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मुक्ति का सैलाब

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सबसे पहले मैं
माफ़ी मांगता हूं हज़रत हौव्वा से
मैंने ही अफ़वाह उड़ाई थी कि
उसने आदम को बहकाया था और
उसके मासिक धर्म की पीड़ा
उसके गुनाहों की सज़ा है
जो रहेगी सृष्टि के अंत तक
मैंने ही बोये थे
बलात्कार के सबसे प्राचीनतम बीज।

मैं माफ़ी मांगता हूं
उन तमाम औरतों से जिन्हें
मैंने पाप योनी में जन्मा हुआ घोषित करके
अज्ञान की कोठरी में धकेल दिया और
धरती पर कब्ज़ा कर लिया और
राजा बन बैठा और
वज़ीर बन बैठा और
द्वारपाल बन बैठा

मेरी ही शिक्षा थी यह बताने की कि
औरतें रहस्य होती हैं
ताकि कोई उन्हें समझने की
कभी कोशिश भी न करे
कभी कोशिश करे भी तो डरे,
उनमें उसे चुड़ैल दिखे

मैं माफ़ी मांगता हूं
उन तमाम राह चलते उठा ली गईं औरतें से
जो उठा कर ठूंस दी गईं हरम में
मैं माफ़ी मांगता हूं उन औरतों से
जिन्हें मैंने मजबूर किया सती होने के लिए
मैंने ही गढ़े थे वे पाठ
कि द्रौपदी के कारण ही हुई थी महाभारत
ताकि दुनिया के सारे मर्द
एक होकर घोड़ों से रौंद दें उन्हें
जैसे रौंदी है मैंने धरती

मैं माफ़ी मांगता हूं उन आदिवासी औरतें से भी
जिनकी योनी में हमारे राष्ट्र भक्त सिपाहियों ने
घुसेड़ दी थी बन्दूकें
वह मेरा ही आदेश था
मुझे ही जंगल पर कब्ज़ा करना था
औरतों के जंगल पर
उनकी उत्पादकता को मुझे ही करना था नियंत्रित

मैं माफ़ी मांगता हूं निर्भया से
मैंने ही बता रखा था कि
देर रात घूमने वाली लड़की बदचलन होती है और
किसी लड़के के साथ घूमने वाली लड़की तो
निहायत ही बदचलन होती है
वह लोहे की सरिया मेरी ही थी
मेरी संस्कृति की सरिया

मैं माफ़ी मांगता हूं आसिफ़ा से
जितनी भी आसिफ़ा हैं इस देश में
उन सबसे माफ़ी मांगता हूं
जितने भी उन्नाव हैं इस देश में,
जितने भी सासाराम हैं इस देश में,
उन सबसे माफ़ी मांगता हूं

मैं माफ़ी मांगता हूं अपने शब्दों और
अपनी उन मुस्कुराहटों के लिए जो
औरतों का उपहास करते थे
मैं माफ़ी मांगता हूं अपनी मां को
जाहिल समझने के लिए
बहन पर बंदिश लगाने के लिए
पत्नी का मज़ाक उड़ाने के लिए

मैं माफ़ी चाहता हूं
उन लड़कों को दरिंदा बनाने के लिए,
मेरी बेटी जिनके लिए मांस का निवाला है

मैंने रची है अन्याय की पराकाष्ठा
मैंने रचा है अल्लाह और ईश्वर का भ्रम
अब औरतों को रचना होगा
इन सबसे मुक्ति का सैलाब

  • फरीद ख़ान
    यह कविता उस समय की है जब आसिफा का बलात्कार हुआ था. उस समय की है जब उन्नाव और कठुआ केस चर्चा में आई,

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