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हिंसक होकर हम हिंसा से मुक्त कैसे हो सकते हैं !

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हिंसक होकर हम हिंसा से मुक्त कैसे हो सकते है !
हिंसक होकर हम हिंसा से मुक्त कैसे हो सकते है !
हिमांशु कुमार

मनुष्य हिंसा मुक्त दुनिया बनाना चाहता है. लेकिन मनुष्य का परिवार समाज, मजहब, राजनीति सब हिंसा से भरे हुए हैं. परिवार में रिश्तों का आधार एक का ताकतवर होना दूसरे का कमजोर होना है. जैसे ही परिवार में दोनों बराबर ताकतवर होते हैं परिवार टूटने लगता है. हमने बिना अपनी बात मनवाये रिश्ते को चलाना सीखा ही नहीं है. परिवार से हमें दूसरे को दबाने का आदत पड़ती है. यही प्रयोग हम समाज में करने निकलते हैं.

हम समाज में अपने अलावा दूसरों को अपने से कमजोर छोटा और नीचा देखना चाहते हैं. तो हम मजहब के आधार पर दूसरों को नीचा हीन छोटा खराब साबित करने में अपनी ताकत लगाते हैं और जब ऐसा नहीं कर पाते तो हिंसा पर उतर आते हैं. हम अपने पड़ोसी देशों को अपने से खराब छोटा और नीचा साबित करने की कोशिश करते हैं और जब वह नहीं कर पाते तो सेना के दम पर ऐसा करने की कोशिश करते हैं.

हम अपने ही समाज में जाति के आधार पर दूसरों को नीचा छोटा और खराब साबित करते हैं और उनके ऊपर बैठ कर खुद को श्रेष्ठ और महान साबित करके मजे करना चाहते हैं. महान बन कर दूसरे के दिमाग में बैठ जाना चाहते हैं और हम यह भी चाहते हैं कि हम दूसरों के दिमाग में कई पीढ़ियों तक बसे रहे हमें महान और ऊंचा मानकर इज्जत दी जाए और हमेशा याद रखा जाए. हमारी यह सारी हरकतें हिंसक है. हिंसा हमारी हरकतों से ही पैदा होती है.

क्या आप पूरी हिम्मत और पूरी ईमानदारी से हिंसा को दूर करना चाहते हैं. तो आपको यह ऑख खोलकर देखना ही पड़ेगा कि दुनिया में फैली हुई हिंसा के लिए आप खुद कितने जिम्मेदार हैं ?

आप दूसरे धर्म के लोगों की हत्या करने वाले लोगों को अपना नेता बनाते हैं. पड़ोसी देश के सिपाहियों को मारने वाले सिपाही आपके लिए बहुत वीर महान और देशभक्त होते हैं. आपके धर्म के आदर्श वह हैं जिन्होंने युद्ध किए. आपकी हिंसा आपके रिश्तों में आपके समाज में आप की राजनीति में आपके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैल जाती है. और समाज का पूरा तरीका हिंसा पर आधारित हो जाता है.

आप प्रकृति के प्रति हिंसक हो जाते हैं. आप जीव जंतुओं पर्यावरण देश के अन्य समुदाय दुनिया के दूसरे देश सब के प्रति हिंसा और नफरत से भरे हुए हैं. लेकिन फिर भी आप बेहोशी में कहते हैं कि आपको हिंसा पसंद नहीं है. बेशक एक हिंसा मुक्त समाज बनाया जा सकता है. लेकिन उसके लिए हिंसा मुक्त मनुष्य बनाना जरूरी है. सबसे पहले आप अपने हिंसा को पहचानिए.

पाकिस्तान बहुत बुरा है, अच्छा किसने बताया ? मीडिया ने. किसकी मीडिया ने पाकिस्तान की मीडिया ने या भारत की मीडिया ने ? भारत की मीडिया ने और क्या ? कभी पाकिस्तान की मीडिया को सुना है ? नहीं सुना. जैसे भारत की मीडिया पाकिस्तान को बुरा कहती है वैसे ही पाकिस्तान की मीडिया भारत को बुरा कहती होगी ?

हां, यह तो है. पाकिस्तान मीडिया को सुनने वाले पाकिस्तान के लोग भी भारत को बुरा समझते होंगे ? हां, ठीक बात है पाकिस्तान के लोग भारत को बुरा समझते होंगे. क्या भारत सचमुच में बुरा है ? नहीं, भारत तो अच्छा है. इसका मतलब है दूसरे देश की मीडिया हमारे देश को बुरा दिखाती है. हां बिलकुल जैसे भारत की मीडिया पाकिस्तान को बुरा दिखाती है और पाकिस्तानी मीडिया भारत को बुरा दिखाती है.

तो हमें सच जानने के लिए क्या करना चाहिए ? पाकिस्तान के बारे में वहां के लोगों से जानो. क्या तुम्हारा कोई पाकिस्तानी दोस्त है ? नहीं है तो बनाओ. आजकल सोशल मीडिया का दौर है. पाकिस्तान के लोग क्या लिखते हैं उस बारे में जानो. वहां के मानवाधिकार कार्यकर्ता, प्रगतिशील लोग क्या कह रहे हैं उस बारे में जानो.

भारत का प्रधानमंत्री खुद ही धर्म निरपेक्षता की मज़ाक उड़ाने वाली बातें अपने भाषण में बोलता है. अगर पाकिस्तान के लोग वह सुनेंगे तो यही समझेंगे कि पूरे भारत में कोई भी धर्म निरपेक्ष नहीं बचा ? लेकिन भारत में तो बहुत सारे लोग धर्म निरपेक्ष हैं ना ? इसलिए नेताओं और मीडिया की सुन सुन कर अपनी राय मत बनाओ थोडा और दिमाग को खोलो, थोडा और पढो. पाकिस्तान में भी हमारी तरह ही प्यारे लोग रहते हैं. उनके बारे में जानो.

अच्छा बताओ क्या सीमा पर खड़ा भारत का जवान पाकिस्तान के जवान को जानता है ? नहीं जानता. अच्छा क्या भारतीय जवान, पाकिस्तान के जवान पर अपनी मर्जी से गोली चला सकता है ? नहीं चला सकता, अफसर का आदेश मिलने पर गोली चलाता है. क्या सेना का अफसर सरकार के आदेश के बिना गोली चला सकता है ? नहीं, अफसर को सरकार आदेश देगी तभी वह गोली चलाएगा. यानी युद्ध तभी होगा जब सरकार चाहेगी ? हां, यह तो सच बात है. यानी गलती पाकिस्तानी सैनिक या भारतीय सैनिक की नहीं है सरकारों की है ? हां, यही लगता है.

अच्छा, सरकार क्यों चाहती है कि सीमा पर तनाव बना रहे ? सरकार तनाव क्यों चाहेगी भला ! वह तो शांति की कोशिश करती रहती है. नहीं, सरकार में बैठे लोग कभी नहीं चाहते कि तनाव खत्म हो. अगर शांति हो गयी तो हथियारों की खरीदी कैसे होगी ? हथियारों की खरीदी में जो कमीशन होता है उससे चुनाव लड़े जाते हैं. अफसरों और नेताओं की अय्याशी वाली जीवन शैली चलती है.

पाकिस्तान का हव्वा दिखा कर रोज़गार, गरीबी, मज़दूर, किसान, महंगाई के मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाया जाता है, पाकिस्तान में भी भारत का हव्वा दिखा कर जनता को ऐसे ही बेवकूफ बनाया जाता है.

अगर आपको एक ऐसा विडिओ मिले जिसमें पाकिस्तान में मुसलमान एक तिलकधारी हिन्दू की गर्दन पकड कर उसे सडक पर पीट पीट कर मार रहे हों, और वो हिन्दू मर जाय और पाकिस्तान की पुलिस उस मरे हुए हिन्दू के ऊपर ही केस दर्ज कर दे, तो आप क्या कहेंगे ? आप यही कहेंगे ना कि देखो पाकिस्तान कितना खराब देश है. वहां हिन्दुओं की हालत कितनी खराब है ?

लेकिन जब राजस्थान के अलवर में एक मुसलमान किसान पहलू खान को गोरक्षकों ने सडक पर पीट कर मार डाला और पुलिस ने उस मरने वाले किसान के ऊपर ही केस बना दिया, तब पाकिस्तान वालों ने भारत के बारे में क्या सोचा होगा ? यही सोचा होगा कि भारत कितना ज़ालिम और साम्प्रदायिक देश है और हिन्दू कितने बदमाश होते हैं. लेकिन क्या भारत सचमुच बदमाश देश है ? नहीं कुछ लोग बदमाश हैं. ठीक है. तो इसी तरह पाकिस्तान में भी कुछ ही लोग बदमाश हैं.

अच्छा यह बताओं पेशावर में स्कूल के बच्चों को गोली से भूनने वाले आतंकवादियों को अगर वहां की अदालत बरी कर दे तो आप क्या कहेंगे ? यही कहेंगे कि देखो पाकिस्तान में आतंकवादियों को भी छोड़ देते हैं. बिलकुल आतंकवादी देश है.

अच्छा, भारत में बिहार के लक्ष्मणपुर बाथे और बथानी टोला में सवर्ण जाति की सेना के गुंडों ने दलितों के बच्चों को जिंदा जला दिया था और भारत की अदालतों ने उन गुंडों को बरी कर दिया था. तब आपने यह क्यों नहीं कहा कि भारत की अदालतें हिन्दू आतंकवादियों को छोड़ देती हैं और आतंकवादियों का समर्थन करती हैं ?

अच्छा, अगर पाकिस्तान के किसी थाने के भीतर किसी अल्पसंख्यक कबायली लडकी के गुप्तांगों में कोई मुसलमान पुलिस अफसर पत्थर भर देता और पकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट उस अफसर को कोई सजा ना देता और पकिस्तान का राष्ट्रपति उस मुसलमान अफसर को वीरता पुरस्कार देता तो आप क्या कहते ? यही कहते ना कि देखो पाकिस्तान की अदालतें और सरकार भी कितनी बदमाश हैं ?

तो भारत की अदालत ने जब सोनी सोरी की आज तक सुनवाई नहीं करी और तो आपने ऐसा क्यों नहीं कहा ? और जब भारत के राष्ट्रपति ने उस पत्थर भरने वाले पुलिस अफसर को वीरता पुरस्कार दिया तो आपने क्यों नहीं कहा कि भारत कितना बदमाश देश है ?

मेरा कहना यही हम सब एक जैसी कमजोरियों से भरे हुए हैं. हमारा लक्ष्य अपनी कमजोरियों को पहचानना और उन्हें दूर करना होना चाहिए. दुसरे की कमियां ही देखते रहोगे तो खुद को नहीं सुधार पाओगे. हम भारत में रहने वाले हैं तो हमें अपनी कमियां देखनी और दूर करनी चाहियें. पाकिस्तान की कमियां देखते रहोगे तो खुद को कभी नहीं सुधार पाओगे.

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ROHIT SHARMA

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