हमारी लड़ाई ब्राह्मण जाति या किसी अन्य जाति, धर्म व पंथ से नहीं है. हमारी लड़ाई तो ब्राह्मणवाद अर्थात पाखंडवाद अर्थात अंधविश्वास फैलाने वालों से है. इसलिए आज हमें खुले दिल और दिमाग से सोचने की आवश्यकता है ताकि हमारा देश और समाज इन गंदगियों से बाहर निकलकर आगे विकास के पथ पर बढ़ सके और हमको संस्कारित करने के लिए हमारे माता-पिता से बड़ा न तो कोई गुरू है और न ही कोई शिक्षक.
ब्रह्म का अर्थ है : भगवान, ईश्वर, अल्लाह व रब्ब आदि-आदि. इसी ब्रह्म के नाम का शोषण करके जो अपने निजी स्वार्थ में संलग्र हैं अर्थात जो अपना उल्लू सीधा करने में लगा है, चाहे वह किसी भी जाति व संप्रदाय का हो, वह ब्राह्मणवादी है. जिन लोगों ने यह मनगढंत कहानी गढ़ी कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण का जन्म हुआ, हाथों से क्षत्रिय, पेट से वैश्य तथा पैरों से शूद्रों का प्रादुर्भाव हुआ, यह पूरा कथन बिल्कुल ही भ्रम फैलाने वाला है. ऐसा न कभी किसी युग में हुआ है और न ही होगा. इसी प्रकार अवतारवाद भी ब्राह्मणवाद की एक कल्पना और मिथ्या प्रचार है. ऐसी कल्पना हिंदू धर्म को छोडक़र शायद ही किसी दूसरे धर्म में हो, लेकिन इस सभी का ठेका हमारे देश में हिंदू धर्म ने उठा रखा है, जबकि इस दुनिया में अन्य लगभग 210 देश हैं और दर्जनों धर्म हैं.
यदि फिर भी किसी अन्य जगह या किसी धर्म में अवतारवाद है, तो वह भी ब्राह्मणवाद ही है. इस ब्राह्मणवाद के जनक मनु थे, जिन्होंने इस ब्राह्मणवाद को श्रेष्ठ अवस्था में रखने के लिए वर्ण व्यवस्था की स्थापना की. हालांकि अक्सर ये कहा जाता है कि पहले वर्ण व्यवस्था काम के आधार पर थी, लेकिन यह सच्चाई नहीं है क्योंकि यदि यह सच होता तो ब्राह्मण वर्ण में अकेली ब्राह्मण जाति नहीं होती, जबकि दूसरे वर्णों में अनेकों अनेक जातियां हैं.
इसी ब्राह्मणवाद को स्थायी रूप देने के लिए पुराणों व अन्य अनेक ब्राह्मणवादी स्मृतियों की रचना की गई, जो पूर्णतया कपोल कल्पित हैं और जिनमें कहीं भी रत्ती भर सच्चाई प्रतीत नहीं होती. उदाहरण के लिए गरूड पुराण की शिक्षा है कि अपने संबंधियों को स्वर्ग सिधारने पर उन्हें स्वर्ग में भेजना है तो पिंडदान करवाओ तथा ब्राह्मण को गौदान दो, ताकि वैतरणी को पार कर सकें अन्यथा नरक भोगना पड़ेगा. कहने का अभिप्राय है कि जिन धर्मों में व देशों में गाय का दान नहीं दिया जाता और न ही पिंडदान करवाया जाता है तो क्या उनके सभी स्वर्गवासी सम्बम्धी नरक में ही जाते हैं ?
वैतरणी भी पूर्णतया काल्पनिक है. क्या बाकी धर्मों व देशों का इस नदी के बगैर कैसे गुजारा हो रहा है ? स्कन्ध पुराण की शिक्षा तो पूर्णतया अमानवीय, अप्राकृति व असवैंधानिक है, जिसमें लिखा गया है कि किसी भी स्त्री के विधवा होने पर उसके बाल काट दो, सफेद वस्त्र पहना दो और उसे खाने को केवल इतना दिया जाए कि वह मात्र जीवित रह सके अर्थात उस अबला विधवा नारी को हड्डियों का पिंजर मात्र बना दिया जाए. इसके अनुसार किसी विधवा को पुनर्विवाह करना पाप माना गया है. याद रहे, ऐसे ही पुराणों की शिक्षाओं के कारण हमारे देश में वेश्यावृति और सती-प्रथा ने जन्म लिया था.
इसी प्रकार कुछ अन्य ब्राह्मणवादी ग्रंथों ने औरतों व दलितों के साथ घोर अन्याय करने की शिक्षा दी और हकीकत यह है कि इसी अन्याय के कारण भारतवर्ष को एक बहुत लंबी गुलामी का सामना करना पड़ा. उदाहरण के लिए ऐतरेय ब्राह्मण (3/24/27) के अनुसार वही नारी उत्तम है, जो पुत्र को जन्म दे. (35/5/2/४7) के अनुसार पत्नी एक से अधिक पति ग्रहण नहीं कर सकती, लेकिन पति चाहे कितनी भी पत्नियां रखे. आपस्तब (1/10/51/ 52) बोधयान धर्मसूत्र (2/4/6) शतपथ ब्राह्मण (5/2/3/14) के अनुसार जो स्त्री अपुत्रा है, उसे त्याग देना चाहिए. तैत्तिरीय संहिता (6/6/4/3) के अनुसार पत्नी आजादी की हकदार नहीं है. शतपथ ब्राह्मण (9/6) के अनुसार केवल सुंदर पत्नी ही अपने पति का प्रेम पाने की अधिकारी है. बृहदारण्यक उपनिषद् (6/4/7) के अनुसार अगर पत्नी सम्भोग करने के लिए तैयार न हो तो उसे खुश करने का प्रयास करो. यदि फिर भी न माने तो उसे पीट-पीटकर वश में करो. मैत्रायणी संहिता (3/8/3) के अनुसार नारी अशुभ है. यज्ञ के समय नारी, कुत्ते व शूद्र को नहीं देखना चाहिए अर्थात नारी व शूद्र कुत्ते के समान हैं. (1/10/11) के अनुसार नारी तो एक पात्र (बर्तन) के समान है. महाभारत(12/40/1) के अनुसार नारी से बढक़र अशुभ कुछ भी नहीं है. इनके प्रति मन में कोई ममता नहीं होनी चाहिए. (6/33/32) के अनुसार पिछले जन्म के पाप से नारी का जन्म होता है.
मनुस्मृति (100) के अनुसार पृथ्वी पर जो कुछ भी है, वह ब्राह्मणों का है. मनुस्मृति (101) के अनुसार दूसरे लोग ब्राह्मणों की दया के कारण सब पदार्थों का भोग करते हैं. मनुस्मृति (11-11-127) के अनुसार मनु ने ब्राह्मणों को संपत्ति प्राप्त करने के लिए विशेष अधिकार दिया है. वह तीनों वर्णों से बलपूर्वक धन छीन सकता है अर्थात चोरी कर सकता है. मनुस्मृति (4/165-4/१६६) के अनुसार जान-बूझकर क्रोध से जो ब्राह्मण को तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक बिल्ली की योनी में पैदा होता है. मनुस्मृति (5/35) के अनुसार जो मांस नहीं खाएगा, वह 21 बार पशु योनी में पैदा होगा. मनुस्मृति (64 श्लोक) अछूत जातियों के छूने पर स्नान करना चाहिए. गौतम धर्म सूत्र (2-3-4) के अनुसार यदि शूद्र किसी वेद को पढ़ते सुन लें तो उनके कान में पिघला हुआ सीसा या लाख डाल देनी चाहिए.
मनुस्मृति (8/21-22) के अनुसार ब्राह्मण चाहे अयोग्य हो, उसे न्यायाधीश बनाया जाए वर्ना राज्य मुसीबत में फंस जाएगा। इसका अर्थ है कि वर्तमान में भारत के उच्चत्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री कबीर साहब को तो हटा ही देना चाहिए। मनुस्मृति (8/267) के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण को दुर्वचन कहेगा तो वह मृत्युदंड का अधिकारी है। मनुस्मृति (8/270) के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण पर आक्षेप करे तो उसकी जीभ काटकर दंड दें। मनुस्मृति (5/157) के अनुसार विधवा का विवाह करना घोर पाप है। विष्णुस्मृति में स्त्री को सती होने के लिए उकसाया गया है तो शंख स्मृति में दहेज देने के लिए प्रेरित किया गया है। देवल स्मृति में तो किसी को भी बाहर देश जाने की मनाही है। बृहदहरित स्मृति में बौद्ध भिक्षु व मुंडे हुए सिर वालों को देखने की मनाही है।
ऐसी ही शिक्षाओं ने केवल देश को गुलाम बनाने में केवल सहयोग ही नहीं दिया, पूरे समाज का ताना-बाना छिन्न-भिन्न कर दिया. इसी परिणामस्वरूप देश आजाद होने पर दलितों, पिछड़ों व महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग उठने लगी. ब्राह्मणवाद का ही दूसरा अर्थ पाखंडवाद व अंधविश्वास है और इसको मानने वाला व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म, पंथ और क्षेत्र का हो सकता है. कांवड़ लाना, पिंडदान करना व मृत्यु भोज करना आदि-आदि घोर पाखंडवाद है. गंगा से कांवड़ इसलिए लाई जाती है कि गंगा का पानी अपने स्थानीय शिव के मंदिरों में चढ़ाया जाए, जबकि हमारे धर्मशास्त्र कहते हैं कि गंगा तो शिवजी की जटाओं में रहती है. और दूसरे धर्मशास्त्र यह भी कह रहे हैं कि शिवजी तो कैलाश पर्वत पर रहते हैं. फिर यहां मूर्तियों पर गंगाजल चढ़ाने का क्या अभिप्राय है ? यह केवल एक हठयोग है.
यदि पिंडदान करने से ही कोई स्वर्ग पहुंच जाता है तो आजकल के महाराज या भगवान लोगों को मोक्ष प्राप्ति के लिए किस आधार पर प्रवचन कर रहे हैं ? यह काम तो केवल पिंडदान से ही हो जाएगा. मृत्यु भोज तो गिद्ध, लक्कड़बघ्घे, कब्वे व चील किया करते हैं. यह मानव का भोज कबसे हो गया ? वर्तमान में पाखंडवाद इतना फैल चुका है कि आज आस्था और अंधविश्वास में फर्क करना असंभव हो गया है. मूर्ति पूजन भी एक पाखंडवाद है. हालांकि स्वामी दयानंद ने मूर्ति पूजन व पिंडदान का खंडन तो किया, लेकिन वर्ण व्यवस्था को स्वीकार करते हुए अपने ग्रथ सत्यार्थ प्रकार के चौथे समुल्लास में पुनर्विवाह के संबंध में मनु के एक श्लोक का हवाला देकर यह सिद्ध कर दिया कि वे स्वयं भी इस पाखंडवाद अर्थात ब्राह्मणवाद से पीछा नहीं छुड़वा पाए थे क्योंकि वे मनु के ही एक श्लोक का समर्थन करते हैं कि यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ण (द्विज) की लडक़ी, जिसका मुकलावा (गौणा) नहीं हुआ है और विधवा हो जाती है तो उसका पुनर्विवाह किया जा सकता है, अन्यथा नहीं. यदि शूद्र वर्ण की लडक़ी है, चाहे उसका गौणा हो चुका है, विधवा होने पर उसका पुनर्विवाह किया जा सकता है (आर्यसमाजी भाई, कृपया सत्यार्थ प्रकाश को ध्यान से पढ़ें).
इसी प्रकार वर्तमान में जितना भी गुरूडम चल रहा है, वे सभी ब्राह्मणवादी हैं, चाहे उनकी जाति व धर्म कोई भी हो. ये सभी लोगों को मोक्ष प्राप्ति की बात करते हैं, जबकि इनका कोई भी पूर्वज आज तक स्वर्ग या नरक से वापस आकर प्रमाण नहीं दे पाया और न ही इनके पास इसका कोई प्रमाण होता है लेकिन मैं यह पूछना चाहता हूं कि यदि सभी अच्छे लोग स्वर्ग चले जाएंगे या मोक्ष को प्राप्त हो जाएंगे तो क्या दुनिया में अच्छे लोगों का टोटा नहीं पड़ जाएगा ? ब्राह्मणवादी पंडित शंकराचार्य ने इसी पाखंड को कायम रखने के लिए भारतवर्ष की चारों दिशाओं में चार धामों की स्थापना की, जिसमें उत्तर में दुर्गम पहाडिय़ों के ऊपर जाकर बद्रीनाथ धाम की स्थापना की. शंकराचार्य तो एक बार उन दुर्गम पहाडिय़ों पर चढक़र वहां उनकी स्थापना कर आए और लोगों को हर कठिनाई उठाते हुए उस धाम के निर्माण में लगा दिया और स्वयं खुद चले आए. लेकिन इसी धाम के कारण लाखों लाख हिंदुओं को हजारों सालों से कष्ट उठाने पड़ते आ रहे हैं.
अभी जून, 2013 में उत्तराखंड में विपदा आई तो हजारों लोग इसी धाम से पानी में बह गए, जिनकी अस्थियां अभी तक नहीं मिल पाई हैं लेकिन बद्रीनाथ जी इन असहाय श्रद्धालुओं की कोई भी मदद नहीं कर पाए और हजारों परिवारों को रोता-बिलखता छोड़ दिया. उसके बाद प्रचार किया गया कि वहां यह विपदा इसलिए आई कि वहां पर एक मंदिर को तोड़ दिया गया था, लेकिन उस मंदिर को तोडऩे वाले ये श्रद्धालु तो नहीं थे, फिर इनको सजा किस कसूर की मिली है ? और जो मंदिर को तोडऩे वाले थे, उनको सजा क्यों नहीं दी गई ? इस बात का उत्तर बद्रीनाथ जी को देना चाहिए.
अभी यही पाखंडी लोग प्रचार करने में लग जाएंगे कि जो श्रद्धालु लापता हो गए या स्वर्ग सिधार गए, वो सब मोक्ष को प्राप्त हो गए हैं या स्वर्ग चले गए हैं ताकि इन पाखंडियों की दुकान भविष्य में भी चलती रहे. लेकिन उन पाखंडियों से पूछने वाला कोई नहीं, जो प्रतिवर्ष इस धाम का 126 करोड़ का चढ़ावा डकार जाते हैं. इन्होंने श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए आज तक क्या उपाय किए, कोई पूछने वाला नहीं है क्योंकि इनके पास श्राप देने का अधिकार सुरक्षित है, इसलिए किसी की क्या मजाल, जो इनके बारे में सवाल कर सके. इसके अतिरिक्त इन्ही पाखंडियों ने ये भ्रम फैलाया कि इसी पहाड़ पर अभी बाकी जो तीन धाम हैं, वो भी यहां पहुंच चुके हैं, इसीलिए यहां आने पर चारों धामों की यात्रा मान ली जाएगी. इसी प्रकार की दर्दनाक मौतें बार-बार ऐसे ही श्रद्धालुओं की होती आ रही हैं और भविष्य में भी होती रहेंगी क्योंकि हम लोगों की आंखों पर पट्टियां बंधी हुई हैं.
इस लेख का लिखने का मेरा अभिप्रायः बड़ा स्पष्ट है कि हमारी लड़ाई ब्राह्मण जाति या किसी अन्य जाति, धर्म व पंथ से नहीं है. हमारी लड़ाई तो ब्राह्मणवाद अर्थात पाखंडवाद अर्थात अंधविश्वास फैलाने वालों से है. इसलिए आज हमें खुले दिल और दिमाग से सोचने की आवश्यकता है ताकि हमारा देश और समाज इन गंदगियों से बाहर निकलकर आगे विकास के पथ पर बढ़ सके और हमको संस्कारित करने के लिए हमारे माता-पिता से बड़ा न तो कोई गुरू है और न ही कोई शिक्षक.
- आई जे राय
Read Also –
ब्राह्मणवाद का नया चोला हिन्दू धर्म ?
1857 के विद्रोह को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कहने का क्या अर्थ है ?