हमारे देश में जब से जनगणना शुरू हुई है, उस समय से यह पहली बार है जब महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक हो गयी है. 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं हो गई हैं. यह आंकड़ा तब है जब केन्द्र की मोदी सरकार और उसके कारकूनों ने जमकर महिलाओं पर अत्याचार किये हैं. यहां तक की विराट कोहली की तीन महीने की दूधमुंही बच्ची तक के साथ बलात्कार करने के लिए धमकाया गया है.
इतना ही नहीं, यह आंकड़ा उस सरकार के द्वारा तैयार किया या करवाया गया है जिसके पास देश की किसी भी समस्याओं से संबंधित आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. मसलन, कर्ज में डुबे किसानों की आत्महत्या संबंधी आंकड़े, बेरोजगारों के आंकड़े, लॉकडाऊन में सड़कों पर तड़प-तड़प कर मर गये करोड़ों लोगों के आंकड़े, अस्पतालों में दवाई और ऑक्सीजन के अभाव में तड़प तड़प कर बेमौत मर गये लोगों…, यहां तक की कोरोना के नाम पर मर गये लोगों का भी आंकड़ा इस सरकार के पास नहीं है.
यानी इस सरकार के पास किसी भी चीज का आंकड़ा नहीं है, लेकिन फिर भी 100 करोड़ लोगों को ‘मुफ्त’ वैक्सीन लगवाने का आंकड़ा है, जेंडर रेशियो का आंकड़ा है, आखिर कैसे ? अश्विनी कुमार झा ने इस आंकड़ें की पड़ताल की है, आइए, इसे देखते हैं –
जेंडर रेशियो के संबंध में जारी ताजा आंकड़ों से बड़ा कन्फ्यूजन हो रहा था. मैंने भी इसको समझने का थोड़ा प्रयास किया. सीधे शब्दों में कहुं तो मेरी समझ के मुताबिक सरकार की तरफ से जारी जेंडर रेशियो के आंकड़ों में निश्चित रूप से कुछ गंभीर गलती है. आइए इसको समझते हैं.
2011 की जनगणना के हिसाब से भारत की जनसंख्या 121 करोड़ थी, इसमें पुरुषों की कुल संख्या 62.37 करोड़ और महिलाओं की कुल संख्या 58.64 करोड़ थी. इसका रेशियो 0.94 होता है. यानी 940:1000. इसे ही जेंडर रेशियो कहा जाता है. अब बताया जा रहा है कि ये रेशियो 1020:1000 हो गया है.
2021 की अनुमानित जनसंख्या 138 करोड़ है, यानी कुल 17 करोड़ की वृद्धि हुई है. सामान्य-सी सांख्यिकीय समझ रखने वाला विद्यार्थी ये कल्पना कर सकता है कि 121 करोड़ में 940 के रेशियो को अगले 17 करोड़ में मेकअप करने (बल्कि आगे निकल जाने) के लिये किस तरह के असंतुलन की आवश्यकता होगी. मोटे तौर पर ऐसा तभी संभव हो सकता है जब महिलाओं की जन्मदर पुरुषों के मुकाबले 1600:1000 हो गई हो.
और सरल तरीके से समझें तो अभी 138 करोड़ में 1020 का रेशियो हासिल करने के लिये महिलाओं की संख्या 69.68 करोड़ और पुरूषों की 68.32 करोड़ होनी चाहिए. यानी की पिछली जनगणना से पुरुषों की संख्या 5.95 करोड़ और महिलाओं की संख्या 9.95 बढ़ी होनी चाहिए. इसके लिये जन्म दर महिलाओं के पक्ष में 1670:1000 चाहिए.
एक बिंदू यहां और ये है कि महिलाओं की औसत आयु अधिक है लेकिन इस बात को कंसीडर करने पर भी लगभग 1500:1000 का जन्मदर चाहिए जो बिल्कुल ही असंभव है.
उपर से तुर्रा ये है कि चाइल्ड जेंडर रेशियो (जिसमें 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शामिल किया जाता है) 929 बताया जा रहा है. यानी 2011 में महिलाओं की संख्या पुरुषों से कम थी. हर साल उनका जन्म भी पुरुषों से कम हुआ लेकिन दस साल में उनकी संख्या पुरुषों से ज्यादा हो गई ?!?!?
महिलाओं की औसत आयु का अधिक होना स्टैटिस्टिकली एक बहुत ही छोटा फैक्टर है (940 को 1020 तक ले जाने के काॅन्टेक्स्ट में ) इसलिये तीन ही संभावनाएं बचतीं हैं –
- कोरोना काल में पुरुषों की मृत्यु हमारे अनुमान से बहुत अधिक (अधिकृत आंकड़ों से 100 गुना ) हुई हो.
- किसी भी सर्वे में सैंपल साइज और उसके सेलेक्शन के तरीकों के कारण रिजल्ट में बहुत भारी उतार-चढ़ाव हो सकता है. यहाँ भी शायद यही हुआ हो क्योंकि ये पूर्ण जनगणना के नहीं, एक सर्वे के आंकड़े हैं. और सर्वे में सैंपल साइज और सैंपल का सारा सेलेक्शन 2011 की जनगणना के आधार पर हुआ है. अतः एक संभावना ये बनती है कि प्रवास जैसे कुछ डेमोग्राफिक कारकों में बहुत अंतर आ गया हो, जिसकी वजह से सैंपल सेलेक्शन ही गलत हो गया हो.
- कोई जानबूझकर कोई खास नैरेटिव सेट करने का प्रयास कर रहा है.
अश्विनी कुमार झा के इस तीसरे नम्बर के पोइंट को समझने का प्रयास कीजिए, जो सबसे महत्वपूर्ण है. इस मोदी सरकार, जो देश के कॉरपोरेट घरानों का चौकीदार है, के खाततों में गिनाने लायक एक भी उपलब्धि नहीं है.
Read Also –
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]