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गरीब कौन है..?

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गरीब कौन है..?
जिसके पास खाने के लिए खाना
पहनने के लिए कपड़ा
रहने के लिए मकान नहीं है

तो क्या दुनिया में खाना कम है..?
क्या दुनिया में
सबकी ज़रूरत के लिहाज़ से,
कपड़े कम हैं..?
क्या दुनिया में
सभी इंसानों के रहने के लिए,
ज़मीन कम है..?

नहीं, असल में तो दुनिया में
खाना ज़रूरत से ज़्यादा है
कपड़े ज़रूरत से भी ज़्यादा हैं
ज़मीन भी सभी के घर बनाने के लिए,
काफी से भी ज़्यादा है !

फिर दुनिया के करोड़ों लोग
बिना खाना, बिना कपड़े और
बिना मकान के क्यों हैं..?
कहीं ऐसा तो नहीं
हम बंटवारे में कोई गलती कर रहे हों..?

क्या कोई बच्चा गरीब पैदा होता है..?
क्या जो बच्चा पैदा हुआ है
उसके लिए ज़मीन, कपड़ा और
मकान इस दुनिया में मौजूद नहीं है..?
या उस बच्चे के हिस्से का दूध, निवाला व खिलौनों पर,
किसी और का कब्ज़ा है..?
उस बच्चे के कपड़ों पर,
किसी और का कब्ज़ा है..?
उस बच्चे के रहने की ज़मीन पर,
किसी और का कब्ज़ा है..?

इस बच्चे की ज़मीन पर,
जिसका कब्ज़ा है
क्या वही दुनिया के हर बच्चे की
भूख, नंगापन और
बेघर होने के लिए ज़िम्मेदार हैं..?
क्या उस नए पैदा हुए बच्चे की
ज़मीन पर कब्ज़ा करने वाला अमीर
कानून की मर्जी के बिना,
बच्चे के खाने, कपड़े और मकान पर,
कब्ज़ा करके बैठ सकता है..?

क्या कानून ही यह नहीं कहता कि
अगर इस बेशुमार दौलत में से
अभी-अभी पैदा हुआ बच्चा
अपने खाने, कपड़े और घर के लिए,
अपना हिस्सा मांगेगा तो
सरकार की पुलिस
उस दौलत, हज़ारों एकड़ ज़मीन की रक्षा करेगी
इस तरह सरकार की पुलिस की बंदूकें
गरीब बच्चे के खाना, कपड़ा और
मकान का हक़ छीन लेती है

आप सोच रहे थे कि
सरकारें गरीब की तरफ होती हैं
नहीं! बल्कि सरकारों के कारण
करोड़ों लोगों की गरीबी,
इस दुनिया से जा नहीं रही है

जिसके पास ज़्यादा ज़मीन है
क्या उनके लिए
प्रकृति ने ज़्यादा ज़मीन बनाई है..?
अगर आप कहते हैं कि यह ज़मीन
उसकी मेहनत का नतीजा है तो
क्या मेहनत का नतीजा
यह होना चाहिए कि कोई व्यक्ति
लाखों लोगों की ज़रूरत की ज़मीन पर,
कब्ज़ा करके बैठ जाए..?

क्या ज़्यादा ज़मीन वाले के पास
इसलिए ज़्यादा ज़मीन नहीं है क्योंकि
यह ज़मीन उसके बाप की है..?
और इस अमीर ने इस ज़मीन के लिए,
कोई मेहनत नहीं की है..?
क्या असली मेहनत करने वाले ही उससे वंचित नहीं हैं ?

तो क्या यह सच नहीं है कि
समस्या ग़रीब या गरीबी नहीं है ?
बल्कि समस्या तो अमीरी
व यह दौलत का नाजायज़ बंटवारा है
समस्या इस अमीरी की रक्षा,
करने वाले कानून और इस अमीरी की
रक्षा करने वाली सरकार है

यही वह राजनैतिक व्यवस्था है
जिसे बदले बिना दुनिया से,
भूख, नंगापन और बेघरी नहीं जायेगी
आप इस क्रूर व्यवस्था को समझ न सकें
इसलिए आपके स्कूल
आपको इस व्यवस्था की तारीफ के
गुणगान करना सिखाते हैं

आपका धर्म !
इस पर सवाल खड़े करना नहीं सिखाता
और आप इस दुनिया को
सुंदर बनाने के अपने असली धर्म से,
वंचित रहकर ही
अपनी उम्र पूरी करके
इस दुनिया से चले जाते हैं
और यह क्रूर व्यवस्था
ऐसे ही चलती रहती है

इसे समझिए
इस पर सवाल उठाइये
ताकि दुनिया को बदलने की
संभावना मज़बूत हो सके
इस दुनिया को बदलने का वक्त अभी है

जागो! भूखो, वंचितो, मेहनतकशो
यहाँ आपका भी पूरा हक़ है
आपकी ग़ुलामी की ज़ंजीरें
आपको ही मिलकर तोड़नी होंगी.

  • हिमांशु कुमार

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