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बढ़ता व्यापार घाटा यानी, मोदी सरकार की फ्लॉप ‘मेक इन इण्डिया’ नीति

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girish malviyaगिरीश मालवीय

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी कह रही है कि ‘रुपया गिर नहीं रहा, बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है’. लेकिन मैडम इसके साथ ही कुछ और भी हो रहा है. इस साल की पहली छमाही में देश के व्यापार घाटे में चौंकाने वाला दुगुना उछाल देखने को मिला है.

जी हां यह सच है ! इस साल की पहली छमाही में यानी, अप्रैल से सितंबर 2022 तक हमारा व्यापार घाटा 148.46 अरब डॉलर हो गया है, जो इसके पहले वाले साल यानी 2021 के ठीक इन्हीं छह महीनों में मात्र 76.25 अरब डॉलर था. यह बात सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों से ही सामने आई हैं.

सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान देश का कुल एक्सपोर्ट 16.96 फीसदी बढ़कर 231.88 अरब डॉलर पर जा पहुंचा. लेकिन इसी अवधि के दौरान देश के कुल इंपोर्ट में 38.55 फीसदी का भारी इजाफा देखने को मिला और यह बढ़कर 380.34 अरब डॉलर हो गया.

एक्सपोर्ट के मुकाबले इंपोर्ट में इस भारी उछाल का असर देश के व्यापार घाटे पर पड़ा, जो अप्रैल-सितंबर 2022 के दौरान बढ़कर 148.46 अरब डॉलर हो गया. क्या भारत की अर्थव्यवस्था के लिए यह चिंता वाली बात नही हैं ? जबकि हम देख ही रहे हैं कि हमारा विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से घट रहा है और डॉलर रुपए की तुलना में मजबूत हो रहा है ?

बढ़ता व्यापार घाटा देश की जीडीपी ग्रोथ पर भी विपरीत असर डाल रहा है. भारतीय रिजर्व बैंक ने 2022-23 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के भुगतान संतुलन के आंकड़े जारी किए हैं. इनके अनुसार, चालू खाते के मोर्चे पर 23.9 अरब डॉलर का घाटा रहा, जो जीडीपी का 2.8 फीसदी है. पिछले वित्त वर्ष 2021-22 की जनवरी-मार्च तिमाही में कैड 13.5 अरब डॉलर यानी जीडीपी का 1.5 फीसदी था. यानी, ये भी लगभग दुगुना है.

दरअसल व्यापार घाटा निर्यात और आयात के मूल्य के बीच अंतर होता है. जब कोई देश निर्यात के मुकाबले अपने आयात पर ज्यादा पैसा खर्च करता है तो व्यापार घाटे की स्थिति पैदा होती है. आयात और निर्यात विश्व व्यापार के प्रमुख अंग हैं. कुछ देश निर्यात ज्यादा करते हैं तो कुछ का आयात ज्यादा रहता है. एक देश के निर्यात और आयात में अंतर एक सीमा तक तो स्वीकार्य होता है, पर भारत के संदर्भ में इस साल तो यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है.

व्यापार घाटे के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं. एक सीधा कारण यह है कि देश अपनी जरूरत की वस्तुओं और सेवाओं को खुद देश में उत्पादित नहीं कर पाता और बाहर से मंगाने या लेने के लिए बाध्य होता है, इसके लिए हमें भारी रकम खर्च करनी पड़ रही है. इससे हमें पता चलता है कि मोदी सरकार की मेक इन इण्डिया नीति कितनी फ्लॉप सिद्ध हुई है.

एक बात और है कि यदि देश की मुद्रा कमजोर हो तो यह आयात और महंगा हो जाता है. व्यापार घाटे का ऊंचा होना देश की मुद्रा पर भी दबाव डालता है. भारत में इस समय ये दोनों ही स्थितियां देखने को मिल रही हैं. यानी, एक तो दुबले उस पर दो आषाढ़ वाली बात हो गई है.

इस तरह से दोगुनी स्पीड से बढ़ता व्यापार घाटा हमारी देनदारियों में वृद्धि करता जाएगा और देश के बजट का एक बड़ा हिस्सा इन देनदारियों को चुकाने पर खर्च करना होगा. और इसका असर यह पड़ेगा कि अर्थव्यवस्था की हालत और बदतर होती जाएगी.

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