सुब्रतो चटर्जी
वैसे तो इस देश ने शुरू से ही गधत्व के विभिन्न पहलुओं, इसके क्रमिक विकास और कुछ मनुष्यों के काम काज, उनकी सोच और आस्थाओं में इसके प्रतिस्फलन के चलते इस विषय पर अथाह सामग्री जुटाई है, जिसे अपने शोध में समाहृत करना राहुल सांस्कृत्यायन जैसे महापंडित के बस की भी बात नहीं है, फिर भी संपूर्ण गधत्व के पिछले ‘छः बेमिसाल सालों’ ने इसे नए तरीक़े से परिभाषित करने के लिए मुझ नाचीज़ को बार-बार प्रेरित करता है, जिसे मैं आपके साथ साझा करने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूंं.
अत्याधुनिक शोध से पता चला है कि गधे मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं :
- नैसर्गिक गधा
- अनैच्छिक गधा
- स्वैच्छिक गधा
नैसर्गिक गधा सबसे निरीह प्राणी होता है, जो मेरी और आपकी तरह प्रकृति का ही एक प्रयोग है. पारंपरिक रूप से धोबी के साथ जुड़े होने के कारण यह पशु हमारी मलिनता से स्वच्छता की ओर यात्रा में एक संवाहक की भूमिका में होता है.
यह साधारण तौर पर बहुत ही सुशील, आज्ञाकारी और आशुतोषी प्रवृत्ति का होता है. इसे सूखे मैदान में हरे मैदान की तुलना में ज़्यादा तृप्ति मिलती है. बैसाख नंदन की उपाधि से सुशोभित प्रकृति का यह अनुपम प्रयोग हम सबके अंदर निवास भी करता है.
जिस तरह आत्मनिरीक्षण के क्षणों में रामकृष्ण परमहंस को ब्रह्मांड के दर्शन हुए थे, कुछ इसी तरह से मुझे भी यह आत्मज्ञान हुआ कि यह जो मेरे जैसे लोग दिन-रात आभासी दुनिया में व्यवस्था के विरुद्ध अपनी भड़ास निकाल कर इसे बदलने का प्रयास करते हैं, वह बैसाख में सूखे चारागाह को चट करने के सिवा और क्या है ?
सरकार और बाज़ार की विभिन्न रंग बिरंगी योजनाओं और से दिल लुभाते हुए जब हम आधे पेट सुकून से सोते हैं, वह भी तो नैसर्गिक गधत्व प्राप्त करने की दिशा में बढ़ाया गया एक मज़बूत कदम होता है.
हममें से कुछ अनैच्छिक गधे भी होते हैं. यह विदित है कि मनुष्य के अंदर दो मन होता है, एक दर्शक और दूसरा कर्ता या क्रियाशील. जब भी हम सज्ञान में रात आठ बजे ‘मितरों’ सुनने बैठते हैं या रविवार को रिन रंगोली की जगह हींग हिंगोली भी नहीं, साधारणतया हर गंभीर मुद्दे पर गधे का गांभीर्य धारण किए किसी गधा शिरोमणि के मन की बात सुनने बैठते हैं, तब हमारे अंदर का अनैच्छिक गधा अपने पूरे शबाब पर होता है. हमारा दर्शक मन ठीक उसी समय हमें दुत्कारता रहता है, जिस समय हमारा क्रियाशील मन किसी गधे के मन की बात में भूसे के ढेर में सूंई की तलाश में रहता है.
अनैच्छिक गधा होने के कई कारक होते हैं, जैसे मालिक की नज़रों में समुज्ज्वल दंत-पंक्तियों के अहिर्निश प्रदर्शन के ज़रिए उनकी रुकी हुई कृपा को चलायमान करने का दशरथ ( मांंझी ) प्रयास, इत्यादि.
सत्ता बड़ी रांड़ होती है, और शिखंडी भी. उसे वामा अनुचर पसंद नहीं है. वामा उसकी नपुंसकता की साक्षी होती है इसलिए, अपने दक्षिण भाग में अपने अनुचरों को रखती है. इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए कुछ शिखंडी अपनी पत्नी का त्याग भी कर देते हैं. ऐसे शिखंडियों के दक्षिण भाग में अनैच्छिक गधे बहुत पसंद हैं, इसलिए ये उन न्यायाधीशों और ऊंंचे अफ़सरों को आदर देते हैं, जो रिटायर करने के दिन या उसके सालों बाद तब दुलत्ती झाड़ते हैं, जब गधा शिरोमणि उनकी पहुंंच से काफ़ी दूर चला गया होता है.
अनैच्छिक गधे भी नीरीह प्राणी हैं, लेकिन नैसर्गिक गधों से थोड़ा कम क्योंकि व्यक्तिगत स्वार्थ इनको सेमी क्रिमिनल बना देता है.
अंत में स्वैच्छिक गधे. यह प्रजाति गधत्व के गौरवशाली इतिहास में सबसे नवीन है, लेटेस्ट, लिमिटेड एडिशन कलेक्शन. इनकी आनुवंशिक जांंच से पता चला है कि इनका संपूर्ण विकास सन 2014 के आस-पास हुआ और लिमिटेड एडिशन होने के नाते इनकी आयु एक घुमावदार दुमदार, लंबी जिह्वा और नुकीले दंत-पंक्तियों से सुसज्जित किसी गुर्राने, भूंंकने और यदा-कदा किसी को अकेला पाकर झुंड में काटने वाले एक विशेष प्राणी की तरह 2024 तक है.
इन स्वैच्छिक गधों को ‘भक्त’ की उपाधि से सबसे पहले किसने नवाज़ा, यह एक अलग शोध का विषय है, फ़िलहाल, स्वैच्छिक गधों की कुछ विशेषताओं के अध्ययन से जो बातें उभर कर आई है, उन पर संक्षेप में कुछ विशेषताएं इस प्रकार है –
- जैसा कि विशेषण से परिलक्षित होता है, ये स्वेच्छा से गधे बने हैं. गधत्व का साम्राज्य भी, किसी और साम्राज्य की तरह ही, बिना वालंटियर्स या स्वैच्छिककर्मियों के इतना प्रसार प्रचार कभी नहीं पाता. इसलिए, जब जंबूद्वीपे भागीरथी तीरे गधत्व के साम्राज्य की योजना को अमली जामा पहनाने की बारी आई तो ये स्वैच्छिक गधे, या गधत्व के पैदल सिपाही ( दिमाग़ से ) हर टोले-मुहल्ले से निकर पहन कर टिड्डियों के झुंड-सा निकल आए.
- जंबूद्वीप के उर्वर खेतों में, जिनमें दया, करुणा, सामाजिक सौहार्द, वैज्ञानिक सोच, आर्थिक प्रगति की फसल लगी थी, वे इन चड्डीधारी टिड्डियों के निशाने पर आ गए.
- इन स्वैच्छिक गधों में एक विशेष आनुवंशिक गुण पाया जाता है – कुंठा. यह कुंठा सेक्स से लेकर अपने स्वैच्छिक गधत्व तक सब कुछ समेटे हुए है. इनके लिए हर स्त्री एक रंडी है, चाहे इनकी मांं ही क्यों न हो, और हर ऐसा व्यक्ति जो विकास क्रम में अपने हिस्से का गधत्व हज़ारों साल पीछे छोड़ आया हो, एक स्वाभाविक शत्रु है.
- स्वैच्छिक गधे हत्या से लेकर ट्रोल तक उसी निष्काम मन से करते हैं, जिसकी शिक्षा कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया था. यह और बात है कि कुरुक्षेत्र में जंबूद्वीप के नर शून्य होने के पश्चात, और पानीपत में हार की हैट्रिक बनाने के बाद इन स्वैच्छिक गधों के पूर्व पुरुषों ने अपनी कर्मस्थली के लिए भारत के नाभि भाग को चुना.
स्वैच्छिक गधे मौसमी गधे भी हैं. यह उनके प्रश्नों से भी साबित होता है, जैसे, गधा शिरोमणी नहीं तो और कौन ? इनकी परिकल्पना में ब्रह्मांड की सारी उर्जा बस एक गधा शिरोमणि में समाहृत होकर चिर निद्रा में खो गई. न भूतो, न भविष्यति.
जंबूद्वीप का सर्वश्रेष्ठ सर्वकालीन गधा इनके ट्वीटों के नियमित रसास्वादन से फ़िलहाल अमरत्व का आनंद ले रहा है. गधत्व की विशाल प्रतिमा, हमारी अनूठी आत्मनिर्भरता का प्रतीक, के सामने साष्टांग प्रणाम करते हुए एक अनुगृहीत देश में आपका हार्दिक स्वागत है.
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