सिर पर सत्ता का हाथ, पैसा और थाली में परोसा गया 34 करोड़ उपभोक्ताओं का बाजार, सामने इतना देखकर किस कंपनी का दिल न ललचाएगा. फेसबुक और मोदी सरकार के गठजोड़ का किस्सा ऐसा ही है. बीते 6 साल में दोनों एक-दूजे के कुछ यूं हो चुके हैं कि मामला का सीबीएसई पाठ्यक्रम तैयार करने तक पहुंच चुका है.
जी हां. फेसबुक की घुसपैठ सिर्फ गृह मंत्रालय तक ही नहीं, बल्कि महिला बाल विकास और आदिमजाति मंत्रालय तक हो चुकी है. कांग्रेस समर्थित 700 पृष्ठों की सामग्री पर पाबंदी लगाने के एवज में बीजेपी से फेसबुक को बीते फरवरी से 4.60 करोड़ रुपये दिए. फेसबुक का अपना ही डेटा इसकी तस्दीक करता है.
मित्र मंडली ‘आर्टिकल 14’ की पड़ताल कहती है कि इसमें से काफी सारे पैसा पिछले आम चुनाव से पहले बीजेपी से सीधे जुड़े 5 ऐसे पेज से आया, जिन्होंने न्यूज़ एंड मीडिया का तमगा लगाया हुआ है. नेशन विथ नमो, माय फर्स्ट वोट फ़ॉर मोदी और भारत के मन की बात- इन तीनों के खाते में फरवरी 2019 से फेसबुक को मिले 16 करोड़ के राजनीतिक विज्ञापन का 25% हिस्सा आता है. ये फेसबुक के टॉप 10 विज्ञापनदाताओं में से हैं.
अगर आपके पास दुष्प्रचार के लिए करोड़ों रुपये हैं तो फेसबुक आपके सामने बिछ जाएगा. वह यह भी नहीं देखेगा कि तीनों विज्ञापनदाताओं के पते 6-ए, दीनदयाल मार्ग, नई दिल्ली के ही हैं, जो बीजेपी का मुख्यालय है.
फीयरलेस इंडियन नाम का एक और पेज अयोध्या में भूमि पूजन के फौरन बाद मोदी को हनुमान बना देता है. बेंगलुरु के दंगों के वक़्त एक स्केच दिखता है, जिसमें टोपी पहने एक शख्स शहर को आग लगा रहा है. फेसबुक की मेहरबानी से इस पेज के 6 लाख फॉलोवर्स हैं.
आप खुद यह देखकर हैरान होंगे कि आपके करीबी मित्र भी इन फ़र्ज़ी पेजेस को फॉलो करते हैं. उनमें से कई तो फंसे हुए और बहुत से छिपे हुए दोस्त हो सकते हैं, जो असल में ‘हमदर्द’ हैं. (स्क्रीनशॉट से पड़ताल करें)
साष्टांग बिछ जाने के बाद मेहरबानियों का एक दौर चल पड़ता है. मई, 2020 में आदिम जाति मामलों के मंत्रालय ने फेसबुक के साथ मिलकर गोइंग ऑनलाइन एस लीडर्स प्रोग्राम शुरू किया. फेसबुक और व्हाट्सएप्प की मदद से 5000 युवकों को डिजिटल साक्षरता सिखाने के नाम पर क्या सिखाया गया होगा ? ज़रा सोचिए.
जुलाई 2020 को सीबीएसई ने फेसबुक के साथ साझेदारी कर डिजिटल सुरक्षा और ऑनलाइन बेहतरी के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने का निर्णय लिया है. 10 हज़ार शिक्षक और 30 हज़ार बच्चों की ट्रेनिंग होगी, शायद बीजेपी के लिए.
राष्ट्रीय महिला आयोग तो 2018 में ही विश्वविद्यालयों की 60 हज़ार लड़कियों को इंटरनेट के सुरक्षित उपयोग के नाम पर फेसबुक से ट्रेनिंग दिलवा चुका है. कहांं हैं नारीवादी महिलाएं ?
फेसबुक जितना देखा जाएगा, उतना उसे बाजार मिलेगा. मोदी सरकार तमाम नियम-कायदों को ताक पर रखकर सरकारी पैसे से फेसबुक को बाजार परोस रही है. यह बाजार अभी 34 करोड़ उपभोक्ताओं का है. यानी मोदी सरकार के पास प्रोपगेंडा और पब्लिसिटी के नाम पर लुटाने के लिए पैसा सिर्फ गोदी मीडिया ही नहीं, बल्कि अब फेसबुक के लिए भी है, बदले में दोनों एक-दूसरे का साथ देते हैं.
कोरोना की महामारी में फेसबुक ने चुपके से मोदी सरकार के 11 विभागों के साथ व्हाट्सएप्प आधारित कोरोना हेल्पलाइन बनाने के नाम पर साझेदारी की है. 9 और राज्य सरकारें फेसबुक के मैसेंजर का उपयोग कर रही हैं. फिर फेसबुक क्यों नफरती पोस्ट और सामग्री के ख़िलाफ़ आपकी शिकायतों पर कार्रवाई करेगा ?
ये मामला सिर्फ आंखी दास की “कर्तव्यपरायणता” का ही नहीं है. वे तो सिर्फ एक माध्यम हैं, जो अभी अपना खाता बंद कर चुप बैठी हैं. असल खेल तो सैनफ्रांसिस्को से हुआ है, जहां सीईओ मार्क ज़करबर्ग बैठते हैं.
आपको जानकर हैरत होगी कि इस तरह के गोराखधंधे को फेसबुक का अपना ही नियम ‘समन्वित अनैतिक व्यवहार’ मानता है लेकिन यह नियम उनके लिए, यानी बीजेपी के लिए नहीं है जो पैसा और बाजार दोनों मुहैया करवा रहा है. ये नियम हम जैसे सच बोलने वालों के लिए है, जो सारे प्रमाणों, तथ्यों और तर्कों के साथ पोस्ट करते हैं, जिससे बीजेपी और आरएसएस को दिक्कत होती है और फेसबुक हमें कम्युनिटी स्टैंडर्ड का आईना दिखाता है.
मैंने इस लेख में फेसबुक के विज्ञापनदाताओं का डेटा जारी किया है. इसमें देख सकते हैं कि इस प्लेटफार्म को राजनीतिक विज्ञापन देने वाले कौन हैं ? आगे छानबीन करें तो उनकी पृष्ठभूमि भी पता चलेगी.
मित्रों से आग्रह है कि जय-जयकार करने की बजाय इन विज्ञापनदाताओं की पड़ताल करें. पता चलेगा कि विज्ञापन के एवज में ये किस तरह देश के आर्थिक तंत्र को दीमक की तरह खोखला कर रहे हैं. फेसबुक एक बाज़ार है और बाज़ार खुद हमें बहका नहीं रहा. हम बाज़ार में बहक रहे हैं.
संसद में IT मामलों की स्थायी समिति 2 सितंबर को 2 बजे फेसबुक से इन तमाम मामलों पर जवाब-तलब करेगी. आधे घंटे. समिति के मुखिया कांग्रेस सांसद शशि थरूर शायद आधे घंटे में सारे सवालों के जवाब न ढूंढ़ पाएं. लिहाज़ा इस अनैतिक गठजोड़ की पड़ताल करते रहिए. गोदी मीडिया की तरह फेसबुक का नकाब उतारना ज़रूरी है.
- सौमित्र राय
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