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एग्ज़िट पोल बनाम एग्ज़िट खोल

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रविश कुमार

आज दो तरह के एग्ज़िट पोल आए हैं. एक तो पांच राज्यों के चुनावों में क्या हुआ उसका एग्ज़िट पोल आ चुका है. आप जानते हैं कि कुछ एग्ज़िट पोल ग़लत होते हैं और कुछ आधे सही होते हैं. एकाध बार सही भी हो जाते हैं, इसके बाद भी न तो आपका विश्वास एग्ज़िट पोल को लेकर कम हुआ है और न ही इसे लेकर मीडिया माहौल का बनना बंद हुआ है. लेकिन हम एग्ज़िट पोल की जगह एग्ज़िट खोल लेकर आए हैं. एग्ज़िट खोल की खोज मैंने की है लेकिन आप अपने नाम से पेटेंट करा सकते हैं. एग्ज़िट खोल के तहत आपको अपनी जेबों की सिलाई अपने आप खुल जाएगी और जगह जगह से आपकी बचत का पैसा निकलने लगेगा.

यह कुर्ता छत से लटक रहा है. आज के बाद इसकी जेब से कितना पैसा निकलेगा, इसका भी एग्ज़िट पोल होना चाहिए. बल्कि इसका नाम हमने एग्ज़िट खोल रखा है. महंगाई के दबाव में जेब की सिलाई खुलती जाएगी, जेब फट जाएगी और आपकी बचत का पैसा दनादन एग्ज़िट करने लगेगा, इसी नई वैज्ञानिक विधि का नाम है एग्ज़िट खोल. अभी तक जेब से निकासी का एक ही मुख्य द्वार हुआ करता है लेकिन विमान की तरह इस जेब में दो छेद दाईं तरफ होंगे और दो छेद बाई तरफ होंगे. निकासी का एक द्वार पीछे होगा और एक द्वार सामने होगा. मंत्री जी फोन पर विमान में बैठे सिक्कों और नोटों को बताएंगे कि यात्रीगण सीट बेल्ट खुल चुका है. चुनाव हो चुका है. जहां जहां से दरवाज़ा खुला है वहां वहां से बाहर कूद जाइये. विमान ख़ाली कर दीजिए. आपका पॉकेट विमान बन गया है . चारों तरफ से एग्ज़िट खोल दें अन्यथा महंगाई के दबाव से पाकेट के चिथड़े उड़ जाएंगे. आपने जो भी कमाया है वो पिछले साल ही निकल गया था और जो भी बचा रह गया है, इस साल निकल जाएगा. आप देख रहे हैं दुनिया का पहला एग्ज़िट खोल.

एग्ज़िट पोल बनाम एग्ज़िट खोल. मैं अकेला इस मीडिया माहौल को नहीं बदल सकता और लोगों की जिज्ञासा होती ही है कि कौन जीतेगा ? बस दुआ कीजिए कि सारी सरकारें जल्दी-जल्दी पुरानी पेंशन व्यवस्था लागूं करें और मुझे भी कोई सरकार पेंशन दे दे. पुरानी पेंशन व्यवस्था से आर्थिक तरक्की आती है. महंगाई और घटती कमाई के कारण कौन इस दौर में अपनी आर्थिक असुरक्षा को लेकर चिन्तित नहीं है. लोग अपना इंतज़ाम नहीं कर पा रहे हैं. सोचते हैं कि दूसरा बंदोबस्त कर दे.

इस महंगाई के कारण जब आपकी जेब को दस्त लगी हो कोई दूसरा आपका बंदोबस्त नहीं कर सकता है. सरकार को एक विज्ञापन निकालना चाहिए – आवश्यकता है महंगाई के सपोर्टरों की. महंगाई के इन सपोर्टरों ने पिछले साल लोगों को समझाने में अच्छा काम किया था कि 110 रुपया लीटर पेट्रल खरीद कर देश के विकास में सीधा हिस्सा ले रहे हैं. अगर ऐसे ही महंगाई के सपोर्टर पेट्रोल पंप और बस स्टैंड में बिठा दिए जाएं तो पेट्रोल की मार से परेशान लोगों का हौसला बढ़ा सकेंगे. महंगाई की मार से जिनका भी मनोबल टूट गया हो उन्हें तुरंत महंगाई के इन सपोर्टरों के पास भेजा जाना चाहिए ताकि वे 110 की जगह 150 रुपया लीटर पेट्रोल खरीदते समय सीना चौड़ा कर सकें.

सरकार ने पहले भी कई प्रकार के वोलेंटियर बनाए हैं. स्वच्छता मित्र, गंगा प्रहरी, जन औषधी मित्र. महंगाई मित्र भी एक नया वोलेंटियर हो सकता है. पिछले साल युद्ध नहीं था लेकिन टैक्स था. टैक्स की ऐसी बमबारी हुई आपको समझ नहीं आया कि क्या हुआ. मई महीने में मुंबई में पेट्रोल 100 रुपया लीटर हो गया था. इसके पहले मार्च और अप्रैल के दौरान लोग 90 से 100 रुपया लीटर पेट्रोल भरा रहे थे. अक्तूबर तक जाते जाते पेट्रोल 110 रुपया लीटर हो गया. टैक्स का ऐसा हमला था कि लोग उबर ही नहीं सके.

जुलाई 2008 में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 132 डॉलर प्रति बैरल हो गया था तब पेट्रोल का भाव 50 रुपया लीटर और डीज़ल 34 रुपया लीटर था. मनमोहन सिंह की सरकार थी. अक्तूबर 2021 में जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल का भाव 82 डॉलर प्रति बैरल हुआ तब पेट्रोल 110 रुपया लीटर हुआ. नरेंद्र मोदी की सरकार है.

अक्तूबर 2021 की तुलना में देखें तो फरवरी 2022 में कच्चे तेल का औसत भाव 94 डॉलर प्रति बैरल रहा. 14 प्रतिशत अधिक होने के बाद भी फरवरी में एक पैसा दाम नहीं बढ़ा. अब तो 125 डॉलर प्रति बैरल हो गया है. चुनाव न होता तो फरवरी से ही हाहाकार मच गया होता. अब सारे लोग झुंड बनाकर आएंगे और आपसे कहेंगे कि युद्ध के कारण दाम बढ़ रहे हैं, जो कि बढ़ भी रहे हैं लेकिन क्या केवल युद्ध के कारण ही दाम बढ़ते हैं या तभी बढ़ते हैं जब युद्ध होता है. फिर चुनाव के दौरान चार-चार महीने दाम क्यों नहीं बढ़ते हैं ?

उत्पाद शुल्क पर कम बात होगी. 22 मार्च 2021 को लोकसभा में वित्त मंत्रालय का जवाब है. इसमें पेट्रोल डीज़ल और प्राकृतिक गैस के आंकड़े हैं. 2017-18 में पेट्रोल और डीज़ल पर उत्पाद शुल्क से वसूली 2, 04, 910 करोड़ हो गई. 2018-19 में यानी चुनाव के पहले वाले साल में घट कर 1, 54, 178 करोड़ हो गई. 2019-20 यानी चुनाव खत्म होते ही सबसे अधिक वसूली 2, 03, 010 करोड़ हो गई. 2020-21 के केवल दस महीनों में में उत्पाद शुल्क से वसूली बढ़कर 2, 95, 401 करोड़ हो गई. यहां यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि करीब तीन लाख करोड़ की वसूली में प्राकृतिक गैस से टैक्स का हिस्सा केवल 919 करोड़ ही है.

तो आपने देखा कि उत्पाद शुल्क की वसूली किस रफ्तार से बढ़ने लगती है. फिर जब चुनाव आने होते हैं तो उस साल कम हो जाती है और जब चुनाव खत्म हो जाते हैं तो उत्पाद शुल्क की वसूली पहले से भी कई गुना बढ़ जाती है. तो यह खेल अर्थव्यवस्था का कम है, चुनाव का ज्यादा है. यही खेल डीज़ल के साथ भी होता है. यह सब हम वित्त मंत्रालय के जवाब के आधार पर बता रहे हैं. 22 मार्च 2021 के जवाब से आपकी आंखें खुल जानी चाहिए.

वित्त मंत्रालय ने इसी जवाब में बताया है कि कैसे उसकी कमाई में उत्पाद शुल्क से होने वाली कमाई का हिस्सा डबल ट्रिपल होता जाता है बस जब चुनाव आता है तो उसके पहले घट जाता है. 2013-14 में केंद्र की कमाई में उत्पाद शुक्ल का हिस्सा 4.3% था. 2016-17 में तीन गुना यानी 13.3 प्रतिशत हो गया. 2018-19 में घट कर 6.8 प्रतिशत हो गया. 2020-21 में चुनाव नहीं था तो 12.2 प्रतिशत हो जाता है. इस बार जब तक पांच राज्यों में चुनाव चला है पेट्रोल और डीज़ल का दाम नहीं बढ़ा है.

4 नवंबर को सरकार ने उत्पाद शुल्क में कटौती नहीं की थी. उस दौरान केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर लगने वाले road and infra cess को 18 रुपये से घटा कर 13 रुपए और डीज़ल पर लगने वाले road and infra cess को 18 रुपये से घटा कर 8 रुपये किया था. इस मेहरबानी के बाद भी आज तक मुंबई में 109 रुपया लीटर पेट्रोल मिल रहा था और कई शहरों में 95 रुपये लीटर लोग भरा ही रहे थे. पेट्रोल का दाम कभी भी अप्रैल 2020 के 70 रुपये प्रति लीटर के भाव पर नहीं पहुंचा. केवल road and infra उप करों की वसूली का डेटा देखेंगे तो पता चलेगा कि आप कितना टैक्स दे रहे हैं.

2019-20 में 67,371 करोड़ की वसूली हुई. 2020-21 में 1,23,596 करोड़ की वसूली हुई. 2021-22 में 2,03,235 करोड़ की वसूली हुई. 2022-23 में 1,38,450 करोड़ की वसूली प्रस्तावित है. इसमें उत्पाद शुल्क का आंकड़ा नहीं है. इसके अलावा इन सड़कों पर चलने के लिए आप अच्छा खासा टोल टैक्स भी देते हैं. कार से एक किलोमीटर का टोल टैक्स औसतन सवा रुपया पड़ता है. यही कारण है कि लंबे समय से आप पेट्रोल और डीज़ल के बढ़े हुए दाम दिए जा रहे हैं.

अब सवाल है कि बहुत महंगा से यह कितना बहुत बहुत महंगा होगा ? इससे बढ़ने वाली महंगाई का हिसाब करेंगे तब पता चलेगा कि आपकी कमाई हर तरफ से घटती जा रही है. तब आपको पता चलेगा कि क्यों इस देश में विकास के तमाम दावों के बाद भी 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज की ज़रूरत पड़ी थी. जुलाई 2008 में जब 132 डॉलर प्रति बैरल था तब आपसे पेट्रोल 50 रुपया और डीज़ल 34 रुपया लीटर था. मार्च 2013 में कच्चे तेल का भाव 123 डॉलर प्रति बैरल हो गया तब पेट्रोल का दाम 70 रुपया लीटर हुआ था. देश भर में प्रदर्शन होने लगे और विपक्ष में जान आ गई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तब मुख्यमंत्री थे, उस समय के उनके बयान इस समय भी दोहराए जाते रहते हैं लेकिन उससे दामों के बढ़ने पर कोई असर नहीं पड़ता है.

अप्रैल 2007 में कच्चे तेल का भाव 65 डॉलर प्रति बैरल था. पेट्रोल 42 रुपया लीटर और डीज़ल 30 रुपया लीटर था. मार्च 2021 कच्चे तेल का भाव 64 डॉलर प्रति बैरल था. यानी अप्रैल 2007 की तुलना में 1 डॉलर कम था. तब पेट्रोल 91 रुपये और डीज़ल 81 रुपये लीटर था. जनवरी 2016 में कच्चे तेल का भाव 28 डॉलर प्रति बैरल था .तब पेट्रोल 59 और डीज़ल 44 रुपया लीटर मिल रहा था. 2020 के अप्रैल में कच्चे तेल का भाव करीब 20 डॉलर प्रति बैरल था. तब पेट्रोल 70 रुपया और डीज़ल 62 रुयया लीटर मिल रहा था.

कच्चे तेल का भाव कम होता है बहुत ही कम होता है तब भी पेट्रोल और डीज़ल का दाम बहुत होता है बहुत ही ज्यादा होता है. इस तरह आपको महंगाई के अधिकतम स्तर को न्यूनतम महसूस करने की आदत डाल दी गई है. इस तरह से आपसे लंबे समय तक पेट्रोल और डीज़ल के दाम के नाम पर वसूली की गई है. अब हम आपको दो आंकड़े दिखाते हैं. 24 मार्च 2021 को राज्य सभा में पेट्रोलियम मंत्री ने अपने जवाब में बताया है कि 2009 से पेट्रोल और डीज़ल पर कितना टैक्स लगता था, इससे तस्वीर थोड़ी औऱ साफ होती है

2009 में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 13 रुपये 75 पैसे था. सितंबर 2012 में 9 रुपया 48 पैसा कर दिया गया. मार्च 2015 में इसे बढ़ाकर 2009 से भी अधिक कर दिया गया. 17 रुपया 46 पैसा. जनवरी 2016 में और बढ़ाया और यह 20 रुपया 48 पैसा हो गया. मई 2020 में पेट्रोल पर लगने वाला उत्पाद शुल्क 32 रुपया 98 पैसा हो गया. तो आपने देखा कि उत्पाद शुल्क और सड़क और बुनियादी ढांचे के लिए लगने वाले उप कर से कितनी ज्यादा वसूली हो रही है.

अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के भाव से ज्यादा सरकार के टैक्स के कारण दाम बढ़ रहे हैं और आपकी बचत हवा मिठाई होती जा रही है. इन बातों को ज़ोर देकर कोई नहीं बताएगा. जब पेट्रोल और डीज़ल के दाम 120 या 130 रुपया लीटर हो जाएंगे तो तबाही आएगी. हरियाणा के कैथल में किसान ड्रम लेकर पेट्रोल पंप पर पहुंच गए हैं. दाम बढ़ने की खबरों ने उन्हें चिन्ता में डाल दिया है.

अब हमारा सवाल है कि क्या सरकार पेट्रोल और डीज़ल के दाम को बेलगाम बढ़ने देगी ? क्या सरकार को पता नहीं है कि जनता पिछले एक साल से महंगाई से जूझ रही है, उसके पास अब ताकत नहीं बची है कि नए हमले को झेल पाए. हर तरफ से आवाज़ आ रही है कि सरकार पेट्रोल के दाम बढ़ाएगी लेकिन क्या वो इन सब सवालों के बारे में नहीं सोचेगी ?

करोड़ों दुपहिया वाहन चालकों की सोचिए. ज़्यादातर दुपहिया चालक कम कमाई पर जीते हैं और कोरोना के दो साल में इनकी कमाई घट गई है. अगर पेट्रोल और डीज़ल के दाम नियंत्रण से बाहर हुए तो करोड़ों दुपहरिया चालकों के परिवार में तबाही आ जाएगी. होम डिलिवरी के कारोबार में लगे दोपहिया चालक बर्बाद हो जाएंगे. अभी वे जीने भर के लिए कमाते हैं अब वे मरने से बचने के लिए कमाएंगे. सरकार को इन्हें अलग से राहत देनी चाहिए.

सरकार को तुरंत एक कदम उठाना चाहिए. सरकारी और प्राइवेट सेक्टरों में कम वेतन पर काम करने वाले और दुपहिया चालकों के लिए वर्क फ्राम होम लागू कर दे. कार वालों को भी वर्क फ्राम होम की छूट मिलनी चाहिए. दूध के दाम महंगे होने लगे हैं. अमूल ने दूध दो रुपया लीटर महंगा कर दिया है. दही भी दो रुपया लीटर महंगा हो गया है. सरसों छोड़ कर बाकी खाद्य तेलों के दाम बढ़ने लगे हैं. निम्न आय वाले तबको को कैसे बचाया, यह सोचना होगा. किसानों के लिए केवल डीज़ल का दाम महंगा नहीं होगा बल्कि खाद भी महंगा होने वाला है. घरेलु उत्पादन की लागत भी बढ़ी है औऱ युद्ध के कारण रुस से आयात महंगा होता जाएगा.

रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण भारत गेहूं और मक्के के निर्यात से कमा सकता है लेकिन जो घाटा है उसकी भरपाई गेहूं और मक्के के निर्यात से पूरी नहीं होने वाली है. रुस से खाद का आयात होता है. अभी आयात पर असर नहीं पड़ा है लेकिन इसका दाम भी बढ़ने वाले आइटम की सूची में है. इस बार के आर्थिक सर्वे में भारत की तरक्की के अनुमान इस आधार पर लगाए गए हैं कि कच्चे तेल का भाव औसतन 70-75 डॉलर के प्रति रहेगा. वित्त मंत्री कह चुकी है कि कच्चे तेल का भाव बढ़ा तो वित्तीय अस्थिरता आ सकती है. हमने प्रो. अरुण कुमार से पूछा कि क्या यह मान कर चला ही जाए कि पेट्रोल के दाम बढ़ेंगे या सरकार दूसरे विकल्पों पर विचार करेगी. दूसरे विकल्प क्या हैं और भारत की अर्थव्यवस्था इस वक्त किस मोड़ पर खड़ी है ?

अमेरिका रूस से तेल का आयात करता है. यूक्रेन के राष्ट्रपति ने अमरीका से अपील की है कि वह रुस से तेल का आयात ना करे इससे कच्चे तेल का भाव 150-200 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकता है. एक ही रास्ता है कि ईरान से कोई डील हो और वहां से तेल की भरपाई हो, तभी कच्चे तेल के भाव में कमी आ सकती है. इस बीच हर देश कच्चा तेल खरीद रहा है. इस कारण भी इसका भाव बढ़ता जा रहा है. युद्ध के दस दिन हो गए, प्रतिबंधों से रुस को घेरने के बाद भी यूक्रेन की तबाही नहीं रुकी है. लाखों लोग विस्थापित हो चुक हैं और इसकी कीमत दुनिया के बाकी हिस्सों के लोग भी चुका रह हैं. पेट्रोल से लेकर अन्य चीज़ों की महंगाई के कारण अरबों लोग आर्थिक रुप से विस्थापित हो रहे हैं. किसी का पैसा डूब रहा है तो किसी की कमाई घट रही है.

यूक्रेन की इस तबाही का फायदा उठाने वाले देश और कंपनियां भी कम नहीं हैं. अमरीका और यूक्रेन दोनों अपनी अपनी तरह से युद्ध के कारण रुस के खिलाफ नैतिक दबाव बनाने में लगे हैं लेकिन कंपनियों की नैतिकता उनके धंधे में होती है. एक तरफ अमरीकी सांसद सरकार पर दबाव बना रहे तो इसी बीच यूरोप की सबसे बड़ी कंपनी शेल को लेकर विवाद हो गया है. शेल ने एक बिचैलियों के मार्फत रुस से तेल खरीदा है. शेल ने सवा सात लाख बैरल तेल रुस से खरीदे हैं. उसे यहां अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों की तुलना में 28.50 डालर प्रति बैरल सस्ता मिला है. शेल ने यह सौदा ट्राफिगुरा से किया है जिसने युद्ध से पहले रुस से इस बारे में करार किया था. प्रतिबंध ट्राफिगुरा पर लागू नहीं होता. फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार SHELL कंपनी को 20 मिलियन डॉलर का मुनाफा हो सकता है. तो यह खेल भी चल रहा है.

सीरीया में जब कुछ लोग आतंकवाद से लड़़ने का नाटक कर रहे थे उन्हीं देशों की कंपनियां आईसीस से तेल का धंधा भी कर रही थीं. यूक्रेन के मंत्री दिमित्री कुलेबा ने ट्विट किया है कि शेल ने चुपके से रुसी तेल खरीदा है. हमारा सवाल है कि रुसी तेल से क्या आपको यूक्रेनी जनता की खून की महक नहीं आ रही. यूक्रेन के कुलेबा ने अपील की है कि दुनिया की कोई भी कंपनी रुस से तेल न खरीदे. शेल ने कहा है कि हम रुसी तेल का विकल्प खोजने में लगे हैं लेकिन यह रातों रात नहीं हो सकता. ग्लोबल सप्लाई में रुस का दखल काफी ज्यादा है.

यूरोप में गैस के दाम 62 प्रतिशत बढ़ गए हैं. गैसोलीन भी एक तरह का पेट्रोलियम प्रोडक्ट है. युद्ध को लेकर कई लोग रोमांचित हो उठे थे. उन्हें कुछ नया देखने को मिल रहा था लेकिन वे नहीं देख पाए कि दुनिया कई बार इस तबाही को देख चुकी है और हासिल के नाम पर केवल बर्बादी हुई है. आपकी कमाई तेज़ी से एग्ज़िट कर रही है. एग्जिट खोल के बाद अब एग्ज़िट पोल पर रिपोर्ट.

आप जानते हैं कि टीवी चैनलों की रेटिंग बार्क नाम की एजेंसी तय करती है. बार्क की रेटिंग को लेकर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं. एक सवाल सैंपल को लेकर भी है. कम सैंपल होंगे तो रेटिंग विश्वसनीय हो ही नहीं सकती. अब तो एग्जिट पोल के सैंपल भी लाखों में होने लगे हैं. फिर टीवी के करोड़ों दर्शकों की राय चंद हज़ार सैंपल से कैसे ली जा सकती है. बार्क सैंपल साइज़ बढ़ाने को लेकर तैयार नहीं है इसलिए एनडीटीवी ने फैसला किया है कि इस रेटिंग सिस्टम से बाहर रहा जाए. एनडीटीवी ने खुद को रेटिंग सिस्टम से अलग कर लिया है. हमारी रेटिंग आपसे है. असली टीआरपी जनता तय करती है. चंद सैंपलों से नंबर वन बनने की इस होड़ से शोर तो होता है मगर सच्चाई कहीं और होती है. इस रेटिंग के जाल में हम रहते तो एग्ज़िट पोल छोड़ कर पेट्रोल के दाम और सुमी में फंसे छात्रों पर प्राइम टाइम नहीं कर रहे होते.

शुक्रवार को हमने प्राइम टाइम में दिखाया था कि किस तरह से सुमी में सैंकड़ों भारतीय छात्र फंसे हैं. उनके पास पीने का पानी नहीं है. वे बर्फ जमा कर रहे हैं. उसका असर ये हुआ कि सुमी का ज़िक्र प्रेस कांफ्रेंस में प्रमुखता से आने लगा. जब शनिवार को छात्रों ने वीडियो जारी किया कि वे खुद अपने भरोसे पैदल निकल रहे हैं तब सरकार ने तुरंत संपर्क कर समझाया कि ऐसा न करें. सरकारी प्रयास में तत्परता आने लगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सुबह यूक्रेन के राष्ट्रपति से बात की. उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने रुस के राष्ट्रपति से भी बात की. सूत्रों के हवाले से बताया कि पचास मिनट की इस बातचीत में पुतिन ने प्रधानमंत्री को बताया कि यूक्रेन औऱ रूस के बीच जो बातचीत चल रही है उसमें क्या प्रगति हुई है. प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन से आग्रह किया कि राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से सीधा बात करें. प्रधानमंत्री ने सुमी सहित यूक्रेन के शहरों में सीज़फायर और मानवीय गलियारा बनाने की भी तारीफ की. उन्होंने सुमी में जल्द से जल्द भारतीय नागरिकों के सुरक्षित निकालने पर ज़ोर दिया और पुतिन ने इस बारे में हर संभव मदद का भी आश्वासन दिया.

सुमी में छात्रों को बाहर भी लाया गया. वे लाइन में लगे और पहले लड़कियों को चार बसों में बिठाया गया. उसके बाद क्या हुआ स्पष्ट नहीं है, लड़कियों को बस से उतार दिया गया औऱ लड़कों को भी हास्टल में रहने के लिए कहा गया. आज जो सीज़फायर की खबर आई थी उसके हिसाब से रुस ने रुस और बेलारुस की तरफ का रास्ता दिया था जिससे यूक्रेन ने इंकार कर दिया.

उम्मीद है इस मामले में फिर प्रगति होगी और रास्ता निकलेगा. इस स्तर पर इससे अधिक अटकलें लगाना ठीक नहीं है. वहां के हालात को देखते हुए भरोसा किया जाना चाहिए कि इन्हें निकालने के प्रयास फिर से होंगे.

ये वो चेहरे हैं तो प्रतिबंधों के बीच रुस से बात कर रहे हैं. फोन से बात कर रहे हैं औऱ सार्वजनिक रुप से अपील कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार राष्ट्रपति पुतिन से बात की है और आज भी बात की है. उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति से भी बात की है. इज़रायल के प्रधानमंत्री ने बीचबचाव का प्रयास किया है इस क्रम में वे मास्को भी गए. तुर्की के राष्ट्रपति भी पुतिन से बात कर रहे हैं कि सीज़फायर करें. जर्मनी भी रुस से अपील कर रहा है कि युद्ध रोके. फ्रांस ने भी पुतिन से बात कर सीज़फायर के लिए मनाने का प्रयास किया है. मैंकरां ने युद्ध के पहले भी बात की थी.

रशिया टुडे रूस का सरकारी मीडिया है. इसकी खबर है कि रूस के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि यह कदम रुस के राष्ट्रपति पुतिन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैंकरा की बातचीत के बाद उठाया गया है. दोनों के बीच रविवार को बात हुई थी. मैंकरों ने नागरिकों की रक्षा के लिए सीज़फायर की रक्षा की मांग की थी.

मैरियूपोल में नागरिकों को निकालने के पहले के प्रयास असफल हो गए, दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर आरोप लगाया गहै. रुस के रक्षा मंत्री ने कहा कि आज सुबह दस बजे से लेकर शाम सात बजे तक अस्थायी सीज़फायर होगा. रूस और बेलारुस की तरफ नागरिकों को आने का रास्ता दिया जाएगा. रविवार को रुस के राष्ट्रपति पुतिन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैंकरा की बातचीत के बाद सीज़फायर का एलान हुआ है. मैंकरों ने नागरिकों की रक्षा के लिए सीज़फायर की रक्षा की मांग की थी. यूक्रेन के मैरियूपोल में नागरिकों को निकालने के लिए मानव गलियारा बनाने का प्रयास दो दो बार असफल रहा. रविवार को भी सहमति बनी थी लेकिन रुस ने हमला बोल दिया. इस युद्ध के कारण यूक्रेन के पंद्रह लाख से भी ज्यादा नागरिक विस्थापित हो चुके हैं.

यूक्रेन में अफ्रीका के 16000 छात्र मेडिकल की पढ़ाई पढ़ते हैं. यह संख्या भारतीय छात्रों के बराबर के करीब ही है. कई अफ्रीकी देशों का दूतावास भी यूक्रेन में नहीं है लेकिन नाइजीरिया ने अपने नागरिकों को बड़ी संख्या में निकाला है.

फ्रांस 24 की खबर के अनुसार नाइजीरिया ने पोलैंड, रोमानिया और हंगरी में फंसे 1300 छात्रों को लाने के लिए मैक्स एयर और एयर पीस के विमानों का बंदोबस्त किया है. गार्डियन की खबर के अनुसार नाइजीरिया के राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी ने 5000 नाइजीरियाई नागरिकों को निकालने के लिए साढ़े आठ लाख यूरो की राशि मंज़ूर की है. एक तरफ सरकार हर नागरिक को निकालने का आश्वासन दे रही है तो दूसरी तरफ उसकी ढिलाई को लेकर वहां के मानवाधिकार लेखकों के संगठन ने राष्ट्रपति की आलोचना भी की है. नाइजीरिया के अखबार डेली पोस्ट की खबर है कि कई नागरिकों ने पोलैंड हंगरी से अपने देश लौटने से इंकार कर दिया है. उनका कहना है कि नाइजीरिया उससे ज्यादा असुरक्षित है.

प्रधानमंत्री कहते हैं कि अपने नागरिकों को पोलैंड रोमानिया से सुरक्षित निकालना भारत के बढ़ते वर्चस्व का प्रभाव है. भारतीय नौजवान अपने दम पर यूक्रेन से बाहर आए और तब भारत सरकार के भेजे विमान से स्वदेश लौटे. लेकिन इसी तरह का प्रयास तो एक गरीब देश नाइजीरिया भी कर रहा है. नाइजीरिया के नौजवान भी अपने दम पर यूक्रेन से बाहर आए और तब रोमानिया पोलैंड से उन्हें विमान से लाया जा रहा है. क्या नाइजीरिया का भी दुनिया में प्रभाव बढ़ गया है ? यह कैसे होता है कि भारत के लिए एक ही तरह का अभियान से दुनिया में उसके बढ़ते वर्चस्व का प्रमाण बन जाता है और उसी तरह के अभियान क लिए नाइजीरिया का ज़िक्र नहीं होता.

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