11 दिसंबर को जब किसान दिल्ली सीमाओं से घर वापस लौटे तो मोदी-शाह नेतृत्व में भाजपा-आरएसएस की केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून की वापसी के साथ लिखित वादा किया कि ‘सी टू प्लस फिफ्टी’ प्रावधान के साथ एम.एस.पी. की कानूनी गारंटी देगी, आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज सभी मुकदमें वापस लेगी, बिजली संशोधन विधेयक संसद में पेश नहीं करेगी, पराली जलाने पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं करेगी.
लेकिन किसानों के सीमाओं से हटते ही सरकार सारे वादे भूल गई. नया बिजली संशोधन विधेयक संसद में पेश किया, पराली जलाने पर किसानों पर मुकदमें दर्ज हो रहे हैं, आन्दोलन के दौरान दर्ज केसों पर नोटिस भेजे जा रहे हैं, किसान आन्दोलन को बदनाम करना जारी है. लखीमपुर के शहीद किसानों को न्याय नहीं मिला, चार किसानों और एक पत्रकार को गाड़ी से रौंद कर हत्या करने के साजिशकर्ता केंद्रीय गृहमंत्री अजय मिश्रा टेनी को न हटाकर किसानों के साथ बदले की भावना से सरकार ने काम किया.
तब किसान संगठनों ने फैसला किया कि सभी किसान एकताजुटता के साथ चुनावों में भाजपा को सबक सिखाएंगे. संयुक्त किसान मोर्चा ने मिशन यूपी का ऐलान किया. 4 फरवरी को नई दिल्ली के प्रेस क्लब से एसकेएम के राष्ट्रीय नेताओं ने विधानसभा चुनाव में किसानों से भाजपा को सजा देने की अपील की. ऐलान से ठीक हफ्ते भर बाद 10 फरवरी को पहले चरण का मतदान होना था.
एसकेएम के राष्ट्रीय नेताओं ने नई दिल्ली, बरेली, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, प्रयागराज और बनारस में, इसके अलावा प्रादेशिक स्तर के नेताओं के साथ आजमगढ़, अलीगढ़ , हाथरस, इटावा, एटा, मैनपुरी, अयोध्या, सुल्तानपुर, अमेठी, मेरठ, रायबरेली, बस्ती, अंबेडकर नगर, गाजीपुर और जौनपुर में प्रेस वार्ता कर किसानों से भाजपा को सबक सिखाने की अपील की.
राज्य भर में किसान संगठनों ने करीब पचास हजार से अधिक पर्चा इन जिलों के गांव-गांव बांटा. मिशन यूपी का कार्यक्रम चुनाव के पहले चरण से सातवें चरण तक राज्य में भाजपा के खिलाफ आंदोलन बन गया था, फिर भी यूपी में बीजेपी जीत गई. अब सवाल उठता है किसान संगठनों के मिशन यूपी की कामयाबी पर.
किसान आंदोलन के कारण भाजपा की मुश्किलें
इसी विषय पर चर्चा को आगे बढ़ते हैं. पहले पश्चिमी यूपी के परिणामों पर नजर डालते हैं. यहां के परिणाम को लेकर अक्सर किसान विरोधी ताकतें तंज कसती हैं कि किसानों ने पश्चिमी यूपी में भाजपा को वोट दिया, जबकि सच कुछ और है.
पश्चिमी यूपी में शामली, मुजफ्फरनगर और बागपत किसान आंदोलन के गढ़ माने जाते हैं. 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुजफ्फरनगर की सभी 6 सीटों पर, शामली की तीन में से दो सीटों पर और बागपत की तीन में से दो सीटों पर जीत हासिल की थी. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर में भाजपा दो सीटों पर सिमट गई, शामली में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया.
जाट आधार की पार्टी रालोद ने 2017 में 277 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिसको कुल मतों का 1.78 प्रतिशत वोट हासिल हुआ और केवल एक उम्मीदवार ही जीत हासिल कर विधायक बन सका, वहीं 2022 में रालोद ने 33 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए और 2.85 प्रतिशत वोट हासिल कर 9 सीटों पर जीत हासिल की. इसके अलावा बिजनौर में पिछले चुनाव की तुलना में सपा को दो सीटें अधिक मिली. पूरे राज्य में सपा ने पिछली बार की तुलना में 65 सीटों पर ज्यादा जीत हासिल की.
अब पूर्वी यूपी के परिणाम पर गौर करें. जिन जिलों में किसान आंदोलन की सक्रियता रही और किसान संगठनों ने गांव-गांव पर्चे बांटे, बैठकें की, उन जिलों में भाजपा या तो बुरी तरह हारी या मुश्किल से जीत हासिल कर पाई. गाजीपुर, अंबेडकर नगर और आजमगढ़ की सभी सीटों पर भाजपा बुरी तरह हारी.
जौनपुर में भाजपा के खाते की तीन सीटें खिसक गईं. भाजपा केवल बदलापुर की एक सीट जीत सकी. बलिया की 7 विधानसभा सीटों में से केवल दो सीटें बीजेपी जीत सकी. 2017 में बस्ती की सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा था लेकिन इस बार केवल एक हरैया की सीट पर जीत हासिल हो सकी. मऊ में भी भाजपा तीन सीटों से एक सीट पर सिमट गई.
लखीमपुर खीरी में हालांकि भाजपा ने पिछली बार की सभी सातों सीटों पर अपना कब्जा बनाए रखा. पिछली बार पलिया से भाजपा के हरविंदर कुमार साहनी 69228 वोटो के सर्वाधिक अंतर से और कस्ता से भाजपा के सौरभ सिंह 24273 वोटों के सबसे कम अंतर से जीते, लेकिन इस बार जीत का यह अंतर 4571 से 38129 तक सीमित कर रह गया. यानी लखीमपुर खीरी की इन आठों सीटों पर डेढ़ लाख से अधिक किसानों ने इस बार भाजपा को वोट नहीं दिया. भाजपा के 27 उम्मीदवार केवल 200 से 5000 वोटों के अंतर के मामूली अंतर से ही बामुश्किल जीत पाए.
किसानों के विरोध ने भाजपा की मुश्किलें इतनी बढ़ा दी कि भाजपा की ओर से ईवीएम बदलने और हेरा फेरी करने, ईडी का विपक्षियों पर इस्तेमाल, नौकरशाहों पर जिताने के दबाब जैसी काली करतूतें भी की गईं. उनमें से कुछ करतूतें किसानों और आमजन या विपक्ष के समर्थकों द्वारा पकड़ी भी गईं. 8 मार्च, 2022 को वाराणसी में ईवीएम ले जा रहे ट्रक को पकड़ा. विरोध हुआ, वीडियो वायरल हुई. चुनाव आयोग को अतिरिक्त जिला में स्टेट के खिलाफ कार्यवाही का आदेश देना पड़ा, उन्हें पद से निलंबित भी किया गया.
अगले दिन 9 मार्च को बरेली में नगर निगम के ट्रक में चुनाव मतदान सामग्री से भरे तीन बक्से मिले. इस घटना पर भी चुनाव आयोग ने एसडीएम को हटा दिया. जालौन में एक कार बार-बार स्ट्रांग रूम के अंदर-बाहर जाते जनता ने पकड़ी, उसकी जांच की गई तो उसमें हार्डवेयर उपकरण मिले. यह तो वे घटनाएं थी जो जनता की या विपक्ष की पकड़ में आ गई, बाकी राज्य में चुनाव के दौरान कितनी धांधली हुई होगी, अंदाज लगाया जा सकता है
भाजपा के जीत का कारण
इसके अलावा भाजपा की जीत का सबसे बड़ा कारण चुनावी इतिहास में सबसे अधिक बिखरा हुआ विपक्ष. एक ओर सत्ता पक्ष भाजपा-आरएसएस गठबंधन और उसके साथ ईडी, चुनाव आयोग और कॉर्पोरेट शक्ति, नौकरशाह और पूंजीपति और उनके दलालों का जाल. दूसरी ओर कमेरी जनता के सामने बिखरा हुआ विपक्ष जिसमें पहला विकल्प सपा-रालोद-सुभसपा-अपना दल (कमेरा)- राष्ट्रवादी कांग्रेस गठबंधन, दूसरा विकल्प बसपा, तीसरा विकल्प आप, चौथा विकल्प कांग्रेस, पांचवा विकल्प ए.आई.एम.आई.एम., छठा विकल्प वामपंथी दल, इसके अलावा हजारों निर्दलीय प्रत्याशी.
सपा गठबंधन के अलावा सभी 403 सीटों पर बसपा ने 399 सीटों पर, कांग्रेस ने 349 सीटों पर, आप ने 110 सीटों पर, आजाद समाज पार्टी ने 94 सीटों पर, ए.आई.एम. आई. एम. और 60 सीटों पर वामपंथी पार्टियों ने अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे. निर्दलीय प्रत्याशियों ने ही 10 लाख से अधिक वोट काटकर भाजपा को जीतने में अप्रत्यक्ष रूप से मदद की थी.
किसान आंदोलन का मिशन-यूपी
सारी चर्चा से साफ जाहिर है की यूपी में किसान जिसका एक बड़ा हिस्सा जाट जो कुल आबादी का 1.7 प्रतिशत, यादव जो कुल आबादी का 6.47 प्रतिशत और कुर्मी जो कुल आबादी का 3.2 प्रतिशत और बाकी तमाम भाजपा-आरएसएस पीड़ित शोषित जनता ने मिलकर भाजपा को सबक सिखाने में ऐतिहासिक सफलता हासिल की है. एसकेएम के सामने अब 2024 का लोकसभा चुनाव है.
मिशन यूपी के बाद दो साल बीत गए लेकिन केंद्र सरकार आज भी किसानों के साथ शत्रुतापूर्वक रवैया अपना रही है. आंदोलन के दौरान के केसों के मामले में नोटिस भेजना जारी है, इसके अलावा किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले संगठनों, व्यक्तियों पत्रकारों, व्यापारियों को फर्जी मामलों में फंसाया जा रहा है.
ऐसे में अगर सरकार ने समय रहते किसानों को एम.एस.पी. की कानूनी गारंटी और संपूर्ण कर्जा माफी नहीं दी, किसान-मजदूर विरोधी यहां तक कि तमाम जनविरोधी फैसले सरकार वापस नहीं लिए तो किसानों को एक बार फिर मिशन यूपी का दूसरा पार्ट और ज्यादा बेहतर जमीनी तैयारी के साथ लागू करने की जरूरत होगी.
- शशिकांत (अलीगढ़)
राज्य प्रभारी, क्रांतिकारी किसान यूनियन, यूपी
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