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सशस्त्र विद्रोह द्वारा देश का निर्माण कैसे होता है और कूटनीति क्या है ?

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देश का निर्माण कैसे होता है और कूटनीति क्या है ?

एक गांव है. उस गांव के एक व्यक्ति के खिलाफ किसी शिकायत पर कुछ सरकारी कर्मचारी उसे तलब करने उसके घर जाते हैं. वह व्यक्ति उन सरकारी कर्मचारियों के साथ जाने से मना कर देता है.

वह सरकारी कर्मचारी अब क्या करेंगे ?

मान लीजिये कुछ दिन बाद वो कर्मचारी फिर से उस व्यक्ति के पास जाते हैं, इस बार ज्यादा संख्या में. उस व्यक्ति के परिवार और दोस्त मिलकर उन सभी कर्मचारियों को मार के भगा देते हैं.

वह सरकारी कर्मचारी अब क्या करेंगे ?

वे पुलिस थाने जायेंगे और FIR करेंगे. इस बार पुलिस अपना एक आदमी भेजेगी. वह व्यक्ति और उसके दोस्त उस पुलिस वाले को भी मार के भगा देते हैं.

पुलिस वाले अब क्या करेंगे ?

पुलिस की पूरी गाड़ी जाएगी अस्त्र-शस्त्र के साथ. उस गांव में सभी लोग मिलजुल के रहते हैं, और उन सभी के पास कुछ हथियार भी हैं. गांव वाले मिल के पुलिस वालो को मार के भगा देते हैं.

पुलिस वाले अब क्या करेंगे ?

पूरी पुलिस फोर्स जाएगी इस बार. 100-200 पुलिस वाले. गांव वाले इस बीच और हथियार ले आते हैं और फिर से मिल के पुलिस वालो को मार के भगा देते हैं.

पुलिस वाले अब क्या करेंगे ?

शायद गृह मंत्रालय तक बात पहुंच चुकी होगी इतना होने के बाद. तो बिना पुलिस के रिपोर्ट किये ही गृहमंत्रालय प्रधानमंत्री को बोलेगा और प्रधानमंत्री रक्षा मंत्री को उस गांव में सेना भेजने को बोलेगा.

अगर उस गांव के लोग इसी बीच इतने बेहतरीन हथियार पा जाते हैं कि वे सेना का मुकाबला कर सकें और सेना को कई महीनो तक उलझाए रख सकें तो प्रधानमंत्री के पास क्या विकल्प रह जायेगा ?

कहानी की शुरुआत यहां से हुई थी कि उस गांव में किसी व्यक्ति को कुछ सरकारी कर्मचारी पकड़ने गए थे. तो जब सरकार के पास सारे विकल्प बंद हो गए तो सरकार को उस व्यक्ति के खिलाफ उस ‘वजह’ को भूलना होगा जिस कारण उसको सरकारी कर्मचारी पकड़ने गए थे.

मान लीजिये वह ‘वजह’ जिस कारण सरकारी कर्मचारी और उस व्यक्ति के बीच विवाद हुआ था वह थी कि उस व्यक्ति ने भारत के संविधान को मानने से मना कर दिया था और साथ ही भारत सरकार द्वारा सारे नियम-कानूनों को मानने से मना कर दिया था.

उसने घोषणा की थी कि वो अपना अलग देश चाहता है. इस मामले में उसके गांव वाले भी उसके साथ हो गए थे और अब जब सरकार ने उस गांव वालो की बात मान ली है तो वह गांव एक नया देश बन जायेगा.

लेकिन वो गांव एक नया देश बना कैसे ?

क्यूंकि उस गांव के लोगों के पास भारत की सेना से मुकाबला करने की ताकत थी. देश की सीमा तय होती है की उस देश की सेना कहां तक विचरण करती है. और अगर एक सीमा के लिए दो सेनाएं दावा ठोकें तो वह सीमा किस सेना के पास जाएगी यह तय होता है कि कौन-सी सेना ज्यादा मजबूत है.

ऊपर उदाहरण में पहले भारत की सेना उस गांव की सेना (लोगो) से ज्यादा मजबूत मालूम पड़ती थी, जिस वजह से वह गांव भारत का हिस्सा था. लेकिन जब उस गांव की सेना (लोगो) और भारत की सेना के मुकाबले में भारत की सेना ने ज्यादा नुकसान झेला तो उस गांव की जमीन पर से भारत की सेना का विचरण ख़त्म हो गया.

एक बात यहां बहुत ज्यादा ध्यान देने वाली है → उस गांव के लोगों के पास हथियार कहां से आये ? मतलब किसी देश ने उस गांव को हथियार दिए होंगे और जिस देश ने दिया होगा उस देश की सेना भारत की सेना से मजबूत होनी चाहिए, अन्यथा भारत की सेना सीधे उस देश पर हमला करके उस देश को गुलाम बना लेगी और वह गांव भी भारत की सेना से युद्ध हार जायेगा.

उदाहरण के लिए सिक्किम को नेहरू ने भारत का हिस्सा बनाया था सिक्किम की सेना भारत की सेना से कई गुना ज्यादा कमजोर थी और सिक्किम की मदद करने के लिए उस समय चीन इतना मजबूत नहीं था.

किसी भी देश में शाशन-प्रसाशन बन्दूक की नोक पर चलता है.

पुलिस से लोग डरते हैं क्यूंकि पुलिस के पास हथियार है और लोगो के पास नहीं. अदालतों से लोग डरते हैं क्यूंकि अदालत के फैसलों को लागू करवाने का काम सरकारी अधिकारी/कर्मचारी करते हैं जिनको न मानने पर पुलिस बन्दूक की नोक पर मनवाती है.

इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय राजनीती भी बन्दूक की नोक पर चलती है. भारत जैसे कमजोर देशो को अमेरिका, चीन और रूस जब मर्जी तब अपने अनुसार काम करने को मजबूर करते हैं, क्यूंकि अमेरिका, चीन और रूस की सेना भारत की सेना से बहुत ज्यादा मजबूत है. भारत अमेरिका की बात ज्यादा मानता है और चीन की कम क्यूंकि अमेरिका की सेना चीन की सेना से कई गुना ज्यादा मजबूत है.

क्या अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कूटनीति होता है ?

पेड मीडिया द्वारा कई ऐसे शब्द रचे गए हैं जिनका कोई मतलब ही नहीं है उनमे से एक है कूटनीति. अंतराष्ट्रीय राजनीति में कूटनीति जैसा कुछ नहीं होता हैं, सारी नीतियां, सारी कूटनीति, सारी रणनीति शक्ति तय करती हैं. शक्ति हथियारों में है.

जिस देश के पास स्वदेशी निर्णायक हथियार होंगे, उसकी नीतियां हर जगह चलेगी. जिस देश के पास हथियार निर्माण की तकनीक नहीं हैं उस देश के पास कोई शक्ति नहीं है उसे हर जगह झुकना पड़ेगा.

अमेरिका की कूटनीति का बेहतर होने का कारण एवं पूरी दुनिया में डॉलर के स्वीकार्य होने के कारण अमेरिका के पास निर्णायक हथियारों का होना है. लड़ो या गुलामी सहन करो, इसी प्रकार की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति चलती हैं. यदि लड़ने की ताकत नहीं होगी तो गुलामी सहन करनी ही पड़ेगी.

उदाहरण के लिये,  यदि चीन तय करता है कि हफ्ते भर में भारत के साथ युद्ध करना है और यदि अमेरिका या दूसरा देश कोई मदद नहीं करता है तो भारत का प्रधानमंत्री चीन से पूछेगा कि आपको क्या चाहिए ? तब चीन कहेगा कि मुझे इतने हाई स्पीड ट्रेन के ठेके चाहिए, इन इन क्षेत्रों में ऐसे -ऐसे कानून छापों.

अब यदि भारत चीन की शर्तें मान लेता है तो युद्ध टल जाएगा. यदि शर्ते नहीं मानेगा तो युद्ध मे जाना पड़ेगा. यहीं अंतराष्ट्रीय राजनीति है. वर्तमान में भारत युद्ध इसी प्रकार से टाल रहा है.

हथियार निर्माता देशों के धमकियों के अनुसार कानून छाप रहा है और युद्ध टाल रहा है. इस युद्ध टालने को भी पेड मीडिया बहुत से दूसरे शब्दों से ढकता है.

जैसे विनिवेश,निजीकरण, मेक इन इंडिया, वैश्वीकरण, SEZ (special economic zone), जैसे ढ़ेर सारे शब्द जो विदेशियो द्वारा भारत के संसाधनों को कानूनी रूप से लूटने में मदद करते है.

फलाने प्रधानमंत्री की कूटनीति बेहतर है या फलाने प्रधानमंत्री की कूटनीति खराब है जैसा कुछ नहीं हैं. ये बस नागरिको को नेताओ में उलझाकर रखने के लिये कहा जाता है. वास्तव मे ऐसा कुछ होता नहीं है.

सार यही है कि कूटनीति जैसा कुछ नहीं होता है. पेड मीडिया व पेड विशेषज्ञों द्वारा नागरिकों को गुमराह करने के लिये ये शब्द गढ़ा गया हैं. कोई भी राष्ट्र सच्चे अर्थ में आत्म निर्भर और शक्तिशाली तब कहा जाएगा जब वह स्वदेशी हथियारों में विकसित और आत्म निर्भर हो.

  • अशोक जैन

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