Home गेस्ट ब्लॉग हैव यू नो ऑनर, योर ऑनर ?

हैव यू नो ऑनर, योर ऑनर ?

3 second read
0
0
506

रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले पद न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर दाग़ के समान हैं : रंजन गोगोई
(27 मार्च 2019)

हैव यू नो ऑनर, योर ऑनर ?

लोकतंत्र के तीन कंगूरे हैं- व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका. एकतरफा जनमत देकर, और विपक्ष को लंगड़ा लूला करके, व्यवस्थापिका को 23 करोड़ वोटों ने ढहा दिया. कार्यपालिका की विश्वसनीयता 353 की मेजोरिटिज्म तले कुचली गयी मगर न्यापालिका को नपुसंक करने में अकेले रंजन गोगोई का योगदान अविस्मरणीय रहेगा.

जजों की उस ऐतिहासिक प्रेस कान्फ्रेंस में अविस्मरणीय हुंकार ने एक उम्मीद जगाई थी, कि उभरते अधिनायकवाद के मार्ग में न्यायिक चेक और बैलेन्स की प्रक्रिया तनकर खड़ी रहेगी मगर गोगोई साहब का तीन सालों का कार्यकाल न्याय की मूल परिभाषा में ही मट्ठा डाल गया.

तीन साल, ज्युडिशयरी के शीर्ष पर एक बड़ा लम्बा वक्त होता है और ये वक्त बड़ा क्रूशियल, भारत की अनमेकिंग का दौर था. कॉलेजियम के तहत नियुक्तियों, प्रमोशन और ट्रान्सफर के मामलों पर बहुतेरे सवाल हैं. मगर इसे उनकी निजी सल्तनत के फैसलों की तरह इग्नोर करता हूँ. मगर जनता, लोकतंत्र और मानवाधिकार के मसलों पर, उनके फ़ैसलों ने , फैसलों से बचने की प्रक्रिया ने सुप्रीम कोर्ट पर जनता की आस्था को अभूतपूर्व चोट पहुंचाई है.

उनका दौर, वह दौर रहा है, जहां सड़क पर चलता आदमी भी आने वाले फैसले प्रिडिक्ट कर सकता था. इसके लिए आपको ज्योतिषी या सम्विधानवेत्ता होने की जरूरत नही थी. केवल ये समझना होता कि सत्ता, या सत्ताधारी दल क्या चाहता है.

अंतिम दिनों में मन्दिर मामले में सुनवाई की उनकी अभूतपूर्व उत्कंठा दूसरे मामलों में पूरे कार्यकाल में नही दिखती है. एनआरसी के नाम पर 19 लाख लोग, उनकी सनक का शिकार बने घूम रहे हैं. चार राज्यों में आग लगी हुई है. कश्मीर बन्दी, लॉक डाउन, इलेक्टोरल बांड, विविपैट की गिनती, सीबीआई वर्सज सीबीआई, राफेल जैसे मामलों में सीलबन्द न्याय आखिर उनकी टेबल पर दम तोड़ गया. कौन जाने कितने लिफाफे पहुँचे हों, मगर सबसे स्तब्धकारी लिफाफा तो अब पहुंचा है. लिफाफे में राज्यसभा की सीट है.

चीफ जस्टिस वह पद है, जो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की गैर-मौजूदगी में राष्ट्र का प्रमुख होता है. उस पद पर बैठ चुका व्यक्ति अब राज्यसभा ढाई सौ के झुंड में बैठेगा. कानून बनाएगा. जिस संविधान का मान वे सुप्रीम पद में बैठकर नहीं रख सके, उसी की बनाई सन्सद के किसी कोने का शो पीस बनेंगे. जिनके साथ पर्दे के पीछे मिलना होता था, अब खुलकर उनके बीच खिलखिलायेंगे. शायद मंत्री भी हो जाएं.

यह सम्मान है, या अपमान ?? पदोन्नति है, या पदानवती ?? इनाम है, या तोहमत ??? ये कदम सदा-सदा के लिए सुप्रीम कोर्ट के हर फैसले के पीछे जज की नीयत को सवालों के कटघरे में ले जाएगा. जिस लीगल प्रोफेशन ने उन्हें इतनी ऊंचाई दी, उस प्रोफेशन और एक पवित्र इंस्टीट्यूशन को ऐसी गहरी चोट की मिसाल भारतीय इतिहास में नही है.

मगर इतनी बारीक सोच रखी होती तो सुप्रीम कोर्ट की गरिमा मटियामेट न करते. अब आप फिर से एक बार कपट भरी शपथ लेंगे, और खुशी खुशी सभासद हो जाएंगे

योर ऑनर. हैव यू नो ऑनर ???

  • मनीष सिंह

Read Also –

सुप्रीम कोर्ट का जज अरुण मिश्रा पर गौतम नवलखा का हस्ताक्षर
जस्टिस मुरलीधर का तबादला : न्यायपालिका का शव
न्यायपालिका की अंतरात्मा ???
‘मेरी मौत हिंदुस्तान की न्यायिक और सियासती व्यवस्था पर एक बदनुमा दाग होगी’ – अफजल गुरु
मीडिया के बाद ‘न्यायपालिका’ का ‘शव’ भी आने के लिए तैयार है
इंसाफ केवल हथियार देती है, न्यायपालिका नहीं
‘अदालत एक ढकोसला है’
पहलू खान की मौत और भारतीय न्यायपालिका के ‘न्याय’ से सबक

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…