गुरू घंटाल न जाने
कब तक जिन्दा रहेगा
और न जाने कब तक
अज्ञान का घंटा बजाता रहेगा
जिसके शोर से कभी-कभी लगता है
मेरे कान के पर्दे फट जाएगा
जितना ज्यादा किसी ज्ञानी को
अपने ज्ञान पर घमंड नहीं होगा
उससे हजार गुना ज्यादा गुरू घंटाल को
अपने अज्ञान पर घमंड़ है
अक्सर गुरू घंटाल
गांव के चबूतरे पर बैठ कर
अपनी अज्ञान की गंगा बहाने लगता है
और गांव के खलिहर लोग
उसमें डुबकी लगाने लगते हैं
मैने कई बार कोशिश किया
गुरू घंटाल को पौराणिक कथाओं से
बाहर लाऊं
और उसे विज्ञान की दुनिया से
परिचय कराऊं
लेकिन गुरू घंटाल मुझे ही पकड़ कर
अज्ञान की दुनिया में घुमाने लगता
और मुझे उससे गर्दन छुड़ा कर भागना पड़ता
गुरू घंटाल कहता की
वह परम्परा और धर्म का रक्षक है
और इस पर किसी तरह का
आंच नहीं आने देगा
मैं कहता
गुरू घंटाल तुम्हारे परम्परा और धर्म
किसी काम का नहीं रहा
वो गांव के लोगों की
पैरों में बेडी बन गई है
इसे टूट जाने दो
लेकिन उस पर इन बातों का कोई असर नही पड़ता
और वह अपने में ही मग्न रहता
आजकल गुरू घंटाल
बहुत उछ्लने-कूदने लगा है
कहता है उसके वर्षो का तपस्या पूरा हुआ है
राम लला का दर्शन करने अयोध्या जाऊंगा
और वही घंटा बजाऊंगा
मैंने जब से ये सुना है
तब से ही खुस हूं
आखिर गुरू घंटाल ने
सही फैसला लिया है
उसके जैसे लोगो के लिए ही तो
मंदिर बना है
जाओ गुरू घंटाल जाओ
वैसे भी मेरे गांव में
तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है
जिसके तरक्की में तुम
सदियों से बाधा बने हुए हो !
- विनोद शंकर
22.1.2024
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