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रुस-नाटो महायुद्ध में रूस की बादशाह

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अमेरिकी साम्राज्यवाद का इतिहास पराजयों से भरा हुआ है. कोरियाई युद्ध, वियतनाम युद्ध, अफगान युद्ध में अमेरिकी साम्राज्यवाद ने सदैव पराजयों का मूंह देखा है. यहां तक की द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हार के कगार पर पहुंच चुके जापान के दो शहरों में परमाणु का इस्तेमाल कर उसने मानवता के प्रति जिस नरसंहार को अंजाम दिया था, वह उसके माथे पर चिपका अमिट कलंक है. यानी, दुनिया भर में युद्ध व्यापार को प्रोत्साहित करने वाले अमेरिकी साम्राज्यवाद मानवता के इतिहास का सबसे बड़ा कलंक है.

अब जब वह अपनी इसी युद्ध व्यापार के तहत युक्रेन में अमेरिकी साम्राज्यवाद बुरी तरह फंस चुका है, तब उसका महाशक्ति होने का अहंकार बुरी तरह चूर-चूर हो चुका है. सोवियत संघ में मौजूद सोवियत गद्दारों के मदद से सोवियत संघ को 15 टुकड़ों में विभाजित करने से उत्साहित अमेरिकी साम्राज्यवाद अब रुस को एक बार फिर 43 टुकड़ों में बांटने का मंसूबा पाले अमेरिकी साम्राज्यवाद अब रुस की युद्ध नीति से खुद को टुकड़ों में बंट जाने के खतरे से घिर गया है.

विश्व मानवता के महान नेता लेनिन और स्टालिन ने जिस नीति की बुनियाद पर सोवियत संघ को खड़ा किया था, वह आज भी रुस का रीढ़ बना हुआ है और अमेरिकी साम्राज्यवाद के नेतृत्व में 81 देशों के संयुक्त हमलों से रुसी जनता ही नहीं अब विश्व की जनता का रक्षा कर रहा है. कहना न होगा अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसके नाटो गिरोह न केवल विश्व की मेहनतकश जनता का सबसे बड़ा शोषक गिरोह है अपितु आगामी समाजवादी क्रांति का सबसे बड़ा दुश्मन भी है.

यह अनायास नहीं है कि दम साधे विश्व की मेहनतकश जनता युक्रेन युद्ध में रुस के साथ खड़ी देख रही है और रुस के साथ खड़ी न केवल खड़ी है बल्कि रुस का नैतिक और यथासंभव भौतिक समर्थन भी कर रही है. भारत जैसे देश का शासक वर्ग मोदी सत्ता को देश की जनता का ही डर है जिसके कारण वह इस युद्ध में अमेरिकी साम्राज्यवाद और नाटो के समर्थन में खड़ा होने का साहस नहीं दिखा पा रहा है, वरना अमेरिकी कुत्ता मोदी सत्ता रुस के विरोध में सब कुछ कर गुजरती.

दो महायुद्धों से गुजरने वाले विश्व मानवता का सबसे बड़ा योद्धा सोवियत संघ आज भी विश्व मानवता के लिए अपनी मानवीय मूल्यों के साथ जिस कदर लड़ रहा है वह न केवल बेहद जरूरी है बल्कि अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसके नाटो गिरोह को ध्वस्त करने के लिए विश्व मानवता की बुनियादी जरूरत है. कहना न होगा दो स्पष्ट टुकडों में बंटा युक्रेन का एक हिस्सा जहां रुस के समर्थन में है, वही दूसरा हिस्सा हिटलर के नाजीवाद का प्रबल समर्थक है, जिसका पक्षपोषण अमेरिकी साम्राज्यवाद और नाटो गिरोह कर रहा है.

यूक्रेन युद्ध के चंद हफ्ते में घुटना टेक चुका था नवनाजी हिटलर

कहना न होगा हिटलर के यह नवनाजी यूक्रेनी जेलेंस्की रुसी फौज की टुकड़ी के सामने चंद हफ्ते में ही घुटने टेक चुका था और रुस के साथ समझौता कर चुका था लेकिन अमेरिकी शह पर यह नाजी जेलेंस्की उस समझौता को तोड़कर न केवल रुस और रुसी जनता बल्कि यूक्रेनी जनता के खिलाफ खड़ा हो गया और उसे मौत के मूंह में धकेलने के अपने कुत्सित मंशा में जुट गया.

विदित हो कि नाजी जेलेंस्की जहां रुस के आम नागरिकों पर हमला कर रहा है वहीं, वह यूक्रेनी नागरिकों को घरों से खींच खींचकर युद्ध के मोर्चा पर मरने के लिए भेज रही है, जिस कारण बड़े पैमाने पर यूक्रेनी ‘सैनिक’ आत्महत्या कर लहे हैं. खबर के अनुसार विगत कुछ ही दिनों में तकरीबन 6 हजार से अधिक हताश यूक्रेनी ‘सैनिकों’ ने आत्महत्या कर लिया है.

कुछ महीनों पहले रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने एक बड़ा खुलासा करते हुए कहा था कि –

‘पिछले साल जब रूसी सेना सैकड़ों टैंक के साथ कीव शहर पहुंची थी तब मार्च 2022 में यूक्रेन ने रूस के साथ एक समझौता किया था. समझौते के मुताबिक अगर रूसी सेना कीव से लौट जाती है तो यूक्रेन, रूस के उन शर्तों को मान लेगा यानी यूक्रेन अपनी सैन्य क्षमता को सीमित रखेगा और नाटो का सदस्य बनने की कोशिश नहीं करेगा.

‘तुर्की (तुर्किए) के राष्ट्रपति अर्दोगान के पहल पर इस्तांबुल में हुए इस समझौते में यूक्रेन के डेलीगेशन ने हस्ताक्षर भी किया था. रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि समझौते के बाद जब रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी कीव से वापस लौटी तो यूक्रेन ने धोखा दे दिया और अपनी बातों से पलट गया.’

यह खुलासा तब हुआ जब रूस-यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करने के लिए अफ्रीकी देशों का एक प्रतिनिधिमंडल दोनों देशों के दौरे पर थे और अफ्रीकी प्रतिनिधियों के साथ पोलैंड के अधिकारियों ने बदतमीजी किया था और अफ्रीकी प्रतिनिधियों ने रंगभेद का आरोप लगाया था. इसके बाद अफ्रीकी प्रतिनिधियों ने पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति जलेस्की से मुलाक़ात की और फिर रूस आकर राष्ट्रपति पुतिन से मिले थे.

रुस के राष्ट्रपति पुतिन ने उन अफ्रीकी नेताओं को पिछले साल इस्तांबुल में हुए उस समझौते के दस्तावेज भी दिखाये और कहा कि रूस-यूक्रेन के बीच समझौते के बाद नाटो ने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जाँनसन को कीव भेजा और ब्रिटेन के दवाब में यूक्रेन उस समझौते से हट गया.

तुर्की में हुए इस समझौते के मुताबिक़ रूस को यूक्रेन के उत्तरी भाग यानी- कीव, सूमी, चर्निहीव से अपने सेना हटानी थी, बदले में यूक्रेन को अपनी सेना को पचास फ़ीसदी कम करना था. इसके अलावा यूक्रेन को एक न्यूट्रल देश बनना होगा. यूक्रेन को दोनों तरफ़ यानी रूस एवं यूरोपीय देशों के साथ बेहतर संबंध रखना होगा.

इस समझौते को लागू करवाने के लिए अमेरिका, चीन, बेलारूस, तुर्की एवं कुछ अन्य देशों को गारंटी देने वाले के तौर पर चुना गया था. इसके बाद न केवल ब्रिटेन ने इस समझौते को ख़त्म करवा दिया बल्कि इसके बाद यूक्रेन में एक क़ानून बनावा दिया कि रूस के साथ भविष्य में कोई बातचीत नहीं होगी.

इससे साफ पता चलता है कि युक्रेनी ‘जनता’ का संहार करने में अमेरिकी साम्राज्यवाद और नाटो किस कदर पिल पड़ा है. हलांकि यह पूरी तरह सच है कि रुसी सैनिक जहां नवनाजी युक्रेनी के सामरिक ठिकानों पर हमला कर रहा है वहीं नवनाजी युक्रेनी सैनिक न केवल रुस के रिहायशी इलाकों पर हमला कर रही है बल्कि अमेरिकी शह पर प्रतिबंधित कलस्टर बमों का भी इस्तेमाल कर रही है, जिसमें रुस के एक पत्रकार की शहादत भी हो गई.

रुस-नाटो महायुद्ध में रूस की शहंशाही

राजनीतिक मामलों के जानकार पत्रकार ऐ. के. ब्राईट बताते हैं कि नाटो के 81 देशों के गिरोह के सामने युद्ध लड़ रहा महायोद्धा रुस का शहंशाही जारी है, हालांकि ख़बर तो ये भी है यूक्रेनी स्वतंत्रता दिवस 24 अगस्त को नाटो-अमरीका बचे हुए यूक्रेनी हिस्से पर कब्जा कर रूस यूक्रेन युद्ध को खत्म करने वाले हैं, भारतीय रक्षा विशेषज्ञों ने इसे पश्चिमी मीडिया की बेतुकी अफवाह करार दिया है.

रूसी युद्ध रणनीति की कार्यवाही को देखते हुए यूक्रेन के रक्षा सचिव ने सार्वजनिक तौर पर कह दिया है कि “हम रूस से नहीं जीत सकते और न ही अब सिकुड़ चुकी राष्ट्र सीमाओं को बहाल कर सकते हैं…’. पिछले 24 घंटों के दरमियान यानी, 15 अगस्त से आज दोपहर 3 बजे तक रूसी सेना नाटो के सबसे शक्तिशाली हथियारों को राख कर यूक्रेन के एक हथियार कारखाने के परखच्चे उड़ा दिए हैं और 465 यूक्रेनी सैनिकों को ढेर कर दिया है.

यूक्रेनी सेना के एक टॉप जनरल ने कहा है कि लिथुआनिया नाटो शिखर बैठक में यूक्रेन को जो मदद देने की घोषणा हुई थी वह प्रस्तावित मदद का 20 फीसदी से भी कम मिली है, नाटो सदस्य देश मदद के नाम पर पुराने व अक्षम हथियारों को दे रहे हैं …’. वहीं रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने एक और चौंकाने वाली रणनीति बनाकर यूरोपीय देशों के होश फाख्ता कर दिये हैं.

पुतिन ने चेचेन्या कमांडर रमजान कादिरफ को जेपोरेजिया न्यूक्लीयर पावर प्लांट का मुख्य सैन्य कमांडर नियुक्त कर परमाणु बम छोड़ने तक के तकनीकी अधिकार दे दिए हैं. बहरहाल, 31 देशों का गिरोह नाटो और उसका सरगना अमरीका हर तरफ से उजड़ने के कगार पर आ गये हैं.

कई नाटो देश दबी जुबान पर यहां तक कह रहे हैं- ‘रूस को हरा पाना असम्भव है. पुतिन सोवियत काल के युद्ध अनुभवों के आधार पर रणनीति बना रहे हैं और इन रणनीतियों को बनाने के लिए उत्तर कोरिया और चीन के सर्वोच्च युद्ध रणनीतिकार मास्को में डेरा डाले हुए हैं.’

  • ऐ. के. ब्राईट

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ROHIT SHARMA

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