पिछली शताब्दी में भारतीय खोजी पत्रकारिता में एक दौर ऐसा भी आया, जब पत्रकारों तथा उनके मीडिया संस्थानों ने सरकार तथा अन्य सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और दूसरे तरह के नियम-कानून विरुद्ध किये गये कामों का निर्भीकता से भंडाफोड़ किया था. इनमें से प्रमुख वे मामले हैं, जो न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बने, बल्कि उनकी वजह से सरकार को भी काफी परेशानी उठानी पड़ी थी.
धीरूभाई अंबानी— RIL की जांच करते हुए 1980 के दशक में इंडियन एक्सप्रेस के एस. गुरुमूर्ति ने ढूंढ निकाला था कि CBI के तत्कालीन निदेशक मोहन कात्रे के बेटे को RIL द्वारा गुपचुप तरीके से नियुक्ति दी गई थी. कात्रे के कार्यकाल में ही CBI ने पत्रकार एस. गुरुमूर्ति को फर्जी आरोप में गिरफ्तार किया था. धीरूभाई अंबानी ने इंडियन एक्सप्रेस और बॉम्बे डाइंग को बर्बाद करने के लिए सरकार का इस्तेमाल किया.
सोना गिरवी रखना— नवंबर 1990 से जून 1991 तक सात महीनों के लिए चंद्रशेखर कार्यवाहक प्रधानमंत्री थे. उन दिनों भारत की अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में फंसी हुई थी. देश का विदेशी मुद्रा भंडार 1.1 अरब डॉलर ही रह गया था. इतनी कम विदेशी मुद्रा मात्र 3 हफ्तों का आयात बिल चुकाने भर को ही थी. अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने भारत की रेटिंग नीचे कर दी थी. इससे वैश्विक बाजार में भारत के डिफॉल्टर हो जाने का खतरा पैदा हो गया.
तब RBI ने 20 मीट्रिक टन सोना गिरवी रख कर कर्ज लेने का फैसला किया, जिसे चुपके से 21 मई से 31 मई 1991 के बीच स्विट्जरलैंड के यूबीएस बैंक में गिरवी रखकर, 200 मिलियन यानी 20 करोड़ डॉलर मिले. लेकिन सोना गिरवी रखकर हासिल की गई रकम देश की अर्थव्यवस्था को कोई खास राहत नहीं दे पाई.
इसी बीच जून 1991 में पी. वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में नई सरकार आई. तब 1990 में हुए खाड़ी युद्ध का दोहरा असर भारत पर पड़ा था. खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीय कामगारों को वापस बुलाने के कारण, इनके द्वारा वहां से आने वाली विदेशी मुद्रा बंद हो गई. पेट्रोल-डीजल के दाम तीन गुना बढ़ने से, तेल के आयात पर हर महीने होने वाला खर्च 500 करोड़ से बढ़कर 1200 करोड़ हो गया था.
सरकार के सामने एक बार फिर भुगतान संकट पैदा हुआ. संकट की इस घड़ी में एक बार फिर देश ने मात्र 40 करोड़ डॉलर के एवज में 47 टन सोना गिरवी रख दिया. इन दोनों फैसलों की जानकारी देश को नहीं दी गई थी. जब यह खबर पत्रकार शंकर अय्यर ने इंडियन एक्सप्रेस में ब्रेक की, तो लोग दंग रह गए.
वह समय हर भारतीय के लिए भावुकतापूर्ण था कि देश का खर्चा चलाने के लिए 67,000 किलो सोना गिरवी रखना पड़ा था. वह भी चुपचाप, देश को बताए बिना.
अमेरिकी युद्धक विमानों को भारत में ईंधन भरने की इजाजत देना—इराक़ के साथ भारत के ऐतिहासिक सम्बंध रहे हैं, उसके विपरीत प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इराक से अपील की, कि वह कुवैत को तुरंत छोड़ दे और उन्होंने इजराइल पर इराकी हमलों की निंदा की.
अपनी फिलिस्तीन समर्थक नीति से भारत के विचलन और दशकों से वह जिस गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलता आ रहा था, उससे दूर हटने का यह पहला कदम था. 7 जनवरी, 1991 को जब अमेरिका ने इराकी सेना पर बमबारी की, तो प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अमेरिका द्वारा इराक पर हमला करने को सही ठहराया.
फिर 9 जनवरी को भारत सरकार ने फिलीपीन्स के अड्डों से उड़ान भरकर सऊदी अरब जाने वाले अमेरिकी युद्धक विमानों को भारत में ईंधन भरने की इजाजत दे दी. इसके एक दिन बाद IMF ने भारत को 1.05 अरब डॉलर के ऋण की मंजूरी दी. 14 जनवरी, 1991 को पत्रकार श्रीनिवास लक्ष्मण ने बताया कि अमेरिकी वायुसेना के युद्धक विमानों को भारत में ईंधन भरने की सुविधा दी गई थी.
हर्षद मेहता कांड—टाइम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार सुचेता दलाल ने 1992 में फंडाफोड़ किया कि शेयर मार्केट के एक बड़े कारोबारी हर्षद मेहता ने शेयर मार्केट में मैनुपुलेशन (पंप एंड डंप) किया था. वह बैंक से 15 दिन का लोन लेकर स्टॉक मार्केट में लगा देता था और फिर 15 दिन के भीतर ही बैंक को मुनाफे के साथ पैसा लौटा देता था, लेकिन कोई भी बैंक 15 दिन के लिए लोन नहीं देता.
हर्षद मेहता एक बैंक से फेक बीआर बनावाता, जिसके आधार पर उसे दूसरे बैंक से भी आराम से पैसा मिल जाता था.
उसके इस गोरखधंधे का पर्दाफाश होने के बाद देशभर में हड़कंप मच गया था. सभी बैंकों ने हर्षद से अपने पैसे वापस मांगने शुरू कर दिए. इसके बाद उसके ऊपर 72 क्रिमिनल चार्ज लगाए गए और लगभग 600 सिविल केस फाइल हुए.
विकीलीक्स—साल 2011 में विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे ने भारत में काला धन रखने वाले लोगों की लिस्ट जारी कर दी थी. जिसके बाद इस मामले को लेकर देश भर में काफी चर्चा हुई और हड़कंप मच गया था. 27 फरवरी, 2012 को एक बार फिर असांजे ने एक न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा कि ‘स्विटजरलैंड में सबसे ज्यादा काला धन भारत से आता है.’
पनामा पेपर्स लीक—2016 की शुरुआत में खोजी पत्रकारों के संघ ICIJ ने खुलासा किया था कि ‘दुनियाभर के ताकतवर राजनेताओं, बिजनेसमैन और सेलेब्रिटी ने पनामा की मोसेक फोंसेका कंपनी के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग की है.’
‘पनामा पेपर्स’ नाम से कुख्यात इस लिस्ट में अडाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन, DLF के के.पी. सिंह, इंडिया बुल्स के समीर गहलोत समेत तकरीबन 500 प्रभावशाली भारतीयों के नाम भी थे. इस खुलासे ने देशभर में हड़कंप मचा दिया था.
पैंडोरा पेपर्स—अक्टूबर 2021 में ‘पैंडोरा पेपर्स लीक’ में अनिल अंबानी, भगोड़े कारोबारी नीरव मोदी, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, जैकी श्रॉफ, नीरा राडिया आदि सहित 300 से अधिक भारतीय कॉरपोरेट घरानों तथा 60 से अधिक अति समृद्ध व्यक्तियों द्वारा ऑफशोर कंपनियों में निवेश एवं अन्य संपत्तियां रखने का पता चला.
उपरोक्त सभी मामलों में सरकार तथा सम्बद्ध पक्षों ने तत्काल स्पष्टीकरण दिया. भारत सरकार की तरफ से प्रेस रिलीज जारी करके कहा गया कि सरकार ने इनका संज्ञान लिया है. प्रासंगिक जांच एजेंसियां इन केसों की जांच करेंगी और कानून के मुताबिक, उचित एक्शन लेंगी. इन केसों की प्रभावी जांच सुनिश्चित की जायेगी.
लेकिन यह बड़ी अजीब बात है कि हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के कारण गौतम अडानी को बड़ा नुकसान हुआ है. रिपोर्ट के अनुसार गौतम अडाणी समूह द्वारा की गई कथित वित्तीय गड़बड़ियों तथा शेयर मार्केट फर्जीवाड़े और खातों के मैनुपुलेशन को लेकर मचे तूफान पर केंद्र सरकार ने चुप्पी साध रखी है।
अडाणी समूह के शेयरों में लगातार गिरावट जारी है. कंपनी के शेयर टूट रहे हैं. दो दिनों के भीतर कंपनी के निवेशकों के 4.2 लाख करोड़ रुपये डूब गए हैं. कंपनी के मार्केट कैप में 22 फीसदी की गिरावट आ गई है.
अडाणी के गिरते शेयरों ने जीवन बीमा निगम (LIC) की भी चिंता बढ़ा दी है. अडाणी की पांच कंपनियों में देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी एलआइसी की 9 फीसदी तक की हिस्सेदारी है, जो करीब 77,268 करोड़ रुपये है. कंपनी के शेयरों में आई इस गिरावट के कारण दो दिनों में ही एलआइसी को 22,812 करोड़ रुपये का नुकसान हो गया है.
अडाणी की कंपनी LIC को हानि करोड़ रुपये में –
- अडाणी टोटल गैस – 6232
- अडाणी एंटरप्राइजेज 3245
- अडाणी पोर्ट 3095
- अडाणी ट्रांसमिशन 3042
- अडाणी टोटल गैस 6323
- अडाणी ग्रीन 875
- LIC को हुई कुल हानि 22,812 करोड़ रुपए
ऐसे में अब एलआइसी की चिंता बढ़ गई है लेकिन सरकार खामोश होकर तमाशबीन बनी हुई है. गौतम अडाणी ही नहीं बल्कि अन्य कॉरपोरेट घरानों की फर्जी कंपनियों में भी सरकारी/गैर-सरकारी बैंकों, LIC तथा अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों और आम जनता का अकूत धन लगा हुआ है. ऐसे फर्जीवाड़े की जांच-पड़ताल करने वाले भारत में भी कुछ संवैधानिक संस्थान हैं लेकिन वे इस ओर ध्यान नहीं देते.
क्योंकि वर्तमान सत्ताधारियों ने उनको सिर्फ विपक्षी दलों के नेताओं, सांसदों, विधायकों, अधिकारियों और सच सामने लाने वाले पत्रकारों व बुद्धिजीवियों को डरा-धमका कर अपने पैरों में नतमस्तक रखने के काम पर लगा रखा है. क्या आज देश का कोई भी संवैधानिक संस्थान सचमुच अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा है ?
यदि ऐसा होता तो क्या इन संस्थानों की बजाय अमेरिका की एक रिसर्च एजेंसी अडाणी के हवाई साम्राज्य का भांडा फोड़ती ? और क्या देश के सामने आर्थिक तबाही व बेरोजगारी का ऐसा भयंकर संकट आता ? एकदा जंबूद्वीपे, लानत है.
- श्याम सिंह रावत
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