Home ब्लॉग गोलवलकर की पुस्तक से आर एस एस और भाजपा के प्रतिक्रियावादी विचारों की एक झलक

गोलवलकर की पुस्तक से आर एस एस और भाजपा के प्रतिक्रियावादी विचारों की एक झलक

16 second read
3
2
2,097

आइंस्टीन ने कहा था हर चीज सापेक्ष होता है और वह सापेक्षिकता के सिद्धांत का पालन करता है. भारतीय राजनीति पर भी यह नियम पूरी तरह लागू होता है. आज जब सारा देश प्रतिक्रियावादी आर एस एस और उसके कोख से निकली भाजपा के हमलों को झेल रही है, ऐसे वक्त में कांग्रेस ज्यादा प्रगतिशील महसूस होता है, तब यह आइंस्टीन के सिद्धांत को ही सत्यापित करता है.

आजादी की लड़ाई के वक्त तीन तरह की धाराओं का जन्म हुआ था. पहला दुनिया के सर्वाधिक प्रगतिशील धारा समाजवाद को मानने और उसके लिए लड़ने वालों लोगों का था. इन लोगों ने कम्युनिस्ट पार्टी और दूसरे अन्य संगठन का गठन कर अंग्रेज साम्राज्यवादी और सामंतों के क्रूर हमलों का सामना किया. दूसरी धारा दुनिया की सर्वाधिक भ्रष्ट और प्रतिक्रियावादी लोगों का समूह था. इन लोगों आर एस एस जैसी संस्था का नींव डाला और सीधे अंग्रेजी हूकुमत और सामंती घरानों का वफादार बन गये. तीसरी धारा उन मध्यमार्गियों का था जो इन दोनों धाराओं के बीच डोलते रहते थे. 1947 ई. की तथाकथित आजादी इन्हीं मध्यमार्गी लोगों के समूहों को अंग्रेजों ने – जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बुरी तरह कमजोर पड़ चुका था और भारत जैसे देश को अब और ज्यादा गुलाम बना कर प्रत्यक्ष हुकूमत नहीं कर सकता था – कर आजादी के नाम पर एक झुनझुना थमाकर नेपथ्य में चला गया.

आजादी नाम के इस झुनझुना को ये मध्यमार्गी लोगों पूरे जोरशोर से बजाए और देश विभाजन के नाम पर देश की आमजनता को खून और भय में डुबो दिया. बांकि के दोनों ही उपरोक्त धाराओं ने इस नकली आजादी का पूरजोर विरोध किया और अपने अपने तरीकों से समाज को संगठित करने लग गए. कम्युनिस्ट धाराओं को मानने वालों ने कांग्रेस के इस कदम का विरोध करते हुए देश को अर्द्ध सामंती और अर्द्ध औपनिवेशिक घोषित करते हुए अपने सशस्त्र संघर्ष को जारी रखा. वहीं द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर की पराजय के उपरांत लगभग महत्वहीन हो चुके आर एस एस की प्रतिक्रियावादी समूहों ने कांग्रेस के तत्कालीन नेता महात्मा गांधी की हत्या कर दी. तत्कालीन राजसत्ता के प्रकोप को झेलते हुए आर एस एस ने खुद को बदले परिवेश में ढालते हूए न केवल खुद को जीवित ही रखा वरन् आज वह भारत की राजसत्ता पर भी काबिज हो गया है.

घोर प्रतिक्रियावादी आर एस एस के सत्ता हासिल कर लेने के बाद वह अपने प्रतिक्रियावादी विचारधारा को एक के बाद एक पूरी तरह लागू कर रहा है. इसके लिए वह हर उस नारे का घृणास्पद होने तक इस्तेमाल करते हैं, चाहे वह नारा गाय, गोबर, गोमूत्र आदि का ही क्यों न हो. अन्ना आंदोलन के दौर में लोकप्रिय ‘भारत माता की जय’ नारों को आज आर एस एस और उसकी कोख से निकली भाजपा अपने हर जनविरोधी गतिविधियों को ढ़कने के लिए ढ़ाल के बतौर उपयोग कर रही है. ऐसे में भाजपा और उसके आर एस एस के प्रतिक्रियावादी स्वरूप को समझना जरूरी हो गया है.

यहां हम आर एस एस के विचारक गोलवलकर की पुस्तक बंच ऑफ थाट्स में अपने स्वयंसेवकों के लिए दिये गये दिशा-निर्देशों को देख सकते हैं, जो इस प्रकार हैः

1. अशोक चक्र वाला तिरंगा नहीं बल्कि भगवा झंडा हमारा राष्ट्रध्वज है.
2. जमींदारी प्रथा और राजाओं के राज्यों को खत्म करना भयंकर भूल थी.
3. संसदीय जनतंत्र भारतीय जनमानस के लिए उचित नहीं है.
4. समाजवाद एक विदेशी विचारधारा है.
5. भारत का संविधान जहरीला बीज है.
6. सभी विधानसभाएँ और राज्य सरकारें समाप्त घोषित कर दी जानी चाहिये.
7. भारत की सरकार एकतंत्री – तानाशाही – होनी चाहिये.
8. जब तक ईसाई-मुस्लिम हिन्दुत्व स्वीकार नहीं करते तब तक उनके साथ दुश्मन की तरह बरताव किया जाना चाहिये.
9. निजी स्कूलों में कम से कम SC, ST, OBC बच्चों को दाखिला देना.
10. सरकारी स्कूलों में कम से कम पढा़ई होना और बिना पढा़ई के बच्चों को पास करना ताकि वो नाकारा हो जाये और आगे चलकर प्रतियोगिता ना कर पाए.
11. शिक्षा का भगवाकरण किया जाय.
12. SC, ST, OBC समाज के खूब पढ़े लिखे और कामयाब लडकों से अपनी बेटियों की शादी करना ताकि दलित लड़के अपने समाज और माँ बाप से दूर रहे. अगर वो उनकी बात नहीं माने तो उन्हें झूठे दहेज़ के केस में फंसा दे.
12. SC, ST, OBC लडकियों का रेप करना और उन्हें मजबूर करना कि वह पढ़ न सके.
13. हिन्दुओं के हर छोटे से छोटे पर्व का खूब प्रसार प्रचार*एवं तीर्थ यात्रा पर सब्सिडी देना अनिवार्य कर देना चाहिए.
14. SC, ST, OBC मोहल्लों-बस्तियों में हिन्दू मंदिर बनाना.
15. आरक्षण विरोधी प्रचार करना.
16. SC, ST, OBC के मन में ये भावना पैदा करना कि वो हिन्दू है.
17. SC, ST बस्तियों-मोहल्लो के आस-पास दारु के ठेके खोलना ताकि वो ज्यादा से ज्यादा नशे की लत में पड़े रहे.
18. हर हिन्दू पर्व पर ज्यादा से ज्यादा सरकारी खर्च करवाया जाये. रास्ते जाम कर दिए जाये.
19. गांव और बस्तियों में पानी की pipe line के बजाये टैंकर से पानी भेजना ताकि ये आपस में खूब लड़े और सिर फोड़ा करें जिससे इनकी एकता खंडित रहे. ये कभी एक ना हो सके.

उपरोक्त बाते आर एस एस के विचारक गोलवलकर के प्रतिक्रियावादी विचारधारा की एक झलक मात्र है जिसे अपनी किताब बंच ऑफ थाट्स में लिखे हैं. यह हमारे समाज के खिलाफ आर एस एस के षड्यन्त्रता दर्शाती है, जिसे आज भाजपा के नेतृत्व में प्रधानमंत्री पद हथियाकर नरेन्द्र मोदी और उसकी सरकार लागू कर रही है या हर संभव उपाय कर रही है.

आज आर एस एस और उसके कोख से जन्में भाजपा का पर्दाफाश करना और अपने मूलभूत अधिकार की रक्षा करना देश की बड़ी आबादी की प्रथम जरूरत है, जिसके वगैर हम एक बार फिर मनुस्मृतिकालीन जाति आधारित भेदभाव और छुआछूतपूर्ण समाज को ही अपने बीच पायेंगे जिसमें दलित, पिछड़ा, आदिवासी, स्त्री को कुछ सवर्णों का दास बना दिया जायेगा. गुजरात के ऊना, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर आदि में दलित समाज के ऊपर सवर्णों का हमला, देश भर में मुसलमानों के खिलाफ दंगे भडकाना, शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को खत्म करना, शिक्षा का भगवाकरण आदि कुछ उदाहरण के बतौर देखे जा सकते हैं.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In ब्लॉग

3 Comments

  1. Shyam lal Sahu

    December 25, 2017 at 3:39 pm

    आपने सही कहा है। तीनों धाराओं में वामपंथी धारा ही थी जिसने पूरी ईमानदारी से ब्रिटिश हुकूमत ही नहीं, बल्कि साम्राज्यवाद को ही जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सन्नद्ध थे। किंतु अन्य दोनों धाराओं को देश की आजादी से ज्यादा ब्रिटिश हुकूमत से समझौता कर सत्ता पर काबिज़ होने की चिंता सता रही थी, क्योंकि ये दोनों ही धाराएँ अच्छी तरह जानती थीं कि अगर भगत सिंह या वामपंथियों के नेतृत्व में देश आजाद हुआ तो उनके हाथ से सत्ता तो जाएगी ही, देश में हमेशा के लिए सर्वहाराओं का राज कायम हो जाएगा और ऐसा हुआ तो उनकी शाही ठाठ और अय्यासी पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इसीलिए वामपंथियों को सुनियोजित तरीके से हाशिए पर धकेलने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी पर लटका दिया गया। भगत सिंह और उनके साथियों की फाँसी की योजना में मध्यमार्गी और भगवा ब्रिगेड दोनों की ब्रिटिश हुकूमत के साथ गोपनीय साँठगाँठ थी।

    Reply

  2. Tejpratap Pandey

    December 25, 2017 at 3:40 pm

    जब तक बुर्जुआ फ्रेम आफ रिफरेंस को आधार बनायेगे तब सापेक्षिता के सिंद्धान्त के अनुसार इन्हीं जनविरोधियों के बीच कम का चुनाव करने को अभिशप्त होंगे।जरूरत है इस बुर्जुआ फ्रेम आफ रिफरेंस को बदलने की। सर्वहारा क्रांति की ।

    Reply

  3. Budhi lal pal

    December 25, 2017 at 4:27 pm

    सभी बातें विचारणीय

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…