विष्णु नागर
उसे सब चाहिए. उसे सब चाहिए. सब यानी सब. जो दुनिया में है, वह भी और जो नहीं है, वह भी ! आकाश में सूर्य उसकी इजाजत से, उसकी सुविधा से निकले और डूबे, यह भी चाहिए. पक्षी कब और कितना चहचहाएं, कब भैंस पानी में जाए और कब और कितनी देर तक मुर्गी बांग दे, इसका निर्णय करने का अधिकार भी उसे चाहिए.
उसकी टेबल पर हिन्दुस्तान के हर आदमी का आज का टाइमटेबल होना चाहिए और कौन उससे हटा-बचा, किसने इसका कितनी बार उल्लंघन किया, इसकी प्राथमिकी दर्ज हुई या नहीं और कितनी देर से दर्ज हुई और कार्रवाई हुई, तो क्या हुई, इसका कारण समेत विवरण चाहिए.
और ये तो चाहिए ही, वह वीर बालक था, है और रहेगा, इसकी छवि का निरंतर प्रसारण होते रहना चाहिए और किसने उसके इस कार्यक्रम को कभी नहीं देखा और देखा तो उसे देखकर हंस-हंस कर, कौन-कौन लोटपोट हुआ, किसने मुंह बनाया, किसने इसे बीच में चिढ़कर बंद कर दिया, किसने इसे श्रद्धापूर्वक देखा, इसकी दैनिक रिपोर्ट चाहिए.
उसे लोकतंत्र और संविधान का ड्रामा भी चाहिए और हर उस आदमी की जुबान पर अलीगढ़ी ताला भी चाहिए, जो देश की हालत से परेशान होकर बोलता और लिखता है; चाहे वह सड़क पर बोले या संसद में ! वह एकछत्र सम्राट है, उसे यह विश्वास चाहिए, वह भगवान विष्णु का अवतार है, वह मां के पेट से नहीं, ऊपर से टपकाया गया है, नान बायोलॉजिकल है, यह छवि चाहिए.
अपने नाम पर स्टेडियम ही नहीं, भारत नामक देश का नाम के आगे उसका सरनेम जुड़े, इस प्रस्ताव का अनुमोदन संसद और दो-तिहाई विधानसभाओं से चाहिए. उसे देश के 140 करोड़ लोगों की नुमाइंदगी का गौरव भी चाहिए और मुसलमानों-ईसाइयों, किसानों- मजदूरों, छात्रों-बेरोजगारों से नफरत और उनसे रिक्त देश भी चाहिए, ताकि सेठों की अहर्निश सेवा में उसका पल-पल निष्कंटक बीत सके.
उन्हें वह बैड टी से लेकर डिनर तक वह सर्व कर सके, उनके बिस्तर की सलवटें ठीक से मिटा सके. उनका एकमात्र शुभचिंतक वही है, वही हो सकता है, उनकी गड़बड़ियों का एकमात्र संरक्षक, अकेला चौकीदार, वही हो सकता है, यह इमेज भी चाहिए. और यह भी कि उस जैसा राष्ट्रभक्त न कभी हुआ है, न होगा. उसे सरकारी संपत्ति को बेचने का अकुंठ अधिकार चाहिए.
यही नहीं, दुनिया की ऐसी हर चीज पर, जिस पर किसी सरकार का कभी कब्जा नहीं रहा, उस पर भी उसे अधिकार चाहिए. इस आदमी को हर आदमी के घर का पता और मोबाइल नंबर चाहिए. वह किससे क्या बात करता है, इसका लेखा-जोखा चाहिए. वह किस वक्त कहां था, क्यों था, किससे वह मिलता है, क्या वह खाता है, कौन-सी दवा, कितनी बार लेता है, क्या और कितना पढ़ता-देखता है, क्या नहीं पढ़ता-देखता है, इसकी रिपोर्ट भी चाहिए.
उसे तो यह भी चाहिए कि चांद उसकी मर्जी से निकले, सूरज और तारे भी. जिस दिन वह न चाहे, उस दिन शुक्रतारा न निकले और जिस दिन उसकी इच्छा हो, आकाश में दो या तीन या दस शुक्रतारे निकलें. उसे चांद और मंगल ग्रह की सैर भी करना है और पूरी दुनिया में अपने सेल्फी पाइंट भी बनवाने हैं.
उसे सड़ी -गली, पिलपिली अर्थव्यवस्था भी चाहिए और यह छवि भी चाहिए कि यही आदमी है जो देश को दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बना सकता है. और यही है, यही है, और यही है, और कोई नहीं है. बाकी सब देश का नाश कर देंगे.
इसे सिर्फ भक्त चाहिए, विरोधी जेल में रहें और केस दर केस भुगतते रहें. उसे गरीब मां के बेटे, चायवाले, भिक्षुक, चौकीदार, फकीर, कबीर, गांधी, गोडसे सबकी इमेज एकसाथ, एकमुश्त चाहिए.
पत्नी का त्याग भी, देश के लिए किया गया त्याग है और वह त्यागी है, संत है, योगी है, ईश्वर का अवतार है, यह इमेज भी चाहिए. उस अकेले को ‘एंटायर पोलिटिकल साइंस’ की डिग्री भी चाहिए, अपनी ईमानदार वाली छवि भी चाहिए.
मुख्यमंत्री भी वही है, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष भी वही है, राष्ट्रपति भी वही, पिता, चाचा, भैया भी वही, ऐसा प्रचार चाहिए. वही चुनाव आयोग है और वही देश का मुख्य न्यायाधीश भी ! उसे जेलर की कुर्सी भी चाहिए, एसपी और कलेक्टर की चेयर भी. उसे प्रचार भी चाहिए और दूसरों के विरुद्ध दुष्प्रचार भी.
नेहरू की इमेज भी चाहिए और नेहरू मुसलमान थे, उनकी यह छवि भी चाहिए. उसे हर कोने, हर चौराहे, हर गली में अपना हंसता हुआ थोबड़ा चाहिए. टीवी पर वही दिखे और वही-वही बोले या उसकी तरफ से बोलें, ऐसे और बहुत से और लोग चाहिए.
सोशल मीडिया पर भी वही हो. ट्रेन में, बस में, तिपहिए में, सब जगह वही-वही-वही-वही चाहिए. चाहे इससे ऊबकर इसे कोई वोट न दे, मगर छवि उसे सब जगह अपनी ही चाहिए ! उसे वह हवाई जहाज भी चाहिए जो दुनिया में अमेरिकी प्रेजिडेंट के पास है और सबसे लेटेस्ट तथा भव्य कार भी.
मोर पालक और गो सेवक की छवि भी चाहिए. साल में छह महीने विदेश यात्रा का सुख भी चाहिए और तीन महीने भारत में यात्रा करने का सुख भी. उसे दुनिया का हर सुख चाहिए और जनता की ढेरोंढेर दुआएं भी.
क्या-क्या बताऊं ! सबकुछ बताने की योग्यता होती तो मैं महाकवि न हुआ होता और उसकी चरण वंदना करके कुछ न कुछ पा ही चुका होता ! जयश्री राम छोड़ कर जय जगन्नाथ कर रहा होता !
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