Home लघुकथा पांच लघुकथाएं – चड्ढी

पांच लघुकथाएं – चड्ढी

1 second read
0
0
369

चड्डी – 1

प्रभु : हे वत्स चड्डी छोड़ पैंट क्यों धारण की ?

चडड्डीधारी : हे प्रभो ! उन वस्त्र में शर्म आती थी इसलिए त्याग दिया.

प्रभु : जब अपने विचारों से शर्म आने लगे तो उन्हें भी त्यागना मत भूलना. वैसे शर्म जल्दी तुम्हें आनेवाली नहीं. कल्याण भव !

चड्डी – 2

प्रभु : तुम्हारी चड्डी इतनी घेरदार क्यों है ?

चड्डीधारी : हे प्रभो ताकि स्वच्छ वायु का प्रवाह गतिमान बना रहे.

प्रभु : स्वच्छ वायु की आवश्यकता तुन्हारे दिमाग को है, इसलिए दिमाग के द्वार खोलो, चड्डी के नहीं. कल्याण भव !

चड्डी – 3

चड्डीधारी : हे प्रभो, चड्डी छोड़ के पैंट पहनने पर भी सब लोग हमें चड्डी कहकर चिढ़ाते क्यों हैं ?

प्रभु : हे चड्डीधारी, जैसे भारत देश की स्वतंत्रता के 60 साल बाद तिरंगा झंडा और राष्ट्रगान अपनाने से कोई सच्चा देशभक्त नहीं बन जाता, उसी तरह कोई चड्डी छोड़ के पैंट पहनने से विचार नहीं बदल जाते. लोग तुम्हारा सच जानते हैं, इसलिए तुम्हें चड्डी कहते हैं. सुखी रहो !

चड्डी – 4

प्रभु : हे वत्स तुम लोगों को यह चड्डी का आइडिया कहां से आया ?चड्डी तो स्वदेशी वस्त्र नहीं है.

चड्डीधारी : प्रभो आपसे क्या छिपा है, हमारे विचारों और हमारे इस वस्त्र का स्त्रोत हिटलर-मुसोलिनी से प्राप्त हुआ है.

प्रभु : परंतु ये तो विदेशी थे ?

चड्डीधारी : वसुधैव कुटुबंकम वाले हैं न हम ! अपने भाई-बंधुओं से प्रेरणा ग्रहण करना प्रभु अनुचित कैसे कहा जा सकता है ?

प्रभु : नहीं वत्स बिल्कुल नहीं. मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है कि तुम्हारी गति भी वही हो, जो उनकी हुई थी.

चड्डी – 5

प्रभु : हे वत्स मुझे कमल के फूल बहुत पसंद हैं लेकिन वह नहीं जो चड्डी पहन के खिलता है.

चड्डीधारी : इसलिए तो पैंट धारण की है प्रभो.

प्रभु : हूं पैंट में खिला कमल शोभा नहीं देता. सुंदर स्वाभाविक कमल तो वह होता है, जो पंक में खिलता है.

चड्डीधारी : हमारे दिमाग़ों में वही पंक तो भरा हुआ है प्रभो.

प्रभु : सत्य वचन: ख़ूब जिओ !

  • विष्णु नागर

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • आग का बीज

    एक छोटे गांव में एक विधवा स्त्री पेलाग्रे रहती थी, जिसका बेटा पावेल मजदूरों की हड़ताल में …
  • सोचेगा सिर्फ राजा…या फिर बागी, सोचना बगावत हुई

    मुखबिर की खबर पर, पुलिस बल थाने से निकला. सशस्त्र जवानों ने जंगल में उजाड़ खंडहर घेर लिया. …
  • आखिर बना क्या है फिर ?

    एक अप्रवासी भारतीय काफी समय बाद भारत वापस लौटता है. एयरपोर्ट पर उतरते ही उसको लेने आये अपन…
Load More In लघुकथा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

अप्रैल फूल दिवस 1 अप्रैल को क्यों मनाया जाता है ?

1 अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाने की परंपरा 1564 में फ्रांस में कैलेंडर परिवर्तन से जुड़ी प्रती…