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डीयू चुनाव : ईवीएम के फर्जीवाड़े पर टिका भाजपा का आत्मविश्वास

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डीयू चुनाव : ईवीएम के फर्जीवाड़े पर टिका भाजपा का आत्मविश्वास

एक यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ के चुनाव तो ईवीएम से ढंग से नहीं हो पाते हैं और चुनाव आयोग दावा करता है ईवीएम की पवित्रता और निष्पक्ष चुनाव का.

पिछले कुछ सालों से दिल्ली यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट यूनियन के चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यूज़ की जा रही है. इस बार के चुनाव में भी यही हुआ. डीयू चुनाव में सचिव पद के लिए उम्मीदवार थे कुल 8, नोटा का बटन मिलाकर कुल हुए 9, लेकिन ईवीएम ने 10वें नंबर के बटन पर भी 40 वोट पड़ गए. ये करिश्मा कैसे हुआ कोई नहीं जवाब दे रहा.

जब ईवीएम को लेकर सवाल उठने लगे तो आधी रात को चुनाव आयोग ने सफ़ाई पेश की कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में जो ईवीएम यूज़ हुई वो हमारी है ही नहीं, हमने कोई ईवीएम जारी नहीं की. डीयू ने वो मशीन निजी तौर पर मंगाई होंगी. पर चुनाव आयोग ने यह नहीं बताया कि उसके अलावा ऐसी कौन सी अथॉरिटी है जो ईवीएम जारी कर सकती है ?? क्या निज़ी रूप से ईवीएम किसी के लिए भी उपलब्ध है ? या चुनाव आयोग को छोड़कर अब ईवीएम परचून की दुकान पर भी मिलने लगी है ??

देश में कितनी ईवीएम बनी ? कितनी यूज़ में है ? कितनी देश के बाहर बेची गई है ? विदेशों से आयात की गई चिप को कौन से लोग असेंबल करते हैं ? ईवीएम की स्क्रैप का क्या होता है ? भारत इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड के अलावा और कौन-कौन सी कंपनियां हैं जो ईवीएम असेंबल कर रही ??

जिस तरह से मुख्य चूना आयुक्त ओमप्रकाश राऊत सत्ता के गलियारों में गलबहियां करते फिरते हैं उससे तो नहीं लगता कि वो ईवीएम की संदिग्धता के जवाब देने वाले हैं. और ईवीएम की कृपा से 5 साल तो क्या 50 साल भी बीजेपी की ही सरकार बनेगी.

ईवीएम के भरोसे ही अमित शाह बोलता है कि बीजेपी अंगद का पांंव हैं कोई नहीं हिला सकता. ईवीएम से ही मिला आत्मविश्वास है कि नरेंद्र मोदी 2019 की बात नहीं करता बल्कि उसकी हर योजना, हर प्लान, हर पॉलिसी 2022 के टारगेट वाली होती है. इसी भरोसे मोदी 56 इंची निर्लज्जता लेकर घूमता है. इस ईवीएम का ही भरोसा है कि भगवे गुंडे किसी को भी सरेबाज़ार मार देते हैं. हिंदू भीड़ मॉब लिंचिंग करती है, अडानी-अंबानी देश को छोटे-छोटे पीस करके बेचता है, पैट्रोल महंगा किया जाता है और इंसानी जान सस्ती …. सब कुछ इस ईवीएम के भरोसे ही है.

सोता हुआ विपक्ष का महागठबंधन, सोता हुआ मीडिया और रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरी करने में ही हलाकान होते आम लोग. यदि सब यूंं ही शांत रहे तो अंतिम सांंसे गिन रहे लोकतंत्र की मौत 2019 में ही निश्चित है.

– दिग्विजय

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