मोमबत्ती जलाकर, फोटो सोशल मीडिया में डालते रहे.

बिना राजनीतिक दलों के आंदोलन केवल फिल्मों में ही सफल होते हैं. ऐसी सरकार, जिसे सिर्फ वोट का गणित दिखता है. जो जानती है कि अंत में धर्म, जाति, पाकिस्तान के नाम पर 20 करोड़ वोट ले लेगी, दस बीस हजार प्रदर्शनकारियों से नहीं डरती.

वह डरती है की मुद्दे की हवा को, विपक्ष लहर में न बदल दे. 62 प्रतिशत विपक्षी वोट बिखर जाते हैं, अगर ये किसी एक दल के पीछे एक हो गए, तो सत्ता गयी. इसलिए वे चाहते है कि आप किसी पोलिटिकल पार्टी से दूर रहे.

और इसलिए पालतू मीडिया प्रश्न उछालता है – विपक्ष इस मुद्दे पर राजनीति क्यो कर रहा है? किसानों के बीच फलां राजनीतिक दल क्यों जा रहा है ? क्या शाहीन बाग फलां पार्टी से प्रायोजित है ? क्या अग्निवीर के विरोध के पीछे विपक्ष का हाथ है ? …

आंदोलन करने वाले इस ट्रेप में आ जाते हैं. वे अपना आंदोलन गैर राजनीतिक रखने का अनुरोध करते हैं. हद तो यह कि कोई नेता बिन बुलाये समर्थन जताने आ जाये तो मंच पर बिठाने, भाषण कराने से परहेज करते हैं.

पोलिटीकल पार्टी, किसी आंदोलन को टेक ऑफ स्टेज तक ले जाती हैं, सत्ता परिवर्तन का भय बनवाती है, सरकार उस भय में आकर सुनती है, मांग मानती है.

फिर आंदोलन, आयोजन, मीडिया अटेंशन, टॉकिंग पॉइंट बनाना एक कला है. इसके लिए नेटवर्क चाहिए, कोऑर्डिनेशन चाहिए. संसद से सड़क तक, देश के कोने-कोने में आपकी बात की गूंज गूंजनी चाहिए. दस हजार सोशल मीडिया हैशटैग से आंदोलन सफल नहीं होते. इसके लिए आपको राजनीतिक दल चाहिए.

पिछले कुछ बरसों में लगभग सभी आंदोलन में, किसान से पहलवान तक, पीड़ितों ने गैर राजनीतिक बनने की मूर्खता की. अपने आंदोलन के माथे पर फेलियर की लकीरें उसी वक्त लिख ली.

गैर राजनीतिक आंदोलनकारी कितना भी रोये, चिल्लाएं, ट्वीट करें, गोली खायें…वे लड़ाई हार चुके हैं. पहले कदम पर ही हार चुके थे…बिकॉज, दे डोंट वांट पॉलिटिक्स…

  • मनीष सिंह

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…