सौमित्र राय
अडानी ग्रुप के टॉप 22 लोगों में अडानी परिवार के ही 8 लोग हैं ! इन्हीं लोगों ने टैक्स हेवन देशों में फर्जी शेल कंपनियां खोली हुईं हैं
– हिंडनबर्ग रिपोर्ट
हिन्डेनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट आने के बाद अदानी सेठ रातों–रात अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में मशहूर हो गए हैं. न सिर्फ अमेरिका, बल्कि दुनिया भर की कंपनियों, इन्वेस्टमेंट बैंक, रेटिंग एजेंसियों के बोर्डरूम में अदानी सेठ की ही चर्चा रही. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में इस शोहरत का असर दिख सकता है. इससे पहले हिन्डेनबर्ग की रिपोर्ट के बाद निकोला कॉर्प की मार्केट वैल्यू 34 बिलियन से 1.34 बिलियन तक आने में एक साल लगे थे.
फिलहाल, दबाव सेबी पर है. अगर सेबी को अपनी वैश्विक साख बचानी है तो उसे अदानी सेठ को निर्दोष या कसूरवार ठहराने में से कोई एक काम करना होगा. बयान का इंतज़ार है. इसी के साथ दुनिया के तमाम बैंकों, बॉन्ड धारक और बिचौलिए भी अदानी समूह के बारे में फैसला लेने से पहले सोचेंगे. मुमकिन है वे अपना पैसा निकालें.
उधर, विदेशी निवेशक भी आज भारतीय शेयर बाजार में अपना जोखिम कम करने के लिए बिकवाली कर सकते हैं. एफपीआई तो लगातार बेच ही रहे हैं. कुल मिलाकर दबाव भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बैंकों पर रहेगा, जहां से अदानी सेठ ने लोन उठाए हैं, उनके शेयर्स गिर सकते हैं. ताश के महल को ढहाने के लिए एक फूंक ही काफ़ी है. देश की जनता को भी चुप्पी की जानलेवा कीमत चुकानी होगी.
रक्तरंजित शेयर बाजार में 48 बिलियन डॉलर का मार्केट कैप गंवाने के बाद असल सवाल यह है कि अदानी के लिए क्या आगे और भी तबाही है ? एक और सवाल यह भी कि आज आईसीआईसीआई, एसबीआई दोनों के शेयर गिरे हैं, क्या आगे भी ऐसा होगा ? साथ में यह भी कि क्या अदानी संभल पाएंगे ?
अदानी का बैंकों पर कर्ज़ 40% से कम है. अगर आप 2016 से 2022 के बीच 6 साल के दौर को देखें तो अदानी ने सरकारी और निजी बैंकों पर निर्भरता को काफी कम किया है. उन्होंने बॉन्ड मार्केट में पैसा लगाया है। इसमें भी 29% डॉलर बॉन्ड में लगा है. बाकी 8% रुपए के बॉन्ड में. कुल मिलाकर बॉन्ड मार्केट में यह 37% निवेश काफी अस्पष्ट है.
मौजूदा स्थिति में इस 37% निवेश की रीफाइनेंसिंग बहुत मुश्किल होगी. हिन्डेनबर्ग ने बस इसी कमजोर नस को दबाया और अदानी दौलतमंदों में तीसरे से सातवें पर लुढ़क गए. यानी अदानी ने अपने कर्ज़ का समायोजन अक्लमंदी से नहीं किया. शायद मोदी के रहते यह उनका अति आत्मविश्वास था. आज अदानी समूह ने निवेशकों का भरोसा खो दिया है। कंपनी का एफपीओ आज पहले दिन 1% ही बिका.
दलाल स्ट्रीट में दो सत्रों में निवेशकों ने आज लगभग 11 लाख करोड़ गंवा दिए. आगे अमेरिकी फेड की ब्याज दरें और मोदी सरकार का बजट दोनों बाजार पर असर डालेंगी. सेबी की जांच भी शुरू हुई है. यानी अगले हफ्ते कम से कम 3 से 4 बिकवाली वाली रेली की उम्मीद करें.
दरअसल, अदानी ग्रुप का वित्तीय ढांचा कमज़ोर और संदिग्ध था. लेकिन बार–बार आगाह करने के बावजूद सरकारी इशारे पर संस्थागत निवेश हुआ. नियम–कानूनों को ताक पर रखकर सरकारी ठेके दिए गए. 30 मार्च 2014 को 5.10 अरब डॉलर का अदानी ग्रुप 137 अरब डॉलर का हो गया. अकेले 2022 में दौलत 61 अरब डॉलर बढ़ी. बिजनेस में नफा–नुकसान अलग बात है और निवेशकों का भरोसा खोना अलग.
इन हालात में मोदी सरकार की चुप्पी असमंजस को और बढ़ाने वाली है और यह जितना बढ़ेगा, अदानी गिरते रहेंगे. साथ ही उन पर दांव खेलने वाली संस्थाएं भी. आज के कत्लेआम का अंतरराष्ट्रीय, यानी डॉलर मार्केट पर असर कल दिखेगा. ताश के कुछ पत्ते गिरे हैं. सिलसिला शुरू हुआ है. किला बड़ा है, वक्त लगेगा.
अदानी सेठ की हालत को ऐसे समझें
- अदाणी सेठ पर 2 लाख 21 हजार करोड़ का लोन है.
- अदाणी समूह की संपत्ति 2.31 लाख करोड़ रुपए है और
- सिर्फ़ 2 दिन में सेठजी 4 लाख करोड़ गंवा चुके हैं.
वजह– सिर्फ़ एक रिपोर्ट. सच की लाठी बेआवाज़ होती है.
अदानी एंटरप्राइजेज का आज एफपीओ आया है. कीमत है 3274–3112 रुपए. आज शेयर मार्केट में मचे तूफान को देखते हुए अदानी के सामने दो रास्ते हैं. एक या तो एफपीओ वापस लें या निचली कीमत को संशोधित करें, जो 10% से ज्यादा हो नहीं सकता. यानी एफपीओ की निचली कीमत 2801 रुपए से कम नहीं हो सकती.
आज अदानी के एफपीओ का भाव पहले ही दिन 2800 रुपए हो चुका है. यानी अब बाज़ार अदानी–अंबानी नहीं, निवेशक के हाथों है. निवेशक को सेठों पर भरोसा नहीं है और न सरकार पर. बाज़ार में लोकतंत्र जैसा नज़र आ रहा है.
एलआईसी को आज एक ही दिन में 16300 करोड़ का नुकसान हुआ है. कल अदानी समूह की कंपनियों में एलआईसी के निवेश का मूल्य 76800 करोड़ रुपए था, जो आज 60500 करोड़ हो चुका है. एलआईसी को सबसे ज्यादा नुकसान अंबुजा सीमेंट, अदानी टोटल और अदानी पोर्ट्स में हुआ है. एलआईसी ने अदानी ग्रुप में 87 हजार करोड़ से ज्यादा फंसाए हैं.
ये हैं अदाणी सेठ के 4 अनमोल रतन, यानी सीए. इन चार पार्टनर्स के साथ 11 कर्मचारियों (ज्यादातर आर्टिकल्स) की बदौलत अदाणी समूह का बैलेंस शीट जांचा जाता है. शाह धनधारिया के दफ़्तर का प्रतिमाह किराया 32 हजार रुपए है. इस पूरे गोरखधंधे के हीरो विनोद शांतिलाल अदाणी हैं. (हिन्डेनबर्ग रिपोर्ट)
हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट पर ‘निकोला कॉर्प’ हुआ था तबाह
सितंबर 2020 की बात है. इलेक्ट्रिक ट्रक बनाने वाली निकोला कॉर्प ने अमेरिका की जनरल मोटर्स के साथ 2 बिलियन डॉलर का करार किया ही था. इस करार ने निकोला के शेयर्स में आग लगा दी. कंपनी का मार्केट कैप 40% बढ़ गया. लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि एक ऐसा खुलासा होगा कि सब–कुछ तबाह हो जायेगा, और हुआ भी यही.
हिंडेनबर्ग की एक लंबी रिपोर्ट आई, जिसने निकोला के फर्जीवाड़े को उजागर कर उस झूठ को उजागर किया, जिसे छिपाकर कंपनी शेयर घोटाला कर रही थी. फिर जो हुआ, वह कॉरपोरेट फर्जीवाड़े का काला इतिहास दोबारा लिख गया. निकोला के शेयर्स 10% गिर गए. निकोला ने तमाम दावों को झूठा बताया, बिल्कुल अपने अदाणी सेठ की तरह. लेकिन इस एक रिपोर्ट के कारण कभी 60 डॉलर से ऊपर चल रहे निकोला के शेयर ढाई डॉलर से कुछ ज्यादा पर आ चुके हैं. (ग्राफ देखें)
नाथन एंडरसन की इन्वेस्टमेंट रिसर्च फर्म हिन्डेनबर्ग ने अदाणी सेठ के कथित फर्जीवाड़े पर छोटी-सी रिपोर्ट बनाई और अदाणी की 7 कंपनियां निकोला की राह पर आ चुकी हैं.
निशाना गौतम अदाणी के दुबई निवासी भाई विनोद अदाणी पर है (इनके कारनामों पर पहले भी उंगली उठी है), जो अदाणी का विदेशी कारोबार संभालते हैं और साथ ही मॉरीशस में कई जाली कंपनियां भी.
हिन्डेनबर्ग ने रिपोर्ट में अदाणी सेठ से 88 सवाल पूछे हैं, जिनका जवाब नहीं मिला है, अलबत्ता मुकदमे की धमकी जरूर मिली है. एंडरसन भी यही चाहते होंगे, ताकि पोल पूरी खुले और मोदी सरकार भी कटघरे में आए. दोनों जरूर आयेंगे लेकिन भारत तबाह हो जायेगा, कैसे ? एक ही मिसाल दूंगा.
- अकेले एलआईसी ने अदाणी की कंपनियों में 70 हजार करोड़ लगाए हैं. सेठ डूबा तो एलआईसी भी तबाह.
- अदाणी सेठ जिस एफपीओ को लेकर आए हैं, उसमें अभी तक पैसा लगाने वाली 13 कंपनियों में एलआईसी भी शामिल है.
अदाणी सेठ के कर्ज़ का घड़ा भर चुका है. वह नियमानुसार और कर्ज़ नहीं ले सकते. सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि अपनी अंधी कमाई के लिए मोदी के बजाय अपनी मेहनत को क्रेडिट दे चुके अदाणी सेठ डूबेंगे तो भी मोदी को लेकर. बस, इस देश का बैंकिंग सिस्टम तबाह हो जायेगा और मोदी सरकार की डिजिटल इकोनॉमी भी. साथ में शेयर बाजार का बुलबुला भी फूटेगा. देश के पहले शेयर घोटाले के नायक हर्षद मेहता ने कहा था, वक्त–वक्त की बात है. एक वक्त मेरे जैसा कोई और आएगा.
एंडरसन का रिकॉर्ड कहता है कि वे कॉर्पोरेट्स की पोल खोलने वाले दूसरे जूलियन असांज हैं. निकोला का भंडाफोड़ करने के लिए उन्होंने ऐसे दस्तावेज़ जुटाए थे, जो जासूसी एजेंसियों के पास भी नहीं मिलते. दुनिया के तीसरे नंबर के अमीर अदाणी सेठ पर हमला उन्होंने बिना तैयारी के किया नहीं होगा. पर्दाफाश की टाइमिंग भी ऐसी चुनी है कि सत्ता और कॉरपोरेट दोनों कटघरे में है.
ये लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है. गणतंत्र को मजबूत करने की जद्दोजहद है. कॉरपोरेट तंत्र से किसी का भला नहीं होगा. मुझ जैसे अदने से व्यक्ति को ‘तीसरी ताकत’ से हमेशा उम्मीद रहती है.
हिंडेनबर्ग रिपोर्ट बहुत लंबी और जटिल रिपोर्ट है. रिपोर्ट के चलते अदाणी सेठ आज 4 लाख करोड़ से ज़्यादा लुटा बैठे. अदाणी समूह का बयान भी आया, जिसमें कहा गया है कि यह कंपनी के एफपीओ को डुबोने की साजिश है. लेकिन मुझे 2012 से 2014 के वे साल याद आ रहे हैं, जब मनमोहन सरकार के खिलाफ़ भी इसी तरह की साज़िश हुई थी.
पिछले अगस्त में क्रेडिट साइट्स की रिपोर्ट आई थी (मैंने तब भी लिखा था), जिसमें कहा गया था कि अदाणी सेठ ने अपनी 7 कंपनियों के शेयर मूल्य को जानबूझकर 819% बढ़ाकर आंका है.
हिन्डेनबर्ग एक इन्वेस्टमेंट रिसर्च फर्म है, जो किसी कंपनी के शेयर्स पहले बेचती है, फिर उसी कंपनी के बारे में लोगों को आगाह कर सस्ते में शेयर खरीद लेती है. साफ़ है कि इकोनॉमी के जानने वालों ने इस रिपोर्ट पर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया. लेकिन जो बात गौर करने वाली है, वह यह कि गले तक लोन में डूबे अदाणी सेठ के शेयरों में जोखिम 85% ज्यादा है.
रिपोर्ट आने के बाद एक ही दिन में अदाणी के शेयर्स में 3–7% गिरावट यह बताती है कि निवेशकों को भी जोखिम का पता है. इधर मोदी सरकार की हिलती नींव और उधर अदाणी सेठ का कन्नी काटना–कुछ तो है, जो डरा रहा है. जोखिम से डर जरूरी है. अगर डर यकीन में बदलता है तो 2014 का इतिहास दोहराया जाएगा. वह भारत के लिए कयामत का वक्त होगा. यह बात राहुल गांधी से बेहतर और कौन जानता होगा ?
कौन हैं अडानी का साम्राज्य तबाह करने वाले नाथन एंडरसन ?
नाथन एंडरसन
विक्रम नारायण सिंह चौहान लिखते हैं कि अडानी का साम्राज्य तबाह करने वाले नाथन एंडरसन के विषय में जितना पढ़ता जा रहा हूं कौतुहल और बढ़ता जा रहा है. अडानी से पहले 36 बड़े फ्राड कंपनियों का काम तमाम कर चुके हैं नाथन. जिसके पीछे पड़ते हैं पूरा खोद कर निकाल देते हैं. कंपनी में घुस जाते हैं, पैसा भी लगाते हैं और फिर एक्सपोज़ करते हैं.
हिंडनबर्ग रिसर्च को लॉन्च करने से पहले एंडरसन, हैरी मार्कोपोलोस के साथ काम कर रहे थे. हैरी मार्कोपोलोस सेक में अधिकारी रह चुके हैं. जैसे भारत में सेबी होती है वैसे ही अमेरिका में सेक होता है. हैरी मार्कोपोलोस बर्नी मेडॉफ की फ्रॉड स्कीम का पर्दाफाश कर खूब चर्चा में आए थे.
नाथन एंडरसन हैरी मार्कोपोलोस को अपना गुरू मानते हैं. गुरू अपने चेले से खूब प्रभावित हैं. मार्कोपोलोस कहते हैं कि एंडरसन कुछ भी खोद कर निकाल सकते हैं. अगर उन्हें किसी भी घपले की भनक लग जाए तो वो उसे बेपर्दा करके ही दम लेते हैं. उन्होंने एम्बुलेंस ऐसे ही किसी पड़ताल के लिए पैसे कम होने पर चलाया और उस पैसे से कई खुलासे किये.
क्या इंसान है, जूनून है सच सामने लाने का ! बेहद लो प्रोफाइल लाइफ जीने वाले नाथन के 10 सहयोगी पिछले वर्षों में ही जुड़े हैं. इससे पहले वे अकेले ही खुलासा करते थे. रिसर्च की विश्वसनियता इतनी कि विश्व के सभी बड़े मीडिया समूह में उनके रिसर्च की धूम है. एक ऐसा खोजी आदमी इस देश में नहीं है.
यहां के पत्रकारों को जो अडानी के पैरों में गिरे पड़े हैं, शर्म से डूब मरना चाहिए. यहां अडानी ही तबाह नहीं हो रहा है देश के कई बैंक और एलआईसी भी तबाह होगा.
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तो यह है असलियत गौतम अडानी के अमीरी का
अडानी के पास इतना धन आया कहां से कि वह आज दुनिया का दो नंबरी अमीर बन गया ?
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