विष्णु नागर
भारत में आजकल केवल एक सत्यवादी बचा है – वन एंड ओनली सत्यवादी, बाकी 2014 के मध्य तक मरखप गये और जो बचे हैं, सब असत्यवादी हैं. सारी पार्टियों के सारे नेता, सारे बच्चे-बूढ़े-जवान, किसान-मजदूर-व्यापारी-नौकरीपेशा, पुरुष-स्त्रियां, अध्यापक-डाक्टर-जज सब के सब. इस देश के गरीब भी असत्यवादी हैं. सच्चा, केवल एक है, सत्यवादी केवल एक है.
130 करोड़ के देश में अकेला है एक सत्यवादी ! कितना भारी जुल्म है उस पर. इस देश के लोग उसकी यह हालत देख कर भी चुप हैं. दया,धरम का मूल माननेवाले सब लोग अपनी आंखों के सामने यह अन्याय होते देख रहे हैं. केवल एक पर सच बोलने का सारा बोझ डाल दिया गया है. उसकी कमर झुकी जा रही है.
कई बार लगता है कि इतने बोझ तले रास्ते में ही वह कहीं गिर न जाए. कुछ ऐसा-वैसा न हो जाए मगर कोई उसकी सहायता के लिए आगे आता नहीं. वह गाना लोग भूल चुके हैं- ‘एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना… ‘. मुझे जरूर कभी-कभी उस पर दया-सी आ जाती है, पर मैं भी कोई कमखुदा नहीं. एक कविता ठोंक कर मुदित मन से उसे पोस्ट कर देता हूं. लाइक अपनी झोली में डाल, आगे बढ़ जाता हूं.
इससे आप अंदाज लगा लो कि जब मेरा यह हाल है तो बाकी का क्या होगा? हे ईश्वर, हे अल्लाह, तू देख रहा है न ! वैसे तेरी नजर से छुपा क्या है ? और मत देख यह अन्याय. कर कुछ उसके लिए. बैठा मत रह. परसाद खाकर मस्त मत रह. तू कहे तो तेरी मदद के लिए मैं एक कविता और ठोक दूं, पर तू कुछ कर भाई, कुछ कर !
लोग इतने हृदयहीन हैं प्रभु कि उस सत्यवादी पर अपना बोझ भी डाल रहे हैं. हमारी तरफ से भी सच तू ही बोल. इतना ही नहीं ये उसकी तारीफ करने की बजाए हंसी उड़ाते हैं. कहते हैं कि बेटा और बोल सच, देख लिया न नतीजा ! हम झूठ बोलकर मस्त हैं और तू सच बोलकर सजा भुगत रहा है मगर वन एंड ओनली सत्यवादी, ऐसी बातों पर कान नहीं देता. बोझ ढोये जाता है. सच बोले जाता है.
थकना और रुकना, वह जानता नहीं. नींद किस चिड़िया का नाम है, उसे पता नहीं, आराम किसे कहते हैं, इसकी उसे खबर नहीं. हगना- मूतना तक उसने सत्य की सेवा की खातिर छोड़ रखा है. और क्या करे बेचारा ! उसका यह कमिटमेंट एक और कविता मांगता है. लिख दो मेरे कवि मित्रों तुम्हीं लिख दो एक कविता. मैं ही कब तक लिखता रहूं ! मैं विषय भी दे देता हूं.
सत्यवादी ने अभी कहा है कि मैंने पिछले आठ वर्षों में ईमानदारी से भारत निर्माण का प्रयास किया है, जिसका सपना महात्मा गांधी और सरदार पटेल ने देखा था. यही नहीं ‘मैं किसी के खिलाफ नहीं. मैं लोकतंत्र के लिए समर्पित पार्टियों का मजबूत विपक्ष देश में चाहता हूं.’ इससे बड़ा ‘सत्य’ तो बड़े -बड़े सत्यवादी भी कभी बोल नहीं पाए इनक्लुडिंग राजा हरिश्चंद्र और महात्मा गांधी ! उसकी इस ईमानदारी पर कौन बलि-बलि नहीं जाएगा ? कवि होकर भी मेरे मित्र इस पर एक कविता तक न लिख सकें, इससे बड़ा दुर्भाग्य देश का क्या हो सकता है-परिवारवाद भी नहीं !
अच्छी बात यह है कि आज के इस समय में सच बोलनेवाले को भी समर्थक मिल जाते हैं और उसके तो दिनदूनी, रात चौगुनी गति से बढ़ते गये हैं मगर समर्थक भी चालाक होते हैं. मौखिक समर्थन करके पीछे हट जाते हैं. उसका 100 ग्राम बोझ भी हलका नहीं करते. वह बेचारा अपनी सलीब खुद ढो रहा है.
कहा जा रहा है कि वह लालची हो चुका है. उसे लगता है कि कहीं किसी और ने उसका बोझ कुछ दूर तक भी हल्का कर दिया तो वन एंड ओनली सत्यवादी होने का जो गौरव उसे हासिल है, वह छिन जाएगा. एंटायर सत्यवादी होने की जो डिग्री उसे मिली हुई है, वह फर्जी सिद्ध हो जाएगी ! इसी डर से वह किसी को अपना बोझ साझा करने नहीं देता. कोई जबर्दस्ती करे तो उसे जोर का एक थप्पड़ रसीद कर देता है. फिर भी वह न माने तो दस जगह से उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा देता है. फिर भी न माने तो सीबीआई, ईडी, सब लगवा देता है.
उससे यह सहन नहीं होता कि लोगों को एक भी ऐसा बहाना मिले, जिससे कोई उसका यह ताज छीनकर खुद पहनने की हिमाकत कर सके ! सत्य पर उसकी बादशाहत के लिए खतरा बने लोग तब उसे धन्यवाद देने लग जाएंगे. इससे उसने जो तपस्या केदारनाथ की गुफा में बाकायदा फोटू खिंचवाकर की है, उस पर पानी फिर जाएगा. आजकल लोग वैसे भी दुष्ट लोग बाल्टीभर पानी लेकर बाहर इंतज़ार में बैठे रहते हैं कि सत्यवादी कुछ कहे, कुछ करे कि उस पर पानी फेर दें. खबरदार, होशियार, सत्य के चौकीदार, प्रधानसत्यवादी. कह दो दुनिया से – सत्य मेरी जायदाद है. इस पर कोई नजर गड़ाएगा तो उसका जीना हराम कर दूंगा. ये सत्य, सत्य है, सत्य-सत्य !
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