पिछले 10 महीनों से लगातार चल रहे किसान आन्दोलन देश और समाज को कितना राजनीतिक रूप जागरूक कर पाती है यह तो बाद की बात है लेकिन जो चीज साफ समझ में आ रही है वह यह है कि मोदी सरकार जो शुरु में किसान आन्दोलन से घबराई हुई थी और अपने बचाव के लिए ऊंची-ऊंची कंटीले कंक्रीट की दीवार बना रही थी, अब वह किसान आन्दोलन से निपटने के लिए हिंसक तौर तरीके अपना रही है.
अब किसानों को आतंकवादी, खालिस्तानी, चोर, मवाली, माओवादी आदि जैसे दुश्प्रचार से आगे बढ़कर किसानों पर हमलावर हो गया है. 700 किसानों की शहादत के बाद अब वह पुलिस से जानलेवा हमला करवा कर उनकी हत्या कर रही है.
कहना नहीं होगा कि हरियाणा के करनाल जिले में आंदोलनकारी किसानों पर पिछले शनिवार को हुए पुलिस की बर्बरता व लाठीचार्ज के बाद एक किसान की शहादत हो गई. शहीद किसान भी प्रदर्शन में शामिल थे और पुलिस की बर्बर पिटाई का शिकार भी हए, जिस कारण रात को इसकी मौत हो गई. पचास वर्षीय शहीद किसान सुशील काजल करनाल जिले के रायपुर जाटान गांव के है और वे कई महीनों से किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहे थे.
इसके उलट अफगानिस्तान में हथियारबंद तालिबान को जिसे यह सरकार अमेरिकी चापलूसी में आतंकवादी का तगमा बांटती फिरती थी, अब जब अमेरिका भाग गया है, तब यह चापलूस मोदी सरकार उस तालिबान से दो दो हाथ करने की जगह अब उसकी चापलूसी में जुट गया है और अब ‘बदलता तालिबान’ का तगमा देकर उसे मान्यता प्रदान करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.
एक ही वक्त घट रही इन दो घटनाओं ने कायर और छिछोरा हिन्दुत्ववादी राष्ट्रवाद के नाम पर सत्ता में काबिज संघी राष्ट्रवादी का विकृत चेहरा उजागर कर दिया है. और वह चेहरा है ताकतवर के सामने पूछ हिलाने, उसकी जूता चाटने और शांतिपूर्ण न्याप्रिय आन्दोलन पर पुलिसिया हमला कर उसकी हत्या करना.
कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अगर यही किसान जनसमुदाय तालिबान की ही तरह हथियार उठा ले और मोदी सरकार पर हमलावर हो जाये तो यह सरकार अफगानिस्तान की गनी सरकार की तरह देश छोड़कर भागने के बजाय दो मिनट में किसानों के ऊपर फिकरा कसने के बजाय तलबे चाटने लगेगा, और सारी मांगें मान लेगा.
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने अगले ही दिन को ट्वीट कर कहा, ‘भाई सुशील काजल जो डेढ़ एकड़ के किसान थे, नौ महीने से आंदोलन में अपनी हिस्सेदारी दे रहे थे. कल (शनिवार) करनाल टोल प्लाजा पर पुलिस ने जो लाठियां चलाई थीं, उनको बहुत चोट आई थीं और रात को हार्ट फेल होने के कारण शरीर त्याग कर भगवान को प्यारे हो गए. किसान कौम इनके बलिदान की सदा आभारी रहेगी.’
मोदी सरकार के इशारे पर एसडीएम ने दिया हत्या का आदेश
एक बार जब केन्द्र की संघी मोदी सरकार यह समझ गई की किसान आन्दोलन किसी भी कीमत पर सशस्त्र आन्दोलन में तब्दील नहीं होगी तब एक ओर तो उसने उसे किसी भी प्रकार से तरजीह देने की जरूरत तो नहीं ही समझी, उल्टे अब उनकी हत्या करने का इशारा भी कर दिया है. मालूम हो कि पिछले 9 महीनों में 700 किसान शहीद हो गये हैं, और अब जानलेवा पुलिसिया हमलाकर किसानों की हत्या पर उतारु हो गया है.
प्रदर्शनकारी किसानों पर पुलिस के लाठीचार्ज के बाद करनाल के सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) आयुष सिन्हा का एक वीडियो सामने आया, जिसमें वह पुलिसकर्मियों को प्रदर्शनकारियों की पिटाई, जो असल में हत्या करने का आदेश है, के निर्देश देते दिखाई दिए. इस वीडियो में एसडीएम द्वारा प्रदर्शनकारियों का सिर फोड़ने का पुलिसकर्मियों को निर्देश देते सुना जा सकता है. निश्चित तौर पर एक एसडीएम की यह औकात नहीं होती जब तक कि उसको केन्द्रीय संरक्षण या आदेश प्राप्त न हो जाये.
किसान की मौत के बाद विरोध तेज पर सरकार को कोई मतलब नहीं
इस बर्बर पुलिसिया बर्बरता की तस्वीरें – खून से लथपथ पुरुषों और सिर पर गंभीर चोट वाली तस्वीर और वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित होने लगी, पर किसी भी स्तर की सरकार ने इस हत्या की निंदा करना तो छोड़िये, समर्थन किया. हलांकि किसान आन्दोलनकारी पुलिस की इस कार्रवाई की निंदा करते हुए किसानों ने राजमार्ग और टोल प्लाजा ब्लॉक जरूर कर दिए थे.
सरकार अब किसान आंदोलन को दबाने के लिए खुल कर टकराव की स्थिति में आ गई है. पुलिस द्वारा अनुचित बल प्रयोग इसी का नतीजा है. हरियाणा से शुरुआत हुई है और इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब की बारी है.
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