पुष्परंजन, ईयू-एशिया न्यूज़ के नई दिल्ली संपादक
पूरी दुनिया शिंज़ो आबे की हत्या को लेकर सन्नाटे में है. हत्या का उद्येश्य अब भी अंघेरे में है.देसी कट्टे से हत्या, कोई अत्याधुनिक हथियार नहीं. 41 साल का हत्यारा तेतसुया यामागामी, ‘जापान मेरी टाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स’ में 2005 तक तीन साल काम कर चुका था. नारा शहर में बेरोज़गारी का जीवन व्यतीत कर रहा था तो हम ऐसा मान लें कि बेरोज़गारी की वजह उसने यह क़दम उठाया, या शिंजो आबे की सुपारी किसी ने उसे दी थी ? कौन हो सकते हैं वो लोग जिनके लिए शिंज़ो कांटे की तरह थे ? क्या उनकी हत्या से किसी को बहुत बड़ा राजनीतिक लाभ मिलने वाला था ?
बेशक शिंज़ो भारत को पसंद करते थे. भारतीय लिबास, खान पान उन्हें रास आता था. 2006 में जब वो जापान के चीफ कैबिनेट सेक्रेट्री बने, सबसे पहले भारत आये. 20 सितंबर 2006 को प्रधानमंत्री बनने के बाद 2007 में शिंज़ो आबे एक बार फिर भारत आये, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनके शैदाई हो चुके थे. शिंज़ो 2012 से 2020 के बीच तीन बार और भारत आये. 29 मई 2013 को मनमोहन सिंह टोक्यो गये, वह शिंजा़े का सेकेंड टर्म था. दोनों नेता बगलगीर हुए, गर्मजोशी बरकरार रही.
2014 में निज़ाम बदल गया, मगर शिंज़ो का भारत प्रेम अपनी जगह स्थिर था. प्रधानमंत्री मोदी से वो उतने ही ख़़ु़लूस से मिलते गये. अहमदाबाद से बनारस तक उनका स्वागत अविस्मरणीय था. मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना में शिंज़ो का योगदान उभयपक्षीय सहयोग को मज़बूती दे रहा था. जापान और भारत मिलकर ‘ब्राडर एशिया‘ बनायें, यह सोच रखा था शिंज़ो ने. शिंजा़े-मोदी के बीच संबंधों की मज़बूती का एक बड़ा कारण राष्ट्रवाद रहा है. मोदी की मनःस्थिति को पढ़ना हो, तो शिंज़ो को समझना होगा.
शिंज़ो आबे ने अपने पहले प्रधानमंत्री काल में कोजी ओमी को वित्तमंत्री बनाया था. कोज़ी ओमी नेशनल कंजमशन टैक्स के लिए कुख्यात हुए. जापान में उपभोक्ताओं की हालत ऐसी हो गई कि बस खुली हवा में सांस लेने पर टैक्स लगाना बाक़ी रह गया था. साल भर की शिंज़ो सरकार से जनता त्राहिमाम करने लगी.
इसका दुष्परिणाम 29 जुलाई 2007 को संसद के उपरी सदन के चुनाव में शिंज़ो आबे को भुगतना पड़ा. शिंज़ो की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा. उसके दो माह बाद आंत की बीमारी के बहाने शिंज़ो ने प्रधानमंत्री पद त्याग दिया लेकिन शिंज़ो की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी अपनी हर बुराई को राष्ट्रवाद के नाम से ढंकते रहने से बाज़ नहीं आई.
26 दिसंबर 2012 को शिंज़ो आबे जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, उनकी आर्थिक नीतियां यथावत रही. यकीरा अमारी उनके अर्थमंत्री नियुक्त हुए. लचीली राजकोषीय नीति, विकास दर वृद्धि और प्राइवेट पार्टनरशिप को आगे बढ़ाओ, इन तीन लक्ष्यों को लेकर शिंज़ो आबे आगे बढ़े. जनवरी 2013 के भाषण में उन्होंने अपनी आर्थिक नीतियों की व्याख्या करते हुए ‘आबेनाॅमिक्स’ की अवधारणा स्थापित कर दी. जैसे डाॅलर के मुक़ाबले रूपये की आज हालत है, ठीक वही हाल 2013 में येन का हो गया.
प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ख़राब अर्थव्यस्था के बावजू़द प्रतिरक्षा पर ख़र्च लगातार बढ़ाते चले गये. उनकी ट्रांस-पैसेफिक नीतियों की वजह से राजकोषीय घाटा और बढ़ चुका था. शिंज़ो आबे सरकार अप्रैल 2014 में कंजम्शन टैक्स पांच से आठ प्रतिशत पर ले गई, इससे जापानी उपभोक्ताओं की कमर टूटने लगी थी. 1990 से पहले जापान में कारपोरेट टैक्स 50 फीसद था, शिंज़ो आबे उसे 2012 में 40 प्रतिशत और 2014 आते-आते 30 प्रतिशत से कम पर ले आये.
2012 से 2020 तक सत्ता का जो दूसरा कालखंड था, उसमें शिंज़ो आबे इंडस्ट्री के प्रभाव में पूरी तरह थे. उसे केवल कारपोरेट टैक्स के माध्यम से समझा जा सकता है. 2018-19 में कारपोरेट टैक्स घटकर हो गया 23.2 फीसद. आम जनता पर कर लादे जाओ, और काॅरपोरेट जो 90 के दशक में 50 फीसद टैक्स देता था, उससे 23 प्रतिशत कर लो, यह सब केवल राष्ट्रवाद के अहंकार और उद्योग घरानों की शह पर हो रहा था. इंडस्ट्री से उनकी पार्टी के लिए ख़ूब पैसा आया. 1 अक्टूबर 2019 को शिंजो आबे सरकार की ओर से एक अधिसूचना जारी हुई, जिसमें कहा गया कि कारपोरेट टैक्स करदाता ‘नेशनल-लोकल टैक्स‘ अब से निर्धारित दर 10.3 प्रतिशत के अनुसार फाइल करेंगे.
नवंबर 2013 में शिंज़ो आबे ने एक बिल पास कर विद्युत व्यापार को पूरी तरह से लिबरलाइज़ कर दिया, जिससे बिजली कंपनियां मनचाहे दर पर बिजली बेचने लगी. 2015 आते-आते 500 से अधिक प्राइवेट कंपनियां जापान के रिटेल विद्युत मार्केट में आने के वास्ते अर्थ मंत्रालय में रजिस्टर्ड करा चुकी थी. जापान के घरेलू गैस व्यापार का भी ऐसा ही हाल था. 2013 में कैथी मत्सुई की सलाह पर शिंज़ो ने तय किया कि 2020 तक देश के हर शोबे में 30 फीसद महिलाओं को लीडरशिप पोजिशन पर लाएंगे. शिंज़ो ने इसका नाम दिया ‘वीमेनाॅमिक्स.’ कैथी मत्सुई उनकी पसंदीदा आर्थिक रणनीतिकार थीं, जिन्हें वो अमेरिका से ले आये थे. ‘आबेनाॅमिक्स’ सुनने में तो सुखद लगता था, मगर 2014 की तिमाही आते-आते जापान आर्थिक मंदी की चपेट में आ चुका था.
शिंज़ो आबे अपने सत्ता के दूसरे दौर में भांति-भांति के प्रयोग करने लगे थे. 2013 में नेशनल सिक्योरिटी कौंसिल की स्थापना शिंज़ो आबे ने अपने नेतृत्व में की. उसी साल शिंज़ो कैबिनेट ने संविधान को पुनर्मुद्रित करने का फ़ैसला लिया. उन्होंने ग्लोबल यूनिवर्सिटी प्रोग्राम के तरह विदेशी विश्वविद्यालयों की बाढ़ लगा दी. शिंज़ो आबे ने अपने पहले कार्यकाल में पाठ्यक्रम सुधार कार्यक्रम की शुरूआत कर दी थी.
स्कूली पाठ्यक्रमों में राष्ट्रवाद की घुट्टी पिलाने के साथ-साथ युद्ध में जापानियों के साथ जितने जु़ल्म हुए, वो सब इतिहास लेखन का हिस्सा बना. मगर, युद्ध अपराधियों की चर्चा से जापान शिंजो के समय भी बचता रहा. शिंजो पार्ट-टू शासन में जापान की ऐतिहासिक विभूतियों के हवाले से गौरवगान की शुरूआत हुई, ताकि देश का ध्यान उसी में उलझा रहे. ‘जैपनिज़ सोसाइटी फाॅर हिस्ट्री टेक्सट् बुक रिफार्म’ जैसा महकमा इस वजह से काफी कुख्यात हुआ, उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होने लगे.
सितंबर 2020 में शिंज़ो आबे ने एक बार फिर आंत में तकलीफ की वजह से सत्ता का परित्याग किया, मगर उनकी नीतियों की निरंतरता न टूटे, इस दृष्टि से अपने परवर्ती योशिहिदो सुगा और उनके बाद इस समय के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा पर पूरा नियंत्रण रखा. गोकि, शिंज़ो आबे की छवि किंगमेकर वाली रही थी, चुनांचे भय या प्रीत से ग्रस्त सेंट्रल मिनिस्ट्री के शीर्ष नौकरशाह उनके हुजरे में सलाम बजाने ज़रूर जाते थे. रविवार 10 जुलाई 2022 को उपरी सदन का चुनाव है, शिंज़ो आबे हर प्रमुख जगहों पर कैंपेन के लिए जा रहे थे. जापान का प्रमुख नगर नारा भी उन्हीं में से एक था, जहां शुक्रवार सुबह साढ़े ग्यारह बजे हत्याकांड हुआ.
शिंज़ो आबे सत्ता में नहीं थे, मगर प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा पर इसका दबाव बनाये रखा था कि अगले पांच वर्षों तक रक्षा ख़र्च को डबल करने का जो अहद उन्होंने कर रखा था, उसमें कोई कमी नहीं आनी चाहिए. तो क्या शिंज़ो आबे किसी हथियार लाॅबी के प्रेशर की वजह से फुमियो किशिदा के सिर पर सवार थे ? आबे जिन वित्तीय नीतियों की वकालत करते रहे, उसे पूरा करने में प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के पसीने छूट रहे थे.
गुज़रे वित्त वर्ष में जो लक्ष्य था, वह लुढ़क चुका था. फुमियो किशिदा इस उहापोह में भी रहे थे कि अगली बार प्रधानमंत्री पद के लिए शिंज़ो आबे उनके नाम को प्रस्तावित करते हैं, या किसी और चेहरे को सामने ले आयेंगे. अपर हाउस के चुनाव के बाद कैबिनेट में बड़ा बदलाव होना था, जिसमें शिंज़ो अपने कठपुतलियों को अधिकाधिक जगह दिलवाते. किशिदा के लिए यह डगर कठिन होती जा रही थी, और शिंज़ो आबे कहीं न कहीं कांटे की तरह चुभने लगे थे.
शिंज़ो आबे सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सबसे ताक़तवर समूह ‘सीवा सीसाकू केन्कुकाई’ के चोबदार रहे थे. लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के सात गुटों में सबसे प्रभावी ‘सीवा सीसाकू केन्कुकाई’ को ही माना जाता है. इनके 93 सांसदों को शिंज़ो आबे नियंत्रित करते रहे थे, इसलिए फुमियो किशिदा परेशान थे. ‘सीवा सीसाकू केन्कुकाई’ गुट पूर्व प्रधानमंत्री ताकियो फुकुदा की वजह से 1979 में अस्तित्व में आया.
1986 में शिंज़ो आबे के पिता शिंतारो आबे जब विदेश मंत्री का पद संभाल रहे थे, उन्हीं दिनों ‘सीवा सीसाकू केन्कुकाई’ के वो अध्यक्ष बन गये, उसके बाद से ही यह समूह ‘आबे लाइन’ और ‘फुकुदा लाइन’ में बंटा हुआ है. इस समय एलडीपी जनरल कौंसिल के अध्यक्ष तात्सुओ फुकुदा हैं, जो पूर्व प्रधानमंत्री ताकियो फुकुदा के पोते हैं. शिंजो़ आबे के नाना नोबुसुके किशी 1957 से 1960 तक जापान के प्रधानमंत्री रहे थे. मतलब ये कि जापान में सत्ता राजनीतिक वंशवादियों के गिर्द रही है.
इस सच को तो स्वीकार कर लेना चाहिए कि शिंज़ो आबे के आगे लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के शेष नेताओं की लकीर छोटी पड़ रही थी. क्वाड शिंज़ो आबे की ही देन है, जिसने अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनकी छवि को विराट स्वरूप दिया था. 10 नवंबर 2014 को चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से शिंज़ो आबे ने पेइचिंग स्थित ‘द ग्रेट हाल ऑफ़ चाइना’ में मुलाक़ात की थी. दोनों पक्षों ने चार सूत्री सहयोग का संकल्प किया था.
2019 में भी शिंजो और शी, पेइचिंग में मिले थे. इन ऐतिहासिक मुलाक़ातों को लेकर टोक्यो और पेइचिंग में कई नेताओं की भृकुटियां तनी थीं. तब दोनों तरफ एक मज़बूत लीडरशिप की वजह से विरोध के स्वर दब से गये लेकिन बीच में ताइवान पर शिंज़ो आबे की टिप्पणी ने चीन को नाराज़ कर दिया था, जब उन्होंने ललकारते हुए कहा था कि ताइवान पर हमला चीन के लिए आत्मघाती होगा. शी चिनफिंग 2020 में जापान जाने वाले थे, मगर कोविड की वजह से उनका जाना स्थगित हो गया.
क्या शिंज़ो आबे के बाद एशिया-प्रशांत नीति और चीन से साफ्ट होते संबंधों के आगे बढ़ने की संभावना है ? यह विषय स्वतंत्र जापान की लीडरशिप के स्वभाव को समझने तक बरकरार रहेगा. लेकिन सवाल फिर वहीं आकर टिकता है कि शिंजा़े आबे की हत्या से जापान में किन राजनीतिक तत्वों को फायदा मिलने वाला है ? इस लोमहर्षक कांड को लेकर जो जांच चल रही है, क्या सही दिशा में है, और उसके निष्पक्ष परिणाम की हम उम्मीद करें ?
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