देश को नेशनल हीरोज की जरूरत होती है. इंडिया में प्लेंटी ऑफ हीरोज है. मगर कुछ को जब एनालाइज करता हूं, तो जरा दिल दिमाग दो दिशा में जाते दिखते हैं. मसलन मंगल पांडे को लीजिए. कोई सात साल वे अंग्रेजों के वेतनभोगी सैनिक रहे. विदेशियों के पदाति सैनिक इसलिए बने क्योंकि उनकी फ़ौज में वेतन भत्ते बेहतर थे, रेगुलर थे. अंग्रेज चढ़ती ताकत, विनिंग साइड थे. उनकी रोटी खाने में सात साल तक राष्ट्रप्रेम आड़े नहीं आया.
हां, गाय सूअर की चर्बी चाबने के हल्ले में गुस्सा बहुत आया. सात साल स्वदेशियों से जमीन छीन, विदेशियों के कदमों में डालने वाले मंगल ने, गोरों पर गोली चला दी. दिल कभी न माना कि वे जनगणमन या वंदेमातरम गाते फांसी के फंदा चूमे होंगे. यह तो उनकी निजी लड़ाई थी. फीट ऑफ मोमेंट था.
तीन चापेकर ब्रदर्स ने रैंड को मारा. कमिश्नर रेंड, पूना में प्लेग का मैनेजमेंट कर रहा था, तब प्लेग करोना की तरह फैला था. बार-बार लौट आता था. तो रैंड ने कड़ाई बरती. स्वास्थ्यकर्मी, घर घर जाकर चेकअप करते. चापेकर ब्रदर्स को गुस्सा आया, क्योंकि महिलाओं की जांच भी जबरन हुई, जो खानदानी इज्जतदार होने के नाते वो करवाना नहीं चाहते थे.
रैंड तो मुझे तो भला अफसर लगा. ही वाज डूइंग हिज जॉब. उसे घात लगाकर मारने वाले चापेकर भाइयों को देशप्रेमी मानना जरा अटपटा है.
खुदीराम बोस, किंग्स फोर्ड को मारने गए थे. वो दुष्ट जज था, इंडियन्स को कड़ी सजायें देता था. हमले में फोर्ड बच गया, उसकी बीबी, बीबी की सखी मारी गयी. बोस ने गलत बग्घी पर बम फेंका था.
एक और फेमस गलती है भगतसिंह की, जो उनकी फांसी का सबब बनी. वो लाला लाजपत राय पर लाठी चलवाने वाले स्कॉट को मारने गए थे, मार आये सांडर्स को. वो बेचारा यंग, नया नया जॉब पे आया था. फ़ोकट ही मारा गया.
पर ये जेनुइन गलती थी. जबरिया, जानकर गलत मर्डर करने का काम किया मदनलाल ढींगरा ने. वो लार्ड कर्जन को मारने गए थे. तीन बार पहले कोशिश की थी. पिस्टल निकालने की हिम्मत न हुई. रिंग लीडर थे विनायक दामोदर सावरकर, उन्होंने खूब दुत्कारा.
तो ढींगरा इस बार कसम खाकर गए थे, मार के रहूंगा. मगर लार्ड कर्जन को न मार सके, उसके भतीजे कर्जन विली को मार दिया. वो भी बेचारा यंग लड़का, कभी इंडिया आया न था, फालतू मारा गया.
सबसे बेकार काम कन्हारे का था. उनको पूना कलेक्टर जैक्सन को मारने का काम मिला. जैक्सन, इंडियन्स की इज्जत करता था. वेद पुराण को ट्रान्सलेट करता, और भारतीयों से प्रेम का व्यवहार करता. वो किसी गांव में इंडियंस के कल्चरल इवेंट में आया था, वहां कन्हारे ने गोली मार दी.
उसकी गलती ?? कुछ नहीं. सावरकर के बड़े भाई जो कर रहे थे, तो उसके लिए वारंट निकाला था. वो खुद तो खटिया तले छिपे पड़े थे, कन्हारे को सुपारी दे दी.
जैक्सन मर्डर, वीर सावरकर की भेजी पिस्टल से हुआ. इसी कनेक्शन में दोनों सावरकर ब्रदर्स को कालापानी हुआ. ये दुन्नो भाई तो माफी मांगकर कट लिए, किशोरवय कन्हारे लटक गया.
इसी तरह उधम सिंह ने एक मर्डर किया. वो जलियांवाला बाग कांड से व्यथित थे. एकदम कन्विसिंग रीजन, एग्री. लेकिन जिसने गोली चलवाई, असली कातिल वो जनरल डायर तो 1926 में, इंगलैण्ड में तपेदिक से मर गया था तो उधमसिंह ने किस डायर को मारा ??माइकल ओडायर को. माइकल साहब उस घटना के समय पंजाब के गवर्नर थे. हम्म ! चलो भई, ठिक्क है !
जिनको हिंसा समाधान लगती है, वो राम का बदला श्याम को मारकर ले सकते हैं. बहुत छोटा था तो किसी गोरे को देखकर नफरत होती थी. इन्होंने हमपे कितने अत्याचार किये. सबको कूंच देना चाहिए.
बड़ा हुआ तो पता चला सब गोरे एक नहीं. ये अमेरिकन भी हो सकते हैं, रशियन भी. हमारे वाले दुश्मन ब्रिटेन के लोग थे. पर वो दौर अलग था, आज का अलग.
एक ही रंग, एक ही धर्म, एक ही देश के कुछ लोग अच्छे हो सकते हैं, बुरे भी. आप दौर, व्यवहार, रंग, भाषा कपड़े देखकर किसी कौम से दुश्मनी नहीं पाल सकते, ये पागलपन है.
तो इसका मतलब कर्जन की जगह विली और स्कॉट की जगह सांडर्स को मारना कोई श्लाघ्य काम नहीं. आप जिन्ना का बदला अखलाक से कैसे ले सकते हैं ? अपना काम कर रहे रेंड या जैक्सन को मारकर आप पूज्य कैसे बन सकते हैं ? फिर तो कश्मीर में हमारे फौजियों को मारने वाले लोग भी, उनके लिए पूज्य हुए ? हमें आपत्ति नहीं करनी चाहिए ?
इस कन्फ्यूजिंग गड़बड़झाले के बीच आपको समझ आता है कि गांधी की राह सर्वोत्तम है. इसमे खून टपकने की, गलती होने की संभावना शून्य है. जीत, धीमी मगर सुनिश्चित है. यह बात भगत ने अंतिम दिनों में समझी थी, लिखा था. तब इस देश ने गांधी की राह पकड़ी थी. 70 सालों का पैक्स इंडियाना (शांति समृद्धि का दौर) रहा.
अब देश गोडसे की राह पर है. हिंसा श्लाघ्य हो रही है. तो आज मुम्बई में एक पुलिसवाले ने चुनचुनकर, कपड़ों से पहचान कर, लोगों को मारा है.
जब यह देश पूरी तरह गोडसे का बन जायेगा, शायद उसे भी एक क्रांतिकारी की तरह पूजा जायेगा ! इसलिए कि क्रांतिकारियों को बिन सोचे हीरो बनाना देशभक्ति है. और जैसा देश बनाना हो, वैसे ही हीरोज की जरूरत पड़ती है.
- मनीष सिंह
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