मनीष आजाद
इस समय कतर में फुटबाल विश्व कप चल रहा है. 32 देशों की टीमें इस विश्व कप में हिस्सा ले रही हैं. करोड़ों लोग अपने टीवी स्क्रीन पर इस विश्व कप का आनन्द ले रहे हैं. पूंजीवादी मीडिया की मानें तो इस वक्त पूरी दुनिया में फुटबाल का बुखार चढ़ा हुआ है; पर इस बुखार के पीछे की वीभत्स कड़वी हकीकत पूंजीवादी मीडिया सारी दुनिया से छिपा रहा है.
यह कड़वी हकीकत यह है कि 2010 में कतर को 2022 के विश्वकप की मेजबानी मिलने के बाद से कतर, प्रवासी मजदूरों के शोषण-उत्पीड़न का अड्डा बन गया. कतर की 30 लाख की आबादी में मात्र 10 प्रतिशत स्थानीय निवासी हैं; शेष 90 प्रतिशत आबादी प्रवासी है. इसमें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल से लेकर फिलीपींस सरीखे देशों के मजदूरों की तादाद सबसे ज्यादा है.
इस विश्व कप के आयोजन के लिए कतर ने लगभग 200 अरब डालर खर्च कर 8 स्टेडियम, सैकड़ों होटल, मेट्रो रेल, हवाई अड्डों, अन्य ईमारतों के साथ लगभग पूरा एक नया शहर बसाने का काम किया. इस बड़े स्तर के निर्माण काम के दौरान बीते 11-12 वर्षों में लगभग 7,000 मजदूर मारे गये. इनमें से बड़ी संख्या भारत, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका सरीखे गरीब देशों के मजदूरों की है.
‘फीफा वर्ल्डकप’ पर मजदूरों के खून के छींटे हैं.
एक आंकड़ा देखिये –
भारत – 2,711
नेपाल – 1,641
बांग्लादेश – 1,018
पाकिस्तान – 824
उपरोक्त अप्रवासी मजदूर किसी युद्ध में नहीं, बल्कि कतर में ‘फीफा वर्ल्डकप’ की तैयारी के दौरान मारे गए. इसमें से ज्यादातर की मौतें वहां की अत्यधिक गर्मी से ‘हार्ट-अटैक’ से हुई. खेल अब खेल नहीं रहा, खूनी व्यापार हो गया है.
इन प्रवासी मजदूरों की दयनीय हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनसे 40-50 डिग्री सेन्टीग्रेड की भारी गर्मी में 12-12 घण्टे काम कराया जाता था. इस भयानक गर्मी में काम करने के दौरान अक्सर मजदूर चक्कर खाकर गिर जाते थे. ढेरों मजदूर तो इतने गर्म वातावरण में काम करने के चलते ही मौत के शिकार हो गये. इस पर भी कतर में मजदूरों की सुरक्षा के लिए बने श्रम कानून लागू ही नहीं किये जाते थे; मारे गये मजदूरों को कोई मुआवजा तक नहीं दिया जाता था.
फ्रांस-जर्मनी की रीयल स्टेट की नामी कम्पनियों ने फुटबाल के स्टेडियमों-होटलों के निर्माण का ठेका लिया था. उन्होंने मजदूरों के निर्मम शोषण में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. इतने बड़े पैमाने के निर्माण कार्य में बैंकों-वित्तीय कारपोरेशनों ने भी भूमिका निभायी.
इस तरह मौजूदा फुटबाल विश्व कप जिससे फीफा को अरबों डालर की कमाई की उम्मीद है, हजारों मजदूरों के खून-हड्डियों के ढांचे पर बने स्टेडियमों में खेला जा रहा है. प्रचार कम्पनियों-प्रसारण के अधिकार लेने वाले चैनल, होटलों के मालिक सभी इन हजारों गरीब मजदूरों की लूट के भागीदार थे.
पिछले दिनों फीफा के एक के बाद एक अधिकारी जिस तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त पाये गये, उससे यह बात आज पूरी तरह स्पष्ट है कि फुटबाल विश्व कप का आयोजन कहां होना है, इसके लिए बड़े पैमाने पर घूस, लाबिंग इत्यादि आम बात है. आज खेल महज मनोरंजन या फिर शारीरिक वर्जिश का जरिया होने के बजाय, कम्पनियों के मुनाफा कमाने का षड्यंत्र बन चुका है.
अलग-अलग कम्पनियां इस तरह के आयोजनों के जरिये भारी मुनाफा पीट रही हैं. वे प्रचार माध्यमों के जरिये दुनिया में इस तमाशे का बुखार चढ़ाती हैं और फिर बड़े पैमाने पर धंधा करती हैं. कतर को विश्व कप की मेजबानी मिलना एक अन्य कोण से पश्चिमी साम्राज्यवादियों के फायदे का रहा है.
कतर में अमेरिकी फौज का बड़ा सैन्य अड्डा है. इस अड्डे का इस्तेमाल इराक, सीरिया से लेकर लीबिया के खिलाफ किया गया. बीते दिनों अमेरिका के सहयोगी ‘सऊदी अरब’ व ‘कतर’ में युद्ध सरीखे हालात पैदा हो गये थे. ऐसे में कतर पर अपनी पकड़ मजबूत बनाये रखने व सऊदी-कतर दोनों शासकों को अपने पाले में रखने के लिए पश्चिमी साम्राज्यवादियों ने विश्व कप के मौके का इस्तेमाल करने की कोशिश की.
कतर में हुआ भारी निर्माण कार्य भविष्य में इसे साम्राज्यवादियों की ऐशगाह से लेकर सैन्य तैनाती में मददगार बनेगा. इससे पश्चिमी साम्राज्यवादी खासकर अमेरकी साम्राज्यवादी पश्चिमी एशिया पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने का प्रयास करेंगे.
कतर में हजारों प्रवासी मजदूरों की मौत के ऊपर खड़े स्टेडियमों में जो फुटबाल खेला जा रहा है, उसके बारे में साम्राज्यवादी मीडिया भी जब तब कुछ घड़ियाली आंसू बहाता रहा; पर सारे कुछ के बावजूद मजदूरों की कार्यपरिस्थितियों में सुधार, मृत मजदूरों को मुआवजे आदि का कोई इंतजाम नहीं किया गया. पूंजीवादी व्यवस्था की यही आज की सच्चाई है कि पूंजी जीवन के हर आयाम को अपने मुनाफे का जरिया बना चुकी है.
खेल, संगीत, वेशभूषा, नृत्य से लेकर ज्ञान तक कोई क्षेत्र इससे अछूता नहीं बचा है. सब कुछ कम्पनियों के नियंत्रण में व प्रायोजित सा है. इसीलिए इस विश्व कप का मैच देखते हुए चमचमाती इमारतों-स्टेडियमों में मजदूरों के बहे खून को, पूंजी द्वारा उन पर ढाये जुल्म को हर इंसाफपसंद शख्स को याद रखना चाहिए; ताकि वक्त आने पर खून के हर कतरे का हिसाब लुटेरे शासकों-साम्राज्यवादियों-कम्पनियों से किया जा सके.
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