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फ्रांस की अदालत ने केयर्न एनर्जी को 20 भारतीय सरकारी संपत्तियों को जब्त करने की दी इजाजत

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फ्रांस की अदालत ने केयर्न एनर्जी को 20 भारतीय सरकारी संपत्तियों को जब्त करने की दी इजाजत

भारत सरकार के साथ हर्जाना वसूली विवाद में ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी कंपनी के पक्ष में फ्रांस की एक अदालत ने ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी को मध्यस्थता आदेश के तहत 1.7 अरब अमेरिकी डॉलर का हर्जाना वसूलने के लिए फ्रांस स्थित 20 भारतीय सरकारी संपत्तियों को जब्त करने का आदेश जारी किया है. इसके साथ ही दुनिया भर में भारत की थू-थू मच गई है.

फ्रांसीसी अदालत के इस फैसले से फ्रांस स्थित भारत सरकार की 20 भारतीय सरकारी संपत्ति प्रभावित होंगी, जिनकी कीमत 2 करोड़ यूरो यानी 177 करोड़ रुपये से अधिक है. इसमें से कुछ संपत्ती पेरिस के सबसे महंगे इलाकों में हैं. इन संपत्तियों में ज्यादातर फ्लैट हैं, जिनकी कीमत दो करोड़ यूरो से अधिक है, और इनका इस्तेमाल फ्रांस में भारत सरकार द्वारा किया जाता है.

फ्रांसीसी अदालत ट्रिब्यूनल ज्यूडिशियर डी पेरिस ने 11 जून को केयर्न के आवेदन पर (न्यायिक बंधक के माध्यम से) मध्य पेरिस में स्थित भारत सरकार के स्वामित्व वाली आवासीय अचल संपत्ति को जब्त करने का फैसला दिया था. सूत्रों ने कहा कि इसके लिए कानूनी औपचारिकताओं को बुधवार शाम को पूरा कर लिया गया.

वहीं, केयर्न कंपनी ने अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड, सिंगापुर, मॉरीशस और कनाडा की अदालतों में भी भारत के खिलाफ इसी तरह के केस कर रखे हैं. मध्यस्थता अदालत (Arbitration court) ने केयर्न को 1.7 अरब अमेरिकी डॉलर का हर्जाना वसूलने का अधिकार दिया था, जिसकी वसूली के लिए कंपनी यह कदम उठा रही है. हालांकि, केयर्न द्वारा इन संपत्तियों में रहने वाले भारतीय अधिकारियों को बेदखल करने की संभावना नहीं है, लेकिन अदालत के आदेश के बाद भारत सरकार उन्हें बेच नहीं सकती है.

एक मध्यस्थता अदालत ने दिसंबर में भारत सरकार को आदेश दिया था कि वह केयर्न एनर्जी को 1.2 अरब डॉलर से अधिक का ब्याज और जुर्माना चुकाए. भारत सरकार ने इस आदेश को स्वीकार नहीं किया, जिसके बाद केयर्न एनर्जी ने भारत सरकार की संपत्ति को जब्त करके देय राशि की वसूली के लिए विदेशों के कई न्यायालयों में अपील की थी. पांच देशों की अदालतों ने केयर्न के पक्ष में आए ट्रिब्यूनल के फैसले पर मुहर लगा दी थी. इनमें अमेरिका और ब्रिटेन का अदालतें भी शामिल है.

तीन सदस्यीय अंतराष्ट्रीय पंचाट ने पिछले साल दिसंबर में एकमत से केयर्न पर भारत सरकार की मांग को खारिज कर दिया था. न्यायाधिकरण में भारत की ओर से नियुक्त एक जज भी शामिल थे. न्यायाधिकरण ने सरकार को उसके द्वारा बेचे गए शेयरों, जब्त लाभांश और कर रिफंड को वापस करने का निर्देश दिया था. चार साल के दौरान पंचनिर्णय प्रक्रिया में शामिल रहने के बावजूद भारत सरकार ने इस फैसले को स्वीकार नहीं किया और न्यायाधिकरण की सीट – नीदरलैंड की अदालत में इसे चुनौती दी थी.

इससे पहले केयर्न एनर्जी ने न्यूयॉर्क के दक्षिणी जिले की अमेरिकी जिला अदालत में दायर मामले में कहा था कि एयर इंडिया पर भारत सरकार का नियंत्रण है, ऐसे में अदालत को पंचाट के फैसले को पूरा करने का दायित्व एयरलाइन कंपनी पर डालना चाहिए. कंपनी का प्रतिनिधित्व कर रही विधि कंपनी क्विन इमैनुअल उर्कहार्ट एंड सुलिवन के सॉवरेन लिटिगेशन प्रैक्टिस प्रमुख डेनिस हर्निटजकी ने कहा था, ‘कई ऐसे सार्वजनिक उपक्रम हैं जिन पर हम प्रवर्तक कार्रवाई का विचार रहे हैं. प्रवर्तन कार्रवाई जल्द होगी और शायद यह अमेरिका में नहीं हो.’

मालूम हो कि अपने शेयरधारकों के दबाव के बाद केयर्न कंपनी विदेशों में भारत के सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और बैंक खातों को जब्त कर इस राशि की वसूली का प्रयास कर रही है. वित्त मंत्रालय ने इस मामले पर तुरंत टिप्पणी नहीं की, लेकिन केयर्न के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारी प्राथमिकता इस मामले को खत्म करने के लिए भारत सरकार के साथ सहमति से सौहार्दपूर्ण समझौता करना है, और उसके लिए हमने इस साल फरवरी से प्रस्तावों की विस्तृत श्रृंखला पेश की है. किसी समझौते के अभाव में केयर्न को अपने अंतरराष्ट्रीय शेयरधारकों के हितों की रक्षा के लिए सभी जरूरी कानूनी कार्रवाई करनी होगी.’

फ्रांसीसी अदालत का आदेश केयर्न पर बकाया कर्ज की वसूली के लिए भारत सरकार से संबंधित करीब 20 संपत्तियों को प्रभावित करता है. पूरे मामले से जुड़े एक व्यक्ति ने कहा, ‘संपत्तियों का मालिकाना हक पाने के लिए यह एक जरूरी प्रारंभिक कदम है और यह सुनिश्चित करता है कि इन्हें केयर्न ही बेच सकेगी. केयर्न एनर्जी ने इससे पहले कहा था कि उसने भारत सरकार से 1.72 अरब डालर की वसूली के लिये विदेशों में करीब 70 अरब डालर की भारतीय संपत्तियों की पहचान की है.

फ्रांस की अदालत द्वारा भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के सम्पत्ति को इस प्रकार जप्त कर एक विदेशी कंपनी के स्वामित्व में बदल देना, विश्व में भारत की छवि को हास्यास्पद और माखौल बनाती है. बीते 70 सालों में मोदी सरकार की यह पहली ‘उपलब्धि’ है, जब विश्व.गुरु बनने का झांसा देने वाली मोदी सरकार ने भारत की वैश्विक स्तर पर भारत की छवि खराब की है.

पत्रकार गिरिश मालवीय मोदी सरकार की इस ‘महान उपलब्धि’ पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि इस वाकया से ‘दुनिया भर में मोदी सरकार ने डंका नहीं बजवाया है बल्कि डोंडी पिटवा दिया है.’

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