Home गेस्ट ब्लॉग द्रौपदी पांडव से द्रौपदी मुर्मू तक – कांचा इलैया शेपर्ड

द्रौपदी पांडव से द्रौपदी मुर्मू तक – कांचा इलैया शेपर्ड

11 second read
0
0
250

संथाली आदिवासी द्रौपदी मुर्मू का भारत के 15वें राष्ट्रपति के तौर पर निर्वाचन, देश में मंडल आयोग के बाद की संघर्षयात्रा में एक मील का पत्थर है, विशेषकर आदिवासियों की दमन से मुक्ति की राह का. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को इस चुनाव से जबरदस्त लाभ होगा. यदि मंडल आंदोलन नहीं हुआ होता तो आरएसएस और भाजपा, जो कि मूलतः ब्राह्मण-बनिया जमावड़ा हैं, किसी भी स्थिति में द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का अपना उम्मीदवार नहीं बनाते. ब्राह्मणवाद में गले तक धंसे कांग्रेस और वामपंथियों ने आरएसएस-भाजपा को ऐतिहासिक सुअवसर प्रदान कर दिया है.

झारखंड (पूर्व में बिहार का हिस्सा) के एक धनी कायस्थ नेता को अपना उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने गंभीर भूल की. ज्ञातव्य है कि बिहार के राजेन्द्र प्रसाद, जो कायस्थ थे, देश के पहले राष्ट्रपति थे. वे दस वर्षों तक इस पद पर बने रहे. ऐसा लगता है कि कांग्रेस अब तक देश की बदलती राजनीतिक फिज़ा को समझ नहीं सकी है.

प्रधानमंत्री बनने के पूर्व नरेंद्र मोदी द्वारा स्वयं को ओबीसी घोषित करने के बाद से भारत में जातिगत समीकरण बदल गए हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने एक दलित – रामनाथ कोविंद – को राष्ट्रपति बनाया और एक शूद्र (कम्मा) वैंकया नायडू को उपराष्ट्रपति.

कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के संपूर्ण कार्यकाल में शीर्ष सत्ताधारी द्विज जातियों (ब्राह्मण, बनिया, कायस्थ, खत्री और क्षत्रिय) से ही हुआ करते थे. इनमें से कुछ मुस्लिम सामंती श्रेष्ठि वर्ग से भी थे. पसमांदा मुसलमानों को कोई भूमिका नहीं दी गई. अब भाजपा, शियाओं और पसमांदाओं को लुभाने की जुगत में है. वामपंथियों ने न तो भारतीय जाति व्यवस्था को समझने का प्रयास किया और ना ही दमित जातियों को गोलबंद करने का कोई तरीका ढूंढा. नतीजे में वामपंथी, राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य से लगभग गायब हो गए हैं और कांग्रेस दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है.

आरएसएस-भाजपा ने जाति व्यवस्था का सूक्ष्म अध्ययन किया, जो कि अनापेक्षित था. कांग्रेस अपना पुराना खेल खेलने में ही व्यस्त है. इसके अलावा, कांग्रेस और सभी क्षेत्रीय दल वंशवाद को पोषित करने के आरोपों से भी जूझ रहे हैं.

आरएसएस-भाजपा ने राष्ट्रपति पद के अपने उम्मीदवार बतौर एक आदिवासी महिला को चुना. इस महिला का नाम द्रौपदी है. आधुनिक इतिहास में शायद ही किसी द्विज या शूद्र/ओबीसी परिवार ने अपनी बेटी को यह नाम दिया होगा. सांस्कृतिक दृष्टि से यह एक सुधार का संकेत है. द्रौपदी पांडव को हमेशा एक असामान्य, बल्कि दुष्चरित्र महिला, माना जाता रहा है क्योंकि उसके पांच पति थे और रामायण की सीता व महाभारत की अन्य महिला किरदारों के विपरीत वह स्वतंत्रतापूर्वक आचरण करती थी.

द्रौपदी को कभी एक स्वीकार्य ‘हिंदू नारी’ नहीं माना गया. उसका जीवन और भूमिका एक मातृवंशीय समाज से प्रेरित लगती है. आज भी कुछ भारतीय जनजातियों में मातृवंशीय परिवार हैं. ऐसा लगता है कि इस संथाल महिला को द्रौपदी का नाम देना एक तरह से उस परंपरा को चुनौती देना था, जिसमें महाभारत की द्रौपदी जैसी स्वतंत्र महिलाएं स्वीकार्य नहीं होतीं.

अपने नाम के अनुरूप द्रौपदी मुर्मू ने पूर्ण आत्मविश्वास से राजनीति को अपने करियर के रूप में चुना. वे निःसंदेह इस बात पर गर्व कर सकती हैं कि वे देश की पहली आदिवासी और वह भी महिला राष्ट्रपति होंगीं. मैं अपने जीवन की शुरूआत से ही आरएसएस-भाजपा की विचारधारा और राजनीति का विरोधी रहा हूं, परंतु इसके बावजूद भी मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह उनके द्वारा लिया गया सबसे बड़ा प्रगतिशील और सुधारात्मक निर्णय है.

कांग्रेस ने गंभीर सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थों वाले कई सुधारात्मक कदमों को उठाने की जिम्मेदारी संघ-भाजपा पर छोड़ दी है. दक्षिणपंथियों का यह नेटवर्क हमेशा से सुधारों का विरोधी रहा है, परंतु इस तरह के कदमों से वह समाज में परिवर्तन लाने के काम से अपने को जोड़ रहा है.

संघ-भाजपा अपने मुस्लिम विरोधी एजेंडे के आधार पर सत्ता में आए हैं. चुनाव जीतने के लिए उन्हें कुछ शूद्र/ओबीसी/दलित जातियों व आदिवासियों को अपने साथ लेना जरूरी है. सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्र में वे अपनी एक नई छवि बना रहे हैं. हालांकि इसका यह अर्थ हरगिज नहीं है कि वे ब्राह्मणवादी आध्यात्मिक प्रणाली, जिसने चातुर्वर्ण व्यवस्था का निर्माण किया, के विरोधी हो गए हैं.

महाभारत की द्रौपदी से लेकर 2022 की द्रौपदी मुर्मू तक हिन्दुत्व की ताकतों ने कई सांस्कृतिक तिकड़में की हैं और अपनी रीति-नीति में बदलाव भी किए है. हिंदू धर्म, जिस पर आरएसएस-भाजपा अपना मालिकाना हक समझते हैं, आदिवासियों को वनवासी मानता है और उन्हें एक स्वाभिमानी नागरिक का दर्जा भी नहीं देना चाहता.

आदिवासियों को ईसाई शक्तियों के पर्याय के रूप में माना जाता रहा है, परंतु देश के कुल मतदाताओं में उनका प्रतिशत अब सात से अधिक है इसलिए उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी देकर साथ लेना जरूरी हो गया है. राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू, भगवा ब्रिगेड को दीर्घकालिक लाभ पहुचाएंगीं.

जो लोग महाभारत की द्रौपदी को नीची निगाहों से देखते थे, उन्हें अब भारत के प्रथम नागरिक और देश के सैन्यबलों के सर्वोच्च सेनापति के रूप में द्रौपदी मुर्मू का सम्मान करना होगा. भारत के इतिहास में द्रौपदी नाम की एक भी ऐसी महिला नहीं है, जिसने सार्वजनिक जीवन में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो. यहां सीताएं और सावित्रियां तो बहुत थीं, परंतु द्रौपदियां बहुत कम.

आरएसएस के साहित्य में कहीं भी द्रौपदी पांडव को सम्मान की पात्र नायिका के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया है. हां, हाल में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धुलीपुड़ी पंडित ने द्रौपदी पांडव और सीता को दुनिया की पहली स्त्रीवादी बताया था. परंतु मुझे नहीं लगता कि आरएसएस/बीजेपी से बौद्धिक रूप से जुड़ा कोई पुरूष तो छोड़िए कोई महिला भी इस मत से सहमत होगी.

शांतिश्री ने द्रौपदी पांडव को एक स्वतंत्र और सशक्त महिला बताया, जिसने अपने पति धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा उसे जुएं में दांव पर लगाने का विरोध किया. शांतिश्री के अनुसार सीता पहली सिंगल मदर थीं. यह निःसंदेह एक सर्वथा नया आख्यान है. अब तक स्त्रीवादी अध्येताओं ने भी इस तरह के आख्यान का प्रस्ताव नहीं किया है.

महाभारत में द्रौपदी का चरित्र एक सशक्त और स्वतंत्र सोच रखने वाली महिला का है, जो पुरूषों, और विशेषकर अपने पांच पतियों के पितृसत्तात्मक प्रभुत्व को सिरे से नकार देती है. पौराणिक काल के बाद से भारत में पितृसत्तात्मकता का प्राधान्य रहा है, इस कारण भारतीय पुरूषों ने केवल उन महिलाओं को महत्व दिया जो मनु की संहिता के अनुरूप पुरूषों की हर आज्ञा को सिर माथे पर रखती थीं.

इसी पितृसत्तात्मक सांस्कृतिक विरासत के कारण द्रौपदी नाम हमारे सामाजिक जीवन से विलुप्त हो गया. द्रौपदी मुर्मू उसे वापस लेकर आईं हैं और इससे एक तरह के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की अनुभूति होती है.

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से शांतिश्री के आख्यान की स्वीकार्यता बढेगी. मुझे यह विश्वास है कि द्रौपदी मुर्मू देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से कहीं श्रेष्ठ प्रदर्शन करेंगीं. प्रतिभा पाटिल, जो कि एक मराठा थीं, न तो राष्ट्रपति भवन और ना ही देश के मानस पर कोई अपनी कोई छाप छोड़ पाईं. उन्होंने महिलाओं के लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया, जो याद रखा जाए.

इसके विपरीत, के. आर. नारायणन और ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति भवन और कुछ मुद्दों जैसे जाति, युवाओें की शिक्षा आदि पर केन्द्रित राष्ट्रीय आख्यानों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी. प्रतिभा पाटिल भी महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर ऐसा ही कुछ कर सकतीं थीं, परंतु उन्होंने देश की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में अपनी भूमिका का प्रभावी निर्वहन करने का कभी प्रयास ही नहीं किया.

राष्ट्रपति भवन में द्रौपदी मुर्मू की उपस्थिति देश के सभी आदिवासी समुदायों का मनोबल बढ़ाएगी. संघ-भाजपा इसका राजनीतिक लाभ उन राज्यों में लेना चाहेंगे, जहां आदिवासियों की बड़ी आबादी है, परंतु इससे मुर्मू अपने आपको इतिहास में अमर नहीं कर सकेंगीं.

उन्हें उड़ीसा के एक आदिवासी गांव से राष्ट्रपति भवन तक की अपनी यात्रा से उपजी परिवर्तकारी सोच और विचारों को कार्यरूप में परिणित करना होगा. आदिवासियों के अलावा भारत की महिलाओं की भी द्रौपदी मुर्मू से यह अपेक्षा होगी कि वे ऐसे कदम उठाएं, जिनसे भारत की आधी आबादी के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सके.

  • अनुवाद : अमरीश हरदेनिया
    संपादन : नवल/अनिल

Read Also –

संघियों के लिए राष्ट्रपति पद जनाक्रोश को शांत करने का साधन
आगे बढ़ने के लिए यही एकमात्र तरीका रह गया है देश में ?
दलित यानि दलाल राष्ट्रपति का चुनाव और आम आदमी
थानेदार से डर कर राष्ट्रपति वीरता चक्र कहीं छिपकर बैठ गया है 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…