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#Grok : झूठ की धज्जियां उड़ रही हैं, गालीबाज खुद की बनाई गालियां खा रहे हैं

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#Grok : झूठ की धज्जियां उड़ रही हैं, गालीबाज खुद की बनाई गालियां खा रहे हैं
#Grok : झूठ की धज्जियां उड़ रही हैं, गालीबाज खुद की बनाई गालियां खा रहे हैं

नैंन छिन्दन्ति शस्त्राणि,नैंम दहति पावकः, न चैनम क्लेयदन्तापो, च शोषयति मारुतः. #Grok को न शस्त्र छेद सकते हैं, न आग जला सकती है. क्लांत हृदय भक्तों को चैन से रहने नहीं देता, उन्हें हवा की तरह सोखकर क्लीन एंड ड्राई कर देता है.

ग्रोक ज्ञानी नहीं है. सिर्फ ऑटो गूगल है. किसी प्रश्न के कीवर्ड लेकर, मिलीसेकेंड्स में हजारों वेबपेजेस, रिसर्च पेपर, आर्टिकल्स सर्च करता है, तथ्य/जानकारी निकालता है. ये जानकारी आपको नहीं मिलती क्योंकि उसके और आपके सर्च करने में फर्क है.

आप कोई कीवर्ड गूगल करते हैं, तो अमूमन शुरू के पांच दस लिंक देखते हैं. गूगल, उन लिंक को प्राथमिकता देता है, जिन्हें पैसे देकर ऊपर रखा गया हो या जिसे सबसे ज्यादा बार हिट किया गया हो.

पैसा प्रोपगंडा साइट देते हैं. ऊपर वही रहते हैं, हिट भी खूब मिलता है. आप गांधी पर कुछ खोजिए, तो ऊपर गांधी पर आधिकरिक साइट नहीं आएगी. वहां बैक टू बैक, घटिया पोर्टल और संघी साइट मिलेंगे.

सबसे ऊपर जो परोसा हो, हिंदी में हो, आप उसे पढ़ लेते हैं, धारणा बना लेते हैं. लेकिन सत्य जानने के लिए जानकारी के पहाड़ में ऊपर की परत कुरेदने की जरूरत है. मैं शुरू के दस पेज तो इग्नोर मारता हूं. सही जानकारियां उसके बाद मिलती हैं. मेरे मूर्ख बनने की संभावना कम होती है.

ग्रोक 2-4 सौ साइट खंगालकर उत्तर दे रहा है, तो जाहिर है, शुरू के 10-15 छोड़ बाकी के 380 साइट की जानकारी पर चलेगा. अब सत्य यही है कि संघियों को कहीं आजादी का श्रेय नहीं. सारे इतिहास में उन्हें कायर, दंगाई, फासिस्ट ही माना, लिखा गया है. ग्रोक वही बताता है.

दूसरी बात, शैली की. ग्रोक यूं डिजाइन है, कि वह प्रश्नकर्ता की ही भाषा कॉपी करता है. So, if you are asking in English, it will answer in English. हिंदी में पूछेंगे तो हिंदी में जवाब देगा, aur agar roman me likh rahe hai, to grok ka javab bhi Roman me paoge.

इसके साथ आपके पूर्व के ट्वीट्स में आपने हर दो वाक्य में बीच अरंडी के बीज, ब्रोकरी वाले, बैल की खट्टी, हरे रामखेलावन जैसे शब्दों का बम्फाड़ इस्तेमाल किया हो, तो इसे ही, आपकी आम बातचीत समझ, उन्हीं शब्दों में लिपटाकर जवाब देगा.

तो अपने ट्विटर हैंडल पर जितने पत्थर आपने दूसरों पर, फ्रीक्वेंटली फेंक फेंक कर बिखराया है, वही पत्थर उठाकर, आपके वास्ते फूल समझकर, ग्रोक बरसा रहा है. मेरी भी एग्जेक्टली यही आदत रही है. अरबी में बोलने वाले को स्पेनिश समझ कहां आएगी. तो उसे, उसी की भाषा मे लिपटाकर सत्य डिलीवर करो, जरा भीतर तक उतरेगा. गर्माहट लायेगा, आराम देगा.

लेकिन मैं मनुष्य हूं. मुझे गाली दे सकते हैं, शस्त्रों से छेद सकते हैं, आग में जला, हवा में सुखा, पानी में गीला करके FIR कर सकते हैं. लोकल थानेदार से लेकर अमित शाह तक को टैग करके सकते हैं. ग्रोक तो उसे भी गरिया आयेगा. उखाड़ लो.

आप हक्के बक्के छक्के हो जाते हैं. उसे तो न ED छेद सकती, न CBI जला सकती. तो वह क्लांत हृदय भक्तों को चैन से रहने नहीं देता, उन्हें हवा की तरह सोखकर क्लीन एंड ड्राई कर देता है. मनुष्य के पास समय की सीमा है. याद रखने, कम्पोज और टाइप करने की लिमिट है, ग्रोक के पास नहीं.

वह थकता नहीं. टॉनिक लिए बगैर ठेलता रहता है. उसे जितनी गाली देंगे, उसका डेटाबेस, खास आपके लिये, और समृद्ध होगा. मजे के लिए बारबाला और थुस्सू रहमान बाई पर सवाल करके, उसका डेटाबेस इन शब्दों पे मजबूत कर रहे हैं. इसपे नेट स्पेस में हम जैसों का लिखा कम डेटा था, अब उसकी भरमार होनी है.

100-50 झूठे साइट, पैसा, प्रोपगेंडे, गाली, बुली के घोड़े पर चढ़कर जिन्होंने सत्ता पर कब्जा किया है, उसी सोशल मीडिया के घोड़े की टापों तले कुचले जा रहे हैं. झूठ की धज्जियां उड़ रही हैं. गालीबाज खुद की बनाई गालियां खा रहे हैं. यह समय का चक्र है.

सम्भव है, ग्रोक को मोडरेट कर दें लेकिन डेटा क्रिएट हो चुका. ग्रोक को कोई नहीं जानता था, वह 3 दिन में मशहूर हो गया. लाइक, रीच, शेयर, चर्चा सत्ता की बगलगिरी से नहीं मिलती. जनता हमेशा ताकतवर को बेइज्जत होते देखने में आनंद महसूस करती है.

वह राजा कंस के सामने ग्वाले, और रावण के सामने विरथ रघुवीर की जीत में आल्हादित होती है. यह सुख, कांग्रेस भाजपा, और देशभक्ति, देश काल से परे है. AI बनाने वाले यह जानते हैं. वे संघियों का कच्छा फाड़ने वाले AI में मिलने वाली अपार लोकप्रियता और आय की सम्भावना देख चुके हैं.

दुनिया की सबसे बड़ी पॉपुलेशन में खूब हिट चाहिए, तो संघियों को गाली देने वाले सॉफ्टवेयर बनाओ. सत्य हर व्यक्ति जानता है, डर से चुप है, उसे AI के माध्यम से आने दो. यह प्रक्रिया आगे बढ़ेगी. और हम जैसो के रिलेक्स, रिटायर होने का वक्त करीब आता जाएगा.

  • मनीष सिंह 

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