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गुलामी भारतीयों की सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा

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गुलामी भारतीयों की सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा

धर्म, मूर्खता और भय के त्रिशूल के माध्यम से भारतीय जनमानस में गुलामी इस कदर गहरे समाई है कि यह भारतीयों की सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गई है. राजसत्ता के आगे संपूर्ण समर्पित भारतीय जनमानस सदियों से भक्ति के नाम पर मूर्खता, धर्म के नाम पर गुलामी और प्रभुकृपा के नाम पर अंधविश्वास का दिव्य प्रदर्शन करती रही है और, आज 21वीं सदी में भी उनके ये नैसर्गिक गुण अपने शबाब पर कायम है.

अगर ऐसा नहीं होता तो क्या यह संभव था कि देश की इतनी बड़ी आबादी नरेंद्र मोदी जैसे क्रूर ,मूर्ख, जुमलेबाज, बहुरुपिया और राष्ट्रहंता व्यक्ति की जय-जयकार करते हुए उसे परमब्रह्म परमेश्वर का अवतार और हिन्दू ह्रदयसम्राट समझकर उसके इशारों पर नाचती, और अपना सब कुछ गंवाकर भी उसे राष्ट्र का उद्धारक समझती. ‘होइहें सोई जे राम रची राखा, का कोई तर्क बढ़ावहीं साखा’, ‘कोय नृप होय हमें का हानि, चेरी छाड़ ना होयब रानी,’ या ‘जेहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए’ जैसे लोकोक्तियों और मुहावरों में दृढ़ विश्वास करने वाली जनता इसके अलावा और कर भी क्या सकती है ?

जिस देश की जनता का सर्वस्व लूट लिया गया, वर्तमान के साथ भविष्य भी छीन लिया गया, भावी पीढ़ीओं को हमेशा के लिए मूर्ख और गुलाम बनाए रखने की साज़िश की जा रही हो, नवजवानों को बेरोजगार बनाकर, किसानों और मजदूरों को मजबूर और गुलाम बनाकर और मध्यम वर्ग को अंधकारमय भविष्य का भय दिखाकर आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया गया हो, धर्मपरायणता और राष्ट्रभक्ति के नाम पर जिनके सारे अधिकार छीन लिए गए हों, और जिनकी जुबां पर ताले जड़ दिए गए हों, वे अब भी ऐसा करने वाले नरेन्द्र मोदी का गुणगान और जय-जयकार करें तो स्पष्ट हो जाता है कि भारत की जनता के डीएनए में ही गुलामी है, और जिससे बाहर निकलना भी उसे पसंद नहीं.

जो समाज या समुदाय किसी एक व्यक्ति को ही राष्ट्र समझने की भूल करे, राष्ट्रहंता को राष्ट्र उद्धारक समझने लगे; जो व्यक्ति सांप्रदायिकता का जहर पूरे देश में जो फैला दें, सांप्रदायिक दंगों की आग में जो देश को झोंक दें, और जो किसी धर्म का भय दिखाकर एवं उसके दिल में हमेशा के लिए खौफ पैदा करने के लिए नरसंहार करने में भी शर्म करने के बदले गौरवान्वित महसूस करता हो, उस व्यक्ति को धर्म-ध्वज रक्षक समझने लगे, तो उसकी मूर्खता का इससे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता है ?

जिस देश के नागरिक अपने को आजाद नागरिक न समझ गुलाम और भक्त समझने लगें तो समझ लीजिए कि वे आजाद परिंदा बनकर रहना नहीं चाहते, बल्कि पिंजरे में बंद तोता बनकर रहना चाहते हैं, जिसे समय-समय पर मालिक खाने के लिए कुछ दे देता है, और तोता मालिक के सिखाए शब्दों को रटते रहता है.

जिस देश की बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम को गरीब, अकिंचक, लाचार, भीखमंगा और मजलूम बनाकर जलालत की जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया गया हो, और यह आबादी उस व्यक्ति के विरुद्ध आवाज उठाने, उससे सवाल करने, उसकी आलोचना करने और उसके खिलाफ जनांदोलन करने से भी परहेज करती हो, तो यह स्वत: प्रमाणित हो जाता है कि यह आबादी आजाद नागरिकों की न होकर गुलामों की भीड़ है, जिनकी जुबां काट दी गई हो, जिनके हाथ-पैरों में बेड़ियां पड़ी हों. जिनका विश्वास, आत्मसम्मान, साहस, जोश, ऊर्जा और उत्साह का अपहरण हो गया हो, और वे जिंदा लाश के रूप में रूपांतरित हो गए हों.

जब भी कभी किसी देश में ऐसी स्थिति आती है कि लोग एक व्यक्ति विशेष में राष्ट्र, धर्म और संस्कृति के दर्शन करने लगें, राष्ट्र का नियंता और उद्धारक समझने लगें, और धर्म और राष्ट्र के नाम पर अपना सर्वस्व समर्पित करने के लिए तैयार हो जाएं, तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि उस देश में फासीवाद के लिए आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण हो गया है, और वहां की जनता गुलाम बनकर अपने तथाकथित उद्धारक या राष्ट्र नायक के पीछे-पीछे भेंड़ की तरह चलकर अपना भविष्य कुर्बान करने के लिए तैयार हैं.

अब भी समय है कि हम सभी देशवासी आपसी भेदभाव भूलाकर परस्पर सहयोग और भाईचारे की भावना से एकजुट होकर इस राष्ट्रद्रोही सरकार के आतंक के खिलाफ तब तक जनसंघर्ष करने के लिए कमर कस लें, जब तक कि इसे भारत भूमि से हमेशा के लिए समाप्त न कर दिया जाए. काम मुश्किल नहीं है. मुश्किल है हमें आपसी भेदभाव, घृणा, विभेद और प्रतिद्वंदिता को भूलाना और धर्म और राष्ट्र के सौदागरों के जाल से अपने-आप को मुक्त करना.

जिस दिन हम यह समझ लेंगे की हम सभी किसी धर्म, जाति, क्षेत्र और वर्ण के न होकर भारत के रहने वाले भारतीय हैं, और हम सभी भारतवासियों के भाग्य और भविष्य एक-दूसरे के साथ अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं, हम इतने ताकतवर हो जाएंगे कि इन फासीवादी ताकतों को हम आसानी से शिकस्त दी सकते हैं.

फासीवादी ताकतें जनता की एकजुटता, गोलबंदी और लामबंदी से ही घबराती और डरती है, और इसीलिए वे हमेशा ही इस प्रयास में रहती हैं कि बहुसंख्यक मेहनतकश लोगों के बीच विभाजन पैदा किया जा सके. और उस विभाजन का फायदा उठाकर सत्ताधारी वर्ग के हित में मनमाना निर्णय लिए जा सकें और पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हाथ इतना मजबूत किया जा सके कि वे देश की सारी संपत्ति, संपदा और प्राकृतिक संसाधनों को लूटकर अपनी तिजोरी भर सकें.

अगर समय निकल गया तो फिर पछताने के अलावा हमारे पास और कुछ भी नहीं बचेगा. तब फिर यदि हमें होश आया भी तो यही कहना पड़ेगा कि ‘सब कुछ लूटाके होश में आए तो क्या हुआ ?’

  • राम अयोध्या सिंह

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ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

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