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क्या सच में ये अमीर अपनी मेहनत से अमीर बने हैं ?

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हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार

आप के बच्चों के अच्छे नम्बर आये होंगे. आप बहुत खुश भी होंगे. आप अपने बच्चों को प्रेरित कर रहे होंगे कि वो बहुत बड़े आदमी बनें. आप अपने बच्चों से कहते होंगे देखो टाटा, अम्बानी और अदाणी जिंदल…, अपनी मेहनत से कितने बड़े आदमी बन गए हैं. आप अपने बच्चों को भी प्रेरित करते होंगे कि वे भी मेहनत करें ताकि इन अमीरों की तरह सफल इंसान बनें और दुनिया में अपना नाम कमाएं लेकिन क्या सच में ये अमीर अपनी मेहनत से अमीर बने हैं ?

ध्यान दीजिए, अमीर बनने के लिए दो चीज़ें चाहियें. प्राकृतिक संसाधन और मेहनत. जितने भी सेठ हैं उन्होंने देश के संसाधनों पर कब्ज़ा किया और मजदूर की मेहनत के दम पर अमीर बन गए. इसलिए जब कोई अमीर कहे कि वह मेहनत से अमीर बना है तो उससे पूछियेगा किसकी मेहनत से ?

अमीर के लिए मेहनत करने वाला मजदूर जब अपनी मेहनत का पूरा मोल मांगता है, तब क्या होता है ? तब सरकार की पुलिस जाकर अमीर की तरफ से गरीब मजदूरों को लाठी से पीटती है और मजदूर ज़्यादा ताकत दिखाएं तो गोली से उड़ा देती है. अगर मजदूर को उसकी मेहनत का पूरा पैसा दे दिया जाय तो कोई भी इंसान सेठ नहीं बन पायेगा.

दूसरी वस्तु जो अमीरी के लिए चाहिये वह है प्राकृतिक संसाधन. प्राकृतिक संसाधनों का मालिक कौन है ? संविधान के मुताबिक़ देश की जनता के संसाधन क्या किसी एक व्यक्ति के हवाले किये जा सकते हैं ? क्या हजारों किसानों की ज़मीन छीन कर किसी एक उद्योगपती को सौंपी जा सकती है ? नहीं सौंपी जा सकती है.

भारत के संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांत कहते हैं कि राज्य का कर्तव्य होगा कि वह नागरिकों के बीच समानता लाने की दिशा में काम करेगा लेकिन अगर सरकार एक उद्योगपति के लिए हजारों लोगों की ज़मीन छीन कर उन्हें गरीब बनाती है तो सरकार यह काम संविधान के खिलाफ़ करती है. यानी, उद्योगपति संविधान के खिलाफ़ काम करके अमीर बनते हैं. इसलिए अगर आप अपने बच्चों को इन उद्योगपतियों की तरह अमीर बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, तो आप अपने बच्चों को संविधान के खिलाफ़ जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

खैर, आप को संविधान से क्या लेना देना ? आप तो यह सब मानते ही नहीं. संविधान तो यह भी कहता है कि भारत का हर नागरिक बराबर होगा. इसका मतलब है कि टाटा और बस्तर का किसान बराबर है और टाटा के लिए बस्तर के किसान की ज़मीन नहीं छीनी जा सकती.

लेकिन आप संविधान को कहां मानते हैं ? वैसे जब सरकार नक्सलवादियों की हत्या करती हैं तो आप कहते हैं कि इन्हें इसलिए मार गया है क्योंकि यह संविधान को नहीं मानते. हम आपसे पूछते हैं कि क्या आप और आपकी सरकार संविधान को मानते हैं ? नहीं, आप संविधान को बिलकुल भी नहीं मानते. अगर संविधान सच में लागू हो जाय तो कोई भी इंसान सेठ नहीं बन सकता.

आइये, अब आपको बताते हैं टाटा सेठ के कारनामें. बस्तर में लोहंडीगुडा नाम के गांव में टाटा सेठ को एक लोहे का कारखाना लगाना है. किसान उस ज़मीन पर पीढ़ियों से खेती करते हैं.
आदिवासियों नें अपनी ज़मीन छीनने का विरोध किया.

कानून कहता है कि किसानों की ज़मीन लेने से पहले सरकार जन सुनवाई करेगी. जन सुनवाई गांव में ही होनी चाहिये लेकिन लोहंडीगुडा में टाटा का कारखाना लगाने के लिए जन सुनवाई गांव से चालीस किलोमीटर दूर कलेक्टर आफिस में रखी गयी. गांव वाले जन सुनवाई में ना आ सकें, इसके लिए गांव को चारों तरफ से पुलिस ने घेर कर रखा. बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की ने अपने घर के बाहर खड़ी पुलिस का विरोध किया.

तो सुरक्षा बलों के जवानों ने उस लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया. सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने इस घटना के खिलाफ़ राष्ट्रीय महिला आयोग को शिकायत भेजी लेकिन महिला आयोग ने कोई कार्यवाही नहीं की. बाद में पुलिस ने बेला भाटिया के ऊपर ही हमला कर दिया.

इस पूंजीवादी लुटेरी व्यवस्था में आपके बच्चे हिंसक लुटेरे तो नहीं बन रहे ? अमीर बनना अक्सर बहुत क्रूरता भरा होता है. कई बार हमें अपनी हिंसा दिखाई देती है, कई बार हम उसे जान बूझ कर अनदेखा कर देते हैं.

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