रविश कुमार
विगत वर्षों में प्रधानमंत्री ने इसी लाल किला की प्राचीर से 2022 को लेकर कितने ही लक्ष्य तय किए गए, उनका कोई हिसाब किताब नहीं दिया जा रहा है. एक तरफ़ सोशल मीडिया में उनके पुराने भाषणों के वीडियो झूठ और बड़बोलेपन का दस्तावेज़ बन कर फैलाए जा रहे हैं, दूसरी तरफ़ प्रधानमंत्री अपने आज के भाषण को लक्ष्य, गर्व, प्रेरणा, पुरुषार्थ, विरासत और कर्तव्य से भर कर लाए थे.
2015 के भाषण का हिसाब 2019 में न हो, इसके लिए लक्ष्यों को 2022 तक ठेल दिया गया और जब 2022 आया तो 2047 की बात होने लगी है. इस दौरान देश में आईटी सेल और गोदी मीडिया के सहारे झूठ बोलने और झूठ को बचाने में भारत ने जितनी तरक़्क़ी की है, उसका कोई हिसाब मांगे तो जवाब देने के बजाए 2030, 2047 का टार्गेट गिनाया जाने लगा है. मोदी सरकार के मंत्री वीडियो एडिट कर ट्विट करते हैं, इस पर प्रधानमंत्री कभी एक्शन नहीं लेते.
विरासत के नाम पर एक पूरी विरासत को मिटाने का खेल चलता रहा, प्रधानमंत्री ने ज़िक्र तक नहीं किया. कर्नाटक की बीजेपी सरकार के पूरे पन्ने के विज्ञापन में नेहरू के लिए जगह तक नहीं थी. इस देश को कभी अपनी विरासत पर शर्मिंदगी नहीं थी. जब भी उसका मौक़ा आया है, देश ने विरासत को याद किया है और गर्व किया. ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री के निर्देश के बाद से ही लोगों को विरासत की याद आई है.
अच्छी बात है कि कभी पचास करोड़ की गर्लफ़्रेंड, सोनिया गांधी को कांग्रेस की विधवा तो ममता बनर्जी को दीदी ओ दीदी बोल कर महिला नेताओं को अपमानित करने वाले लोकप्रिय प्रधानमंत्री ने देश से आह्वान किया है कि मन से महिलाओं के प्रति अनादर का भाव और शब्द निकाल फेंके.
आज ही प्रधानमंत्री ने महिलाओं के सम्मान की बात की, आज ही गुजरात सरकार ने बिल्किस बानों के बलात्कार के दोषी 11 लोगों की आजीवन क़ैद की सज़ा माफ़ कर उन्हें रिहा कर दिया गया. मुझे पता है आप इस पर भी चुप रहेंगे. महिलाएं इस बात से ख़ुश रहेंगी कि वे नारी शक्ति हैं और उनके बारे में लाल क़िला की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने बात की है.
कुल मिलाकर आज का उनका भाषण बेहद साधारण रहा. इसका कारण यह है कि पिछले पंद्रह दिनों से देश में उनके समर्थक आज़ादी के वातावरण का तमाशा बनाए हुए थे. अगर वाक़ई आदर भाव का माहौल होता तो कोई शक नहीं कि भाषण भी अच्छा होता. गोदी मीडिया के भीतर डर न होता तो उसके ग़ुलाम संपादक आज के भाषण से दो लाइन की हेडलाइन नहीं बना पाते.
इसकी वजह है कि जब तक वे हिसाब मांगते थे, उनके भाषण में जलवा होता था, लेकिन जब से बोली हुई बातों का हिसाब मांगा जाने लगा है, उनका भाषण पलायनवादी हो गया है. साफ़ है कि संकल्प से सिद्धी का नतीजा यही है कि 2022 में पूरे होने वाले एक भी लक्ष्यों की बात नहीं कर सके. उनकी नज़र में उनके ही संकल्पों की यह हालत है तो जनता कितना प्रेरित होगी, समझा जा सकता है.
मूल बात यह है कि हमारा देश भाषणों के मामले में दसवीं क्लास की वाद-विवाद प्रतियोगिता के स्तर से आगे नहीं जा सका है. वक्ता और श्रोता ताली बजवाने और बजाने के अवसरों की खोज में लगे रहते हैं, इसी के हिसाब से वाक्य बनाते रहते हैं. एक दिन नेता के वाक्य थक जाते हैं, तालियां बजानी पड़ती हैं तो बजती रहती है.
जिस देश में ग़ुलाम मीडिया हो और हाउसिंग सोसायटी के सभी व्हाट्स एप ग्रुप में पार्टी समर्थकों का नियंत्रण हो, उस देश में हर भाषण महान है, वरना महान बताने वाला भी जानता है कि क्या महान है. समर्थक झूठ के मामले में इतना आगे बढ़ चुके हैं कि पीछे नहीं हट सकते.
हाउसिंग सोसायटी के लोगों की अगले बीस साल की लड़ाई यहीं है कि जिस झूठ को दस साल तक बचाते रहे, इस आरोप से खुद को अगले दस साल तक कैसे बचाना है ? झूठ की विजय निश्चित है. हाउसिंग सोसायटी के लोगों को इस कंट्रोल से आज़ाद कराना एक बड़ा कार्य है, जिसे सभी को पूरा करना है, जिसके व्हाट्स एप ग्रुप में गौरव के नाम पर धर्मांध लोगों का क़ब्ज़ा हो गया है.
गोदी मीडिया इतिहास के पन्ने से नेहरू को मिटा देना चाहता है
नेहरू को मिटाकर अगर वह आज़ादी की सालगिरह मनाना चाहता है तो वह आज़ादी नहीं मना रहा. मुझे नहीं पता कि उस ऐंकर ने ऐसा क्यों होने दिया ? क्या उसे इतिहास की इतनी ही समझ है कि कोई हुकूमत दस साल चल जाए तो इतिहास उसकी ग़ुलामी करने लग जाएगा ? उस ऐंकर की आत्मा उससे क्या कहती होगी ? टीआरपी की भीड़ तो मदारी को भी मिल जाती है, मगर मदारी की भीड़ के दम पर नेहरू को मिटाने की चाह रखने वाले इतना जान लें, सड़क का नाम बदल देने से सड़क का नाम बदलता है, सड़क का इतिहास नहीं बदलता है.
गोदी मीडिया उस दौर के स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान कर रहा है. उनके संघर्ष के पसीने पर अपने मालिकों का खाया नमक रगड़ रहा है, जिन मालिकों के बोले गए सौ झूठ के वीडियो सोशल मीडिया में चलते रहते हैं. अगर आप नेहरू से नफ़रत निकाल कर आज़ादी का उत्सव मना रहे हैं, इसका मतलब है आप उस पूरी लड़ाई का अपमान कर रहे हैं, जिसने नेहरू को अपना नेता माना था, जिन्हें सरदार ने भी अपना नेता माना था.
आज गोदी मीडिया ने जो किया है, उससे मेरा यक़ीन और पुख़्ता होता है कि जब तक इस देश की जनता गोदी मीडिया के जाल से बाहर नहीं आती है, उससे मुक्ति नहीं पाती है, उसका जीवन आज़ाद देश में ग़ुलाम का जीवन है. आज के दौर में इस देश को बचाने की पहली लड़ाई गोदी मीडिया से बचाने की लड़ाई है. एक दिन इस देश की जनता को अपने घरों से गोदी मीडिया को बाहर करना पड़ेगा.
जब तक वह दिन नहीं आता है, आप ग़ुलाम दर्शक बन कर गोदी मीडिया के सामने सर झुकाए खड़े रहेंगे. इस देश में पत्रकारिता आज़ादी की मशाल रही है लेकिन आज गोदी मीडिया के ज़रिए आप ग़ुलाम बनाए जा रहे हैं, इससे अधिक शर्मनाक बात क्या हो सकती है. अमृत महोत्सव के नाम ज़हर उगला जा रहा है. नेहरू से नफ़रत का रास्ता खोजा जा रहा है, अफ़सोस. इसके बाद भी करोड़ों लोग उस तिरंगे को हाथ में लिए खड़े हैं, गाड़ी, घर और इमारतों पर लहरा रहे हैं, जिसे नेहरू ने कभी लहराया था.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद. महात्मा गांधी ज़िंदाबाद.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद. जवाहर लाल ज़िंदाबाद.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद, सरदार पटेल ज़िंदाबाद.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद. डॉ अंबेडकर ज़िंदाबाद.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद. भगत सिंह ज़िंदाबाद.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद, चंद्रशेखर आज़ाद ज़िंदाबाद.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद, उधम सिंह ज़िंदाबाद.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद, कस्तूरबा गांधी ज़िंदाबाद.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद, आचार्य कृपलानी ज़िंदाबाद
गोदी मीडिया मुर्दाबाद. आज़ादी का हर सिपाही ज़िंदाबाद.
गोदी मीडिया मुर्दाबाद। गोदी मीडिया मुर्दाबाद।
गोदी मीडिया मुर्दाबाद। गोदी मीडिया मुर्दाबाद।
गोदी मीडिया मुर्दाबाद। गोदी मीडिया मुर्दाबाद।
गोदी मीडिया मुर्दाबाद। गोदी मीडिया मुर्दाबाद।
गोदी मीडिया मुर्दाबाद। गोदी मीडिया मुर्दाबाद।
गोदी मीडिया मुर्दाबाद। गोदी मीडिया मुर्दाबाद।
अपने मन में यह नारा बार-बार दोहराएं. आपके भीतर नैतिक शक्ति आएगी. देश के लिए कुछ करने का जज़्बा आएगा. मुक्ति मिलेगी. जय हिन्द.
आज़ादी की हीरक जयंती की शुभकामनाएं
ठीक है कि…
कुछ लोग इस बात से दुःखी है कि तिरंगा झंडा का वितरण कूड़ा उठाने वाली गाड़ी से किया जा रहा है. कुछ लोग इस बात से दुःखी हैं कि नेताओं ने तिरंगा उल्टा फहरा दिया है.कुछ लोग इस बात से दुःखी हैं कि झंडा कोड ध्वस्त हो गया है. कुछ लोग इस बात से दःखी हैं कि खादी का झंडा नहीं दिख रहा है. कुछ लोग इस बात से भी दुःखी है कि तिरंगा यात्रा के दौरान बीजेपी के दो गुटों के बीच मारपीट हो गई है. कुछ लोग इस बात से भी दुःखी है कि तिरंगा यात्रा के दौरान डीजे के गीत बज रहे हैं. कुछ लोग इस बात से भी दुःखी हैं कि तिरंगा अभियान के लिए केवल उन्हीं के वेतन से पैसे क्यों काटे गए. कुछ लोग यह जानते हैं कि ग़लत हो रहा है मगर चुप रह जाते हैं.
ठीक है कि…
कुछ लोग इस बात से दुःखी है कि कर्नाटक सरकार के विज्ञापन में आज़ादी के नायकों में नेहरू की तस्वीर नहीं है. अमृत महोत्सव के अवसर पर सरकारी झांकी के पोस्टर में नेहरू को सबसे किनारे रखा गया है. आज तक न्यूज़ चैनल ने वीडियो एडिटिंग कर ऐंकर को नेहरू की जगह स्थापित कर दिया है. संघ के इंद्रेश कुमार बंटवारे के लिए बापू को ज़िम्मेदार बता रहे हैं. आज़ादी की हीरक जयंती के अवसर पर आज़ादी की कहानी बदली जा रही है. आज़ादी की लड़ाई ही खारिज की जा रही है.
ठीक है कि…
कुछ लोगों को लगता है कि बहुत से लोगों ने उनकी बातों को सुनना बंद कर दिया है. बहुत से लोगों के आगे कुछ लोगों की आवाज़ का कोई मतलब नहीं रहा. बहुत से लोग आज़ादी के आंदोलन के साथ हो रहे इस अपमान को सही मानते हैं. हाउसिंग सोसायटी के व्हाट्स एप ग्रुप में ग़लत को ग़लत बोलने वालों पर नज़र रखी जा रही है. कुछ लोगों को इतनी घुटन होती है कि वे सोसायटी का व्हाट्स एप ग्रुप छोड़ देते हैं. कुछ लोगों को लग रहा है कि उन्हें घूरा जा रहा है कि उनकी छत पर तिरंगा लहरा रहा है या नहीं.
ठीक है कि…
कुछ लोग आज़ादी की हीरक जयंती के अवसर पर फासीवाद की आशंका से चिन्तित हैं. वहीं बहुत से लोग आज़ादी के आंदोलन के अस्वीकार में किसी स्वर्ण युग के आहट से आनंदित हैं. कुछ लोगों को लगता है कि वे हमेशा के लिए पराजित हो चुके हैं. बहुत से लोगों को लगता है कि आज़ादी के आंदोलन का अपमान करना ही असली आज़ादी है.
ठीक है कि…
कुछ लोग यह सब होता हुआ देख रहे हैं. यह देखना ही उस उम्मीद का हिस्सा है, जिसके लिए हम तिरंगा लहराते हैं. मुमकिन है कि बहुत लोगों को इस जीवन में यह पता ही न चले कि उन्होंने इस दौर में उस आंदोलन की पवित्रता को बदनाम किया, जिसकी गोद से यह तिरंगा निकला है लेकिन इतिहास की उम्र उनके जीवन से लंबी होती है. आज तक यह समाज जयचंद और मीर ज़फ़र को नहीं भूला है.
अंग्रेज़ों के दौर में भी ऐसे हज़ारों लोग थे. ग़ुलामी के दौर में कंपनी बहादुर के अफसर बन कर मूंछों पर ताव दिया करते थे. बग्धियों पर घूमा करते थे. उस दौर में भी कुछ लोग ही थे, जो इसे ग़लत बता रहे थे. उन कुछ लोगों को ख़ुद पर भरोसा रखना चाहिए. इस दौर में कुछ का होना ही बहुत कुछ होना है.
ग़ुलामी और तानाशाही जब आती है तब कुछ लोगों के लिए नहीं आती है
आज़ादी के आंदोलन का अपमान बापू और नेहरू का अपमान नहीं है, उन लाखों लोगों का अपमान हैं, जिन्होंने इन्हें अपना नेता मानते हुए अंग्रेज़ी हुकूमत का मुकाबला किया है. झूठ बोलने वाले नेताओं और गोदी मीडिया की दासता से एक दिन उन बहुत लोगों पर भी शिकंजा कसेगा. पहले उनके सहारे कुछ लोगों पर शिकंजा कसा जाएगा, फिर उनकी भी बारी आएगी. एक दिन वही बहुत से लोग उस इतिहास के पन्नों को साफ करते नज़र आएंगे, जिस पर आज धूल फेंक रहे हैं, जिसका आज अपमान कर रहे हैं. इसलिए आप सभी उम्मीदों भरी निगाह से तिरंगा की तरफ देखिएगा. आप सभी को आज़ादी की 75 वीं सालगिरह की शुभकामनाएं. जय हिन्द !
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