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तुम कैसे आदमी हो

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तुम कैसे आदमी हो
नुक़्स पर नुक़्स निकालते रहते हो
कभी दाढ़ी में तिनका खोजते हो
कभी टैग लगे लिबास पर
लिबास के दाम देखते हो
मैग्निफाइंग ग्लास रख कर दाग देखते हो

साबित क्या करना चाहते हो
इतना नकारात्मक होना भी ठीक नहीं

हर किसी की
अपनी प्राइवेसी है
जिसका सम्मान होना है
किसी को खाने
किसी को खिलाने
तो किसी को खाने खिलाने
व दिखाने का शौक है
इसमें हमें क्या दिक्कत है

किस के घर दाल बनी
किसके यहां मट्टन करी
मुर्गमुसल्लम…या स्पेशल कुछ और
प्रथम नागरिक हो या गुमनाम अदना
हर एक को हक है
खाने पहनने
अपनी तरह और अपने तरीके से रहने का

अलबत्ता देखना तो यह था
कि किसके घर चूल्हा नहीं जला
आज की रात
क्यों उसे भूखा सोना पड़ा
क्यों उसके तन पर कपड़े नहीं हैं
क्यों स्कूल जाने लायक बच्चे
स्कूल नहीं जा पा रहे हैं,….,
इत्यादि इत्यादि

तुम्हारे धोती पहनने से
जब उसे दिक्कत नहीं है
तो तुम्हें क्यों दिक्कत है
इसके जिन और उसके बुर्क़े से

हम कौन होते हैं
किसी की प्राइवेट लाइफ़ में झांकने वाले
कौन क्या पढ़ता लिखता है
किसको सुनता, चुनता है
किसको वह खारिज करता है
यह उसकी पसंद की मर्ज़ी है
हम कौन होते हैं उसकी मर्ज़ी पर
अपनी मर्ज़ी थोपने वाले

वह मस्जिद जाता है या चर्च
जाने दो!
तुम्हारे पेट में मरोड़ क्यों उठती है
कौन रोक रहा है
तुम्हें, राम मंदिर या शिव मंदिर जाने से
तुम भगवा पहनो या नंगे रहो
कौन मना कर रहा है, तुम्हें
पहनने, नंगे रहने से

उसका घर गंदा है कहने से
अपना घर साफ नहीं हो जाता
घर साफ होता है
घर के साफ करने से

वह अल्लाहो अकबर कहे
तुम जय श्री राम बोलो
बोलो, खूब बोलो
जैसे वह अल्लाहों अकबर बोलने के लिए
तुम्हें मजबूर नहीं कर सकता
वैसे ही तुम जय श्री राम बोलने के लिए
उसे मजबूर कैसे कर सकते हो

यहां एक किताब भी है
जिसकी हम क़समें खाते हैं
उसके अनुरूप चलने की,
बातें लिखी उसमें मानने की
जब तक उस किताब के पन्ने दुरस्त हैं
तुम्हें हमें सब को
उसके अनुरुप ही चलना होगा
स्वेच्छा से चलें या मजबूरी से,
लेकिन चलना होगा

  • राम प्रसाद यादव

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