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गोदी मीडिया के बाद गोदी सिनेमा ताकि अपनी नफरत को न्यायोचित ठहरा सके

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अशफ़ाक़ अहमद

‘पठान’ की कामयाबी पर कुछ लिखना था, तब नहीं लिखा— क्योंकि अब लिखने का यह सही मौका है. आखिर ‘पठान’ क्यों चली ? ‘एक्सीडेंटल प्राईम मिनिस्टर’, ‘पीएम नरेंद्र मोदी’, ‘गोडसे वर्सेज गांधी’ जैसी फिल्में क्यों नहीं चलीं ? कंगना रनौत या अक्षय कुमार की हालिया फिल्में क्यों नहीं चलीं, जबकि यह उसी वर्ग के चहेते सब्जेक्ट और हीरो हिरोईन हैं और ‘कश्मीर फाईल’ या ‘द केरला स्टोरी’ क्यों चली ? जब इस बात की पड़ताल करेंगे तो आपको एक स्पष्ट पैटर्न नज़र आयेगा.

अब इस बात को ठुकराने या नकारने का कोई मतलब नहीं कि देश में फिल्म देखने वाला दर्शक भी बाकी आम नागरिकों की तरह दो धड़ों में बंट चुका है. इन दो वर्गों को अलग कैटेगराज्ड किया जाये तो इसमें बिना धार्मिक/जातीय विभाजन किये, एक तरफ़ वह वर्ग नज़र आयेगा जो किसी से लक्षित नफरत नहीं करता, बतौर नागरिक सबको समानता की दृष्टि से देखता है और भाईचारे की बात करता है, सौहार्दपूर्ण समाज की स्थापना के लिये प्रयासरत् दिखता है.

जबकि इसके बरक्स जो दूसरा वर्ग है, वह सर से पांव तक नफरत से भरा है, भले जिंदगी में उसका किसी मुसलमान से वास्ता न रहा हो, लेकिन वह उससे नफरत करता है, देश की हर समस्या की जड़ मानता है, दोयम दर्जे का नागरिक मानता है और उसका सारा चिंतन मुसलमानों को मार भगाने, उनका आर्थिक/सामाजिक बहिष्कार करने पर केंद्रित रहता है और उसके सारे फैसले और गतिविधियां इसी चिंतन के अनुरूप होती हैं. अब जिस दल और संगठन ने अरबों-खरबों फूंक के इस वर्ग को तैयार किया है, वह लगातार मीडिया, सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से इसे उस कंटेंट की सप्लाई करता रहता है, जिससे न सिर्फ उन धारणाओं की पुष्टि हो सके, जो इसने स्थापित की हैं— बल्कि वह बहाने भी उपलब्ध हो सकें, जिनसे यह वर्ग अपनी नफरत को न्यायोचित ठहरा सके.

इस सिलसिले में गोदी मीडिया के बाद गोदी सिनेमा की स्थापना हुई है जो इस वर्ग को तुष्ट करने के लिये वह फिल्में बनाता है, जो इस वर्ग की मानसिकता को सूट कर सकें. अब यहां एक दिक्कत खड़ी होती है— इस वर्ग का कला, रचनात्मकता या उसकी सराहना से कोई खास लगाव नहीं है, और सिनेमा तो कला से जुड़ा ऐसा ही एक माध्यम है. तो स्वाभाविक रूप से इस वर्ग की फिल्मों में कोई खास रूचि नहीं. इस वजह से जबसे अक्षय ने आम चूस कर या काट कर खिलाये हैं, एक बड़ी हिट को तरस गये हैं. कंगना ने जबसे सत्ता के लिये बैटिंग शुरु की, उसकी फ़िल्में भी नहीं चल रहीं— भले इन दोनों की फिल्में गोदी सिनेमा पैटर्न की ही क्यों न हों.

वजह, जो आम फिल्मी दर्शक वर्ग है, उसका बड़ा हिस्सा उस पहले वर्ग से आता है, जो रचनात्मक बोध रखता है और तोड़ने के बजाय जोड़ने में यक़ीन रखता हो. उसने इन गोदी अभिनेताओं से एक हद तक दूरी बना ली है. ऐसा नहीं है कि अब इनकी फिल्में यह वर्ग देखेगा ही नहीं— अगर वह गोदी पैटर्न पर न हों, और वाकई अच्छी हों तो ज़रूर देखेगा, क्योंकि यह दूसरे वर्ग की तरह नफरती नहीं है कि इसके पास फिल्म न देखने का अकेला कारण ही काफी है कि फिल्म में कोई ‘खान’ एक्टर है.

अब सवाल यह कि ‘पठान’ क्यों इतनी जबर्दस्त चली ? आप फेसबुक पर देखते होंगे कि कोई एक विवादित पोस्ट करता है, उस पोस्ट को ट्रोल किया जाता है— नतीजे में वह पोस्ट रैंक कर जाती है और जहां पहले पचास लोगों तक न पहुंचती, ट्रोल की स्थिति में पांच सौ लोगों तक पहुंच जाती है और उस पर लाईक कमेंट्स की बरसात हो जाती है. कोई व्यक्ति किसी बात के लिये व्यापक रूप से ट्रोल किया जाता है तो उसके फैन और फाॅलोवर्स की बाढ़ आ जाती है. कारण— तब उस पोस्ट या व्यक्ति की पहुंच हज़ारों लोगों तक हो जाती है. और किसी भी बात या व्यक्ति के विरोध में सब नहीं होंगे. बहुत से लोग ऐसे भी होंगे, जो उसी पोस्ट/व्यक्ति की विचारधारा के होंगे. पहले वे पोस्टकर्ता/व्यक्ति को जानते ही नहीं थे— अब जान गये तो जुड़ गये.

यानी, कई बार आभासी दुनिया में ट्रोल और रियलिटी में ‘बायकाट’ इतनी ज्यादा चर्चा दिला देता है कि टार्गेटेड कंटेंट या व्यक्ति ‘विक्टिम’ बन जाता है और उस स्थिति में कचरा भी हीरा हो जाता है. ‘पठान’ के बेतुके मगर व्यापक विरोध ने उसे ग्लोबली चर्चा दिला दी और ऐसा पर्सेप्शन बना कि शाहरुख के मुस्लिम होने के चलते उसके साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा है. नतीजे में ग्लोबली आम दर्शक वर्ग में एक प्रतिरोध की भावना पैदा हुई और उसने फिल्म देख कर अपना विरोध जताया. नतीजे में फिल्म ने बंपर कमाई की— जबकि हालीवुड मूवीज (जो ओटीटी के चलते अपनी भाषा में ही अब सबको उपलब्ध हैं) देखने वालों के लिये वह स्पाई सीरीज फ़िल्मों की भौंडी नकल और वीडियोगेम सरीखी थी.

‘पठान’ की कामयाबी से सबक लेते बायकाट गैंग ने सलमान के होने के बावजूद ‘भाईजान’ के विरोध में एक चूं न की. नतीजे में सलमान की स्टार पाॅवर के चलते ‘भाईजान’ ने पौने दो सौ करोड़ से ज्यादा तो कमाये लेकिन यह सलमान की नाकाम फिल्मों के बराबर की ही कमाई है. ‘बायकाट’ की स्थिति में अतिरिक्त चर्चा और सिम्पैथी इस फिल्म को ढाई सौ से तीन सौ करोड़ के बीच पहुंचा देती. आप कह सकते हैं कि इस नियम के हिसाब से आमिर की ‘चड्ढा’ क्यों नहीं चली ?

क्योंकि उसका ‘पठान’ जितना तीव्र विरोध नहीं हुआ, दूसरे ‘फारेस्ट गम्प’ की काॅपी होने के चलते उसमें ग्लोबल अपील ही नहीं थी. भारत में भी ज्यादातर लोगों ने ‘फारेस्ट गम्प’ देख रखी थी, उनके लिये टाॅम हैंक्स की जगह आमिर को बर्दाश्त करना मुश्किल था. ख़ुद मैं आधे घंटे से ज्यादा नहीं देख पाया था. फिल्म चलाने के लिये सिर्फ ‘बायकाट’ के रूप में एक अकेली वजह ही काफी नहीं, उसमें दम भी होना चाहिये. वह अच्छी न हो, तो बुरी भी न हो— ‘पठान’ इस क्राइटेरिया को पूरा करती थी.

अब बात इसकी, कि ‘कश्मीर फाईल’ या ‘द केरला स्टोरी’ क्यों चली ? क्योंकि जो यह ‘बायकाट गैंग’ है, यह उस भक्त ब्रिगेड से आता है, जिसे क्रियेटिविटी से कोई खास लगाव नहीं है, इसके प्रति वह उदासीन है, बल्कि इसके अंतर्मन में एक किस्म की घृणा का वास है. जो कंटेंट इसके मन को तुष्ट करेगा— वह इसकी नफरत के जस्टिफिकेशन के रूप में होना चाहिये. वह इसकी धारणाओं पर मुहर लगाने वाला होना चाहिये, जिसे देख कर यह वर्ग कह सके कि देखा— हम न कहते थे कि मुसलमान ऐसा ही होता है.

आप भले गोदी सिनेमा बना रहे हों, लेकिन क्रियेटिविटी दिखाने जायेंगे तो चाहे ‘नरेन्द्र मोदी’ बना लीजिये या ‘पृथ्वीराज’, इस वर्ग में कोई उत्साह नहीं पैदा होगा. गोदी सिनेमा अगर वह फिल्म बनायेगा जो उनके अंदर की नफरत को एक पुष्टिकरण दे सके और उसे ट्रिगर कर सके, तब वह पूरे उत्साह से फिल्म देखेंगे, अपने पैसे से दूसरों को दिखायेंगे, भाजपा सरकारें उस फिल्म को टैक्स फ्री करेंगी, उनके नेता बल्क में टिकट खरीद कर अपने संभावित मतदाताओं को फिल्म दिखायेंगे और इस तरह फिल्म मेकर्स की गुल्लक भर सकेगी.

दूसरे और स्पष्ट शब्दों में कहें तो वे पृथ्वीराज के बाद महाराणा प्रताप पर फिल्म बनायेंगे तो भी उसका चलना मुश्किल है— लेकिन अगर वे ‘हिंदुओं पर अत्याचार करते औरंगजेब’ पर फिल्म बनायेंगे, उसमें (व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के मुताबिक) सवा मन जनेऊ जलाने का इंतज़ाम करते दिखायेंगे, तो वे ज़रूर पूरे उत्साह से फिल्म देखेंगे, भाजपा सरकारें उसे टैक्स-फ्री करेंगी, प्रधानमन्त्री उसे खुद से प्रमोट करेंगे. अपनी गर्लफ्रेंड के टुकड़े करने वाले आफताब अमीन पूना वाला पर भी बनायें तो चलने की पूरी संभावना मौजूद है.

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