पानी चाेरी राेकने के लिए पुलिस-प्रशासन और आईजीएनपी अभियंता फील्ड में हैं. नहर पर गश्त हा़े रही है. नहरबंदी के दाैरान ये पानी पीने के लिए है. किसानाें काे ये बात समझनी हाेगी कि अगर इस पानी काे चाेरी किया ताे लाेगाें काे पीने के लिए पानी कहां से मिलेगा. संवेदनशीलता दिखाते हुए पानी चाेरी से बचें वरना प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद है. मुकदमें दर्ज हाेंगे.
– हरीश छतवानी, अधीक्षण अभियंता रेग्युलेशन
यह महज धमकी नहीं है बल्कि बज्जू में किसानों पर पानी चोरी के 3 मामले दर्ज किये गये हैं. यानी अब अपराध की गिनती मैं पानी का चोरी करना भी शामिल हो गया है. यह नहरबंदी ऐसे समय होती है जब कपास बोया जाता है और किसानों को अपने फसल के पानी की जरूरत होती है. किसान नहर से अपने खेत में सिंचाई हेतु पानी ‘चुरा’ न ले इसलिए 371 किमी नहर की सुरक्षा में बड़े पैमाने पर अधिकारी और सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई है.
खबर के अनुसार नहर से पानी की चाेरी काे राेकने के लिए 13 आईएएस, 10 आईपीएस, दाे चीफ इंजीनियर, तीन एडीशनल चीफ इंजीनियर, 14 थाने की पुलिस सहित करीब 1200 अधिकारियाें-कर्मचारियाें का भारी भरकम महकमा जमा 2000 क्यूसेक पानी की सुरक्षा में तैनात किया गया है. गुरुवार को ही बज्जू के पास आरडी 961 पर पुलिस, आरएसी और नहर अभियंताओं ने गश्त लगाकर किसानों काे चेतावनी दी कि पानी चाेरी ना करें. वर्ना जेल जाना पड़ सकता है.
नहर में पानी 19 अप्रैल तक चलेगा, उसके बाद नहर सूखने की स्थिति में पहुंच जाएगी, तब तक पश्चिमी राजस्थान की करीब दाे कराेड़ आबादी की प्यास बुझाने के लिए सरकार ने पानी की चौकीदारी शुरू कर दी है. नहरबंदी के दौरान सिर्फ 2000 क्यूसेक ही पानी हाेता है जाे पीने के काम आता है. अगर इसमें चाेरी हुई ताे 10 जिलाें की करीब दाे कराेड़ आबादी सीधे प्रभावित हाेती है इसलिए सीएम कार्यालय से लेकर जल संसाधन, जलदाय, 10 जिलाें के कलेक्टर-एसपी, तीन संभागीय म्युक्त, नहरी क्षेत्र के सभी मुख्य अभियंता समेत पूरे लवाजमे काे पानी बचाने के लिए मैदान में उतार दिया गया है.
यह नहरबंदी ऐसे समय होती है जब कपास बोया जाता है. कपास की बिजाई का समय है और खेत को पानी चाहिए. मार्च से मई के बीच नहरबंदी हाेती है. नहर के करीब ढाई लाख हैक्टेयर क्षेत्र में कपास की बिजाई हाेती है. किसानाें काे इस वक्त पानी की सबसे ज्यादा जरूरत रहती है इसलिए चाेरी होती है. नहर विभाग नहरबंदी के बाद खरीफ की फसल के लिए सिंचाई का पानी देता है लेकिन तब तक बिजाई का समय बीत चुका हाेता है. ऐसे में किसान समय पर बिजाई करने के लिए पानी चोरी करते हैं.
पानी चोरी की वारदात सबसे ज्यादा अनूपगढ़ ब्रांच, खाजूवाला, पूगल, छत्तरगढ़ और बज्जू इलाके में हाेती है लेकिन मुख्य नहर की रखवाली जैसलमेर तक करती पड़ती है. इसके लिए आरएसी के सैकडों जवानों काे हथियाराें के साथ तैनात किया गया है. 19 अप्रैल तक रखवाली इसलिए जरूरी है क्योंकि तब तक ही पीने का पानी नहर में चलेगा, उसके बाद पूरी तरह पानी बंद हा़े जाएगा.
कपास की बुआई 15 अप्रैल से 15 मई तक की जा सकती है. यह पीक समय है. फसल 170 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इसकी औसत पैदावार लगभग 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है. प्रदेश में अलवर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, बांसवाड़ा डूंगरपुर जिलों में इसकी पैदावार की जाती है. कृषि विभाग ने इस बार बीटी कॉटन की बिजाई के लिए एक लाख 40 हजार 500 हैक्टेयर क्षेत्रफल का लक्ष्य निर्धारित किया था.
कपास कम पानी की फसल है फिर भी खेती पर संकट मंडराता रहता है. कपास ऐसी फसल है जिसके लिए नहर विभाग सिंचाई के लिए ताे खरीफ में पानी देता है लेकिन जब उसकी बिजाई का समय हाेता है तब नहरबंदी हाेती है, ऐसे में सवाल है कि जिस फसल की बिजाई के लिए पानी नहीं तो सिंचाई के लिए देने का क्या मतलब. मजबूरी में इसीलिए किसान पानी चोरी का प्रयास करते हैं. एक सप्ताह में नहर विभाग ने तीन एफआईआर बज्जू इलाके में कराई है. किसान साइफन लगाकर पानी चोरी करते पकड़े गए हैं.
भारत जैसे नदी प्रधान देश में पानी पर पहरा और किसानों पर पानी चोरी की घटना पर मुकदमा एक अजूबा ही है. यह नदियों की पानी के खराब प्रबंधन का मामला तो है ही उससे भी ज्यादा पानी के लगातार निजीकरण किये जाने की सरकारी कोशिश का भी नतीजा है. पानी के निजीकरण से उपजे हालत दक्षिणी अमेरिकी देश बोलिविया में स्पष्ट हो चुका है, जहां पानी के लिए गृहयुद्ध तक हुआ और पानी के लिए खून बहाये गये.
बोलिबिया की यह घटना इस प्रकार है. साल 1999 में, जब विश्व बैंक के सुझाव पर बोलिविया सरकार ने कानून पारित कर कोचाबांबा की जल प्रणाली का निजीकरण कर दिया. उन्होंने पूरी जल प्रणाली को ‘एगुअस देल तुनारी’ नाम की एक कंपनी को बेच दिया, जो कि स्थानीय व अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों का एक संघ था.
कानूनी तौर पर अब कोचाबांबा की ओर आने वाले पानी और यहां तक कि वहां होने वाली बारिश के पानी पर भी ‘एगुअस देल तुनारी’ कंपनी का हक था. निजीकरण के कुछ समय बाद कंपनी ने घरेलू पानी के बिलों में भारी बढ़ोतरी कर दी. कोचाबांबा में उनका पहला काम था 300 प्रतिशत जल दरें बढ़ाना. इससे लोग सड़कों पर आ गए.
कोचाबांबा में पानी के निजीकरण विरोधी संघर्ष शुरू हुआ था, जो सात से अधिक सालों तक लगातार चला, जिसमें तीन जानें गईं और सैकड़ों महिला-पुरुष जख़्मी हुए. जिस निजी कम्पनी को जल पर नियंत्रण रखने का ठेका दिया गया उसका एकमात्र उद्देश्य था – मुनाफा कमाना. उन्होंने कोई निवेश नहीं किया. वे देश के बुनियादी संसाधनों का उपयोग कर सिर्फ मुनाफा ही कमाना चाहते थे.
बोलिविया के अनुभव से सीख लेते हुए जलक्षेत्र में पब्लिक-प्राइवेट-पार्टनरशिप से हमें बचना चाहिए लेकिन ऐसा होता हमें दिख नहीं रहा है. बिजली तो पूरी तरह से निजी हाथों में जा ही चुकी है अब पेयजल व्यवस्था पर भी निजी क्षेत्र का कब्जा होने जा रहा है.
निजीकरण की अंधी दौड़ भारत में भी शुरू हो चुकी है. पानी का भी निजीकरण हो रहा है, ऐसे में भारत में भी बोलिबिया की तरह पानी के लिए गृहयुद्ध हो, इसकी संभावना बढ़ती जा रही है.
Read Also –
पानी का अर्थशास्त्र
मरती नदियां और बोतलबंद पानी के खतरे
The Next Big Thing : जल का निजीकरण
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]