सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग समेत देश की तमाम ऐजेंसियों का बेजा इस्तेमाल करने और तमाम तुम्बाफेरी के बाद नरेन्द्र मोदी ने आखिरकार तीसरी बार सरकार बनाने में ‘कामयाबी’ हासिल कर लिया है. प्रधानमंत्री पद का शपथ भी ग्रहण कर लिया और अपना मनचाहा निर्लज्जता की हद तक जाने वाला अपना स्पीकर भी ‘पंच-परमेश्वर की सीट पर बिठाल दिया है. बस मोदी सरकार की तीसरी बार यही सफलता की कहानी है.
देश की जनता को मोदी सरकार से कभी कोई उम्मीद नहीं रही है. देश की जनता कभी भी मोदी सरकार से भ्रष्टाचार, मंहगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें, मकान, रोजगार की कोई उम्मीद नहीं रखती है. इसलिए मोदी सरकार के तीसरी बार भी सत्ता पर आने से किसी के भी चेहरे पर कोई उम्मीद या उत्साह नहीं दिख रहा है. मोदी के 15 लाख और दो करोड़ रोजगार के वादे के बाद भी कोई उससे मांगने नहीं गया, लेकिन कांग्रेस यानी ‘इंडिया’ गठबंधन के साढ़े आठ हजार देने के बादे पर लोग कटोरा लेकर जरूर पहुंच गए, क्योंकि उन्हें जो भी उम्मीदें हैं, कांग्रेस वाली ‘इंडिया’ गठबंधन से है, मोदी गठबंधन से नहीं.
मोदी की तीसरी बार औने-पौने बनी सरकार फिर से अपने रंगत में आ गई है. राष्ट्रपति मूर्मू की भाषण ने एक बार फिर जतला दिया कि भले ही उसे कितना भी बेइज्जती का सामना करना पड़ा हो और आगे भी करनी हो, लेकिन वह अपने मालिक मोदी के खिलाफ चूं तक नहीं करेगी. उन्होंने अपने भाषण के जरिए यह भी जतला दिया है कि वह भविष्य की ओर नहीं, अतीत में जीती है और यही मोदी सरकार की नियती भी है. जिस तरह पांच दशक पुराने ‘आपातकाल’ का राग अलापा गया, वह यही बताता है.
बी. एम. प्रसाद अपने सोशल.मीडिया पेज पर लिखते हैं- भाजपा से बड़प्पन की उम्मीद करना बेमानी है और नरेंद्र मोदी से बड़ा दिल दिखाने की अपेक्षा करना बेवक़ूफ़ी. संसद सत्र शुरू हुआ, नेता विपक्ष राहुल गांधी और नेता सदन नरेंद्र मोदी एक साथ स्पीकर महोदय को लेकर ऊपर पहुंचे. एक नई शुरुआत की पहल ख़ुद राहुल गांधी ने पहले हाथ बढ़ा कर की.
नेता प्रतिपक्ष के रूप में सदन में उनका पहला वक्तव्य बेहद उम्दा था. धीर गंभीर बात, विपक्ष और लोगों के प्रतिनिधित्व की बात करते हुए – विपक्ष की आवाज़ को जगह दिये जाने की पुरज़ोर पैरवी की. यहां से अगर भाजपा चाहती तो एक अच्छी पहल हो सकती थी. लेकिन छोटे मन के लोगों से बड़ी बातों की उम्मीद करना ही ग़लत है.
स्पीकर ने 49 साल पहले लगी इमरजेंसी का प्रस्ताव रखा. पुराने घाव कुरेदने से क्या हासिल होगा ? इमरजेंसी का निर्णय ग़लत था, इसमें कोई दोराय नहीं है. लेकिन यह भी सच है कि इंदिरा जी ने ख़ुद उस गलती को माना था और लोकतांत्रिक चुनाव कराए थे. यही नहीं, इमरजेंसी से कोई वास्ता ना होने के बावजूद स्वयं राहुल गांधी ने इमरजेंसी को एक गलती बताया है और ऐसा कभी दोबारा ना हो इसीलिए वह संविधान को हर हाल में सुरक्षित रखने के किए प्रतिबद्ध हैं. लेकिन अब क्योंकि छेड़ ही दिया है तो कुछ सवाल पूछ ही लिए जायें –
- एक साथ एक ही सत्र में क़रीब 146 विपक्षी सांसदों को लोक सभा से निलंबित करना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- विपक्षी सांसदों के माइक बंद कर देना, क्या यह एमरजेंसी नहीं है ?
- राहुल गांधी के 14 मिनट के भाषण में 11 मिनट ओम बिरला की शक्ल दिखाना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- जबरन काले कृषि क़ानून, CAA, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, भारतीय न्याय संहिता, 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 पास कराना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- संसद के प्रांगण से छत्रपति शिवाजी महाराज, महात्मा गांधी और बाबासाहेब की प्रतिमाओं को बिना विपक्ष से चर्चा किये बियाबान में डाल देना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- सिर्फ़ वॉइस वोट से क़ानून को पारित कराना, लोकसभा में 35% विधेयक एक घंटे से कम समय में पारित कराना और मात्र 16% बिल को Parliamentary Standing Committee के भेजना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- विधायकों की नीलामी करके चुनी हुई सरकारें गिराना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- विपक्ष को ED, CBI, Income Tax से प्रताड़ित करना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- चुनाव के दौरान मुख्यमंत्रियों को जेल में डालना, मुख्य विपक्षी पार्टी के बैंक खाते बंद करना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- विपक्षी नेताओं की, न्यायाधीशों की, अफ़सरों की, अपने ख़ुद के मंत्रियों की पेगासस से जासूसी करना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- एक साल से जलते हुए मणिपुर को उसके हाल पर छोड़ देना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- चीनी अतिक्रमण से आक्रोशित लद्दाख की अनदेखी करना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- किसानों को सवा साल तक दिल्ली की सरहद पर छोड़ देना जिसमें 750 किसानों की शहादत हो गई, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- किसान नरसंहार के मुख्य अभियुक्त के पिता को गृह राज्यमंत्री बनाए रखना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- रोज़गार की माँग करते युवाओं को पुलिस से बर्बर लाठीचार्ज कराना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- छात्रों को प्रदर्शन करने पर जेल में डाल देना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- पेपर पर पेपर लीक होना, परीक्षाएं स्थगित होना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- 21 साल की क्लाइमेट एक्टिविस्ट को गिरफ़्तार करना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- पत्रकारों पर असहज सच दिखाने के लिए राष्ट्रद्रोह के मुक़दमे लगाना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- मीडिया को अपने बस में करने के बाद सोशल मीडिया और यूट्यूब पर शिकंजा कसने की कोशिश करना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- सोशल मीडिया पर फेक न्यूज़ की सबसे बड़ी फैक्ट्री चलाने के बाद अगर किसी और का पोस्ट ठीक ना लगे तो उसे सीधे जेल में डाल देना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- मनमाने फ़रमानों से लॉकडाउन लगाना, नोटबंदी करना, क्या यह इमरजेंसी नहीं है ?
- औरतों के ख़िलाफ़ जघन्य से जघन्य अपराध हों और सरकार हर बार आरोपी को संरक्षण दे, क्या यह इमरजेंसी नहीं है?
ये चंद सवाल बी. एम. प्रसाद ने अपने सोशल मीडिया पेज पर उठाए हैं, हालांकि सवालों की लम्बी फेहरिस्त है, लेकिन किसी तरह देश की सत्ता पर तीसरी बार काबिज होने वाली मोदी सरकार के लिए ये सवाल कोई अहमियत नहीं रखते. वह एक लोकतांत्रिक देश के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं, कहीं से नहीं दिखता. मध्ययुगीन परंपराओं, अंधविश्वासों, सेंगोल की राजशाही का प्रतीक आदि के सहारे किसी आधुनिक लोकतांत्रिक देश का मूल्य निर्धारित नहीं किया जा सकता.
देश के लोगों के वैज्ञानिक सोच और लोकतांत्रिक मूल्यों की हिफाजत एक ऐसे कायर, संदिग्ध, अंधविश्वासी और अलोकतांत्रिक व्यक्ति के सहारे कभी भी संभव नहीं है, जो खुद को इतना बड़ा समझने लगे कि वे खुद को परमेश्वर ही मान ले. कहना न होगा देश एक ऐसे दुश्चक्र में फंस चुका है जहां शिक्षा हासिल करने के बजाय महज 5 किलो अनाज पर जिंदा रहने को ही लोग अपना सौभाग्य मानने लगे और पढ़ने लिखने को दुर्भाग्य समझ ले. परन्तु, देश.के लोगों ने किसी सांसद को थप्पड़ लगाकर तो किसी के राजशाही ऐश्वर्य पर चप्पल फेंककर अपना प्रतिरोध दर्ज किया है.
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