सोशल मीडिया पर इन दिनों ‘अमित शाह का राजदार जिसको सुनकर हैरान हो जाएंगे’ शीर्षक से एक वीडियो खूब शेयर की जा रही है. करीब आधे घंटे के इस वीडियो में निरंजन टाकले नाम का व्यक्ति ‘संघ का आतंक और न्याय व्यवस्था की असफलता’ विषय पर अपने दावे करता नजर आ रहा है. वक्ता के दावों की पुष्टि ‘प्रतिभा एक डायरी’ नहीं करता लेकिन संघ अथवा भाजपा ने आजतक इसका खंडन भी नहीं किया है.
वक्ता निरंजन टाकले शुरुआत करते हैं कि हेमंत करकरे द थ्रेटेन लेगेसी यह सब्जेक्ट है, दरअसल बताया गया कि अगस्त 2006 में मालेगांव में पहला बम ब्लास्ट हुआ था. यह शबे बरात का दिन था और इस दिन काफी तादाद में मालेगांव में लोग आते हैं. उस दिन दोपहर को दो बजे के करीब सबसे पहले हमीदिया मस्जिद में बम ब्लास्ट हुआ, फिर बड़ी मस्जिद के अंदर पीछे स्थित कब्रिस्तान में दूसरा ब्लास्ट हुआ, तीसरा मस्जिद के गेट पर हुआ और चौथा उसी के पास के मुशाबरत चौक में हुआ था. यह ब्लास्ट अगस्त 2006 में हुए थे.
डांग जिले में नवापुर इलाका है. इस (बम ब्लास्ट की घटना) से पहले 18 फरवरी, 2006 को नवापुर में बर्ड फ़्लू फैलने की खबरें उड़ाई गईं थी. करीब पंद्रह लाख मुर्गियों को मार कर उन्हें दफनाना पड़ा था. उस वक्त सीएनएन आईबीएन के स्ट्रिंगर की हैसियत से पहले मैं वहां गया था. वहां मैने पाया कि वहां का पोल्ट्री बिजनेस 100 प्रतिशत मुसलमान चलाते हैं, बाकी ट्राइबल पापुलेशन है. नवापुर से करीब बीस किलोमीटर दूरी पर पंद्रह दिन पहले जनवरी के अंत और फरवरी की शुरूआत में आदिवासियों को हिंदू बनाने के लिए एक शबरीकुंभ नाम का कुंभ आयोजित ‘किया गया था.
इसका आयोजन असीमानंद ने किया था, असीमानंद का आश्रम वहीं पर था. 1998-99 में नासिक में हालात ऐसे थे कि वहां दुर्गा वाहिनी, बजरंग दल के ट्रेनिंग कैंप होते थे और जैसे ही ट्रेनिंग कैंप खतम हुआ तीन दिन बाद डांग में चर्च जलाया गया. कड़बन अभोना नाम की जगह है, वहां पर क्रिश्लियन हॉस्टलों पर हमला किया गया. इस तरह यह दो तीन जगहें हैं जहां दो-तीन दिन के अंतराल में इस तरह की वारदातें हुई थी.
2006 में इस तरह की घटनाओं के होने से क्रोनोलॉजी मन में थी, इसके आधार पर मन में यह संदेह हुआ था कि पंद्रह दिन पहले जो शबरीकुंभ हुआ है क्या उसका और इस बर्ड फ़्लू बीच कोई कनेक्शन है ? क्योंकि बर्ड फ़्लू से नवापुर की पूरी इकोनॉमी ध्वस्त हो गई थी. उस वक्त बताया गया था कि बर्ड फ़्लू की रिपोर्ट भोपाल की एक लेबोरेटरी से आई है, इस रिपोर्ट में बताया गया था कि यहां (नवापुर इलाके ) की मुर्गियों में बर्ड फ्लू पाया गया है.
पत्रकार होने के नाते हमने मुर्गीपालन केन्द्र के मालिकों से पूछा तो उन लोगों ने बताया कि वह तो अपनी मुर्गियां सूरत-मुम्बई भेजते हैं, मध्य प्रदेश तो मुर्गी भेजते ही नहीं हैं. पता ही नहीं यह रिपोर्ट कहां से आई है. एनिमल हस्बेंडी विभाग को भी पता नहीं था कि यह रिपोर्ट भोपाल से कैसे आई है. इस पर मैं लेबोरेटरी का सत्यापन करने के लिए वह रिपोर्ट लेकर उसमें बताए पते पर भोपाल गया, लेकिन वहां पाया कि इस तरह की कोई लेबोरेटरी है ही नहीं.
उस पते पर इस तरह की किसी लैब का कोई वजूद ही नहीं था. यानी यह रिपोर्ट एक फर्जी डॉक्यूमेंट थी जिसके जरिए अफवाह फैलाई गई थी कि वहां पर बर्ड फ़्लू है, सारी मुर्गियां मार कर वहां की पूरी इकोनॉमी ध्वस्त की गई. तब अनजाने में मैने यह रिपोर्ट की थी कि शायद इससे भी बड़ा कुछ हो सकता है, और अगस्त में यह बम ब्लास्ट हुआ.
2006 में जब यह ब्लास्ट हुआ तो हमारी सीएनएन आईबीएन की रिपोर्टर तोरल वारिया मुंबई से आई थी. तोरल वारिया की कार एक कॉनवाय को फॉलो कर रही थी. एक जगह कुछ पानी पड़ा हुआ था. जब कार वहां पहुंची तो कार से पानी की छींटे उछलीं और पुलिस अधिकारी की वर्दी पर पड़ गई. पुलिस अधिकारी ने कार के ड्राइवर और तोरल वारिया को बुरी तरह से पीटा. हम लोग इसकी कंप्लेंट करने के लिए मालेगांव के छाबनी पुलिस स्टेशन गए थे.
उस वक्त केपीएस रघुवंशी एटीएस के चीफ थे और जैन नासिक डिवीजन के आईजी थे. जैन ने (मालेगांव बम ब्लास्ट के) दो सस्पेक्ट्स के स्केच जारी किए थे. बताया गया कि यह सारे बम लगाने के लिए मालेगांव की एक साइकिल की दुकान से साइकिल खरीदी गई थीं.
दुकान पर जिस शख्स ने साइकिलें बेचीं थी उसने जो हुलिया बताया उसके आधार पर स्केच तैयार किए गए हैं. उसको यह इसलिए याद रहा कि दो लोग ही चार साइकिल खरीदने आए थे और साइकिलों में कैरियर लगवाने पर अड़े हुए थे. दोनों अपने दोनों हाथों में दो-दो साइकिलें लेकर गए इसलिए भी उसे उनकी शकलें याद रहीं.
जो स्केच बनवाई गई थीं उसमें दोनों शख्स क्लीन शेब थे. तोरल बारिया के केस में कंप्लेंट करने मैं छावनी पुलिस स्टेशन गया था, वहां एक लड़का बैठा हुआ था. हरे रंग की चैंट, गुलाबी रंग की शर्ट और एकदम अलग ही रंग की चप्पलें पहने हुए था, हल्की सी दाढ़ी थी. करीब एक डेढ़ घंटा मैं वहां रहा. इस दौरान वह भी वहां बैठा हुआ था. उसके अजीब पहनावे की बजह से मैं उसकी तरफ देख रहा था और वो मेरे ध्यान में रहा था.
बाद में हमको कहा गया कि पीछे एसपी ऑफिस के लॉन में प्रेस कॉन्फ्रेंस हो रही है आप वहां पर जाइए तो हम लोग वहां चले गए. वहां पहले दिन ही एटीएस ने इन्वेस्टिगेशन टेकओवर कर लिया था, लेकिन उसके पहले ही आईजी ने संदिग्धों के स्केच जारी कर दिए थे. एटीएस के केपी रघुवंशी ने उस वक्त वहां एलान किया कि हमने पहले सस्पेक्ट को अरेस्ट कर किया है जिसका नाम है नूरुल हुडा. वह लड़का जो वहां पर मेरे सामने करीब डेढ़ घंटे बैठा था, उसको बुर्का पहना कर लाया गया और कहा गया कि यही वह संदिग्ध है.
लेकिन डसकी शर्ट, पैंट और स्लीपर की वजह से मैं पहचान गया कि यह वही लड़का है जो दो घंटा वहां आराम से बैठा हुआ था, तो यह कैसे संदिग्ध आतंकी हो सकता है ? क्योंकि जो धमाका हुआ है उसमें 37 लोगों की जान गई है. 200 से ज्यादा गंभीर हालत में जख्मी हैं. ऐसे ब्लास्ट के लिए जो संदिग्ध पकड़ा जाता है वह दो घंटा आराम से कुर्सी पर बैठा है, यह बहुत ही अजीब था.
दूसरी बात नूरूल हुडा की जो दाढ़ी थी वह कम से कम सात आठ महीने से रखी हुई है. समझ में आ रहा था कि जो संदिग्ध थे, वो क्लीनशेव थे, तो दो दिन में इतनी बड़ी दाढ़ी तो आ नहीं सकती. उसी दिन बाद में तीन और संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया गया. कुल आठ दस लोगों को गिरफ्तार किया गया. हर एक आरोपी की दाढ़ी कम से कम दो से तीन साल से रखी हुई थी और जो क्लीन शेव वाले सस्पेक्ट्स की स्केच जारी की गई थी, उनमें से कोई भी पकड़ा नहीं गया था.
वो स्केच लेकर हम धुलिए और मालेगांव के बीच धोड़ामबे नाम से एक जगह है, वहां से लेकर चांदवड़ तक अस्सी किलोमीटर के दायरे में हर ढाबे, पेट्रोल पंप, हर होटल पर घूमे. एक राधिका नाम के होटल वालों ने हमें बताया कि ‘हां ये हमारे यहां आए थे, रुके थे. उनकी एंट्री होटल के रजिस्टर में रामजी कालसंगरा, संदीप डांगे दर्ज थी, यह दोनों उस होटल में अपने नाम से रुके थे. तो उसके जरिए हमने एक न्यूज की थी कि जो पकड़े गए.
‘टेररिस्ट हैं वो सारे गलत हैं. झूठे लोगों को पकड़ा गया है, फंसाया गया है. जो सस्पेक्ट्स हैं, उनके नाम इस तरह से हैं. जो स्केचेस थे उसके आधार पर उनके नाम यह हैं और वह इस इस होटल में रुके थे लेकिन उसका बाद में कुछ हुआ ही नहीं.
2008 में मालेगांव में बम ब्लास्ट हुआ भीकू चौक में. एलएमएल फ्रीडम मोटर साइकिल थी, और उसके बाद काफी इन्वेस्टिगेशन हुई, जिसमे उस दौरान चालीस हजार कॉल्स टैप किए गए थे. बाद में हर संदिग्ध टेलीफोन कॉल का ट्रैकिंग किया गया था. मिसाल के तौर पर एक कॉल ऐसा था कि एक विशेष नंबर पर 6-7 नंबर से काल आए थे कि मिस्वाक खत्म हो गया है, तुरंत भेजिए. इतनी ही बातचीत उन्होंने इसे ट्रैक किया था. बाद में पता चला था कि किसी आश्रमशाला में रहने वाले लोगों ने वह मिस्वाक जो दंतमंजन है, उसके लिए फोन किया था.
तो इस तरह से कई फोन कॉल्स ट्रैक किए गए थे. उनमें से एक टेलीफोन था, जिसमें बात करने वाली औरत यह पूछती है कि मैंने कहा था कि मेरी बाइक इस्तेमाल मत करो, और अगर की तो सिर्फ 6 क्यों मरे ? फिर उसकी पूरी बातचीत हुई और वो कॉल रामजी कालसंगरा और प्रज्ञा सिंह की निकली थी. तो उन पर आने वाले कॉल फिर ट्रैक होने लगे. यहां पर जो बातें हो रही हैं कि एनआईए ने प्रज्ञा सिंह के लिए कहा कि उनका कोई रोल नहीं है इस पूरे अपराध में. मैंने इस पर ‘वीक’ मैगजीन में बाय ओनली सिक्स किल्ड (केवल छह ही क्यों मारे गए ?) शीर्षक से 6 साल पहले स्टोरी की थी.
यह स्टोरी इन सभी आरोपियों के बीच हुई 414 मिनट की बातचीत और वीडियो ट्रास्क्रिप्ट्स के आधार पर लिखी गई थी. मेरे पास यह सभी ट्रास्क्रिप्ट्स हैं जिनमें से कुछ मैं अपने साथ लाया हूं. यह 414 मिनट की बातचीत एटीएस के पास मौजूद है और कोर्ट में भी प्रस्तुत की गई है.इन ट्रास्क्रिप्ट्स में सिर्फ मालेगांव ब्लास्ट ही नहीं, हिंदू राष्ट्र निर्माण, संविधान को नकारना और इजराइल या थाईलैंड में एक निर्वासित सरकार का गठन करना, जिसके लिए कर्नल पुरोहित थाईलैंड और इजराइल से जो संपर्क साध रहे थे, वह बातें हैं.
लेकिन इन सारी ट्रास्क्रिप्ट्स को नकारते हुए अगर एनआईए यह कहती है कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर का इसमें कोई रोल नहीं है तो यह अपने आप में बहुत संदेहजनक है. क्या यह जांच वाकई न्याय दिलाने के लिए हो रही है क्योंकि यदि मैं अपनी मोटर साइकिल किसी को देता हूं और यदि उससे कोई दुर्घटना होती है तो वाहन का मालिक होने के कारण मेरे खिलाफ केस दर्ज होगा.
इस मामले में मालिक ने अपना वाहन दिया है और वाहन का इस्तेमाल लोगों की जान लेने के लिए किया गया है. बावजूद इसके जांच एजेंसी कहती है कि वाहन को मालिक इसमें संलिप्त नहीं हैं !
दयानंद पांडेय जो खुद को शंकराचार्य बताता है, मालेगांब ब्लास्ट का आरोपी है, उसकी आदत है कि वह किसी भी व्यक्ति के साथ बैठक करता तो उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग बना लेता था. एटीएस ने ऐसी 34 वीडियो बरामद कीं, उनकी भी ट्रंस्क्रिप्ट्स उपलब्ध हैं. उन सारी बैठकों में कहां साजिश रची गई, कहां निर्वासन में सरकार बनाई जानी है, कैसे धन का प्रबंध करना है और कैसे विस्फोटक का प्रबंध करना है सभी बिंदुओं पर विचार विमर्श किया गया है. इन सभी वीडियो में प्रज्ञा सिंह मौजूद रहीं. कई बैठकों की तो उसने अध्यक्षता की. एक बैठक में तो वह मालेगांब में कराए जाने बाले विस्फोट के लिए बम रखने वाले लोगों को उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी लेती दिखाई गई है.
इतने सुबूत होने के बावजूद एजेंसी कहती है कि प्रज्ञा सिंह का कोई रोल नहीं है और वह आरोपी नहीं हो सकती ? उन सभी 34 वीडियो में सभी आरोपी मौजूद हैं और साजिश रचते हुए दिखाई दे रहे हैं. वह निर्वासन में सरकार का गठन करने के राष्ट्र विरोधी एजेंडे पर विचार विमर्श कर रहे हैं, बावजूद इसके एजेंसी कहती हैं कि इस मामले में महाराष्ट्र ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) लागू नहीं होता. यह कैसे संभव है, जब सभी लोग मौजूद हैं, एक संगठित ढंग से साजिश पर विचार-विमर्श कर रहे हैं और आप कह रहे हैं कि यह संगठित अपराध नहीं है तो यह बहुत ही संदिग्ध है.
उमेश उपाध्याय और राकेश पुरोहित के बीच में जो बातचीत हुई है उसके ट्रास्क्रिप्ट्स हैं, लेकिन इन दस्तावेजों का जिक्र भी एनआईए नहीं करती है जबकि एटीएस ने इसका जिक्र किया था. इसकी ‘एक वजह है कि इनमें दो वीडियो ऐसे हैं जिनमें दयानंद पांडेय श्याम आप्टे (जो पूना में आरएसएस के बहुत दिग्गज नेता माने जाते थे) के साथ बातचीत कर रहे हैं, जिसमें यह बात हो रही है कि प्रसाद पुरोहित ने उनको यह बताया था कि आईएसआई (पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी) ने 24 करोड़ रुपये इंद्रेश कुमार को दिया और इंद्रेश व भागवत वह पैसा खा गए, ऐसा है तो उनको हटाना पड़ेगा.
श्याम आप्टे कहते हैं कि ‘उनको हटाने के लिए मैनें पांच लाख रुपया कर्नल रायकर के पास दिया है. उस पैसे का इस्तेमाल करो और मोहन भागवत को हटाओ, उसके लिए भाड़े के हत्यारों का इस्तेमाल करो, इस तरह की अगर बात है तो उसको हटाने की जरूरत है. एक वीडियो में यह श्याम आप्टे कहते हैं. दूसरे वीडियो में प्रसाद पुरोहित यह कहता है कि हम नेपाल में हिंदू संगठन करना चाहते थे वहां माओवादी, कम्युनिस्ट विचारधारा की सत्ता न आए इसके लिए बात करना चाहते थे, इंद्रेश ने वादा किया था कि पैसा भी मिल जाएगा, आईएसआई ने उसको पैसा भी दिया लेकिन वो दोनों खा गए. इस मामले में हमें मोहन भागवत को हटाना होगा.
तो बाकी सारी ट्रांस्क्रिप्ट को नकारने की क्या यह वजह है कि अगर इन ट्रास्क्रिप्ट पर न्यायालय में या सार्वजनिक स्तर पर बहस की गई तो इन वीडियो पर बहस ‘करनी पड़ेगी जो कहती हैं कि आईएसआई ने इंद्रेश कुमार और मोहन भागवत को 24 करोड़ रुपये दिए. तो क्या एंजेसी सिर्फ इसलिए इन ट्रंस्क्रिप्ट्स के वजूद को नकार रही है कि इंद्रेश कुमार और मोहन भागवत को इस पूरी बहस से बचाया जा सके कि आईएसआई जैसी किसी विदेशी एजेंसी से धन लिया है ?
यह सही है या नहीं यह तो जांच का विषय है लेकिन यह दावा प्रसाद पुरोहित ने किया है इसलिए वह ही है जो इसे साबित कर सकता है कि आईएसआई ने इंद्रेश कुमार को यह राशि सौंपी.
एक वीडियो ऐसा है जहां असीमानंद की बात आती है, इसमें असीमानंद यह कहते हैं कि मैने सुनील जोशी को कहा था कि अगर इंद्रेश ने हैदराबाद में ब्लास्ट करने के लिए लोग उपलब्ध कराये थे तो तुम्हें इंद्रेश से खतरा है, अपने आप को संभालो. दो महीने के बाद ही सुनील जोशी की देवास में हत्या कर दी गई.
ये जो बाकी सारी वीडियो हैं जो 2008 के मालेगांव से सीधे-सीधे कनेक्टेड नहीं हैं लेकिन इस तरह की राष्ट्र विरोधी साजिश, राष्ट्रविरोधी डिजायन, आंतकवाद संबंधी जलाने वहां डिस्कस किए जाते हैं, तो उसको छिपाने के लिए पूरे एविडेंस को ही नकार दो. और यही हुआ जब एनआईए ने ‘साध्वी प्रज्ञा सिंह के खिलाफ चार्जेज नहीं बनाए जा सकते’, इस तरह का बयान कोर्ट में दिया.
सौभाग्य से उसी समय केस में दखलंदाजी करते हुए कोर्ट ने एनआईए को फटकार लगाई और कहा कि इस तरह से नहीं हो सकता, आरोप वापस नहीं लिए जा सकते लेकिन यह स्पष्ट दिखाई देता है कि वर्तमान जांच एजेंसी द्वारा यह प्रयास ‘किए जा रहे हैं कि उस केस में जो 161-164 के तहत स्वीकार करने वाले बयान दिए गए और न्यायालय में दर्ज हो चुके अहम सुबूत हैं. यह बयान बताते हैं कि आरएसएस से जुड़े बहुत से लोग हैं और वह आरएसएस में विभिन्न पदों पर रहना स्वीकार करते हैं, वह भी इन बैठकों में शामिल हुए थे. काफी संख्या में सेना के कई वर्तमान और सेवानिवृत्त अधिकारी भी इन बैठकों में शामिल हुए थे. उदाहरण के लिए एक सेना अधिकारी ने अपने बयानमें बताया कि कैप्टन सुनील जोशी भी वहां पर आए थे.
खुद प्रसाद पुरोहित एक मेजर प्रयाग मोडक की बात करते हैं कि वह हमारी देश के बाहर चलाई जाने वाली गतिविधियों में सहयोगी होंगे. तो इन सब बातों की जांच क्यों नहीं कराई जा रही जब 164 के तहत पुख्ता रूप में स्वीकार करने वाले बयान एजेंसियों के पास हैं, इसके बावजूद कोई भी इसके बारे में बात नहीं करता है.
एक थ्योरी इस तरह से तैयार की गई थी कि प्रसाद पुरोहित ने मिलट्री इंटेलिजेंस के लिए (उसके इशारे पर) इस दक्षिणपंथी संस्था में घुसपैठ की थी और फिर 29 सितंबर के मालेगांब ब्लास्ट के बाद उसने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट की थी. मेरे पास कुछ कागजात और दस्तावेज है जिनके अनुसार यह प्रसाद पुरोहित ही है जिसने अभिनव भारत संगठन की स्थापना की. अभिनव भारत का आधिकारिक पता अजय राहिलकर, 6 ट्रेजर्स रेसिडेंस है और संस्थापक स्वयं प्रसाद पुरोहित है. इस पर भी कोई कैसे यह थ्योरी रख सकता है कि प्रसाद पुरोहित ने मिलट्टी इंटेल्जेंस की ओर से दक्षिणपंथी संस्था में घुसपैठ की थी.
रमेश उपाध्याय और प्रसाद पुरोहित के बीच एक बातचीत हुई. अपनी गिरफ्तारी से पहले रमेश उपाध्याय कहता है कि मैं सोचता हूं कि मै पुणे के पुलिस अधीक्षक को लिखित शिकायत दूं कि मुझे मुस्लिम और ईसाई संगठनों की ओर से जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं, ऐसे में वह मुझे सुरक्षा प्रदान करेंगे, मैं खुद दिखूंगा कि मैं सामने हूं तो मुझ पर नजर रखने की उनको कोई जरूरत नहीं पड़ेगी और इस तरह से हम उन्हें धोखे में रखने में कामयाब हो जाएंगे.
इस पर प्रसाद पुरोहित कहता है कि हां यह सही तरीका सही आइडिया है, हमें ही खुद लिखना चाहिए. और इसी सोच के साथ प्रसाद पुरोहित ने उसी दिन अपने वरिष्ठ अधिकारियों को लिखा. यह एक ट्रांसक्रिप्ट है जो उसके इस बयान को सही साबित करती है. तो उनकी संस्था में घुसपैठ करने की थ्योरी में कोई तथ्य, आधार नहीं हैं उल्टा उनका खुद का यह कहना है कि हमने इस तरह को स्ट्रैटजी की तो हम इससे बच निकल सकते हैं, तो बह हर संभव कोशिश कर रहे थे.
जब प्रज्ञा सिंह को गिरफ्तार किया गया तब प्रसाद पुरोहित का कॉल है जिसमें वह कहता है कि द कैट इस आउट ऑफ द बैग एंड द सिंह हैज संग. यह किसी भी इंटेलिजेंस ऑफिसर के लिए बहुत ही मुश्किल कोड लैंग्वेज है, द कैट इस आउट ऑफ द बैग, मतलब प्रज्ञा सिंह को पकड़ा गया है एंड सिंह हैज संग यानी सिंह ने जांच एजेंसियों को बहुत सारी जानकारी दे दी हैं, इस पर उपाध्याय कहता है कि हां मुझे मालूम है कि मैं भी रडार पर हूं. तो इन लोगों को यह पता था कि वह क्या कर रहे हैं लेकिन इनको इस बात का कतई अंदाज नहीं था कि ये खुद दयानंद पांडे है जो वीडियो रिकॉर्डिंग करता होगा, उसकी इस तरह की आदत है. उसके लैपटॉप में कई सारे गंदे वीडियोज भी हैं लेकिन बैठकों के जो ये वीडियोज हैं यह बहुत बड़ा सुबूत हैं
इस केस के मामले में.
पूरा माहौल जो उस समय बनाया गया था हिमानी सावरकर जो इन सारी बैठकों में मौजूद थी, उसका भी 161-164 के तहत बयान दर्ज है, जिसमें हिमानी सावरकर ने बताया कि प्रज्ञा सिंह ने कहा था कि वह उन लोगों का इंतजाम करेगी जो मालेगांव में बम प्लांट करेंगे. लेकिन जब प्रज्ञा सिंह को नासिक के कोर्ट में पेश किया जा रहा था तो उन पर फूल बरसाने वालों में हिमानी सावरकर, शिवसेना, भाजपा और आरएसएस के सारे संगठन मौजूद थे.
26/11, जिस दिन हेमंत करकरे इसकी जांच कर रहे थे, उस दिन शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक लेख छपा था, जिसमें लिखा था कि जब हम सत्ता में आएंगे तो करकरे और उसके पूरे परिवार को हम रास्ते पर पीटते हुए ले जाएंगे. दुर्भाग्यवश उसी दिन उनकी हत्या हुई और दूसरे दिन उसी शिवसेना को उनके घर के
सामने होर्डिंग लगाना पड़ा, नरेंद्र मोदी जो ‘करकरे की काफी आलोचना करते थे उस दिन करकरे के घर पर गए थे. उन्होंने गुजरात सरकार की ओर से दो करोड़ रुपया देने चाहे लेकिन करकरे की पत्नी ने लेने से इनकार कर दिया. तो इस तरह की हर संभव कोशिश की गई थी करकरे पर दबाव बनाने और उनकी छवि खराब करने के लिए उनकी मंशा पर सवाल खड़े करने की. खासकर क्षेत्रीय मीडिया में तो उस वक्त बहुत सी बातें हुई थी.
उसी वक्त कोर्ट की कार्यवाही में यह भी कहा जाता था कि समझौता ब्लास्ट में भी इन लोगों का हाथ है लेकिन उसी समय आपत्तियां लगी थीं क्योंकि तब तक असीमानंद का बयान नहीं आया था. यह सारी बातें सितंबर 2008 तक की थी, इसके बाद असीमानंद पकड़ा गया 19 नवंबर को उसका बयान हुआ.
सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर थे तन्ना स्वामी, उन्होंने मुझे बुलाकर पूछा था कि आपने ये किस आधार पर स्टोरी की थी 2006 में कि जो सिमी के जो लोग पकड़े गए हैं, वो बेकुसूर हैं और उनको इसमें फंसाया गया है. तो मैंने उनको वो सारे सुबूत, सूत्र आदि उपलब्ध कराए थे.
भोसला मिलट्री स्कूल में इनको इनकी ट्रेनिंग होती थी. भोसला मिलट्री स्कूल के संस्थापक बांशी मुंजे थे जो विनायक दामोदर सावरकर के दाहिने हाथ समझे जाते थे. पुणे में रहने वाले बांशी मुंजे के पोते कमांडेंट रायकर भी अभिनव भारत की कुछ बैठकों में शामिल रहे. रायकर ने सीबीआई को शपथपत्र देकर बताया है
कि 2002 में उनके सामने इंद्रेश कुमार ने रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल जयंत चित्रे को यह कहा था कि मैं 25 लाख रुपया देने के लिए तैयार हूं लेकिन हिंदू आत्मघाती दस्ता तैयार करो.
यानी किस तरह से इंद्रेश इन्हें 2002 से ही आर्थिक सहायता मुहैया कर रहे थे. बाद में हिमांशु मांसे और उसके एक साथी की जांदेड़ में, अपने ही घर में बम बनाते हुए ब्लास्ट होने से मौत हुई थी. इस मामले की आगे कोई जांच हुई ही नहीं. उस समय भी केपीएस रघुवंशी ही एटीएस के चीफ थे.
असीमानंद की स्वीकारोक्ति के बाद जब अन्य लोगों ने अपने स्टेटमेंट दिए तब कहीं जाकर 2006 के नौ मुस्लिम आरोपियों को 2013 में कोर्ट ने रिहा किया. इन सात सालों में इन लोगों को जिस तरह के टार्चर से गुजरना पड़ा, जिस हालत में वो थे और आज हैं, वह बहुत दयनीय है. कुछ तो ऐसे हैं जो चल नहीं पा रहे हैं.
यह सारी सच्चाई करकरे की जांच की वजह से खुल कर सामने आई, यदि ‘करकरे की जांच अंत तक पहुंचती तो बहुत संभव है कि आज जो बहुत मशहूर लोग आजाद घूम रहे हैं वो जेल में होते. लेकिन करकरे कौ मौत के कारण यह पूरी जांच बहुत बुरी तरह से डैमेज हुई. उनके बाद जितने भी एटीएस चीफ आए और जो वर्तमान हैं उनसे बहुत ज्यादा उम्मीद् नहीं है लेकिन उसी समय कोर्ट के सामने यह सारे ट्रास्क्रिप्ट्स, वीडियो एविडेंसेज प्रस्तुत किए गए थे इसलिए वह आज भी कोर्ट के सामने है.
हालांकि रोहिणी सेलियन (सरकारी वकील) ने यह कहा है कि 17 स्वीकार करने वाले बयान इधर-उधर हो गए हैं. यह भी बड़े आश्चर्य और संदेह की की बात है, शायद इसकी भी जांच होगी. यह जांच पटरी से न उतरे इसका प्रयास आगे होता रहेगा.
- ‘क्रांतिकारी मजदूर मोर्चा’ के मुखपत्र से साभार
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