Home गेस्ट ब्लॉग नववर्ष सबके लिए मंगलमय हो. बसुधैव कुटुम्बकम !

नववर्ष सबके लिए मंगलमय हो. बसुधैव कुटुम्बकम !

5 second read
0
0
223
Ravindra Patwalरविन्द्र पटवाल

कालीचरण को पहली बार केदारनाथ कपाट के सामने शिव स्तुति करते देखा था. यह वीडियो व्हाट्सएप पर खूब वायरल हुआ था. भक्तों के लिए संस्कृत का पाठ ही अपने आप में एक हफ्ते की खुराक हो जाती है. वेद, पुराण के भीतर क्या लिखा है, मेघदूत में कालिदास ने संस्कृत में क्या लिखा है, से कोई सरोकार नहीं.

चीन पड़ोसी देश है. उससे हम गले गले तक आयात करते जा रहे हैं. उसने अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत घोषित किया हुआ है, सीमा पर गांव और लाव लश्कर लिया हुआ है लेकिन हमारे लिए तो टिकटॉक बैन ही नशे में रखने के लिए काफी है.

देश के कुछ डिजाइनर रक्षा विशेषज्ञ बता देते हैं कि चीन के सैनिक ठंड बर्दाश्त नहीं कर सकते, हम तगड़े हैं इस मामले में. हम चौड़े हो गए जबकि चीन वहां पर रोबोटिक कृत्रिम बौद्धिकता के साथ तैनात हो रहा है. इसे न कोई बताता है, न किसी को फुर्सत है.

हम आज एक ऐसे देश में रहते हैं, जिसमें 100 में से 90 लोगों को यही पता है कि कानपुर/कन्नौज वाले इत्र/शिखर गुटखा मालिक समाजवादी पार्टी के हैं, जबकि असलियत यह है कि वह भाजपाई निकला और समाजवादी इत्र बनाने वाले पुष्पराज जैन सपा के एमएलसी हैं, जिनके घर कोई छापा नहीं पड़ा.

हम ऐसे टुच्चे मध्यवर्ग मित्रों, रिश्तेदारों के बीच घिरे हुए हैं, जो अपने मातहतों, सफाई कर्मचारी, सोसाइटी की रखवाली करने वाले के हक के पैसे की बटमारी करने का कोई मौका नहीं चूकते लेकिन फेसबुक पर गर्व से कहेंगे, ‘100 क्या पेट्रोल 200 भी हो जाये, देशहित में मैं मोई जी के साथ खड़ा हूं.’ अरे मूर्ख, पहले पता तो करले देशहित होता क्या है ?

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, गुजरात के कच्छ से लेकर अरुणाचल प्रदेश की सीमा तक इस देश का भू-भाग ही नहीं बल्कि प्रत्येक इंसान मिलकर ही यह भारत बना है.

कश्मीर के बारे में क्या कहें, उसे हमने बर्बाद कर डाला है. वह अब कभी शांत हो पायेगा, नहीं लगता. नागालैंड में जो किया धरा, वह सबके सामने है. अब जबकि पूरा क्षेत्र खदबदाने लगा तो जांच कमेटी बना दी, लेकिन फिर 6 महीने के लिए अफस्पा लगा दिया. किसान अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई लड़ रहा था, यूपी के कारण माफी मांग ली लेकिन मंशा तो नागपुर में कृषि मंत्री ने जाहिर कर दी.

ज्यादा क्या और कितनी बार कहा जाए. सुखी सिर्फ कुछ क्रोनी कॉरपोरेट घराने हैं. कुछ विदेशी बहुराष्ट्रीय निगम हैं. कुछ शिक्षा से जुड़े स्टार्टअप हैं, चंद गिग्स कंपनी हैं, जो ऍप्स के जरिए फ़िलहाल 10 लाख से अधिक भारतीयों को ओला, उबेर, अर्बन कैप सब्जी दूध, अनाज, रेडीमेड फ़ूड सप्लाई कर करोड़ो अरबों खींच रहे हैं.

यही लोग कुछ हिस्से में से जो टुकड़े फेंकते हैं, उससे ही साइबर सेल से खबरें प्लांट होती हैं. यतिनानंद टाइप लोग देश के इतिहास और धरोहरों को अपमानित करने और कहीं मुस्लिम तो कहीं ईसाई समुदाय को निशाने पर लेने का दुस्साहस करते हैं.

भारत आगे जाने के बजाय लगातार गड्ढे में धकेला जा रहा है. हर क्षेत्र को अशांत बनाकर, 80 करोड़ लोगों को आर्थिक रूप से अपाहिज बनाकर कितने समय तक सिर्फ गेंहूं और चावल पर जिंदा रखा जा सकता है ? हम फिर से गरीब कैटेगरी में आ चुके हैं, इस बारे में कोई बात क्यों नहीं करना चाहता ?

हमारा ही पड़ोसी देश चीन अब गरीबी से पूरी तरह मुक्त हो चुका है. 45 करोड़ मध्य वर्ग है, जिसमें 2-3 साल में 20 करोड़ और जुड़ जाएंगे. लाख कोशिशों के बावजूद अमेरिका यूरोप माल खरीदने के लिए चीन से ही मजबूर क्यों हैं ?

अमेरिका में महंगाई बढ़ रही है. 2022 में भी उसके लिए यही सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है. ट्रम्प के चीन के खिलाफ इम्पोर्ट ड्यूटी इसकी बड़ी वजह है, कल उसे भी हटाना पड़ेगा.

यही हाल भारत में है. सस्ता माल बनाने के बजाय चीन से इम्पोर्ट करने को लगातार मजबूर किया गया. जब डीजल, पेट्रोल, बिजली महंगी करोगे तो माल सस्ता कैसे बनेगा ?

इसके लिए हाई स्कूल से अधिक की पढ़ाई की जरूरत नहीं है लेकिन अर्थशास्त्री से लेकर आरबीआई सब खामोश हैं कई सालों से. क्यों ? क्योंकि वे भी हमारी तरह देशहित में सब देख रहे हैं. ये ससुरा देशहित अब मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों को कुछ कुछ पता चल रहा है. आंगनबाड़ी, आशाकर्मी, बैंक कर्मचारी, बीएसएनएल इत्यादि को तो पता चल ही गया है.

2020 भी गया, 2021 भी चला ही गया, 2022 भी बीत जायेगा. विवेक सबसे बेशकीमती वस्तु है, उसकी बेकद्री सबसे अधिक हुई है. उसे बचाये रखने की कसम यदि भारत ले, तभी कुछ संभव है.

नया साल हमें सही और गलत समझने परखने और उसे बोलने की हिम्मत दे, यह हो गया तो देश सुरक्षित रहेगा. किसी के हाथ में देने से गिरवी होना पक्का है.

फाइनली जीएसटी, इनकम टैक्स, ईडी, गोदी मीडिया को यूपी में सपा के असली जैन साहब का ठिकाना मिल ही गया. 5 दिन तक भाजपा के ही समर्थक पीयूष जैन के कानपुर, कन्नौज और गुजरात ठिकानों पर कभी जीएसटी वाले तो कभी बैंक वाले नोट गिनने की नौटंकी करते रहे.

उधर, चुनावी सभा में समाजवादी इत्र की चर्चा और दुर्गंध की खबरें हमारे पूजनीय प्रधानमंत्री के मुखारबिंद से ही नहीं बल्कि अगले पीएम की होड़ में नूराकुश्ती करते दोनों योद्धा भी पिले पड़े थे.

इससे 3 दिन पहले ही पत्रकारों ने असली समाजवादी इत्र वाले सपाई एमएलसी पुष्पराज को फोन कर कन्फर्म कर लिया था, लेकिन पुष्पराज को पता था कि मुंह खोलने पर, आ बैल मुझे मार वाली बात होगी, इसलिए चुप रहने में ही भलाई है. शिखर गुटखे वाले का जनाजा निकलने दो. लेकिन झूठ जब हर गांव बस्ती में झूमने लगा तो मजबूर होकर अखिलेश यादव को सार्वजनिक रूप से सच सच बताना पड़ा.

इसकी खबर मिलते ही जो विभाग अलग-अलग एंगल से इस 200 करोड़ के काले धन पर सजा मुकर्रर कर रहा था, और सभी बेहया चैनल इसे मोदी योगी के भ्रष्टाचार पर जबरदस्त प्रहार बता रहे थे. उनकी खिलखिलाहट अचानक से मरघट की मुर्दहिया शांति से भर गए.

लेकिन खिसियाया हुआ बंदर ज्यादा काट खाता है. सी-वोटर का अर्धसत्य अब निकल रहा है. सर्वे में खुलासा हुआ था कि कुल 74% यूपी के लोग योगी सरकार को नहीं देखना चाहते थे, लेकिन उसे दिखा नहीं सकते थे इसलिए 47% विरोध में और 27% विरोध में लेकिन वोट भाजपा को देंगे, करके परिणाम बताया गया. लेकिन असली रिपोर्ट तो बड़े साहब को बता ही दी होगी, नमक का हक जनता से थोड़े खाया था. इसीलिए, यह छापा और हरिद्वार वाला धर्म संसद में इतना बड़ा वितण्डा खड़ा किया गया होगा.

समाजवादी इत्र वाली बात का फलूदा तो निकल गया, लेकिन धर्म की अफीम कितनी भी खत्म करना चाहो, इतनी जल्दी कहीं नहीं जा सकती है. जब देश तक का बंटवारे को तैयार मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा के नेता दो-राष्ट्र के सिद्धांत को देश की आजादी के ऊपर हमेशा रखते आये थे, और अपने मंसूबे में सफल भी रहे, वे भला अब खामोश रहने वाले हैं ? अब तो सत्ता का स्वाद नरभक्षी बना चुका है. एक गांधी और चाहिए बलिदान के लिए, पर मिलेगा क्या ?

पिछला साल यू-ट्यूब वीडियो न्यूज़ चैनल वालों का रहा, जिन्होंने किसान आंदोलन सहित देश को नई पत्रकारिता मुहैया कराई और सत्ता प्रतिष्ठान के मकड़जाल को तोड़ने में सर्वाधिक भूमिका निभाई. इसलिए कह सकते हैं कि अभी भी भारतीय लोकतंत्र हारी हुई स्थिति में भी लड़ने की स्थिति में बना हुआ है. ऐसे हजारों अनाम पत्रकारों, नए लड़ाकू मीडियाकर्मियों जिन्हें कभी प्रेस क्लब की मान्यता भी न मिले, उन्हें सलाम.

2021 हमारे लिए दो दुनिया स्पष्ट कर गया. लूट अब पिछले दशक से 100 गुना अधिक बढ़ गई है. अब एक ऐप के सहारे करोड़ों लोगों के काम धंधों को देखते ही देखते चट किया जा रहा है. महामारी ने इसे तेजी दी है. जल्द ही बड़ी संख्या में पारम्परिक बनिया समाज विलुप्त हो सकता है. अगले दो तीन साल में ही सप्लाई चैन में जुड़कर करोड़ों युवा सीधे घरों, ऑफिस में माल की सप्लाई कर रहे होंगे. उन्हें बड़ी तेजी से 8 की जगह 12-16 घण्टे खपाया जाएगा.

स्कूल कालेज की जगह शिक्षा भी अब यही टेक कंपनी दे रही हैं, जिसे देखकर 3 दिन पहले पीएम मोदी बड़े खुश थे. सोचने की बारी आपकी है. हर अगला दिन नई भयानक चुनौती के साथ खड़ा है.

कुछ सालों से सोच रहा था, दिल्ली को हमेशा के लिए छोड़ पहाड़ चला जाता हूं. इस साल पता चला, क्लाइमेट चेंज ने सबसे असुरक्षित पहाड़ को ही बना डाला है. अक्टूबर की तबाही ने साबित कर दिया है कि ऊपरी हिमालय ही नहीं निचले इलाके भी कभी भी तबाही की चपेट में आ सकते हैं. और यह सब हमने ही तो किया है.

हमने अपने रसूख, लूट के लिए न सिर्फ अगले मनुष्य को अनगिनत तरीके से अपना गुलाम बना रखा है बल्कि जिस धरती, आकाश, वायु, जल से हम बने हैं, उसे तबाह पहले कौन करेगा, उसकी होड़ लगी हुई है.
धर्म, क्षेत्रीयता, अंधराष्ट्रवाद की चाशनी हमें हर पल थोक में पिलाई जा रही है. दो कौड़ी की देश की समझ रखने वाले ही हमारे सबसे प्रिय और हितकारी नेता बन चुके हैं. बुद्धि विवेक का इतना मट्ठा इतिहास में शायद ही कभी हुआ हो. यह सबसे बड़ा राष्ट्रीय हादसा या आपदा है मेरी समझ में.

पड़ोसी देश चीन के उदय ने जरूर इस एकतरफा विश्व को होने में लगाम लगाई है. यह जरूर हमें समझने में कुछ समय तक परेशानियों में घेरे रखेगा, क्योंकि हम आज तक चीन को उसी नजरिये से देखते आये हैं, जैसा हमारे सभी राष्ट्रीय दल जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल हैं, ने कभी भी समग्रता में नहीं देखने दिया है.

आज जब हम फिर से दसियों करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल चुके हैं, और हमारी आर्थिक राजनीतिक, सांस्कृतिक दिशा उसे बढ़ाने में ही अग्रसर है. अमेरिका सहित यूरोप तक में असमानता बढ़ती ही जा रही है, चीन में गरीबी लगभग शून्य कर दी गई है (विश्व बैंक के मुताबिक), और अब एक हद तक आर्थिक ऊंचाई हासिल करने के बाद उन कंपनियों पर अंकुश लगाया जा रहा है, जो हाई मार्जिन या टैक्स अनियमितता और चीनी परिवारों को शिक्षा के नाम पर लूट रहे हैं.

यह कदम उठाने के लिए अब अमेरिका की हिम्मत नहीं पड़ रही है. उसके पास दो साल पहले मास्क तक नहीं था. इस साल ब्रेड पर लगाने के लिए सॉस नहीं था, या कार के लिए लिथियम उपलब्ध नहीं था. हमारे पास भी बल्क ड्रग सहित बहुत कुछ नहीं है.

हवा में विकास है. हमारे दसियों लाख युवा दूसरों के लिए बीपीओ में जाते हैं. कब धराशाई हो जाएगा ये सब पता नहीं. हम सिक्युरिटी गार्ड से लेकर कम्प्यूटर ऑपरेटर और सॉफ्टवेयर इंजीनियर सप्लाई करने वाले देश बना दिये गए हैं. बाकी हमारे उद्योगपति चीन से इम्पोर्टर बन या तो सामान असेम्बल करते हैं या सीधे बेच देते हैं.

खेती ही अभी बची है. उसमें भी पूंजीगत निवेश और बहुराष्ट्रीय हस्तक्षेप इतना अधिक हो चुका है कि लाख कोशिशों के बावजूद उसमें से किसान का लटकता शव ही अंत में निकलता है.

आज से पूर्वी एशिया में RCEP साझेदारी के तहत व्यापार शुरू होने जा रहा है. हम चूहेदानी वाली स्थिति में सरकार द्वारा फंसा दिए गए थे, अब भारत खुद उस स्थिति में अपने आस पड़ोस में घिरता जा रहा है. और हमें मसखरी सूझ रही है नए साल की.

फिर भी नया साल है तो आस उम्मीद क्यों छोड़ी जाये ! जब होरी और धनिया ने नहीं छोड़ी, मदर इंडिया में जब गीत आता है कि ‘दुनिया में आये हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा.’ इन अमृत वचनों को याद कर करके न जाने कितनी पीढ़ियों से हम आज यहां तक पहुंचने में सफल रहे. आगे भी रहेंगे. जश्न तो बनता ही है.

बस जो जितने भाग्यशाली हैं, उन्हें डिजिटल संवेदनशील होने के बजाय अपने ही उन साथी नागरिकों के बारे में भी अवश्य सोचना चाहिए जो आपसे कुछ नहीं मांग रहे. न आर्थिक बराबरी, न सामाजिक हैसियत, उन्हें तो सिर्फ संवैधानिक समानता चाहिए एक नागरिक होने की, अपने विश्वास के साथ जीने की.

वो चाहे चंपावत जिले की एक दलित भोजनमाता है या बरेली में उन मुस्लिम भाइयों की, जिन्होंने ऐलान किया कि 20 लाख मुसलमानों को काटने से भारत में हिंसा हो सकती है, गृहयुद्ध हो सकता है. हर जुमे की नमाज के बाद 20000 मुसलमान कटने के लिए सर आगे कर देंगे.

यह सोच ही बताने के लिए काफी है कि हम किस दलदल में धंस चुके हैं, इसके बावजूद हंसी ठिठौली जारी है. नववर्ष सबके लिए मंगलमय हो. बसुधैव कुटुम्बकम !

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…