Home गेस्ट ब्लॉग पूजा पांडाल में गांधी वध : गांधी को मारने का मायावी तरीका

पूजा पांडाल में गांधी वध : गांधी को मारने का मायावी तरीका

9 second read
0
0
378
पूजा पांडाल में गांधी वध : गांधी को मारने का मायावी तरीका
पूजा पांडाल में गांधी वध : गांधी को मारने का मायावी तरीका
प्रियदर्शन

कोलकाता के एक पांडाल में देवी दुर्गा जिस राक्षस को मारती दिखीं, उसका चेहरा महात्मा गांधी से मिलता-जुलता था. यह देवी दुर्गा के हाथ से कराया गया एक अपवित्र कृत्य है, जिस पर किसी की भावना आहत नहीं हुई. जिस हिंदूवादी संगठन ने यह दुर्गा पूजा कराई, वह इतना कायर निकला कि उसने स्वीकार तक नहीं किया कि उसने महात्मा गांधी की मूर्ति बनवाई है.

इस दुष्कृत्य की आलोचना तो भारतीय जनता पार्टी ने भी की, लेकिन यह वैसी ही आलोचना थी जैसी कभी प्रधानमंत्री ने गोडसे को देशभक्त बताने पर अपनी सांसद प्रज्ञा ठाकुर की की थी- यह कहते हुए कि वे कभी प्रज्ञा ठाकुर को दिल से माफ़ नहीं कर पाएंगे. लेकिन प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी की राजनीति न सिर्फ़ माफ़ कर चुकी है, बल्कि पर्याप्त सम्मान देती रही है.

बेशक, यह मामला उछला और पूजा पांडाल वालों को लगा कि जनभावना उनके ख़िलाफ़ जा रही है तो उन्होंने मूर्ति को बाल पहना दिए, उसकी मूंछें बना दीं और इस तरह गांधी को मिटा कर कोई नई मूर्ति बनाने की कोशिश की लेकिन यह बात छुपी नहीं रह गई कि संगठन के मंसूबे क्या थे.

देवी दुर्गा के हाथों गांधी का वध कराने से पहले ऐसे ही किसी संगठन ने कहीं और गांधी पर गोली चलाई थी. वैसे भी गांधी को मारने का काम इस देश में बरसों से किसी परियोजना की तरह चलता रहा है. बहुत सारे नाटक, बहुत सारी फ़िल्में इस गांधी हत्या की थीम पर रहे हैं लेकिन इन सबके केंद्र में गांधी की हत्या का दुःख और विक्षोभ रहा है.

संघ परिवार से जुड़े संगठन और गिरोह जब गांधी को मारते हैं तो वे ख़ुश या दुःखी नहीं होते, अपना एक पुराना लक्ष्य पूरा कर रहे होते हैं. 30 जनवरी से पहले इन्होंने 20 जनवरी को भी गांधी की प्रार्थना सभा में बम फेंका था. उसके बाद का वीडियो बचा हुआ है जिसमें आप गांधी जी की आवाज़ सुन कर रोमांचित हो सकते हैं- ‘डरो नहीं, डरो नहीं.’

तो जो आदमी देह में तीन गोलियां उतार दिए जाने के बाद ‘हे राम हे राम’ करता है, सभा में बम फेंके जाने पर भी जो न डरने का आह्वान करता है, उसे कैसे मारा और डराया जाए ? गांधी को मारने की कुल पांच कोशिशें उनके जीवन काल में हुईं लेकिन जो मर कर भी नहीं मरा, उससे लड़ने के अब नए-नए और मायावी तरीक़े निकाल रहा है संघ परिवार.

गांधी को महिषासुर बनाकर एक नई मिथक कथा तैयार करने की कोशिश इन्हीं मायावी तरीक़ों का हिस्सा है. इसका करुण पक्ष यह है कि जाने-अनजाने हिंदूवादी संगठन महिषासुर को भी एक मानवीय चेहरा प्रदान कर दे रहे हैं- उसे गांधी की तरह दिखा रहे हैं. यानी यह भी संभव है कि महात्मा गांधी महिषासुर की तरह न याद आएं, महिषासुर गांधी की तरह याद आने लगे. वैसे भी एक समानांतर कथा महिषासुर की भी चलती ही है।

लेकिन संघ परिवार के प्रति आस्था रखने वाले एक संगठन की बनाई जा रही इस नई मिथक कथा में सबसे ज़्यादा खंडित देवी दुर्गा की छवि होती है. देवी दुर्गा किसे मार रही हैं ? क्या वे महात्मा गांधी को मार रही हैं ? लेकिन किस अपराध के लिए मार रही हैं ? क्या इसलिए कि गांधी ने देश की आज़ादी की लड़ाई में सत्य, अहिंसा और मनुष्यता जैसे मंत्र दिए ?

बीजेपी और संघ परिवार के लोग बताएंगे कि नहीं, इसलिए कि वे पाकिस्तान का समर्थन करते थे, इसलिए कि उन्होंने 55 करोड़ रुपये पाकिस्तान को देने का दबाव डाला था. यह हास्यास्पद, अधपढ़, और मतिमंदता से निकला तर्क फिर देवी को शर्मसार करता है. मिथक की देवी के पांव अचानक इतिहास में फंसते दिखाई देते हैं.

दरअसल संघ-परिवार की गांधी-घृणा का उत्स कुछ और है. उनको वह हिंदू मंजूर नहीं जो गांधी बना रहे थे. वह हिंदू बहुत सारे लोगों को मंजूर नहीं बल्कि आज के दौर में हिंदू या मुस्लिम होना ही बहुत सारे लोगों को मंज़ूर नहीं. ग़ालिब ने तो डेढ़ सौ साल पहले अपनी पहचान की खिल्ली उड़ाई थी कि वे आधे मुसलमान हैं क्योंकि वे शराब पीते हैं सुअर नहीं खाते.

लेकिन गांधी का पाठ हिंदू-मुसलमान बनाने का नहीं, इंसान बनाने का था- ऐसा इंसान जो हिंदू भी हो तो सच्चा हो और मुसलमान भी हो तो सच्चा हो. यह सच्चाई उनके अपनों पर भी भारी पड़ती थी, विरोधियों का क्या कहना. जिस संगठन ने ये मूर्ति बनवाई, उसका एक और मासूम तर्क है जिसमें उसकी अनपढ़ता झांकती है. संगठन का कहना है कि गांधी की आलोचना क्यों नहीं हो सकती. इन लोगों को यह नहीं मालूम कि गांधी की आलोचना सबसे ज़्यादा उनके जीवन काल में हुई.

उनसे वैचारिक मुठभेड़ उनके शिष्य भी करते रहे. अंबेडकर से उनका विवाद तो जगजाहिर रहा, नेहरू और टैगोर से भी उनकी बहसें चलती रही. इनको दुहराने का ज़्यादा मतलब नहीं है. ऐसे संगठन जिस भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस का नाम लेते हैं, उनके बारे में भी उन्हें नहीं मालूम. वे होते तो गांधी से कहीं ज़्यादा वेग और आवेग के साथ ऐसे हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ़ खड़े होते. अपने जीवन काल में वे इनके विरुद्ध थे ही.

लेकिन मामला ऐसे संगठनों का नहीं है, उस पूरी वैचारिकी का है जो बार-बार गांधी को मारने और गोडसे को पूजने के कर्मकांड में लगी रहती है. बरसों से यह काम चल रहा है. देश में गोडसे की मूर्तियां बन रही हैं, मंदिर बन रहे हैं और गोडसे को देशभक्त बताने वाले बीजेपी के टिकट पर संसद में जा रहे हैं. बरसों पहले एक टिप्पणी में इन पंक्तियों के लेखक ने लिखा था- ‘गांधी गोलियों से मरेंगे नहीं और गोडसे मूर्तियां बनाने से जिंदा नहीं होगा.’

कई बार यह विश्वास दरकता दिखाई पड़ता है. सांप्रदायिक राजनीति का राक्षस जिस तरह बडा होता जा रहा है, उससे लगता है कि कहीं गांधी की स्मृति बिला न जाए. लेकिन हर बार गांधी इस विश्वास की रक्षा करने चले आते हैं. दुर्गा पूजा पांडाल तक में उनको मारने की इच्छा का प्रदर्शन बताता है कि उनको मारना कितना मुश्किल है !

Read Also –

दुर्गा किसकी हत्या की थी – महिषासुर की या गांधी की ?
गांधी को गाली देने वाले इस देश के सबसे बडे गद्दार हैं
भगत सिंह को ‘छिछोरा’ कहने वाला संघी क्यों कांग्रेस, गांधी और नेहरू को गद्दार बताता है ?

[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…