‘आओ, मिलकर सब पुस्तकें जलायें…’, ओह, ये कविता नहीं…असल आव्हान था. जनता की मानसिक शुद्धि के लिए, राष्ट्र औऱ संस्कृति को पतन से बचाने के लिए, राष्ट्रद्रोही साहित्य जलाने का आदेश हुआ. हर लेखक जो नाजियों के साथ नहीं, हर विचार जो नाजीवाद से मेल न खाए, जला डालने के लिए एक अभियान अप्रैल 1933 में संचालित हुआ. अखिल जर्मनी विद्यार्थी परिषद (दुश्शस्टूडेंटशैफ्ट) का एक स्वतंत्र निर्णय था.
सरकार से इस संगठन का कोई लेना देना नहीं था. वह एक गैर-राजनीतिक संगठन था, जो छात्र कल्याण के लिए प्रयासरत रहता था. उसके तत्वावधान में देश भर में ‘बुक बर्न फेयर’ आयोजित हुए. देश के मशहूर राष्ट्रवादी जैसे जोसेफ भाई गोयबल्स यहां आमंत्रित किये जाते. उनके रोमांचक भाषण के पश्चात, किताबें जलाई जाती.
ये किताबें शहर की लाइब्रेरियों से ली गयी थी, क्योंकि वहां इनके लिए जगह नहीं बची थी क्योंकि लाइब्रेरी में पहले ही आग जो लगा दी गयी थी. जलती किताबों पर हाथ रखकर देशभक्त युवा शपथ लेते- मैं सिर्फ राष्ट्रवादी साहित्य पढ़ूंगा। राष्ट्रवाद के सिवाय कुछ न पढ़ूंगा. और देश ‘मीन काम्फ’ पढ़ने में जुट गया.
देश के हर शहर में बुक बर्न फ़ेयर हुए. शान्ति, मोहब्बत, विज्ञान, साइकोलॉजी, सैक्स, राजनीतिक विचार पर दुष्ट लेखक जैसे मार्क्स, काफ्का, एच जी वेल्स, रोमा रोलां, अल्बर्ट आइंस्टाइन के लिखित पाल्यूशन से देश को बचाया गया.
लाइब्रेरियन लिंच किये गए. किताबे बचाने, छिपाने वाले जेल भेजे गए. दो साल तक ये आंदोलन चलता रहा, जब तक कि देश मानसिक रूप से पूर्णतः परिशुद्ध न हो गया. किताबों से शुद्ध होने के बाद, समाज को भी शुद्ध करने का अभियान आगे चला. इसे होलोकॉस्ट कहते हैं.
परिशुद्ध हो चुका जर्मन साइंटिस्ट, तत्क्षण प्राण लेने वाली जहरीली गैस बना रहा था. इंजीनियर गैस चेम्बर बना रहा था. आर्किटेक्ट कॉनसन्ट्रेशन कैम्प बना रहा था. एकाउंटेट लूटे गए माल का हिसाब रख रहे थे. और जो बहुत पढ़ा लिखा न था, वो फ़ौज या SS में भर्ती होकर अपने ही लोगों को गोली मार रहा था.
समाज की मेंटल कंडीशनिंग, उसके भविष्य का परिचायक होती है. जर्मनी ने इसे खूब झेला है. खंडहर हुआ, 2 टुकड़े हुआ, विदेशी राज में रहा और अब जब नर्क से गुजरकर समझदार हो चुका है, वहां पब्लिक लाइब्रेरी फिर आबाद हैं.
उन्ही राइटर्स की किताबें फिर से मौजूद हैं, लोग पढ़ते हैं और अपना ओपीनियन बनाते हैं. नाजिज्म, एक बुरा स्वप्न है. लोकतंत्र होने के बावजूद, नाजीवाद के समर्थन में बोलना, कहना बैन है. अपराध है, जेल की सजा है.
किताबें जहां जलाई गई थी, शहर-शहर उन स्थानों पर मेमोरियल बने हैं. याद दिलाने को कि एक भ्रष्ट और क्रूर समाज का दौर किताबें जलाने से शुरू होता है.
- मनीष सिंह
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