पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
मुख्य चुनाव आयुक्त महाशय, कारण प्रकट होने पर जो समस्या का समाधान ढूंढता है उसे खरल मस्तिष्क का व्यक्ति कहते हैं जबकि बुद्धिमान तो उस कारण के प्रकट होने से पहले ही उस पर विचार कर उसका समाधान हासिल कर लेता है. जैसे कोरोना का समाधान बहुत पहले ही यानी पिछले साल भी किया जा सकता था लेकिन एक खरल मस्तिष्क के व्यक्ति के कारण पूरा देश आज भी घरों में कैद है और बेमौत मर रहा है. अतः आपसे निवेदन है कि ईवीएम सिस्टम को बॉयोमीट्रिक वोटिंग में समय रहते रिप्लेस कर लीजिये अन्यथा बाद में ये खरल मस्तिष्क वाले नेता चुनाव आयोग को ऐसे ही चुना लगाते रहेंगे और एक दिन ऐसा भी आयेगा जब चुनाव आयोग सिर्फ सत्ता का जी-हुजूरी करने वाला चापलूस डिपार्टमेंट बनकर रह जायेगा.
क्यों कोरोना जैसी महामारी में लोगों की जान जोखिम में डालकर उन्हें वोटिंग बूथ पर आने को मजबूर किया जा रहा है जबकि हरेक आदमी अपने-अपने फिंगर प्रिंट्स लेकर पैदा होता है और साधारणतया उसकी कोई नकल नहीं कर सकता. उसमें गड़बड़ी की संभावना नहीं के बराबर होती है तो फिर वोटिंग एप्प बनाकर बायोमेट्रिक सिस्टम से चुनाव क्यों नहीं करवाया जाता ?
जब सरकारी योजनाओं से लेकर कोरोना जैसी महामारी तक के लिये एप्प बनाया जा सकता है तो वोटर्स के लिये क्यों नहीं ? जब पुरे भारत का वैक्सीनेशन रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन किया जा सकता है तो ऑनलाइन वोटिंग क्यों नहीं ? जब सब जगह बायोमेट्रिक सिस्टम लागू किया जा रहा है तो चुनाव में क्यों नहीं ? जब सब वस्तुओं को आधार से जोड़ दिया गया है तो वोटर्स को क्यों नहीं ? क्यों हर चुनाव में आप नयी मशीनें खरीदने में जनता का धन बर्बाद कर रहे हैं और पार्टियों / नेताओं को गड़बड़ी करने की संभावनाओं को हवा देते हैं ?
मशीन कोई भी हो उसे बनाया तो इंसान ने ही है न और जिसने बनाया है वो उसे हैकिंग करने के बारे में भी अच्छे से जानता है अथवा उसमें गड़बड़ कैसे की जा सकती है वो भी उसे पता होता है. पिछले लोकसभा चुनाव के समय गायब हुई 19 लाख मशीनों के लापता होने का चुनाव आयोग के पास आज भी कोई आधिकारिक जवाब नहीं है जबकि हम जैसे सब लोग अच्छे से जानते हैं कि ये मशीनें भाजपा के पास है और लोकसभा में भाजपा ने आपकी मशीनों की जगह अपनी मशीनें बदली थी, जिसमें वोट की सेटिंग भाजपा के फेवर में थी और इसी कारण 2019 में पूरे भारत में भाजपा फिर से काबिज हुई. लेकिन हम आम नागरिक हैं इसलिये हमारे पास कोई सबूत नहीं है लेकिन फेसबुक पोस्टों के माध्यम से आपके लाइव आंकड़ों की गड़बड़ियों को मैंने सबसे पहले उजागर किया था.
भले ही आज देश में जजों को डरा-धमकाकर / मारकर / गायब करके देश की न्याय व्यवस्था तक को कुछ लोग अपने कब्जे में ले चुके हैं लेकिन ऐसे में भी बहुत से ऐसे जज है जो बिना किसी से डरे अपनी बात कहते हैं. ऐसे ही एक मद्रास के मीलॉर्ड ने तो सीधे-सीधे आपको कह भी दिया था कि ऐसी महामारी की स्थिति में आपने चुनावी रैलियों की परमिशन कैसे दी ? और जब ऐसा हो रहा था तब आप कौन-से ग्रह पर भ्रमण करने गये हुए थे ? आपसे मैं कहना चाहता हूं कि आप सत्ता के चाटुकार नहीं बल्कि टी. एन. शेषन बनने का प्रयास कीजिये क्योंकि टी. एन. शेषन जैसे लोग मरने के बाद भी भारत की जनता के दिल में बसते हैं (उनके विषय में आज भी ये उक्ति प्रसिद्ध है कि वो नास्ते में नेताओं को खाते थे). अतः वोटिंग सिस्टम में ट्रांसपेरेंसी लाइये और बायोमेट्रिक सिस्टम लागु कीजिये और हां, कोई भी मतदाता अपना मत कभी भी देख सके कि उसने जिसे वोट दिया है, वो यथावत ही है न. ताकि नेता के काम न करने पर नेता के पक्ष में दिया गया मत वोटर वापस ले सके.
स्विट्जरलेंड समेत कई देशों में अगर 50000 आदमी किसी साधारण अर्जी पर भी हस्ताक्षर कर देते हैं तो वहां के नेताओं को उस मामले को संसद में गंभीरता के साथ लेना पड़ता है और अगर वो कानून संबधी हो तो उसे कानून भी बनाना पड़ता है. जब वहां ऐसा संभव है तो भारत में सच्चा लोकतंत्र लागू हो इसके लिये आप ऐसा कोई प्रयास क्यों नहीं करते ?
ये आपकी जिम्मेदारी और आपका कर्तव्य है कि आने वाले समय में राइट-टू-रिकॉल (जो कि इन नेताओं की तानाशाही का अंत करेगा) के लिये रास्ता खोलिये क्योंकि ये बायोमेट्रिक सिस्टम ही राइट-टू-रिकॉल का सबसे बड़ा आधार है और जो चुनाव आयुक्त इसे लागू करेगा, उसका नाम भारतीय लोकतंत्र में स्वर्णिम अक्षरों में हमेशा के लिये अमिट रूप में लिखा जायेगा.
आप ये सोच लीजिये कि आपको एक टुच्चा-सा राजयपाल / लोकपाल जैसा कोई पद चाहिये या फिर गाँधी / नेहरू और शेषन की तरह करोडों लोगों के दिलों में हमेशा के लिये राज करने वाला पद चाहिये. जिस दिन कोई चुनाव आयुक्त बायोमेट्रिक सिस्टम लागू कर देगा, इन बदमाश तानाशाह नेताओं की सारी अय्याशियां बंद हो जायेगी.
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