हैदरपोरा एनकाउंटर की खबर ने एक बार फिर मेरा दिमाग सुन्न कर दिया है. जब भी एनकाउंटर या क्रास फायरिंग में किसी के मारे जाने की खबर सुनती हूं तो विचलित हो जाती हूं क्योंकि ऐसे 99.9% मामले फर्जी होते हैं.
पूर्वोत्तर में आदिवासी और कश्मीर में मुस्लिम युवा ही ज्यादातर इसका शिकार होते हैं, जिनको आराम से नक्सली और आतंकी कहकर मौत की नींद सुलाया जा सकता है. और यकीन मानिए इस पर किसी को शक भी नहीं होता.
हैदरपोरा एनकाउंटर में जो 4 लोग मारे गए हैं, उनके नाम हैं – मोहम्मत अल्ताफ़ बट, मुदासिर गुल, गुल के सहायक आमिर मागरे और एक विदेशी अनाम.
आमिर मागरे के अब्बू ने खुद सेना के साथ मिलकर आतंकवादियों को मारा, जिसके लिए उनको 2005 में राज्यपाल से पुरस्कार भी मिला. हिंदू और हिंदुस्तान में जबरदस्त आस्था रखने वाले आमिर के परिवार को 15 सालों से पुलिस सुरक्षा मिली हुई है. इनके देशभक्त वालिद को बेटे का शव भी देखने को नहीं मिला. आमिर के पूरे गांव का कहना है कि आमिर एक निर्दोष और मेहनती लड़का था. वो आतंकी नहीं था.
अल्ताफ भट पिछले 30 सालों से हैदरपोरा बाईपास में कारोबार कर रहा था. इसने भवन मुदासिर गुल को किराए पर दिया था और मुदासिर गुल (किरायेदार का) सत्यापन पुलिस थाने सदर में कराया था. इसके भाई का भी कहना है कि पुलिस वाले इसके यहां आते जाते चाय वगैरह पीकर जाते थे. अगर कोई शक था तो बात कर सकते थे.
मुदासिर गुल पेशे से दांत का डॉक्टर था और उसका भी कोई आतंकी गतिविधि में लिप्त होने का प्रमाण नहीं था. न्यूज़ चैनलों को वहां के एक चश्मदीद ने बताया कि पांच बजे के क़रीब फरान पहनकर (कश्मीरी लिबास) कुछ सुरक्षाकर्मी आए. सबके फ़ोन छीने. कुछ समय के बाद अल्ताफ़ और मुदासिर को ले गए. कुछ समय के बाद फायरिंग हुई और फिर दोनों वापस नहीं आए.
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा, ‘पुलिस मानती है कि वे इमारत के मालिक (अल्ताफ) और किरायेदार (गुल) को इमारत में ले गए और दरवाजे खटखटाने के लिए उनका इस्तेमाल किया. फिर इन लोगों को आतंकवादी कैसे कहा जा सकता है ? जिन्हें मारा गया वे नागरिक हैं.’
कश्मीरियों से धारा 370 छीन ली पर इस तरह बिना जांच पड़ताल उनके जीने का हक तो मत छीनिए. ऐसे हासिल करेंगे हम कश्मीरियों का विश्वास ? माननीय सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि इस मामले की सीबीआई जांच साफ-सुथरी छवि वाले अधिकारियों से कराकर 3 महीने में सच से पर्दा उठाए. देश में इतना तो लोकतंत्र शेष रखिए कि उर्दू नाम वाले को उसकी अस्मत की रक्षा का हक बना रहे.
आज हम सबको अल्पसख्यकों और आदिवासियों की ढाल बनने की जरूरत है वरना इतिहास हमें माफ नहीं करेगा.
- आभा शुक्ला
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