फासिस्ट ताकतें सड़ांध पूंजीवादी व्यवस्था, जो पककर साम्राज्यवादी आदमखोर में बदल चुका होता है, को जीवन देने वाली वह कीड़ा है जो कम्युनिस्ट आंदोलन के कब्र पर पनपता है. दूसरे शब्दों में कहा जाये तो पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ उठे क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन अगर पूंजीवादी व्यवस्था का तख्तापलट कर समाजवादी व्यवस्था की नींव नहीं डालती है, या किसी भी कारण से सत्ता पर कब्जा नहीं कर पाती है, और मरने लगती है तब फासिस्ट ताकतें पैदा होती है और पूंजीवाद को नया जीवन देती है.
दुनिया के तमाम देशों में जहां फासिस्ट कीड़े पनपे हैं, वहां का इतिहास इसका गवाह रहा है. इसके साथ ही एक बार सत्ता पर काबिज हो जाने के बाद फासिस्ट कीड़ों को सत्ता से तबतक नहीं हटाया जा सकता है जब तक की उसका समूल सफाया न कर दिया जाये. इसके लिए मुसोलिनी और हिटलर का उदाहरण सामने है और भारत में भी मौजूद फासिस्ट सत्ता के साथ भी यही बात विगत चुनावों के दौरान साबित हुआ है.
भारत की ही तरह दुनिया भर में फासीवाद चुनाव के जरिये आता जरुर है लेकिन उसे चुनाव के जरिए हटाया नहीं जा सकता. इसका सर्वोत्तम उदाहरण हम उत्तर प्रदेश के चुनाव में देख चुके हैं, जहां उसने चुनाव के जरिये सत्ता से हटने की आशंका को देखते हुए नरसंहार की धमकी देने के साथ साथ करीब 20 लाख ईवीएम मशीन को ही बदल दिया ताकि उसे सत्ता से हटाने की तमाम कोशिशें विफल हो जाये.
जर्मनी में फासीवाद का उदय
हिटलर का जन्म 1889 में हुआ था और उसकी युवावस्था गरीबी में बीती थी. प्रथम विश्व युद्ध में उसने सेना की नौकरी पकड़ ली और तरक्की करता गया. युद्ध में जर्मनी की हार से वह दुःखी था लेकिन वर्साय संधि द्वारा जर्मनी पर लगाई शर्तों के कारण उसका गुस्सा और बढ़ गया था. 1919 में वह जर्मन वर्कर्स पार्टी नामक एक छोटी पार्टी में शामिल हुआ, बाद में हिटलर ने उसी पार्टी पर कब्जा कर लिया और उसका नाम बदलकर नेशनलिस्ट सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी कर दिया. इसी पार्टी को हम नात्सी पार्टी या नाजी पार्टी के नाम से जानते हैं.
1923 में हिटलर ने बर्लिन पर कब्जा करने का असफल प्रयास किया. उसे बंदी बना लिया गया, उस पर देशद्रोह का मुकदमा चला लेकिन बाद में उसे रिहा कर दिया गया. 1930 के दशक के शुरुआती वर्षों तक नात्सियों को लोकप्रिय समर्थन नहीं मिल पाया था. 1928 में नात्सी पार्टी को केवल 2.8% वोट मिले थे लेकिन 1932 में 37% वोट के साथ यह सबसे बड़ी पार्टी बन गई.
राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग नें 30 जनवरी 1933 को हिटलर को चांसलर का पद संभालने का न्यौता दिया. यह मंत्रिमंडल का सर्वोच्च पद होता था, जैसे हमारे देश में प्रधानमंत्री का पद होता है. सत्ता हाथ में आते ही हिटलर ने लोकतांत्रिक शासन की संरचना को तहस नहस करना शुरु कर दिया.
जर्मनी की संसद में फरवरी में एक रहस्यमयी आग लगी जिससे हिटलर का रास्ता साफ हो गया. 28 फरवरी 1933 को एक फायर डिक्री की घोषणा हुई. उस अध्यादेश के अनुसार, कई नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया. उसके बाद हिटलर ने अपने धुर विरोधियों (कम्यूनिस्ट) पर काम करना शुरु किया. अधिकतर कम्यूनिस्टों को नये नये बने कंसंट्रेशन कैंपों में बंद कर दिया गया. आंकडों के अनुसार करीब 40 हजार कम्युनिस्टों की हत्या की गई और डेढ़ लाख कम्युनिस्टों को कंसंट्रेशन कैम्प में डालकर सड़ा दिया गया.
कहा जाता है कि यदि तमाम हिटलर विरोधी पार्टियां एकजुट होकर हिटलर की नाजी पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ती तो हिटलर को चुनाव के माध्यम से भी रोका जा सकता था, लेकिन सुधारवादी कम्युनिस्ट पार्टियों और अन्य घड़ों के अन्तर्कलह ने हिटलर को सत्ता पर कब्जा करने का अवसर दिया. एक बार सत्ता पर कब्जा करने के बाद उसने तमाम संवैधानिक संस्थाओं को खत्म कर खुद को सर्वोच्च घोषित कर अपने तमाम विरोधियों को मौत के घाट उतार दिया.
जर्मनी में चुनाव परिणाम
संघीय चुनाव
चुनाव | वोट | सीटों | टिप्पणियाँ | |||
---|---|---|---|---|---|---|
नहीं। | % | +/- | नहीं। | +/- | ||
1920 | 589.454 | 2.1 (संख्या 8) |
4 / 459 |
पिछले चुनाव का बहिष्कार किया | ||
मई १९२४ | ३.६९३.२८० | 12.6 (नंबर 4) | 10.5 |
62/472 |
58 | USPD के वामपंथी के साथ विलय के बाद |
दिसंबर 1924 | २.७०९.०८६ | 8.9 (नंबर 5) | 3.7 |
45/493 |
17 | |
१९२८ | 3.264.793 | 10.6 (नंबर 4) | १.७ |
५४ / ४९१ |
9 | |
1930 | 4.590.160 | 13.1 (नंबर 3) | 2.5 |
77/577 |
23 | आर्थिक संकट के बाद |
जुलाई 1932 | 5.282.636 | 14.3 (नंबर 3) | 1.2 |
८९ / ६०८ |
12 | |
नवंबर 1932 | 5.980.239 | 16.9 (नंबर 3) | 2.6 |
१०० / ५८४ |
1 1 | |
मार्च 1933 | ४.८४८.०५८ | 12.3 (नंबर 3) | 4.6 |
८१ / ६४७ |
19 | जर्मनी के चांसलर के रूप में हिटलर के कार्यकाल के दौरान |
1949 | 1.361.706 | 5.7 (नंबर 5) | 6.6 |
15 / 402 |
66 | पहला पश्चिम जर्मन संघीय चुनाव |
१९५३ | 607.860 | २.२ (संख्या ८) | 3.5 |
0 / 402 |
15 |
स्त्रोत : https://www.hmoob.in/wiki/Communist_Party_of_Germany
इटली में फासीवाद का उदय
मुसोलिनी का जन्म रोमाग्ना में 1883 ई. में हुआ. उसकी मां एक शिक्षिका एवं पिता क्रांतिकारी व समाजवादी विचारधारा के थे. मां की तरह मुसोलिनी भी पहले अध्यापक बना, बाद में वह समाजवादी विचारधारा से प्रभावित हुआ. बाद में हिटलर की भांति वह भी फौज में भर्ती हुआ.त्रप्रथम विश्व युद्ध के पश्चात मुसोलिनी फासीवादी बन गया और फासीवादी दल का गठन किया.
युद्ध-काल में इटली की जनता रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रभावित हुई थी. इटली के कम्यूनिस्टों ने भी अपने देश में रूस जैसी क्रांति करने की योजना बनायी. मुसोलिनी साम्यवादियों तथा बोल्शेविकों से घृणा करता था. अत: उसने बोल्शेविकों के विरूद्ध संघर्ष करने तथा सामाजिक अधिकारों को पुन: स्थापित करने के लिए नवीन दल का गठन करने का निश्चय किया. इसी निश्चय के आधार पर मार्च 1919 ई. में फासिस्ट दल की स्थापना की गई.
मुसोलिनी के नेतृत्व में इस दल ने अत्यधिक लोकप्रियता हासिल की तथा सेवानिवृत्त सैनिकों, समाजवादियों, विद्यार्थियों, किसानों, मजदूरों, पूंजीपतियों तथा मध्यम वर्ग के व्यक्तियों ने बड़े उत्साह के साथ फासिस्ट दल की सदस्यता को स्वीकार किया. मुसोलिनी ने अपनी योग्यता व कुशलता के द्वारा दल के सभी सदस्यों को एकता व संगठन के सूत्र में बांधने में सफलता प्राप्त की. मुसोलिनी अपने दल का चीफ कमाण्डर था.
फासिस्ट दल का कार्यक्रम और मांगपत्र इटली की जनता में शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया और इस दल की सदस्य-संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी. सन् 1919 में फासिस्ट दल की सदस्य-संख्या सत्रह हजार थी, किन्तु यह संख्या सन् 1920 में बढ़कर तीस हजार तथा सन् 1922 में तीन लाख हो गयी. इस उल्लेखनीय लोकप्रियता को प्राप्त करने के बाद फासिस्टवादियों ने इटली में समाजवादियों एवं साम्यवादियों के कार्यालयों पर कब्जा करना प्रारंभ कर दिया. किन्तु तत्कालीन सरकार फासिस्टवादियों की आक्रामक व आतंकवादी नीति पर काबू पाने में सफल नहीं हो सकी.
इसी मध्य अक्टूबर 1922 ई. में फासिस्ट दल का अधिवेशन नेपिल्स में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में लगभग पचास हजार कायर्ताओं ने भाग लिया. उन्होनें सर्वसम्मति से एक मांगपत्र पारित किया जिसमें मागें थीं –
- फासीवादी दल के कम से कम पांच सदस्यों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाय.
- नवीन चुनावों की घोषणा की जाय.
- सरकार प्रभावी विदेश-नीति का पालन करे.
इस अधिवेशन में लिये गये निर्णय के अनुसार फासिस्ट दल ने सरकार को उपर्युक्त मांगें स्वीकार करने के लिए 27 अक्टूबर तक का समय दिया तथा यह चेतावनी दे दी कि उक्त तिथि तक मांगें स्वीकार न होने की स्थिति में फासिस्ट दल के स्वयंसेवक इटली की राजधानी रोम पर आक्रमण कर देगें. सरकार द्वारा उपर्युक्त मांगों को स्वीकार करने से इन्कार करने के फलस्वरूप फासिस्टवादियों ने मुसोलिनी के नेतृत्व में रोम की तरफ बढ़ना प्रारभ कर दिया. उन्होंने रेलवे स्टेशनो, डाकघरों व सरकारी कार्यालयों पर अधिकार कर लिया.
सम्राट विक्टर इमेजयुअल तृतीय ने भयभीत होकर मुसोलिनी के समक्ष देश का प्रधानमंत्री पद संभालने का प्रस्ताव रख दिया. 30 अक्टूबर को मुसोलिनी ने अपने दल के पचास हजार स्वयंसेवकों सहित रोम में प्रवेश किया और वह देश का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. इटली के इतिहास में यह एक रक्तहीन क्रांति थी.
भारत में फासीवाद का उदय
यह भी विचित्र विडम्बना है कि भारत में कम्युनिस्ट पार्टी और फासीवादी पार्टी (आर एस एस) का गठन एक ही वर्ष 1925 में हुआ. भारत की कम्युनिस्ट पार्टी अपने शुरुआत से ही ढुलमुल रवैया अपनाया, जबकि फासीवादी पार्टी आरएसएस ने अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रवैया अपनाते हुए तमाम झूठे-सच्चे वादों को दुहराते हुए अंततः 2014 में देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया. एक बार देश की सत्ता पर कब्जा करने के बाद इसने खुद को मजबूत करने के लिए चुनौतीपूर्ण तमाम संवैधानिक संस्थानों को कमजोर कर दिया और वहां अपने दल्ले बिठा दिया.
देश की सत्ता पर बैठे यह फासिस्ट ताकतों देश के तमाम बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, राजनीति सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाने पर लेकर हिटलर की भांति षड्यंत्र (मोदी की हत्या करने के नाम पर) कर जेलों में बंद कर दिया. एक 84 वर्षीय बुजुर्ग (फादर स्टेन स्वामी) की हत्या तक कर दी. वहीं, कॉरपोरेट घरानों के हाथों देश के तमाम संपदाओं का बेचा जा रहा है.
फासिस्ट सरगना नरेन्द्र मोदी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘कम्युनिस्ट बेशक बेहद कमजोर है और वह देश के एक हिस्से में सिमट गया है, लेकिन यह बेहद खतरनाक विचारधारा है. इसके खिलाफ लड़ना होगा.’ मोदी का यह बयान इसके खतरनाक इरादों को जाहिर करता है. यह दीगर है कि हिटलर और मुसोलिनी जैसे खूंखार हत्यारों के इतनी जल्दी और इतने बुरे दिन अंत से सबक लेते हुए भारतीय फासिस्ट अभी कम्युनिस्टों के नरसंहार के लिए तैयार नहीं है, लेकिन ज्यों ही वह खुद को सक्षम बना लेगा, वह पिल पड़ेगा. फिलहाल तो वह मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रहा है, लेकिन उसका असली निशाना कम्युनिस्ट ही है.
भारतीय फासिस्ट आरएसएस ने पहले तो मुसोलिनी के तर्ज पर सेना को भड़काकर सत्ता पर काबिज होना चाहा था लेकिन यह उसके बूते से बाहर साबित हुआ तब उसने हिटलर का चुनावी तरीका आजमाया और इसमें वह सफल भी हुआ.
चुनाव के माध्यम से भारत की सत्ता पर कब्जा करने के तरीके का खुलासा करते हुए नरेन्द्र मोदी ही एक इंटरव्यू में कहता है – पहले चुनावों में हार गये थे लेकिन फिर भी संघ कार्यालय में मिठाई बंट रही थी. मुझे आश्चर्य हुआ. पूछा कि हम तो चुनाव हार गये हैं. एक भी सीट नहीं जीते फिर भी मिठाई क्यों बांट रहे हैं ? मिठाई बांटनेवाले ने बताया कि इस बार हमारे चार उम्मीदवार का जमानत जप्त नहीं हुआ. पहले सबका जमानत जप्त हो जाता था. चार उम्मीदवार के जमानत जप्त नहीं होने की खुशी में हम मिठाई बांट रहे हैं.’ मोदी का यह इंटरव्यू बताता है कि संघी कितने धीरज के साथ चुनाव के माध्यम से सत्ता पर कब्जा करने का ‘दीर्घकालिक’ योजना के तहत काम किया.
फासीवाद का अंत
विफल कम्युनिस्ट क्रांति, जो संशोधनवादी और सुधारवादी बन गया, जब देश की सत्ता पर कब्जा नहीं कर सका, फलतः फासीवाद ने जबरन सत्ता पर कब्जा कर उन तमाम कम्युनिस्ट सुधारवादियों का सफाया कर दिया, जिसने सत्ता पर कब्जा करने के लिए क्रांतिकारी बदलाव में आनाकानी की या विलम्ब किया. सत्ता पर एक बार कब्जा करने के उपरांत इन फासीवादियों ने न केवल न केवल विरोधियों खासकर कम्युनिस्टों को ठिकाने लगाया अपितु पूरी दुनिया को संकट में ला खड़ा किया और करोड़ों मनुष्यों के मौत का कारण बना.
इस सब कुछ होने के बाद भी इन फासीवादी ताकतों को किसी भी शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता से कभी भी विलग नहीं किया जा सका, एक विराट युद्ध, जिसमें केवल सोवियत जनता ने अपने दो करोड़ बेटों को खोया, जिसका नेतृत्व स्वयं सर्वहारा के चौथे महान शिक्षक स्टालिन कर रहे थे, ने किया. जिसके बाद हिटलर खुद जहर खाकर (पश्चिमी मीडिया ने गोली मारने की बात लिखी है, जबकि उसकी मौत जहर खाने से हुई थी) मर गया तो वही मुसोलिनी को भागने के क्रम में सैनिक दस्तों ने पीटपीटकर मार डाला.
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