ईवीएम के साथ एक नई और अलग समस्या पैदा हुई है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता. जब मतपत्र से चुनाव होते थे, तो हर बूथ से डब्बा आता था. काउंटिंग के वक्त, सारे डब्बे खोले जाते. एक जगह गिरा दिये जाते.
फिर कर्मचारी उन्हें 50-50 के बंडल बनाते. काउंटिंग के आधे दिन यही काम चलता था. जब सारे बंडल बन जाते तो उन्हें काउंटिंग टेबल भेजा जाता.
टेबल पर पार्टियों के एजेंटों के सामने, कैंडिडेट वार गिना जाता. हर वोट नंगी आंखों से चेक होता. काउंटिंग शीट में एंट्री होती, टोटल होता.
यह धीमी प्रक्रिया थी. एक एक राउंड दो-तीन घण्टे चलता.
ईवीएम ने नतीजे तेज कर दिये. डब्बा उठाओ, बटन दबाओ. मशीन पहले टोटल वोट बताएगी, फिर कैंडिडेटवार बताएगी.
इसमें एक नई चीज हुई.
वह बूथ, वह मोहल्ला, वह गांव, वह बस्ती…वहां भाजपा के कितने वोट हुए, कांग्रेस के कितने एकदम साफ है. हर पार्टी, हर कैंडिडेट जानता है कि उसे कहां समर्थन मिला, कहां मार पड़ी.
आपको पता है कि कौन सा इलाका आपको वोट करता है. वहां रहने वाले समुदाय की जाति, धर्म के विश्लेषण से कौन सी कम्युनिटी आपको वोट करती है, कौन सी नहीं करती है, यह भी साफ साफ पता चलता है. यह डेटा 2 काम करता है.
यह चुनावी रणनीति बनाने में हेल्प करता है. इसके बाद चुनाव बड़े ही उच्च कोटि का वैज्ञानिक कर्म बन गया है. इससे डाटा वाले बाबू लोगों की चांदी हो गयी है. दूसरा असर, जनता के लिए समस्या पैदा करता है.
नेता दो तरह के होते हैं – याने फलां क्षेत्र से वोट नहीं मिलता, उधर ज्यादा काम करना है. अथवा, फलां क्षेत्र से वोट नहीं मिलता, तो उधर काम ही क्यों करना !
और दुर्भाग्य से, दूसरे किस्म के कुंठित नेता ज्यादा है. नतीजा, जिधर से वोट नहीं मिलता, उधर विकास के काम नहीं होते. सड़क, बिजली, पानी का रोना लेकर जाईये. नेता कड़क कर बोलेगा – ‘मुझे वोट दिया था क्या ?? नहीं न, तो भाड़ में जाओ !!’
अब तो यह भी है कि फलां इलाके साध लिए तो दूसरे इलाके, दूसरी कौम, दूसरी जाति भाड़ में जाये. उन्हें टिकट नहीं देंगे, प्रतिनिधित्व नहीं देंगे, अवसर नहीं देंगे.
उनकी सत्ता जिस खास इलाके से बनती है, उसके हित, उसकी धौंस, उसके लाभ के बेजा काम भी करेंगे, जिनसे हमारी सत्ता सुरक्षित है. हम तो उन्हीं के नेता है, उनके विधायक, मंत्री, सीएम और पीएम है.
बूथ लेवल से यह पार्शियलिटी शुरू होकर शीर्ष तक जाती है. समाज के विभाजित होने का एक यह कारण भी है. नेता, विधायक, सीएम, पीएम अब अपने हर मतदाता, प्रत्येक प्रदेशवासी, प्रत्येक देशवासी का खैरख्वाह नहीं है.
फर्स्ट पास्ट द पोस्ट सिस्टम में आप 35-40% लोगों के समर्थन से हड्डी तोड़ बहुमत पा जाते हैं तो हमारा नेता, 62% जनमत को इग्नोर करता है. पूरी बेशर्मी से आपको कपड़ों से पहचानता है. बताता नहीं, पर हमेशा जता देता है – ‘आई एम नॉट योर पीएम…!’
EVM से जुड़े अतर्क और कुतर्क…
EVM से जुड़ी कोई बात करें तो कुछ अतर्क आपके सामने रखे जाते है. ज्यादातर आपको विषय से भटकाते हैं, जिन्हें समझने की जरूरत है. मेरा आग्रह प्रोसेस की सन्देहहीन पवित्रता (Sanctity beyond doubt) का है.
चुनाव, एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिस पर देश का भविष्य निर्भर है. इसे सिर्फ भरोसे पर नहीं चलाया जा सकता. प्रोसेस बेरिफायबल होनी जरूरी है. वेरिफाई एक ही तरीक़े से हो सकता है- नंगी आंखों से देखकर.
EVM मुझे नंगी आंख से कुछ नहीं दिखाता. वह एजम्पशन देता है. एकजाई टोटल देता है. यानी, मशीन में टोटल 100 वोट पड़े, राम को 30, श्याम को 35 … लेकिन मेरा वाला वोट किसके बंडल में गिना जा रहा है, नहीं बताता. यही अपारदर्शिता है.
लोकतंत्र की सर्वोच्च प्रोसेस, जो मुझ नागरिक का सबसे बड़ा संवैधानिक अधिकार है, किसी अनवेरिफाइड प्रोसेस, गुप्त से होकर क्यूं गुजरे ??
अतर्की कहते हैं कि मुझे आरोप साबित करना चाहिए. मगर मैं क्यों करूं भाई ?? इसकी सत्यता तो सरकार को साबित करनी है न….या इसके समर्थकों को.
बड़े मजे की बात, इसकी पवित्रता की कसम खाने वाले वाले खुद अनक्वालीफाईड हैं. वे भी साबित नहीं कर सकते कि उनका वोट किस बंडल में गया. इसपे शक करने वाले भी अनक्वालीफाईड है.
क्वालीफाइड तो चंद लोग हैं जो इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्प्यूटिंग की समझ रखते हैं, देश का 0.1%.
मतपत्र के लिए एक, दो, तीन की गिनती करने को पूरा हिन्दुस्तान क्वालीफाइड है. यानी, राह चलता वोटर भी, अफसर भी, और काउंटिंग टेबल पर बैठा, किसी पार्टी का अधगंवार एजेंट भी…लेकिन हम, आप, अफसर और एजेंट देख समझ नहीं सकते कि EVM के सोर्स कोड में क्या लिखा है.
सब लोग टोटल देखते हैं. मशीन के टोटल वोट – टूं sss 1500, टूं sss कडिडेट 1- 675 टूं sss कंडिडेट 2 – 173…
जैसे मोबाइल यूज करने वाले अरबों लोगों को उसके प्रोग्राम कोडिंग का नहीं पता, EVM यूज करने वालों को भी अंदर का कुछ नहीं पता. मशीन हैंडल करने वाले, विविपेट इंस्टाल करने वाले इंजीनियर को भी नहीं पता. जापान से क्या लिखकर आया है, विविपेट इंस्टालेशन के समय 150 वे वोटिंग के बाद कौन सा जादू सक्रिय हो गया (या नहीं हुआ) किसी को नहीं पता.
सबको केवल टोटल देखना है, भरोसा करना है. लेकिन मतपत्र के 50 पन्ने होते तो काला कुत्ता भी छाप देख देख कर बंडल बना लेता और एक-दो-तीन कहते हुए उंगलियों पर गिन लेता. एकदम पारदर्शी प्रक्रिया, जिसको वेरिफाई करने के लिए पहली कक्षा पास व्यक्ति भी क्वालीफाईड है.
लोकतन्त्र का फैसला सबसे कम पढ़े लिखे की मेधा और भरोसा जीतने वाला होना चाहिए.
विविपेट की बात करें. पर यह तो और खतरनाक है. घी कनस्तर में घुसा चूहा निकालने के नाम पर बिल्ली डाल दी गयी है क्योंकि पहले तो मशीन की इंटेलिजेंस को यह नहीं पता था कि कौन से बटन में कौन सा छाप बैठा है. अब उसे यह भी पता है. टेम्परिंग के इच्छुक का काम और आसान हो गया.
कुतर्की व्यक्ति, इस सवाल को जल्द से जल्द भाजपा कांग्रेस पर ले जाना चाहता है. या फिर –
- तुम्हारे पास सबूत नहीं.
- जाओ आंदोलन करो,
- हार गए तो ठीकरा फोड़ रहे.
- Slept पर उतरो,
- आधुनिक तकनीक का उपयोग करो..
- कांग्रेस ही तो लायी थी.
- तब कहां थे,
- फलां फलां फलां जगह तो जीत गए.
भाई, मुझे केवल पारदर्शिता चाहिए. मेरे वोट की गणना सही बंडल में हुई, इसका विश्वास चाहिए. बस…, यह विश्वास डायरेक्ट चाहिए. यानी, मुझे इशू किये गए मतपत्र क्रमांक 16380 को जिस पर मैंने नारियल छाप पर ठप्पा लगाया था, वह वोटिंग टेबल पर, नंगी आंख से, नारियल के बंडल में दिखे. जीत हार किसकी, ये सवाल भाड़ में जाये.
मतपत्र से भाजपा हार जाएगी, कांग्रेस जीत जाएगी, ऐसा गुमान मुझे भी नहीं. कांग्रेस की हजारों कमजोरियां हैं. वो मतपत्र से भी हार चुकी है. 77 में हारी, 89 में हारी, राज्यों में सैकड़ों बार हारी लेकिन EVM जैसी अपारदर्शी प्रक्रिया हर पार्टी की जीत हार को शको शुबहे में लाती है.
भाजपा और मोदी ज्यादा जीत रहे हैं, इस अपारदर्शी प्रक्रिया की ढाल बन रहे हैं. चुनाव आयोग औऱ सुप्रीम कोर्ट ढाल बन रहा है. वह तो विविपेट पर्ची तक को पूर्णतया गिनवाने को राजी नहीं. तो शक और गहराना लाज़िम है. हम क्यों न माने कि मुर्गी देकर, बकरा लेने का खेल है.
कांग्रेस, राहुल या विपक्षी दल इस मुद्दे पर क्या रुख लेते हैं, वह उनका सिरदर्द है. मेरा पक्ष इतना है कि प्रक्रिया पारदर्शी हो और मुझ जैसा, या आप जैसा कोई भी अन क्वालीफाइड व्यक्ति, हर स्टेप में इसे वेरिफाई कर सके, इतना सरल हो.
मेरा वोट सही जगह गिना जाये, और प्रमाणन योग्य प्रक्रिया से हो, क्या एक नागरिक और वोटर के बतौर मेरी यह मांग नाजायज है ??
- मनीष सिंह
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