मंत्रीगण हरदम कहते रहते हैं जनता से
कि कितना कठिन होता है शासन करना
बिना मंत्रियों के
फसल ज़मीन में ही धंस जाती,
बजाय ऊपर आने के।
न ही एक टुकड़ा कोयला
बाहर निकल पाता खदान से
अगर चांसलर इतना बुद्धिमान नहीं होता
प्रचारमंत्री के बगैर
कोई लड़की कभी
राज़ी ही न होती गर्भधारण के लिए
युद्धमंत्री के बिना
कभी कोई युद्ध ही न होता
और कि सचमुम सूरज उगेगा भोर में
बिना फ़्यूहरर की आज्ञा के
इसमें बहुत सन्देह है,
और अगर यह उगा भी तो,
गलत जगह ही होगा
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ठीक उतना ही कठिन है,
ऐसा वे हमें बताते हैं
चलाना एक फैक्टरी को
बिना उसके मालिक के
दीवारें ढह पड़ेंगी और
मशीनों में ज़ंग लग जायेगी,
ऐसा वे कहते हैं
भले ही एक हल बना लिया जाये कहीं पर
यह कभी नहीं पहुंचेगा खेत तक
बिना उन धूर्तता भरे शब्दों के
जिन्हें फैक्टरी मालिक
लिखता है किसानों के लिएः
कौन उन्हें बतायेगा
उनके सिवा कि हल मौजूद हैं ?
और क्या होगा जागीर का
अगर ज़मींदार न हों ?
निश्चय ही वे बो देंगे राई
जहां बोना था आलू ?
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अगर शासन करना सरल होता
तो कोई ज़रूरत न होती
फ़्यूहरर जैसे अन्तःप्रेरित
दिमाग़ वालों की
अगर मज़दूर जानते कि
कैसे चलायी जाती है मशीन
और
किसान जोत-बो लेते
अपने खेत घर बैठे ही
तो ज़रूरत ही न होती
किसी फैक्ट्री मालिक या ज़मींदार की
यह तो सिर्फ़ इसीलिए है कि
वे सब हैं ही इतने जाहिल
कि ज़रूरत होती है
इन थोड़े-से समझदार लोगों की
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या फिर ऐसा भी तो हो सकता है
कि शासन करना इतना कठिन है ही इसीलिए
कि ठगी और शोषण के लिए ज़रूरी है
कुछ सीखना-समझना
- बेर्टोल्ट ब्रेष्ट
अनुवादः विश्वनाथ मिश्र
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