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होमो हाइडलबर्गेन्सिस : आधुनिक मानव की तमाम उपलब्धियां पुरानी मानव प्रजातियों द्वारा अर्जित की गयी उपलब्धियों की साझा विरासत है

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होमो हाइडलबर्गेन्सिस : आधुनिक मानव की तमाम उपलब्धियां पुरानी मानव प्रजातियों द्वारा अर्जित की गयी उपलब्धियों की साझा विरासत है
होमो हाइडलबर्गेन्सिस : आधुनिक मानव की तमाम उपलब्धियां पुरानी मानव प्रजातियों द्वारा अर्जित की गयी उपलब्धियों की साझा विरासत है. (फोटो इंटरनेट से लिया गया है जो कि हाइडलबर्गेन्सिस की खोपड़ियों के फॉसिल्स के आधार पर तैयार किया गया है.)
नवमीत नव

जर्मनी में एक शहर है जिसका नाम है हाइडलबर्ग. हाइडलबर्ग में इसी नाम से एक यूनिवर्सिटी है. इस यूनिवर्सिटी में एक लड़का पढ़ता था जिसका नाम था कलॉस बोनहोफर (Klaus Bonhoeffer). क्लॉस का जन्म 1901 में हुआ था. हाइडलबर्ग यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री लेने के बाद यह जर्मनी की लुफ्तहंसा एयरलाइन के लिये कानूनी सलाहकार के तौर पार कार्य करने लगे. फिर 1930 के दशक में जब जर्मनी में नाज़ियों का उदय हुआ और उन्होंने जर्मनी की सत्ता हथिया ली तो क्लॉस व उनका भाई नाज़ी विरोधी मोर्चे में शामिल हो गये.

जुलाई 1944 में क्लॉस व उनके ग्रुप ने हिटलर की हत्या का प्रयास किया लेकिन वह प्रयास असफल रहा. अक्टूबर 1944 में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. 2 फ़रवरी 1945 को उनके लिये मौत की सजा तय की गयी. 23 अप्रैल, 1945 को जबकि सोवियत सेनाएं बर्लिन में दाखिल होने वाली थीं, क्लॉस बोनहोफर व उनके भाई डियटरिच बोनहोफर को उनके सहयोगियों सहित नाज़ियों ने मौत के घाट उतार दिया, लेकिन उनकी शहादत व्यर्थ नहीं गयी. कुछ समय बाद ही लाल सेना ने जर्मनी को नाज़ियों से आज़ाद करवा दिया. हिटलर ने एक बंकर में खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली.

हिटलर को लगता था कि वह, उसकी नाज़ी विचारधारा और उसका शासन अजेय है. हिटलर अपनी जर्मन नस्ल को सर्वश्रेष्ठ मानता था. यह सिर्फ हिटलर की समस्या नहीं है. हमारे देश में भी बहुतेरे लोग अपनी जाति को दूसरों से श्रेष्ठ मानते हैं. उन्हें भी लगता है कि उनकी विचारधारा सनातन, शाश्वत और अजेय है. लेकिन इन्हें पता नहीं होता कि दुनिया में कुछ भी शाश्वत नहीं है, कुछ भी सनातन और अजेय नहीं है. श्रेष्ठ और हीन नस्ल या जाति कुछ नहीं होता. होमो सेपियंस यानी आधुनिक मानव यानी हम सभी सभी एक ही स्तर के हैं. हम एक दूसरे से श्रेष्ठ या हीन नहीं हैं. हम सब प्राचीन मानव प्रजातियों के वंशज हैं.

पिछली एक आलेख में हमने होमो इरेक्टस नामक एक प्राचीन मानव प्रजाति के बारे में पढ़ा था. होमो इरेक्टस के बाद आने वाली प्रजाति थी होमो हाइडलबर्गेन्सिस. इस प्रजाति का नाम इसी जर्मन शहर हाइडलबर्ग के नाम पर रखा गया है. हाइडलबर्ग शहर के पास एक गांव है माउआ (Mauer) जिसका जर्मन में अर्थ होता है दीवार. इस गांव के पास एक रेत की खदान है. 1907 में यहां खनन चल रहा था तो डेनियल हार्टमैन नामक एक मजदूर का कुदाल किसी कठोर चीज से टकराया. हार्टमैन ने रेत हटाया तो उसे किसी इंसान का जबड़ा मिला. लेकिन यह एक असामान्य रूप से मजबूत और बड़ा जबड़ा था जैसा उसने कभी नहीं देखा था.

इस फॉसिल (जिसे इस गांव के नाम पर Mauer1 का नाम दिया गया है) को ओटो स्कोतेन्साका (Otto Schoetensacka) नामक एक जर्मन प्रोफेसर व मानव विज्ञानी के पास ले जाया गया. उन्होंने इसकी जांच की तो पता चला कि यह किसी प्राचीन मानव प्रजाति का फॉसिल था. स्कोतेन्साका ने इस नयी प्रजाति को नाम दिया हाइडलबर्गेन्सिस. क्योंकि यह फॉसिल हाइडलबर्ग नामक इसी ऐतिहासिक शहर के पास मिला था.

यह कोई सामान्य खोज नहीं थी. इसने मानव के प्रागैतिहास व उद्विकास की तमाम अवधारणाओं व मान्यताओं को हमेशा के लिये बदल दिया था. हालांकि होमो हाइडलबर्गेन्सिस के उद्भव के बारे में हम अभी अधिक नहीं जानते हैं लेकिन इनके जीवाश्म रिकॉर्ड इनके उद्विकास की यात्रा के बारे में महत्वपूर्ण और रोचक जानकारियां उपलब्ध करवाते हैं. ऐसा माना जाता है कि हाइडलबर्गेन्सिस मानव अपने से पहली मानव प्रजातियों से विकसित हुए थे, संभवतः होमो इरेक्टस से.

होमो हाइडलबर्गेन्सिस को होमो सेपियंस और नियंडरथल मानव का संभावित साझा पूर्वज माना जाता है, लेकिन कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि अफ्रीकी हाइडलबर्गेन्सिस से होमो सेपियंस और यूरोपीय हाइडलबर्गेन्सिस से नियंडरथल विकसित हुए. कुछ वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि डेनिसोवा मानव का विकास भी हाइडलबर्गेन्सिस के किसी अलग समूह से हुआ होगा. हालांकि इन निष्कर्षों पर अभी भी वैज्ञानिक बहस जारी है.

यह मानव प्रजाति लगभग 600,000 से 200,000 साल पहले यूरोप, अफ्रीका और एशिया में निवास करती थी. शारीरिक तौर पर ये मजबूत कद काठी के स्वामी थी. नर का औसत कद 5’9″ और मादा का औसत कद 5’2″ होता था. इनका दिमाग़ भी काफ़ी विकसित था और कपाल क्षमता आधुनिक इंसान के लगभग बराबर ही थी यानी 1200 से 1400 क्यूबिक सेंटीमीटर.

ओके नवमीत, एक बात बताओ, होमो इरेक्टस से हाइडलबर्गेन्सिस और हाइडलबर्गेन्सिस से सेपियंस, नियंडरथल और डेनिसोवा कैसे विकसित हुए होंगे ? क्या यह संभव है कि आधुनिक मानव यानी सेपियंस से भी निकट भविष्य में कोई नयी मानव प्रजाति विकसित हो जायेगी ?

इसके लिये हमें स्पीशियेशन की प्रक्रिया को समझना पड़ेगा. आइये समझने की कोशिश करते हैं.

स्पीशियेशन वह प्रक्रिया है जिसमें एक स्पीशीज (जैव प्रजाति) से नयी स्पीशीज का विकास होता है. जब किसी स्पीशीज का कोई हिस्सा मुख्य आबादी से जेनेटिक तौर अलग हो जाता है और लंबे समय तक उनके बीच कोई सम्पर्क नहीं रहता तो कालांतर में यह अलग हुई आबादी नये गुण विकसित कर लेती है, जो इनके व मुख्य आबादी के बीच अन्तः प्रजनन को पर रोक लगा देते हैं. ऐसा होने के अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे भौगोलिक विभाजन, वातावरणीय कारक व अन्य प्रक्रियाएं आदि.

कुल मिलाकर स्पीशियेशन के लिये एक स्पीशीज की दो आबादियां लंबे समय तक एक दूसरे से अलग रहनी चाहिये व उनकी भौगोलिक परिस्थितियां भी अलग होनी चाहियें. तब एक लंबी अवधि के बाद वे दोनों अलग अलग स्पीशीज हो जाएंगी. साथ ही यह ध्यान में रखना भी जरूरी है कि स्पीशियेशन सिर्फ भौगोलिक अलगाव (Allopatric Speciation) से ही नहीं, बल्कि व्यवहारगत (Behavioral) और आनुवंशिक अलगाव (Genetic Drift) से भी हो सकता है.

एक उदाहरण दक्षिण अफ़्रीकी शेरों व भारतीय (एशियाई) शेरों का लेते हैं. ये दोनों आबादियां हालांकि अभी अलग अलग स्पीशीज नहीं बनी हैं लेकिन इनके बीच लंबे समय से कोई सम्पर्क न होने व अलग अलग भौगोलिक व वातावरीय परिस्थितियों के चलते इनकी जेनेटिक संरचना में काफ़ी भिन्नताएं आ गयी हैं, यहां तक कि इनके शारीरिक आकार, और शक्ल सूरत में भी उल्लेखनीय अंतर आ गये हैं. अगर बिना सम्पर्क के कुछ लाख वर्षों में (बशर्ते इतने समय तक ये विलुप्त नहीं हुए तो) ये दोनों अलग अलग स्पीशीज हो जायें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.

तो क्या ऐसे ही नयी मानव प्रजाति विकसित भी हो सकती है ?

सिद्धांत के तौर पर तो यह सम्भव है लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह सम्भव नहीं है. जैसे आज के आधुनिक युग में मानव की किसी भी आबादी का दूसरों से अलग होना संभव नहीं है. कुछ समय तक तो भले ही हो जाये लेकिन स्पीशियेशन के लिये आबादियों का अलगाव लाखों वर्ष का होना चाहिये. आधुनिक विज्ञान व तकनीकी के विकास के साथ निकट भविष्य में तो यह सम्भावना बहुत ही कम है. सुदूर भविष्य में क्या होगा, उस पर कुछ नहीं कहा जा सकता. आनुवंशिक बदलाव और पर्यावरणीय दबावों के कारण लाखों वर्ष बाद सुदूर भविष्य में क्या होगा यह अनुमान लगाना मुश्किल है.

हालांकि एक बात जरूर है. वह यह कि मुनाफे पर टिकी हुई पूंजीवादी व्यवस्था ने प्रकृति का संतुलन इतनी बुरी तरह से बिगाड़ दिया है कि पृथ्वी पर मानव सहित तमाम प्रजातियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है. लेकिन मुझे पूरी उम्मीद ही नहीं बल्कि विश्वास है कि निकट भविष्य में पूंजीवाद ही खत्म होगा, जीवन नहीं.

बहरहाल प्राचीन काल में न तो पूंजीवाद था, न ही विज्ञान और तकनीकी तो जलवायु व वातावरणीय परिस्थितियों में जब परिवर्तन हुए तो, पुरानी मानव प्रजाति (शायद होमो इरेक्टस) की कोई आबादी अलग हुई होगी और उनमें क्रियात्मक, व्यवहारीय व शारीरिक परिवर्तन आते चले गये होंगे, जिसकी वज़ह से अंततः होमो हाइडलबर्गेन्सिस का उदय हुआ होगा.

अधिक उन्नत औजार, जटिल श्रम करने की क्षमता, मजबूत कद काठी व अधिक विकसित मस्तिष्क के साथ आदिम मानव की इस प्रजाति का उदय मानव विकास की यात्रा में एक लंबी छलांग थी. बदली हुई पारिस्थितिक चुनौतियों के लिये यह एक बहुत ही अनुकूलित प्रजाति थी, जिसके पास घास के मैदानों से लेकर दुर्गम जंगलों व बर्फ़ीले स्थानों तक में वास करने के लिये पर्याप्त शारीरिक शक्ति व बौद्धिक क्षमता मौजूद थी. इनकी क्षमताओं ने इन्हें बड़े जानवरों का शिकार करने, संसाधनों को एकत्र करने और अपने समुदायों के अंदर जटिल सामाजिक गतिकी का विकास करने में मदद की.

इनके औजार, तकनीकी व सांस्कृतिक प्रगति का विकास मानव विकास के इतिहास में उल्लेखनीय है. उनके समाज के ये पहलू इनकी अनुकूलन क्षमताओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे. प्रागैतिहासिक काल की चुनौतियों का सामना करने व उन पर विजय प्राप्त करने में इस तरह का अनुकूलन बहुत लाभदायक सिद्ध हुआ.

होमो हाइडलबर्गेन्सिस पाषाण औजारों का निर्माण व प्रयोग करने में सिद्धहस्त थे. इनके औजार पुरानी मानव प्रजातियों से कहीं अधिक उन्नत और जटिल थे. कुल्हाड़ी, मांस काटने वाले चाकू, कुदाल, भाले के फल आदि विभिन्न प्रकार के औजार विशेष कार्यों के लिये विशेष तौर पर बनाये जाते थे.

खासतौर पर हस्त कुठार या हाथ की कुल्हाड़ी होमो हाइडलबर्गेन्सिस की तकनीकी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है. बड़े आकार के ये पैने औजार बहुत ही कुशलता के साथ बनाये जाते थे और विभिन्न कार्यों जैसे मांस काटने, लकड़ी काटने व अन्य औजारों को आकार देने के लिये प्रयुक्त होते थे. इनका प्रयोग शिकार, भोजन तैयार करने व निर्माण कार्यों के लिये किया जाता था. इन औजारों व इनके द्वारा किये जाने वाले श्रम ने होमो हाइडलबर्गेन्सिस के शारीरिक, मानसिक व सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. पाषाण औजारों के अलावा इनके द्वारा अग्नि का प्रयोग करने के भी साक्ष्य मिले लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि आग पर पूरा नियंत्रण स्थापित कर लिया गया था.

इसके अलावा इन्होंने लकड़ी के साधारण औजार जैसे भाले व कुदाल भी बना लिये थे जो इन्हें शिकार करने, भोजन संग्रह करने व निर्माण कार्यों में सहयोग देते थे. साथ ही ये शिकारी जानवरों से सुरक्षा में भी मदद करते थे. बाद के फॉसिल रिकॉर्ड बताते हैं कि ये हिरण के सींगों व हड्डियों से भी औजार बनाने लगे थे. इनके औजारों की जटिलता से पता चलता है कि ये शारीरिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास की नयी मंजिल तक पहुंच गये थे.

ओके नवमीत, यह भी बताओ कि इनकी सभ्यता व संस्कृति कैसी थी ?

इनकी संस्कृति के हमें कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिलते हैं लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इनकी सामाजिक संरचना काफ़ी जटिल और गतिशील थी.

पिछले आलेख में हमने पढ़ा था कि होमो इरेक्टस पहले यायावर मनुष्य थे जिन्होंने अफ्रीका व अफ्रीका से बाहर यूरोप व एशिया के अलग अलग कोनों में कदम रखे थे. लेकिन होमो हाइडलबर्गेन्सिस ने यायावारी के तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिये थे. लगभग 3 लाख वर्ष पहले इनकी विभिन्न आबादियों में भी क्षेत्रीय अंतर आने लगे थे जोकि उनकी भिन्न वातावरणीय परिस्थितियों का परिणाम था. यहां तक कि इनकी कुछ आबादियां इतनी दूर तक फ़ैल गयीं कि वे मुख्य आबादियों से कट गयीं और कालांतर में नयी मानव प्रजातियों में विकसित हो गयीं.

इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता कि ये किसी प्रकार की अनुष्ठानिक या सजावटी गतिविधियों में शामिल होते थे या नहीं. यह सही है कि होमो हाइडलबर्गेन्सिस के पास उन्नत औजार और शिकार तकनीकें थीं, लेकिन उनके पास कला या प्रतीकात्मक सोच के पुख्ता प्रमाण नहीं हैं, हालांकि कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि इनके द्वारा प्रतीकात्मक व्यवहार की शुरुआत की जा चुकी थी, जैसे शवों को दफनाने की प्रथा. ऐसा अनुमान है कि यूरोप के ठंडे स्थानों पर रहने के दौरान ठंड से बचने हेतू जानवरों की खाल से शरीर को ढका जाता होगा. लेकिन इसका भी कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है.

इसके अलावा होमो हाइडलबर्गेन्सिस सहभागितापूर्ण व्यवहार में पारंगत था. सामूहिक शिकार, भोजन का सामूहिक वितरण, बच्चों की सामूहिक देखभाल आदि के सबूत मिले हैं जो बताते हैं कि इसका सामाजिक ढांचा काफ़ी मजबूत था, जिसने आने वाले समय व भावी मानव प्रजातियों में मौजूद जटिल समाजों की नींव रखी थी.

ऐसा प्रतीत होता है कि इनमें किसी न किसी प्रकार की संचार प्रणाली रही होगी लेकिन इनकी भाषा कितनी विकसित थी यह पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता. कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि इन्होंने एक प्रारंभिक भाषा का विकास कर लिया था. खैर यह भी फिलहाल बहस का विषय है.

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि सांस्कृतिक व तकनीकी तौर पर होमो हाइडलबर्गेन्सिस ने मानवीय जिजीविषा व नवोन्मेष की नयी ऊंचाइयों को छू लिया था.

इनका सामाजिक ढांचा कैसा था, नवमीत ?

इनके सामाजिक ढांचे के बारे में अभी हमारा ज्ञान सीमित है लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह नजदीकी संबंधों पर आधारित समाज था जिसकी संरचना बहुत गतिशील थी. सामूहिक संगठन, आदिम श्रम विभाजन आधारित सहभागिता, सांस्कृतिक आदान प्रदान की शुरुआत इस मानव की कुछ ऐसी विशेषताएं हैं, जो इन्हें विशेष बनाती हैं.

शारीरिक तौर पर यह मानव अपने से पहली प्रजातियों से काफ़ी उन्नत था. इसके मस्तिष्क का आकार भी कहीं अधिक बड़ा था. इसका जबड़ा भी मजबूत हो गया था. इनकी खोपड़ी की बनावट से जाहिर होता है कि इनके भोजन का दायरा काफ़ी विस्तृत हो गया था और ये कठोर खाद्य पदार्थ भी चबा रहे थे.

इनका हड्डियों का ढांचा काफ़ी मजबूत था जो बताता है कि ये कठोर शारीरिक श्रम करने व लम्बी यात्राएं करने में पारंगत रहे होंगे. ये अच्छे धावक होंगे व पेड़ों पर आसानी से चढ़ पाते होंगे. ये सब विशेषताएं इन्हें कुशल शिकारी बनने में मदद करती थीं. इनके दांतों की मजबूत संरचना बताती है कि ये काफ़ी खाद्य ग्रहण करते होंगे. दांतों की संख्या आधुनिक मानव की तरह 32 थी.

होमो हाइडलबर्गेन्सिस का आना मानव के विकास की यात्रा में एक महत्वपूर्ण नींव का पत्थर है जिसने आने वाली प्रजातियों के लिये मंच स्थापित किया. जैसा कि हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि यह मानव ही आधुनिक मानव व नियंडरथल मानव का संभावित साझा पूर्वज हुआ करता था.

आधुनिक मानव की तमाम उपलब्धियां पुरानी मानव प्रजातियों द्वारा अर्जित की गयी उपलब्धियों की साझा विरासत पर आधारित हैं. प्रकृति से संघर्ष व प्रकृति पर विजय मानव के आधारभूत गुण हैं। किसी भी प्रकार का विकास, भले ही वह कॉस्मिक हो या जैविक, बिना संघर्ष के आगे नहीं बढ़ता. प्रकृति की द्वन्द्वात्मक गति होती है जो पदार्थ के छोटे से छोटे कण से लेकर मानव मस्तिष्क व मानव समाजों जैसी जटिल जैविक संरचनाओं में भी चलती है.

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ROHIT SHARMA

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