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पटाखों पर पाबंदी से प्रदूषण रोकने के पाखंड में कितनी सच्चाई है ?

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हर समय भारत के त्योहारों पर खास करके ‘दीपावली पर पटाखा नहीं छोड़ना है क्योंकि इससे पर्यावरण प्रदूषण होता है’ कि समस्या और बातें हर कोई करता है. आज हम उन्हीं समस्याओं के आलोक में सच्चाईयों का रिसर्च करेंगे. चिंतन-मनन करेंगे कि वास्तव में यह सच्चाई क्या है ?

हमें जानना होगा कि अन्य देशों में क्या पहचान है ? वास्तव में अधिकांश देशों में नववर्ष की आगमन पर, स्वतंत्रता दिवस समारोह पर और अन्य महत्वपूर्ण मौकों पर आतिशबाजी किया जाता है और बड़े पैमाने पर पटाखे फोड़े जाते हैं. ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में नववर्ष के आगमन 2020 के अवसर पर $100,000 आतिशबाजी और पटाखों पर खर्च किया गया. इसमें करीब 8000 किलोग्राम की आतिशबाजी अपशिष्ट निकली.

अमेरिका के डिज्नी मनोरंजन स्थलों में प्रतिवर्ष करीब 5 करोड़ डालर की आतिशबाजी चलाई जाती है और करीब 40,000 किलोग्राम पटाखे छोड़े जाते हैं. संता दिवस के अवसर पर अमेरिका में प्रत्येक वर्ष 100 करोड़ डालर की आतिशबाजी पर खर्च किया जाता है और उनमें से 12 करोड़ किलोग्राम आतिशबाजी अपशिष्ट निकलती है.

सौ बात की एक बात यह है कि पश्चिमी देशों में खुशी के मौके पर पटाखे फोड़ना, आतिशबाजी करना, दिल खोलकर किया जाता है परंतु वहां की सरकार कभी किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं करती.

वास्तव में अगर किसी को प्रदूषण की समस्या से दिक्कत है तो इसके लिए उन्हें पूरी तरह साल भर कैंपेन चलाना चाहिए. दीपावली, होली, दशहरा, शादी, नव वर्ष उत्सव पार्टी के स्वागत आदि पर समरूप भाव से इसपर ध्यान देना चाहिए परंतु सिर्फ और सिर्फ भारतीय त्योहार दीपावली को टारगेट करना तर्कशक्ति की मूर्खता को सिद्ध करती है.

यहां पर एक और उदाहरण देना आवश्यक है. आजकल हर पढ़े-लिखे भारतीय के पास स्मार्टफोन होता है और हर भारतीय व्हाट्सएप का दीवाना है. सरकारी आंकड़ों से भी देखें तो भारत में इस समय 80 करोड आदमी फेसबुक, व्हाट्सएप और स्मार्ट फोन का उपयोग करता है. व्हाट्सएप में एक छोटा-सा संदेश करीब 4 ग्राम का कार्बन फुटप्रिंट निकाल देता है और अगर आप उसके साथ कुछ चित्र विचित्र भी भेजते हैं तो यह आंकड़ा बढ़कर 50 ग्राम कार्बन का हो जाता है.

अब मान लीजिए एक संदेश से मात्र 20 ग्राम कार्बन का फुटप्रिंट रोज का निकलता है और हम प्रदूषण विरोधी प्रेमी भारतीय करीब चार सौ करोड़ संदेश रोज भेज रहे हैं तो उनके हिसाब से कुल कार्बन फुटप्रिंट करीब 200,000,000 किलोग्राम होता है.

एक कार जब 5.2 किलोमीटर चलती है तो कार से 1 किलोग्राम से भी अधिक कार्बन वायुमंडल में समा जाता है. हर भारतीय जो पास वाली दुकान भी गाड़ी से जाता है, अपनी रौब दिखाने के लिए 10 गाड़ियां रखता है, भारतीय भी 1 साल में करीब 12000 किलोमीटर अपनी गाड़ी से यात्रा करते हैं.

अर्थात जितना व्हाट्सएप संदेश के द्वारा हम कार्बन पैदा करते हैं उतना कार्बन पैदा करने के लिए हमको 40,000 गाड़ियां साल भर तक चलानी होगी. इसके अलावे सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म से भी हैं जैसे कि इंस्टाग्राम, फेसबुक, टि्वटर इन सभी को इस में जोड़ते चले तो स्थिति बद से बदतर हो जाएगी तो फिर आखिर आप दीपावली पर पटाखे नहीं फोड़ने का ज्ञान कैसे दे सकते हैं ?

आज भारत में 50 करोड़ से ज्यादा लोग फेसबुक पर सक्रिय हैं. 1.80 करोड़ ट्विटर प्रेमी हैं तो वहीं 40 से 45 करोड़ इंस्टाग्राम पर अद्भुत रूप से सक्रिय होकर अपनी सोशल मीडिया प्रेम दिखाते हैं. इससे आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि अद्भुत प्रेम दिखाने के कारण जाने अनजाने में इन लोगों के द्वारा कितना कार्बन उत्पन्न किया जाता है और उस कार्बन का वायुमंडल में कितना, कब, कहां और कैसा प्रभाव पड़ता है, इसका तो सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है. तो फिर आप दीपावली पर पटाखे नहीं फोड़ने का ज्ञान कैसे दे सकते हैं ?

अब चलिए हम दूसरी महत्वपूर्ण बिंदु पर आते हैं. भारत एक गर्म जलवायु वाला देश है. इस गर्म जलवायु वाले देश में एसी कार, एसी वाले घरों का महत्व बढ़ जाता है. क्योंकि आज एसी की उपयोगिता महज ठंडा पैदा करना ही नहीं रह गया है बल्कि 50 टन 60 टन वाले एसी अपने हर कमरे में लगाना शानो शौकत और धनाढ्यता का प्रतीक भी बन चुका है.

रही बात आजकल के महाज्ञानी छात्रों की. भव्य महाज्ञानी छात्र भी स्कूल और कॉलेज में पूरी तरह से वातानुकूलित कक्षा में बैठकर पढ़ाई करते हैं और अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद यह छात्र एवं छात्राएं गांव में अपनी सेवा नहीं देना चाहते क्योंकि इन लोगों को गांवों में अपरंपार महिमा वाले एसी नहीं मिल पाएगा. ऐसी वातानुकूलित घर नहीं मिल पाएगा और इनके आने वाले बच्चे भी देहाती कहे जाएंगे क्योंकि घर से बाहर निकलते ही इन्हें गर्मी और सर्दी का अद्भुत प्रकोप बढ़ जाता है.

अब इन स्कूल और कॉलेजों से निकलने वाले अपरंपार एसी से कितनी क्लोरोफ्लोरोकार्बन निकलती है आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं. अब इस बात पर किसी ने कभी बहस किया है कि अमीर लोगों के बच्चे कभी सरकारी बसों में चढ़कर स्कूल पढ़ने नहीं जाते बल्कि वे अपने पिता के, माता की बीएमडब्ल्यू, मर्सिडीज, फेरारी या कीमती कार में बैठकर स्कूल जाते हैं. इस स्कूल जाने और आने के यात्रा में कितनी मात्रा में कार्बन का उत्सर्जन हुआ है, इसकी गणना कौन करेगा ? इसकी गणना की जिम्मेदारी क्या वे लोग लेंगे जो लोग यह कहते हैं कि दीपावली पर पटाखे तो नहीं फोड़ना चाहिए ? क्योंकि पटाखों से प्रदूषण फैलता है, क्या वे इसकी गणना की जिम्मेदारी लेंगे ?

अब हम चलते हैं और महत्वपूर्ण बिंदुओं पर. क्या आपने कभी सोचा है कि आप एक ऑफिस में काम करते हैं. उस ऑफिस के 50 कमरों में 70-80 एसी लगे होते हैं. उस एसी से आपको बड़ा आनंद आता है क्योंकि आपको एयरकंडीशनर रूम में रहकर काम करने में बड़े गर्व का एहसास होता है.

आप बड़े गर्व के साथ कहते हैं कि मैं एक मिनट भी बिना एसी के नहीं रह सकता, मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. गर्मी से क्या आपने कभी सोचा है कि आपके इस 1 मिनट एसी के बिना नहीं रह पाने की प्रवृत्ति से पर्यावरण को कितना प्रदूषण होता है ? जब आपने नहीं सोचा तब आपको यह अधिकार किसने दिया यह ज्ञान देने के लिए कि दीपावली पर पटाखे नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि इससे पर्यावरण प्रदूषण होता है ? ज्ञान देने से पहले जिम्मेदारी और कर्तव्य करना भी आवश्यक होता है.

हम इन सारी बातों को कहने की अर्थ यह है कि हम ठीक उसी प्रकार दीपावली के पटाखों पर पर्यावरण प्रदूषण के ज्ञान देते हैं. जिस प्रकार हम नदी नालों को प्रदूषित करते हैं परंतु हम अपने घर के पानी की बूंदों पर नियंत्रण नहीं करते हैं. इससे बढ़कर मूर्खता और क्या हो सकती है ?

हमारे देश में ‘जल बचाओ पानी बचाओ’ के बिंदु पर बड़े-बड़े ज्ञान दिए जाते हैं. आज हम उस बड़े-बड़े ज्ञान की केस स्टडी करेंगे. भारत की सबसे पवित्र नदी है गंगा. आज गंगा मैया अपने अस्तित्व की लड़ाई खुद लड़ रही है. हम गंगा के किनारे बैठ कर गंगा मैया के गंदगी का नजारा देखकर मात्र 1 मिनट के लिए चिंतित होने की कर्तव्य तो पूरा कर लेते हैं लेकिन उस गंदगी को साफ करने की कर्तव्य और जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेते.

गंगा के किनारे हर प्रकार की उद्योग स्थापित है. दवाई बनाने का उद्योग, कपड़े बनाने का उद्योग, सीमेंट उत्पादन का उद्योग, रासायनिक पदार्थों का उद्योग, परमाणु बिजली संयंत्र, बिजली के उपकरण बनाने का उद्योग, शीशा बनाने का उद्योग, कागज निर्माण उद्योग, चमड़ा निर्माण उद्योग बहुत ज्यादा है क्योंकि कानपुर चमड़ा का प्रमुख है और एक अध्ययन के अनुसार क्योंकि इन बातों को सभी भारतीय जानते हैं. पर वे फिर भी वह कपटपूर्ण व्यवहार का परिचय देते हैं.

इन उद्योगों से प्रतिदिन 300 से 400 करोड़ लीटर गंदा पानी गंगा मैया में जाकर गिरती है. परिणामस्वरूप गंगा मैया का पानी और अशुद्ध हो जाता है. प्रत्येक भारतीय इस बात को जानता है परंतु फिर भी वह भारतीय शाम के समय गंगा मैया के किनारे घूमने जाते हैं और अपने साथ खाने पीने के सामान की पॉलिथीन, चिप्स के पैकेट, बिसलेरी पानी बॉटल वहीं पर फेंक देते हैं क्योंकि ज्ञान देना और उस ज्ञान को अपने जीवन में उतारना दोनों ही अलग-अलग बातें होती है. जब आप उस ज्ञान को अपने जीवन में उतार नहीं सकते तो आप कैसे कह सकते हैं कि दीपावली पर पटाखे नहीं फोड़ना चाहिए ? क्योंकि दीपावली पर पटाखा फोड़ने से पर्यावरण प्रदूषण होता है ? आपको यह कहने का अधिकार किसने दिया ?

मनुष्य के हर कार्यों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण का प्रदूषण हो रहा है. मनुष्य जिस भोजन को सुबह शाम दोपहर करता है उस भोजन के उत्पादन में भी रसायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है. हम जो पानी पीते हैं उस पानी को छोड़ने के लिए भी बिजली वाले फिल्टर का उपयोग किया जाता है, जिससे प्रदूषण और अधिक बढ़ता है.

हम अपने घरों में ठंडा पानी पीने के लिए फ्रिज रेफ्रिजरेटरों का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि हमें ठंडा पानी चाहिए. उस वक्त हमको पर्यावरण प्रदूषण का ज्ञान समझ में नहीं आता क्योंकि फिर से क्लोरोफ्लोरोकार्बन की उत्पत्ति होती है. आज हर घर के हर कमरे में प्राइवेट फ्रिज होने का चलन बढ़ चुका है. तब जरा सोचिए कि आप के प्राइवेट फ्रीज रखने से कितना पर्यावरण प्रदूषण होता है ? अगर आप यह नहीं सोच सकते तो आपको यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि दीपावली पर पटाखा नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि पर्यावरण प्रदूषण होता है ?

  • अभिषेक भट्ट
    bhattabhilesh37@gmail.com

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