भारत में फैले धार्मिक अन्धविश्वासो के बारे में सोचते हुए मुझे याद आया कि जब मैंने ज्वालादेवी के अन्धविश्वास और दुनिया भर के एटरनल फ्लेम के बारे में लिखा था तो ज्वालादेवी के मंदिर में एक गर्म पानी के कुंड का ध्यान आया, जिसे गोरखकुण्ड या गोरख की डिब्बी कहते हैं. और इसमें ये अंधविश्वास फैलाया गया कि बाबा गोरखनाथ की कृपा से इसमें नहाने वालों के सभी चर्मरोग दूर हो जाते हैं (वैसे अगर यहां गर्म पानी का कुंड है तो गोरखनाथ ने देवी को पानी गर्म करने के लिये क्यों कहा ? इसी कुंड से पानी क्यों नहीं लिया ?). खैर, भारत में न जाने कितने ही स्थानों में ऐसे कुंड हैं और ये जहां-जहां धार्मिक स्थानों के पास है, वहां उनसे जुडी धर्मांध मान्यतायें भी हैं. ज्यादातर सभी जगहों पर चर्मरोग की ही धार्मिक मान्यता ज्यादा है, मगर इसका कारण मैं आपको आगे बताऊंगा.
भारत में ही क्यों, ऐसे कुंड, चश्मे, झीलें, तालाब, फब्बारे, जलधाराये और झरने पुरे विश्व में है और प्रकृति की आंतरिक क्रियाओं के कारण विश्वभर में ऐसे न जाने कितने ही आश्चर्यजनक दृश्य और घटनायें देखने को मिलते हैं, मगर भारत में इसे धर्म से जोड़कर अंधी आस्था का गोरखधंधा चालू है. जहां भारत में इसे चमत्कार कहकर अन्धविश्वास फैलाया जाता है, वहीं दूसरी जगहों पर इसका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है.
वैसे भी ये कोई चमत्कार नहीं है बल्कि पृथ्वी की आंतरिक गतिविधियों के कारण उनमें कई खनिजों का मिश्रण हो जाता है और खनिजों के साथ-साथ पृथ्वी की ऊर्जा भी उन जल स्रोतों के द्वारा बाहर आने का रास्ता अपना लेती है और उसी प्रक्रिया में वे जल कुंड, झरने या झीले या तो गर्म पानी की बन जाती है या फिर उनमें मौसमानुकूल जल मिलता है. इसी प्रक्रिया में कई जलस्रोतों में भाप भी निकलती है और कई जलस्रोत उबलते रहते हैं.
असल में हम भारतीय तालाब के मेंढक हो गये हैं. न तो हम इतिहास को जानते हैं और न ही भूगोल को समझते हैं. फिर भी दावा करते है कि सबसे ज्यादा ज्ञानी हमीं है और भारत पहले विश्वगुरु था और इसे फिर से विश्वगुरु बनायेंगे जबकि इतिहास की गवेषणा से साफ पता चलता है कि पिछले दो हज़ार सालों से भारत में सुई तक की खोज नहीं हुई. बस ढोल पीटा गया विश्वगुरु और ज्ञानी होने का.असल में तो भारत पिछले दो हज़ार सालों से गुलाम ही रहा ‘आर्यो से लेकर अंग्रेजों’ तक का.
अगर हम अपने तालाब से निकलकर समुद्र समान दुनिया देखेंगे तभी तो पता चलेगा कि इस वसुंधरा पर अनेकानेक ऐसी घटनायें हैं जो प्राकृतिक है, मगर आश्चर्यचकित कर देने वाली है. लेकिन सबसे पहले भारत के ऐसे स्थानों के बारे में जान ले जहां ऐसे जलस्रोत हैं, जिनका पानी गर्म, अतिगर्म, अत्यधिक गर्म, उबलता और खौलता हुआ है तथा कइयों में छूने पर मौसमानुसार या ठंडा महसूस होता है जबकि कइयों में भाप भी बनकर उड़ती रहती है, यथा –
1. मणिकरण के चश्मे (कुल्लू-हिमाचल प्रदेश) : मणिकर्ण अपने गर्म पानी के चश्मों के लिए प्रसिद्ध है. यहां पानी इतना गर्म होता है कि कुंड के जल से गुरुद्वारे के लिये चावल आदि पकाये जाते हैं.
2. गोरखकुण्ड (ज्वालादेवी मंदिर, कांगड़ा-हिमाचल प्रदेश) : इसे गोरख डिब्बी भी कहते हैं. देखने पर लगता है इस कुण्ड में खौलता हुआ पानी है जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है.
3. तुलसी श्याम-कुंड (जूनागढ़-गुजरात) : इस कुंड में गर्म पानी के तीन अलग-अलग स्रोत है और तीनों के तापमान अलग-अलग रहते हैं.
आईसलैंड
4. अग्नि जल-कुंड (अत्रि-ओडिसा) : इसका पानी गर्म है और तापमान 55 डिग्री रहता है .
5. गर्म पानी के 60 कुंड (झारखण्ड) : भारत के झारखंड राज्य में गर्म पानी के एक नहीं बल्कि 60 कुंड हैं. इनमें से ततलोई, थरई, पानी, नुंबिल, तपत पानी, सुसुम पानी, राणेश्वर, चर्क खुर्द, सिदपुर और सूरजकुंड प्रमुख हैं.
6. यूमेसमडोंग (सिक्किम) : यह सिक्किम के सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है. यह कुंड 15,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां पर जल के 14 कुंड हैं, जिनका तापमान लगभग 50 डिग्री रहता है. यहां के बोरोंग और रालोंग बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं.
7. पनामिक (लद्दाख) : नुब्रा वैली लद्दाख में सियाचिन ग्लेशियर से 9 किमी की दूरी पर स्थित है. यहां का पानी इतना गर्म है कि आप इसे छू भी नहीं सकते और इसमें आप पानी के बुलबुलों को भी साफ देख सकते हैं.
8. राजगीर के जल कुंड (बिहार) : यहां पर 22 कुंड हैं. इसमें ब्रह्मकुंड सबसे लोकप्रिय हैं जिसका तापमान 45 डिग्री सेल्सियस होता है. इसे पाताल गंगा भी कहा जाता है. ब्रह्मकुंड के अलावा मार्कंडेय-कुंड, व्यास-कुंड, अनंत ऋषि-कुंड, गंगा-यमुना-कुंड, साक्षी धारा-कुंड, सूर्य-कुंड, गौरी-कुंड, चंद्रमा-कुंड, राम-लक्ष्मण कुंड. राम-लक्ष्मण कुंड में एक धारा से ठंडा और दूसरे से गर्म पानी निकलता है.
9. बकरेश्वर जल कुंड (पश्चिम बंगाल) : यहां पर गर्म पानी के 10 कुंड है, जिसमें सबसे गर्म कुण्ड अग्नि-कुण्ड है, जिसका तापमान 67 डिग्री सेल्सियस रहता है.
10. यमुनोत्री (उत्तराखंड) : यहां गर्म पानी के कई स्त्रोत हैं जिसमें तप्तकुण्ड और सूर्यकुंड (ब्रह्मकुंड) गर्म पानी का प्रसिद्ध कुंड है. इस कुंड का पानी इतना गर्म रहता है कि कई बार उसमें हाथ में डालना संभव नहीं होता. लोग इस गर्म पानी से भोजन पकाते हैं.
11. सूरजकुंड (पालीताणा-सौराष्ट्र-गुजरात) : ये जैनियों का सबसे बड़ा तीर्थ है और इस कुंड में हमेशा मौसम के अनुरूप जल आता है अर्थात गर्मी में ठंडा और सर्दी में गरम .
12. धनबाद के बराकर नदी से सटा टुंडी का चरक खुर्द गांव है, जहां गांव के सरेह में सदियों से प्राकृतिक रूप से तालाबनुमा गड्डे से लगातार 24 घंटे गर्म पानी निकल रहा है.
13. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के तामिया विकास खंड के झिरपा के ग्राम अनहोनी में हमेशा गर्मपानी का स्रोत है.
तो इस तरह भारत में कई जगहों पर ऐसे जलस्रोतों के स्थान है जो प्राकृतिक खनिजों के कारण आश्चर्यजनक है किन्तु चालाक लोगों ने बहुत-सी जगहों पर इसे धर्म के नाम पर अंधी आस्था से जोड़कर गोरखधंधा चालू कर रखा है. इसमें कोई एक धर्म नहीं बल्कि ज्यादातर सभी धर्म (हिन्दू, मुस्लिम, सिख, जैन और बौद्ध) शामिल हैं, जो इनमें दैवीय चमत्कार मानकर इनमे रोग ठीक करने के लिये स्नान करते हैं जबकि इसमें कोई चमत्कार नहीं बल्कि ये खनिजों के मिश्रण के कारण होता है.
असल में प्राकृतिक बदलावों के कारण जमीन में रहे कई रेडियोएक्टिव (खनिज तत्व) जैसे सल्फर, यूरेनियम, हाइड्रोजन और सोडियम इत्यादि पानी में मिल जाते है जिसके कारण पानी या तो गर्म हो जाता है अथवा भाप निकलती है या फिर देखने में गर्म और छूने में ठंडा होता है और कई जगह तो ये उबलता ही नहीं बल्कि खौलता हुआ गर्म होता है. और रही बात चर्मरोग ठीक होने की तो वे सल्फर यानी गंधक के कारण ठीक होते हैं लेकिन दुनियाभर के विश्वगुरु देश भारत के ज्ञानी लोग ये तथ्य नहीं जानते और इसे चमत्कार मानकर अपनी मूर्खतापूर्ण धर्मान्धता का परिचय सहज ही दे देते हैं. मैं इन मुर्ख धर्मांधों से कहना चाहता हूं कि अगर ये चमत्कार है और तुम्हारे भगवान या देव-देवी या किसी पहुंचे हुए गुरु का आशीर्वाद है तो जरा इस जल को पीकर दिखाओ ?
अरे भई, तुम इसमें दैवीय चमत्कार मानते हो न तो इसे अपने अपने देव का प्रसाद समझकर ही पी लो ? लेकिन जरा संभलकर क्योंकि पानी में रही गंधक तुम्हारी आवाज़ हमेशा के लिये ख़राब या ख़त्म कर देगी, जिसे दुनिया का कोई डॉक्टर ठीक नहीं कर पायेगा. सोडियम हृदय और लीवर को डेमेज कर सकता है और यूरेनियम तुम्हारे शरीर में वही इफेक्ट पैदा कर सकता है जैसे किसी परमाणु विस्फोट के बाद होते हैं क्योंकि इस जल में मिश्रित खनिजों की एकत्रित एनर्जी के निकासी का मार्ग यही जलस्रोत होते है और उसकी वजह से ऐसी घटनाओं को प्रकृति जन्म देती है.
ऊर्जा का सतत प्रवाह और उसकी निकासी ही प्रकृति का बैलेंस है. अगर किसी भी स्थान पर ऊर्जा रुक जाये तो वहां ऊर्जा विस्फोट हो जाता है और तबाही मचा देता है (परमाणु बम और हाइड्रोजन बम इत्यादि भी इसी थ्योरी पर काम करते हैं. वे वातावरण की ऊर्जा को एकत्रित कर रोक देते हैं). परमाणु बमो में एकत्रित ऊर्जा का जब वातावरण की ऊर्जा से मिलन होता है तो ऐसी सांयोगिक क्रियायें करता है कि वे वातावरण की ऊर्जा को पलक झपकने से पहले ही अपने अंदर एकत्रित कर उसके प्रवाह को रोक देता है और उसके रुकते ही एक भयंकर विस्फोट होता है जो पुरे शहर को भी तबाह कर देता है. इसके बाद भी जब तक वो सांयोगिक पुद्गलो के साथ क्रिया कर ऊर्जा को रोकता रहेगा, उसका प्रभाव उस क्षेत्र पर बना रहेगा जिसे हम आम भाषा में रेडिएशन कहते है (ये परमाणु बम की क्षमता पर डिपेंड करता है कि वो कितने क्षेत्र की ऊर्जा रोककर अपने अंदर एकत्रित करेगा).
प्रकृति में भी अनंत ऊर्जा है और प्रकृति इसे बैलेंस करके रखती है और जहां बैलेंस संभव नहीं होता वहां भूकंप, भंवर, चक्रवात, आंधी-तूफान, ज्वालामुखी में विस्फोट इत्यादि करके प्रकृति उस ऊर्जा का निस्तांतरण कर देती है ताकि बैलेंस बना रहे और जीवन चलता रहे. निस्तांतरण के बाद भी जहां बैलेंस नहीं हो पाता, वहां विनाश होता है और उस विनाश के बाद फिर से नयी ऊर्जा का सृजन होता है (ये भी ऊर्जा का परावर्तन ही है क्योंकि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती, वो सिर्फ परिवर्तित होती है).
भारत की ही तरह पूरी दुनिया में अनेकानेक स्थानों पर भूताप से गरम हुआ भूजल धरती से बाहर निकलता है. कुछ के तापमान में स्नान किया जा सकता है लेकिन बहुत से ऐसे भी हैं जिनमें जाने से शारीरिक हानि या मृत्यु भी हो सकती है, इसे उष्णोत्स भी कहा जाता है. (इस उष्णोत्स के उदाहरण एक जलधारा का वीडियो कमेंट बॉक्स सलंग्न कर रहा हूं).
ऐसे उष्णोत्स पूरी दुनिया में लगभग 1000 हैं जिनमें आधे से ज्यादा अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क में ही है, हालांकि सभी स्थानों का नाम तो नहीं लिख पाऊंगा क्योंकि सच कहूं तो इतने स्थानों के नाम नहीं पता है लेकिन दुनियाभर के ऐसे गरमपानी के स्रोतों के लिये महाद्वीपों के हिसाब से देशों के नाम बता देता हूं (आप चाहे तो अपनी अपनी सुविधा के हिसाब से इसे वेरिफाय कर सकते हैं) :
1 अफ्रीका : अल्जीरिया, कांगो, इजिप्ट, नाइजीरिया, रवांडा, ट्यूनीशिया, यूगांडा, ज़ाम्बिया (ये ज्ञात स्थान हैं इसके अलावा भी और हो सकते हैं).
2 अमेरिका : ब्राजील, कनाडा (अल्ब्रेटा, ब्रिटिश कोलम्बिया, युकोन, सस्काटचेवान और नॉर्थ वेस्ट टेरिटरी), चिली, कोलम्बिया, कोस्टारिका, डोमिनिकम रिपब्लिक, एक़्वाडोर, ग्रीनलैंड, गुआटेमाला,मेक्सिको (ये ज्ञात स्थान हैं, इसके अलावा भी और हो सकते हैं).
3 एशिया : चाइना, इंडिया, इंडोनेशिया (सुमात्रा द्वीप, जावा, बाली, लेजर सुंडा आइलैंड इत्यादि), इजरायल, ईरान, जापान, कोरिया, कीर्गिस्तान, मलेशिया, नेपाल फिलीपींस, सिंगापुर, श्रीलंका, ताइवान, थाईलैंड, टर्की, वियतनाम (ये ज्ञात स्थान हैं, इसके अलावा भी और हो सकते हैं).
4 यूरोप : बुल्गारिया, चेक पब्लिक, जॉर्जिया, जर्मनी, ग्रीस, हंगरी, आइसलैंड, इटली, नार्थ मेसेडोनिया, नॉर्वे, रोमानिया, सर्बिया, स्लोवाकिया, स्पेन, टर्की, यु.के. (ये ज्ञात स्थान हैं, इसके अलावा भी और हो सकते हैं).
5 ओशिनिया या ओसियाना : ऑस्ट्रेलिया, फिजी, न्यूजीलैंड (ये ज्ञात स्थान हैं, इसके अलावा भी और हो सकते हैं).
6 अंटार्कटिका : (यहां ज्ञात इंसानी आबादी नहीं है सिर्फ परमाणु स्टेशन है और विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों जो कि पूरे महाद्वीप पर फैले हैं और लगभग 1000 से 5000 लोग हमेशा उपस्थित रहते हैं लेकिन स्थायी निवासी कोई नहीं है. ऐसे बर्फीले इलाके में भी ऐसे बहुत से झरनें, झीलें और फव्वारें हैं, जिनसे गर्म जल निकलता है)
दुनियाभर के सभी देशो में ऐसे स्थानों में जहां भी वैज्ञानिक शोधों के बाद इंसान के नहाने लायक पानी बताया गया है, वहां पर सभी जगहों में इंसान नहाते हैं और शारीरक थकान और चर्मरोग दूर करने के लिये ही नहाते हैं. मगर भारत या भारत जैसी कुछ जगहों को छोड़कर बाकी सभी जगहों पर इस वैज्ञानिक तथ्य के साथ नहाते हैं कि इसमें प्राकृतिक खनिज होने की वजह से ये पानी औषध के समान है और इससे ये वाले फलां-फलां रोग ठीक होते हैं. मगर भारत या भारत जैसी कुछ जगहों में इसे धार्मिक अन्धविश्वास से जोड़ा जाता है और धर्मान्धता में लोग इसे देवीय चमत्कार मानकर नहाते हैं (हर जगह की अलग-अलग कहानी है और हर जगह अलग-अलग धर्मों की धर्मान्धता).
बहरहाल, सब जगह जो एक चीज़ कॉमन है वो ये कि ऐसे जलस्रोतों में नहाने से चर्मरोग ठीक होते हैं.
नोट : किसी भी धर्म का मखौल उड़ाना मेरा ध्येय नहीं है बल्कि धर्म में फैली अंधी आस्था और कुरीतियों के खिलाफ समाज को जागरूक करना मेरा लक्ष्य है. मैं सभी धर्मो की कुरीतियों और रूढ़ियों पर अक्सर मैं ऐसे ही तथ्यपूर्ण चोट करता हूं इसीलिये बात लोगों के समझ में भी आती है और वे मानते भी है कि मैंने सही लिखा है. जो लोग दूसरे धर्मों का मखौल उड़ाते हैं, उनसे मैं कहना चाहता हूं कि मखौल उड़ाने से आपका उद्देश्य सफल नहीं होगा और आपस की दूरियां बढ़ेंगी तथा आपसी समझ घटेगी. अतः मूर्खतापूर्ण विरोध करने के बजाय कुछ तथ्यात्मक लिखे.
- पं. किशन गोलछा जैन
ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
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